समकालीन जनमत
पुस्तक

समय, समाज, संवेदना को व्यक्त करती है ‘मेक्सिको: एक घर परदेश में’

ममता सिंह

सवाल है कि आख़िर हम यात्रा वृत्तांत क्यों पढ़ते हैं, किसी जगह, देश की भौगोलिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक जगहों के बारे में तो इंटरनेट पर प्रचुर सामग्री उपलब्ध रहती है, फिर किसी वृत्तान्त में ऐसा क्या होगा जो उसे रुचिकर और अलग बनाता है?
जवाब है लेखक की जगहों, चीज़ों, मनुष्यों के बारे में देखने, सोचने, महसूस करने की वह शक्ति जो उन जगहों, चीज़ों, मनुष्यों को मात्र वर्णन का स्थूल विषय न मानकर उनमें स्पंदित समय, समाज, सम्वेदना के सूक्ष्म तंतुओं को हमारी इंद्रियों तक पहुंचाता है। तो कहना अतिशयोक्ति न होगा कि श्रीकांत दुबे द्वारा लिखित यात्रा वृत्तांत ‘मेक्सिको: एक घर परदेश में’ में हमारी इंद्रियों को सम्मोहित करने के सारे तत्व हैं।
यात्रा वृत्तान्तों में यात्रिक की सहजता, सजगता तथा बहुज्ञता पाठकों को किसी जगह के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों की कोरी सूचनाओं से बचाकर उन अलियों-गलियों की सैर कराता है जो सामान्यतः नेपथ्य में होते हैं। स्वयं यात्रिक में बालक सी जिज्ञासा, युवक सी ऊर्जा और एक प्रौढ़ सा धैर्य होना चाहिए, ताकि वह अपनी यात्रा को जी सके, क्योंकि जो जितना गहरे यात्रा को जियेगा वह उतनी ही संवेदनशीलता से उसे कागज़ पर दर्ज़ करेगा जैसा कि इसी किताब में लेखक ने लिखा है-“एक शहर सिर्फ उसकी भौगोलिक सीमा तक सीमित नहीं होता, वरन उसके वर्तमान में उसका इतिहास भी साँसें लेता रहता है”।
यात्रा की शुरुआती पंक्तियों से ही यात्रिक ने अपनी सहजता और सादगी का परिचय दे दिया-“बहुत सारे लोगों के लिए ऐसी यात्राएँ रोजमर्रा की आम बातों की तरह होती हैं। विमान के भीतर का मेरा पड़ोस ऐसे ही लोगों से भरा था। यह जानने के लिए उनसे पूछताछ करने की ज़रूरत नहीं थी, एयरपोर्ट की सुरक्षा जाँच से लेकर विमान में अपनी जगह पर बैठने तक के प्रक्रम में उनका सहज रहना देखकर ही इस बात का अहसास हो जाता था। ऐसे लोग कम ही थे जिनकी नज़र खिड़की पर ही चिपकी रहे। उन्हीं कम लोगों में से एक मैं था।”
हालांकि लेखक की यह मेक्सिको यात्रा उनकी नौकरी का हिस्सा थी न कि किसी टूरिस्ट की एकदम नियमों में, समय में, अनुशासन में लगी बंधी कोई यात्रा, अतः बहुपठित और सुविज्ञ लेखक ने नौकरी के साथ-साथ मेक्सिको के उन अनजाने, अनछुए पहलुओं की पड़ताल कर डाली जिन्हें सामान्यतः पैकेज टूर वाले टूरिस्ट नहीं कर सकते थे। लेखक का सोचना कितना सही था कि-“कोई भी देश चावल की पतीली नहीं, जिसमें से एक भाग की सख्ती-नरमी देखकर बाकी के हिस्से की असलियत का अंदाजा लग जाये। पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं के समय में तो और भी”।
किताब में आपको बहुत सी भौगोलिक, ऐतिहासिक बातों के साथ -साथ सांस्कृतिक, बौद्धिक तथा कृषि आदि जानकारियां भी मिलती चलेंगी जो कभी आपको हैरत में भी डालेंगी तो कभी उलझन में-“मसलन मेक्सिको का अक्षांशीय विस्तार 14 अंश उत्तर से 33 अंश उत्तर के बीच ठहरता है, जो कि भारत के 6 अंश उत्तर से 35 अंश उत्तरी अक्षांश की सीमा के अंतर्गत आ जाता है। मतलब यहाँ की जलवायु भारत के कर्नाटक से लेकर पंजाब के बीच के राज्यों की जलवायु जैसी है, जोकि गेंहू, चावल और मक्के के साथ तकरीबन उन सभी फसलों की पैदावार के लिए उपयुक्त है जो भारत में होती हैं। फ़र्क है तो सिर्फ किन्हीं खास फसलों को प्रमुख खाद्य के रूप में दी जाने वाली वरीयता तथा उनके प्रयोग के तरीकों का। भारत में मक्का मोटे अनाज की श्रेणी में आता है तथा गेंहू की तुलना में उपेक्षित पाया जाता है, जबकि मेक्सिको में ठीक इसके उल्टा है, जिसके बारे में यहाँ एक मुहावरा प्रचलित है-‘नो पाइस सिन माइस’ अर्थात ‘मक्का नहीं तो देश नहीं’।
इस किताब की एक ख़ासियत और है कि लेखक किसी ख़ास घटना या विडंबना के बारे में बताते हुए व्यंग्य का इतना सटीक प्रयोग करते हैं कि मन झूम उठे लेकिन क्रोध न आये मतलब शब्दों, उपमाओं, उदाहरणों की मीठी चोट जो आपको सोचने पर मजबूर कर दे। लेखक की लेखनी का कमाल है कि हम उनके लिखे वर्णन को पढ़ते हुए कभी मेक्सिको की गलियों में भटक आते हैं तो कभी बाज़ारों में…कभी नदियों को देखते हैं तो कभी समंदर में बहते हैं जैसा कि वह लिखते हैं-“नदियाँ हमारे पुरखों से हमें जोड़ने वाली सबसे पुरानी और सबसे मजबूत कड़ियाँ हैं”।
इस यात्रा में तोनी, रोदाल्फो, फहाद, आमिर, अंकुर, खुलिएता, मारीसोल जैसे प्रेम से भरे पात्र मिलेंगे जो आपको इंसानियत, मुहब्बत पर यक़ीन दिलाने को काफ़ी तो दूसरी तरफ़ गैब्रिएला गार्सिया मार्केस, मारियो बर्गास योसा, खुलियो कोर्तासार और कार्लोस फुएंट्स का ज़िक्र आपको रोमांच से भर देगा। बल्कि लेखक का मार्केस से होते-होते रह जाने वाली मुलाकात बहुत देर तक पाठक को टीसती रहेगी। किताब का आख़िरी अध्याय “मैं तुम्हें छू लेना चाहता था, मार्केस” पढ़ते हुए पाठक हरपल दुआ करेगा कि काश लेखक की उनसे मुलाकात हो जाये और मुलाकात न होने पर वह भी उतना ही मायूस और दुखी महसूस करेगा जितना लेखक।
इस किताब को पढ़कर पाठक मेक्सिको के भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक पहलुओं को बेहतर ढंग से समझ सकेगा ऐसा विश्वास है। यात्रा वृत्तांत के शौकीनों के लिए यह किताब एक उपहार की तरह है जिसे ज़रूर पढ़ा जाना चाहिए।
मेक्सिको-एक घर परदेश में
लेखक-श्रीकांत दुबे
पृष्ठ-128
मूल्य-250रुपये
प्रकाशक-आधार प्रकाशन
(पेशे से अध्यापिका ममता सिंह की पढ़ने-लिखने में बहुत रुचि है। वे अमेठी के अपने गाँव अग्रेसर में सावित्रीबाई फुले नाम से एक पुस्तकालय चलाती हैं। सोशल मीडिया पर ‘बातें बेवजह की’ शीर्षक से एक सुंदर और मक़बूल गद्य श्रृंखला लिखती हैं।)

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