सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद हिंदुस्तान ही नहीं, दुनिया के तमाम देश आजाद हुए। हिटलर की सनक के चलते फ्रांस और ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया और छह साल लंबी चली इस जंग में कुछ देशों के साथ ब्रिटेन भी बर्बाद हो गया। ब्रिटेन के बर्बाद होने का फायदा हिंदुस्तान को मिला और हिंदुस्तान आजाद हो गया। जिनके हाथों में बंदूकें थीं, बहुत लंबे समय तक उन्हें लगा कि दुनिया उनकी है, हुकूमत उनकी ही रहेगी। लेकिन बंदूक कहां सदा साथ देती है। बंदूक का पेट भरने के लिए तमाम संसाधनों को मिटा देना होता है। तमाम लोगों के खाली पेट, बंदूक के पेट की आग को बुझाते हैं। सेकंड वर्ल्ड वॉर खत्म होते-होते दुनिया उस मुहाने पर पहुंच गई थी कि अत्याचारी को भी शायद पेट या बंदूक में से किसी एक को चुनना पड़ता। हिटलर ने खुदकुशी कर ली और अंतत: लड़ाई खत्म हुई। कई देश आजाद हुए। दुनिया को फिर से बसाया जाना था, दुनिया फिर से बसाई जाने लगी। रंगों की गुलामी, नस्लों की नफरतें कुछ पिघलने लगीं।
जिन्होंने बर्दाश्त किया, जो दर्द की इंतहा से गुजरे, जिन्होंने अपने सामने अपनों को बंदूकों से छलनी होते देखा, जिनके पिताओं को, जिनकी पत्नियों को, जिनके बच्चों को गैस चेंबर में यातनाएं दी गईं और मार डाला गया, जिन्होंने बच्चियों और औरतों के बलात्कार देखे, उनके पास पीढ़ियों को बताने के लिए किस्से थे। किस्से थे कि दुनिया फिर से वैसी न हो। हिटलर पूरी दुनिया के लिए आज भी कोई नाम नहीं है, बल्कि हिंसा और नफरत का पर्याय है। सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान 6 सालों में 60 लाख यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया गया। इनमें एक चैथाई बच्चे थे। सेकंड वर्ल्ड वॉर के वे किस्से बताते हैं कि दुनिया को कैसा होना चाहिए, कैसा नहीं होना चाहिए।
ऐसा ही एक किस्सा ऑस्ट्रेलियन उपन्यासकार थॉमस केनेली ने बयान किया। उन्होंने 1982 में एक उपन्यास लिखा ‘सिंडलर्स यार्क’… इस उपन्यास से पता चला कि हिटलर की नाजी पार्टी में कोई ऐसा भी था, जो सवार तो हुआ हिंसा और नफरत की नाव में, लेकिन जब उस पार उतरा तो वह मुहब्बत का फरिश्ता था। यहूदी उसे दीवानों की तरह प्यार करने लगे थे।
भारत में रथ यात्रा निकाली जा चुकी थी। बाबरी ढहाई जा चुकी थी। उधर इराक में संघर्ष बढ़ गया था। 93 के शुरू होते ही बिल क्लिंटन ने 42वें अमेरिकी राष्ट्रपति की शपथ ली थी।
कुछ दिन बाद वर्ल्ड ट्रेड सेंटर ढहा दिया गया था। इसी दौरान थॉमस केनेली के उपन्यास पर अमेरिकन फिल्म मेकर स्टीवन स्पीलबर्ग ने एक फिल्म बनाई- ‘सिंडलर्स लिस्ट’… विश्व सिनेमा में यह एक महानतम फिल्म है। सिर्फ इसलिए नहीं कि सात श्रेणियों में इस फिल्म को अकेडमी अवॉर्ड (ऑस्कर अवॉर्ड) समेत तमाम सम्मान मिले हैं, बल्कि इसलिए कि दुनिया जब सबसे अंधेरी थी, तब रोशनी की एक बारीक लाइन को फिल्मकार दिखाता है। वह बताता है कि नफरतों के हजारों चेहरे किसी को याद नहीं रहते, मुहब्बत की एक नजर सदियों याद रखी जाती है। वह किस्सा बनती है, गीत बनती है, उसकी कब्र आबाद रहती है और वहां यादें दहकती हैं।
इस फिल्म का नायक ऑस्कर सिंडलर (लियाम नीसन) यूं तो एक जर्मन उद्योगपति है, लेकिन वह हिटलर का दीवाना था। तमाम कोशिशों के बाद वह हिटलर की नाजी पार्टी का मेंबर बनता है और सेकंड वर्ल्ड वॉर की आपदा को अवसर बना लेना चाहता है और बना भी लेता है। यहूदियों की इंडसट्रीज, दुकानें, घर सब छीन लिए गए हैं। किसी जीव-जनावर को मार देना अपराध हो सकता है, लेकिन यहूदियों को मार देना कोई अपराध नहीं है।
ऐसे में सिंडलर यहूदियों की एक फेक्ट्री हथियाता है। एक यहूदी इज़ाक स्टर्न को अपना अकाउंटेंट और मैनेजर बनाता है और यहूदी कारीगरों को नौकरी पर सिर्फ इसलिए रखता है, क्योंकि वे बेहद सस्ते में काम करते हैं। इज़ाक स्टर्न का किरदार बेन किंग्सले ने निभाया है। उन्हीं बेन किंग्सले ने जिन्होंने 1982 में आई रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ में महात्मा गांधी का किरदार निभाया था और इसके लिए उन्हें ऑस्कर समेत तमाम अवॉर्ड हासिल हुए थे। बहरहाल, सिंडलर्स लिस्ट पर बात करते हैं। पोलेंड जर्मनों के कब्जे में है और यह पोलेंड का एक शहर है, जहां ऑस्कर सिंडलर बर्तन बनाने की फैक्ट्री लगाता है, जिसका नाम है डीईएफ। जर्मन सेना के बड़े अधिकारियों से या तो उसके रिश्ते ठीक हैं या फिर वह उन सबको खरीद लेता है।
इस आपदा को सभी जर्मन अवसर की तरह देखते हैं। वे सब ज्यादा से ज्यादा पैसा कमा लेना चाहते हैं। तमाम यहूदी कलाकारों, प्रोफेसरों, बीमारों और सवाल करने वालों को तुरंत गोलियों से भून दिए जाने का हुक्म है। शुरू में सिर्फ उनको जिंदा रखा जाता है, जो स्वस्थ हैं और मजदूरी कर सकते हैं। सिंडलर ऐसे ही तमाम मजदूरों को अपनी फैक्ट्री में काम देता है। पोलेंड में तमाम जगहों पर कैंप बनाए जा रहे हैं, गैस चैंबर बनाए जा रहे हैं। नाजी सेना के एक अफसर अमोन गोएथ की पोस्टिंग सिंडलर के शहर में होती है। सिंडलर उससे दोस्ती कर लेता है। लेकिन वह देखता है कि अमोन काम कर रहे मजदूरों को सिर्फ इसिलए मार देता है कि कोई मजदूर काम करते-करते थक गया है और बैठ गया है।
यातनाओं की इन अंतहीन पीड़ाओं को देखकर सिंडलर का हिटलर से मोहभंग हो जाता है। वह यहूदियों से प्यार करने लगता है। वह अपनी फैक्ट्री में उन मजदूरों को भी नौकरी देता है, जिन्हें काम नहीं आता। नाजी पार्टी का एक सदस्य अपनी जीवन यात्रा के उस मोड़ तक पहुंचता है, जहां वह नाजी सेना के लिए गोला-बारूद बनाता है। वह ऐसे बम बनाता है, जो चलते ही नहीं हैं। लोगों को मारने वाले हथियार बनाने की बजाय वह कंगाल होना चुनता है। यह वही आदमी है, जो पैसों के लिए पागल था और जो अब यहूदियों को बचाने के लिए अपना एक-एक पैसा पानी की तरह बहा देता है।
इस फिल्म का पहला सीन कलर है, जिसमें मोमबत्तियां जलाई जा रही हैं। जैसे ही मोमबत्तियां बुझती हैं, फिल्म ब्लैक ऐंड वाइट हो जाती है और पोलेंड की गुलामी तक ब्लैक ऐंड वाइट ही रहती है। देश आजाद होता है उसके बाद फिल्म का आखिरी सीन 28 साल बाद का है, जब तमाम यहूदी ऑस्कर सिंडलर की कब्र पर श्रद्धांजलि देते हैं। यहां फिल्म फिर से अपने तमाम रंगों के साथ मौजूद है। फिल्म के बीच में सिर्फ एक बच्ची लाल कोट पहने जरूर दिखती है। फिल्म मेकिंग के हिसाब से यह कमाल के सिंबल हैं। इस फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक अद्भुत है, लेकिन बहुत-बहुत डिप्रेसिंग। जब-जब यह धुन बजती है, एक हूक उठती है। पोलेंड की आजादी से ठीक पहले वाला सीन आपको हिलक-हिलक कर रुलाएगा।
कोई चूमे तो यूं चूमे
उसके बारे में कहा जाता था कि वह औरतों के लिए पागल था। तमाम औरतें उस पर मरती थीं। सिंडलर जब किसी पार्टी में होता था, तब यह बात साबित भी हो जाती थी। लेकिन शायद यह बात उस तरह नहीं थी, जिस तरह कही जाती थी। तमाम औरतें उसकी नजदीकी हासिल करना चाहती थीं। वह भी उनके बीच खुद को ज्यादा अच्छा महसूस करता था। वह शादीशुदा था। अपनी पत्नी एमिली को खूब प्यार करता था और एमिली उसके हर काम में एक दोस्त की तरह उसके साथ हमेशा खड़ी थी। बावजूद इसके उसकी दिलचस्पी तमाम औरतों में थी। पार्टियों में वह हर उस औरत को चूमता था, जो उसे चूमना चाहती थी।
…लेकिन किसी यहूदी औरत को चूमना गुनाह-ए-अज़ीम था। इसके पीछे नैतिक मसला कितना था, यह तो ठीक-ठीक नहीं पता, लेकिन जैसे हिंदुस्तान में कहा जाता रहा है कि बंगाली औरतें जादूगरनी होती हैं, वैसे ही नाजी अफसरों का मानना था कि यहूदी औरतों से दूर रहना चाहिए, वे वश में कर लेती हैं। यह बात यहां तक थी कि नाजी पार्टी के संविधान में यहूदी औरतों से रिश्ते रखने की सजा जेल की सलाखें थी। ऑस्कर सिंडलर नाजी पार्टी का मेंबर भी था और उसे सब नियम-कायदे पता थे। बावजूद इसके उसके जन्मदिन की पार्टी में उसकी कंपनी में काम करने वाली एक यहूदी औरत पूरे यहूदी समुदाय की तरफ से जब केक लेकर आती है, तो वह भरी महफिल में भावुक होकर उस लड़की को चूम लेता है। सिंडलर को इस अपराध के लिए हिरासत में भी लिया जाता है। लेकिन यह किस्सा इस वजह से नहीं सुनाया जा रहा है।
इस किस्से के पीछे एक यहूदी औरत है- हेलन। हेलन क्रूर और अत्याचारी नाजी अफसर अमोन गोएथ की नौकरानी थी। अमोन हर यहूदी से बेइंतहा नफरत करता था, लेकिन हेलन को वह जब-जब देखता, कमजोर पड़ने लगता। वह उसकी नजदीकी चाहता और हेलन को यह अख्तियार ही न था कि वह मना कर दे। लेकिन अमोन अपने उस नाजी संविधान से बंधा हुआ था, जिसमें यहूदियों को इंसान न मानकार कोई चूहा या कीड़ा-मकोड़ा माना गया था। दरअसल यह संविधान नहीं, बल्कि एक ऐक्ट था- ‘Enabling Act of 1933’. इस ऐक्ट ने हिटलर को बहुत शक्तिशाली बना दिया। हिटलर जर्मनी में 1933 में ही अपनी पूरी शक्ति के साथ उभरा था और 1945 में खुदकुशी करने तक वह बहुत ताकतवर रहा।
वह राष्ट्रवाद, जर्मनों को एक करने और उनके विकास के नाम पर आया था। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक देश का एक बड़ा तबका उसका भक्त था। उसने अपनी एक खुद की फौज बनाई थी- एसएस। शायद इस ऐक्ट से प्रभावित होकर ही 1939 में आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर ने एक किताब लिखी- ‘We or our nationhood defined’. इस किताब में मुसलमानों और ईसाइयों के लिए वही नफरत मिलती है, जो नाजियों के मन में यहूदियों के लिए थी। इस किताब में साफ-साफ कहा गया है कि मुसलमान और ईसाई या तो हिंदू रीति-रिवाज और मान्यताओं को स्वीकार करें और उसी तरह बर्ताव करें या फिर सेकंड सिटिजनशिप के लिए तैयार रहें। हिंदुस्तान का राष्ट्रवाद हो या फिर नाजी जर्मनों का, दुनिया के ज्यादातर राष्ट्रवाद के पीछे धर्म ही रहा है। तो राष्ट्रवाद के लिए जो जंगें लड़ी गईं दुनिया में उनके पीछे धर्म ही थे।
कितनी आश्चर्यजनक बात है कि यहूदी, ईसाई और फिर इस्लाम, इन तीनों धर्मों के पुरखे एक ही हैं। तीनों की पवित्र किताबों में उनका नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है। कुरान में जीजस या यीशु को ईसा अलैहिस्सलाम कहा गया और पैगंबरों में उन्हें बड़ा दर्जा हासिल है। कुरान में किसी एक स्त्री का सबसे ज्यादा जिक्र मिलता है तो वह मरियम हैं, जिन्हें बाइबिल में मदर मैरी पुकारा जाता है। यहूदियों के पैगंबर मोसेज और जिब्रील का जिक्र कुरान और बाइबिल में कई बार आता है। मोसेज इस्लाम में मूसा अलैहिस्सलाम और जिब्रील जिब्राईल अलैहिस्सलाम हैं और दोनों बड़े पैगंबर हैं। लेकिन इन तीनों धर्मों बीच दुनिया में इतनी बड़ी लड़ाइयां हुई हैं कि करोड़ों लोग मारे जा चुके हैं। सबसे बड़ी कीमत यहूदियों ने चुकाई है। उनसे मुसलमानों ने भी नफरत की और ईसाइयों ने भी। सदियों की यही नफरत हिटलर तक आती है और हिटलर से उसके नाजी अफसर अमोन गोएथ तक। अमोन हेलन से प्रेम करना चाहता है। वह जंग के खत्म होने का इंतजार कर रहा है।
एक बार वह सिंडलर से कहता भी है कि जब जंग खत्म हो जाएगी तो वह हेलन को अपने साथ ले जाएगा। लेकिन नाजी पार्टी के मेंबर के लिए जब यह संभव नहीं होता, तो वह हेलन के प्रति इतनी मुहब्बत दिखाने की बात कहता है कि उसे जंगल में ले जाकर आसान मौत मार दे। सिंडलर की तरह अमोन तमाम औरतों के साथ रिश्तों में नहीं है। उसे एक ऐसी लड़की से प्रेम हुआ, जिसे वह चूम नहीं सकता। किसी यहूदन को चूम तो सिंडलर भी नहीं सकता। सिंडलर किसी एक को प्रेम भी नहीं करता। वह तमाम यहूदियों से प्रेम करने लगता है, जिनमें स्त्री, पुरुष सभी हैं। हेलन ने कभी सिंडलर से कहा नहीं, लेकिन उसकी आंखों में सिंडलर के लिए प्रेम का पारा चमकता रहता है। फिल्म में सिंडलर एकांत में सिर्फ अपनी पत्नी एमिली से ही मिलता दिखाया गया है, बाकी सभी स्त्रियों से वह पार्टियों में ही मिलता है, चूमता है, प्यार करता है। ऐसे में उसकी ठीक-ठीक मनोदशा पता नहीं चलती। यह तब पता चलती है, जब वह अमोन के घर के एक अंधेरे कोने में हेलन से मिलता है। बेहद डरी हुई हेलन कहती है कि वह (अमोन) उसे मार देगा। सिंडलर उसे दिलासा देता है कि अमोन ऐसा कभी नहीं करेगा, क्योंकि वह उससे प्रेम करता है। इन पलों में दोनों बहुत भावुक हो जाते हैं। सिंडलर हेलन को चूमने के लिए अपना चेहरा आगे लाता है। हेलन आश्चर्य के साथ अपने होंठ आगे करती है। सिंडलर की आंखों में पानी उतर आया है। वह उससे कहता है कि नहीं, ये वह वाला चुंबन नहीं है। वह उसका माथा चूमता है। ऐसे, जैसे कोई अकीदतमंद मुसलमान कुरान चूमता है।
शोषक के लिए माफ करना आसान नहीं
पता नहीं किसी जवान मुसलमान लड़की के मरने पर ऐसा होता है या नहीं, लेकिन जवानी में अपनी मां के जिंदा रहते जब कोई मुसलमान लड़का मर जाता है, तो दफनाने से पहले मां अपने मरे हुए बेटे के कान में कहती है कि ‘जा मैंने तुझे अपना दूध माफ किया।’ यह रस्मन ही कहा जाता है कि भूल-गलती से भी बेटे से कोई चूक हो गई हो तो उसे माफ कर दिया जाए। तमाम धर्मों में माफी मांगने और माफ करने का बड़ा महत्व है।
दरअसल माफ करने या माफी मांगने या बगैर माफी मांगे ही माफ कर देने जैसी किसी बात को ठीक-ठीक शोषक और शोषित ही समझ सकते हैं। तीसरा आदमी माफी के भाव की डेंसिटी को शायद ही उस तरह समझ पाए। बहुत संभावना है कि वह मानवता की मिसाल दे और दूध माफ करने जैसी रस्मन गतिविधि की तरह इसे समझे। जिस तरह एक हिंदू और एक मुसलमान की दोस्ती की अनगिनत कहानियां मिल जाती हैं, उस तरह एक ईसाई और एक यहूदी या एक मुसलमान और एक यहूदी की दोस्ती की कहानियां, फिल्में मेरी जानकारी में नहीं मिलतीं। एक सामान्य व्यवहार में दुनिया के एक हिस्से में यहूदी ईसाइयों और मुसलमानों से नफरत करते हैं।
मुसलमान और ईसाई भी यहूदियों से नफरत करते हैं, लेकिन दोनों की नफरतों को एक जगह खड़े होकर नहीं देखा जा सकता। कोई मुसलमान और ईसाई उनसे इस बुनियाद पर नफरत करे, उससे पहले उसे सिंडलर्स लिस्ट का वह सीन याद कर लेना चाहिए, जिसमें कैंपों में अधिक लोग हो गए हैं और कम करने के लिए इनमें से बीमार और अनुपयोगी लोगों को गैस चैंबरों में यातनाएं देकर मारा जाना है। सभी औरतें, मर्द और बच्चों को कड़ाके की ठंड में नंगा करके दौड़ाया जा रहा है और इनमें से जो अस्वस्थ लगते हैं, उन्हें अलग किया जा रहा है। याद कीजिए सूरज उगने से लेकर डूबने तक मेहनत करने वालीं और ठीक से खाना न मिलने पर कमजोर हो गईं उन औरतों को, जो अपनी उंगलियों में सुइयां चुभोकर खून निकालती हैं और अपने गालों पर मलती हैं, जिससे कि वे स्वस्थ लगें। याद कीजिए उस छोटे बच्चे को, जिसकी मां उस कैंप के अंदर जा रही है, जहां से वह थोड़ी देर में धुआं-धुआं हो जाएगी। याद कीजिए उन लोगों को जिनको कब्रों से निकालकर जानवरों की तरह शहर से बाहर जल रही आग में झौंक दिया जाता है। क्या त्रासदी है कि यहूदियों के स्वास्थ्य को चेक करने वाले सीन के दौरान एक डॉक्टर अमोन का चेकअप कर रहा है और वह कहता है कि आप अस्वस्थ हैं।
दरअसल शोषक का माफ करना और शोषित का माफ करना एक जैसा नहीं हो सकता। फिल्म के एक सीन में अमोन नशे में चूर है। वह लड़खड़ा रहा है और उससे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा। शराब सिंडलर ने भी पी हुई है, लेकिन सामान्य है। वह सिंडलर से कहता है कि जितनी बार देखता हूं तुम्हें, पाता हूं कि तुम्हें नशा नहीं होता। इसे कहते हैं खुद पर कंट्रोल पाना। कंट्रोल मतलब पॉवर। असली पॉवर। सिंडलर कहता है कि क्या इसीलिए वह (यहूदी) हमसे डरते हैं। अमोन कहता है कि हमें छूट है कि हम उन्हें गोली मार दें, इसलिए वह हमसे डरते हैं।
सिंडलर कहता है कि हमें अधिकार है कि हम उन्हें मार दें, लेकिन यह न्याय हुआ, शक्ति नहीं। शक्ति वह है जब हम उन्हें मार सकते हों, तब छोड़ दें। इस बातचीत के बाद अमोन कहता है कि अब तुम्हें नशा हो गया है।
इस फिल्म में हिटलर नहीं है। हिटलर का एकाध दफा कहीं नाम भर आता है। लेकिन अमोन और तमाम नाजी अफसर हिटलर हैं। हिटलर तमाम फ्रेम में मौजूद है, जैसे आपके कमरे में हवा होती है। जॉर्ज आरवेल का उपन्यास 1984 जिन्होंने पढ़ा है, वे जानते होंगे कि उस उपन्यास में बिग ब्रदर कहीं नहीं है, लेकिन हर ऐक्टिविटीज को बिग ब्रदर ही रिमोट कर रहा होता है। इससे ज्यादा खतरनाक कुछ हो नहीं सकता कि कोई आपके बीच न हो और आपको हरदम लगे कि कोई आपको देख रहा है। यहूदियों को मारने का अधिकार तमाम नाजी अधिकारियों को था। वे बगैर किसी कारण के उन्हें मार देते थे। अमोन अगर किसी मजदूर को सुस्ताने के लिए भी बैठा देखता तो मार देता। अगर उसे किसी के चलने का ढंग पसंद नहीं आता, तो वह मार देता। अगर कोई यहूदी बहुत पढ़ा-लिखा, इंटेलिजेंट है और मजदूरी कर रहा है तो वह उसे मार देता। किसी भी पल मर सकते हैं, इस आशंका के बीच जिंदा सिर्फ वही रह सकते थे, जो अच्छे कारीगर थे, जो ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर सकते थे और जो अमोन के सामने नहीं आते थे।
फिल्म के जिस सीन की हम बात कर रहे थे, उसमें सिंडलर कोशिश करता है कि अमोन का हृदय बदल दे। कम से कम इतना कि वह किसी को बेवजह न मारे। वह अमोन से कहता है कि असली पॉवर वह है, जब आपके पास अधिकार है मारने का और आप उस वक्त में उसे माफ कर दें। इस दिन के बाद अगले एक दिन अमोन अच्छा होने की कोशिश करता है। वह अस्तबल में काम करने वाले यहूदी लड़के को और काम के दौरान तंबाकू खाते हुए पकड़ी गई एक यहूदन को माफ कर देता है। घर लौटने पर उसके बाथ टब के दाग न छुटा पाने वाले यहूदी लड़के से कहता है कि जाओ तुम्हें माफ किया, लेकिन अमोन जब खुद को बाथरूम के आइने में देखता है तो उसे असली अमोन दिखता है, उसकी उंगलियां कांप रही होती हैं और घर से निकल मैदान में पहुंच चुके लड़के पर वह निशाना तान देता है।
दुनिया में जो युद्ध फिल्में बनी हैं, ज्यादातर के केंद्र में द्वितीय विश्व युद्ध रहा। इसे केंद्र में रखकर न जाने कितने उपन्यास लिखे गए, न जाने कितनी कहानियां लिखी गईं। हिंदी में 1964 में आई चेतन आनंद की फिल्म ‘हक़ीकत’ को छोड़ दें तो कोई अच्छी युद्ध फिल्म नजर नहीं आती। सिंडलर्स लिस्ट समेत दुनिया की बेहतरीन युद्ध फिल्में दुनिया की बेहतरीन प्रेम कहानियां हैं।