समकालीन जनमत
पुस्तकसाहित्य-संस्कृति

सामाजिक चेतना का जनवादीकरण ज़रूरी- ईश मिश्र

भगवान स्वरूप कटियार की किताब ‘जनता का अर्थशास्त्र’ का लोकार्पण

लखनऊ। कवि व लेखक भगवान स्वरूप कटियार की किताब ‘जनता का अर्थशास्त्र’ का लोकार्पण यहां इंडियन काॅफी हाउस, हजरतगंज में मार्क्सवादी लेखक ईश मिश्र ने किया.

कार्यक्रम का आयोजन जन संस्कृति मंच की ओर से किया गया। इस मौके पर प्रो रमेश दीक्षित, वन्दना मिश्र, दयाशंकर राय, हिरण्मय धर, सुभाष राय, शिवाजी राय, बंधु कुशावर्ती, के के शुक्ला, ओ पी सिन्हा, राम किशोर, वीरेन्द्र त्रिपाठी, आशीष अवस्थी, सी एम शुक्ला, नरेश कुमार, ज्ञानप्रकाश आदि मौजूद थे। सभी का स्वागत और कार्यक्रम का संचालन जन संस्कृति मंच उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कवि कौशल किशोर ने किया।

भगवान स्वरूप कटियार की पहचान मुख्य तौर पर कवि के तौर पर है। अब तक उनके पांच कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वे सामाजिक व राजनीतिक विषयों पर भी लिखते हैं। पिछले दिनों उनकी वैचारिक किताब ‘अन्याय की परम्परा के विरुद्ध’ आयी थी। उसी कड़ी में ‘जनता का अर्थशास्त्र’ हाल में दिल्ली के प्रकाशक ए आर पब्लिशिंग कम्पनी से छपकर आयी है।

इस पुस्तक पर बोलते हुए ईश मिश्र ने कहा कि नवउदारवाद के दौर की अर्थनीति को कटियार जी वैज्ञानिक नजरिये से विश्लेषित करते हैं। दुनिया के पूंजीवादी चकाचैंध की असलियत को वे सामने लाते हैं और उस यथार्थ से पाठक को मुखातिब करते हैं जो शोषण व गरीबी का अंधेरा है। कटियार जी की किताब स्थितियों को बदलने के लिए भी मानसिक खुराक देती है। इस मायने में यह वैचारिक हथियार का काम करती है।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में वर्तमान हालात और इस दौर में सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों की क्या भूमिका हो, इस पर चर्चा हुई। ईश मिश्र का कहना था कि ऐसा सोचा जा रहा था कि मोदी सरकार चुनाव में चली जाएगी। पर ऐसा नहीं हुआ। यह सरकार अपना एजेण्डा लागू करेगी। आज रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ, खेती आदि को लेकर संकट गहरा है। जनता के पैसे पर बैंकों का नियंत्रण है और उसका इस्तेमाल पूंजीपतियों द्वारा हो रहा है। सरकार द्वारा आर्थिक अपराधियों को बेल आऊट किया जा रहा है। बी एस एन एल सहित तमाम उद्योग संकट में हैं। उन्हें बन्द कर देने की योजना है। सरकार की पूंजीपरस्त नीतियों की वजह जन आंदोलन बढेगा।

वामपंथ के हालिया प्रदर्शन पर ईश मिश्र का कहना था कि कम्युनिस्टों ने संख्या बल को जन बल में नहीं बदला। मतलब उनका राजनीतिकरण नहीं किया। चुनाव व संगठन साधन न होकर साध्य बन गये। आज एक नये संगठन बनाने का विचार आ रहा है। लेकिन यह विचार सही नहीं है। कोई संगठन बनाना आसान काम नहीं है। कम्युनिस्ट पार्टियों के एकीकरण की बात आ रही है। आवश्यकता इस बात की है कि वामपंथी दल अपनी आत्मालोचन करे कि उनका इस कदर जो क्षरण हुआ है, हो रहा है, वह क्यों है। नृपेन चक्रवर्ती और माणिक सरकार का व्यक्तिगत रूप से ईमानदार होना एक बात है लेकिन अधिक महत्वपूर्ण है नीतियां। त्रिपुरा और बंगाल में वाम जनाधार भाजपा में गया, इसके कारणों की गहन पड़ताल जरूरी है। कम्युनिस्टों को लोगों के बीच जाना होगा। उनकी चेतना को उन्नत करने का काम करना होगा। सामाजिक चेतना का जनवादीकरण जरूरी है।

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion