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केवल शब्दजाल है उत्तराखंड का बजट

उत्तराखंड सरकार द्वारा 18 फरवरी 2019 को प्रस्तुत वर्ष 2019-20 का बजट केवल शब्दजाल का पुलिंदा मात्र है, जिसकी एकमात्र विशेषता यह कि उसमें केंद्र और राज्य सरकार की पूर्व में की गई घोषणाओं का बखान ऐसे किया गया है, जैसे कि ये घोषणाएं ही उपलब्धियां हों.

यह तक ध्यान नहीं रखा गया कि यह केंद्र का नहीं राज्य सरकार का बजट है. इसलिए बजट में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन का काम शुरू होना, देहरादून-काठगोदाम के बीच नैनी एक्सप्रेस ट्रेन का चलना,चार धाम परियोजना सड़क निर्माण का विवरण ऐसे दिया गया है, जैसे ये केंद्र की योजनाएं न हो कर उत्तराखंड सरकार की उपलब्धियां हों.ऐसा करने में माननीय वित्तमंत्री भूल गए कि केंद्र और राज्य में भले ही एक सरकार एक ही पार्टी की हो,पर वो एक सरकार नहीं वरन दो सरकारें हैं, जिनका कार्य एवं अधिकार क्षेत्र अलग-अलग हैं.

रोजगार और पलायन का जिक्र बजट भाषण में बार-बार है परंतु उनके समाधान के लिए किसी ठोस कार्ययोजना का अभाव है. यदि राज्य सरकार रोजगार के प्रति सचमुच गंभीर है तो उसे प्रदेश में रिक्त लगभग 60 हजार पदों पर तत्काल नियुक्ति करनी चाहिए.

पर्वतीय कृषि का उल्लेख है परंतु कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है. धरातल पर स्थिति यह है कि विभिन्न कारकों के चलते लोग कृषि से विमुख हो रहे हैं या फिर अपनी मेहनत के अनुरूप न उन्हें मूल्य मिल रहा है,न उत्पादन हो रहा है. जंगली जानवरों का हमला तो पर्वतीय कृषि,पशुपालन और मनुष्य जीवन पर बना ही हुआ है.

बजट में दुग्ध उत्पादन के संदर्भ में बड़ा दावा वित्तमंत्री ने किया है. जमीनी स्थिति यह है कि सिमली और श्रीनगर(गढ़वाल) स्थित दुग्ध डेरियाँ सरकारी उपेक्षा के चलते बेहद बुरी हालत में हैं.
अस्पताल ही बीमार अवस्था मे हैं पर सरकार अटल आयुष्मान जैसी बीमा योजना को दवाई बता रही है. जबकि सरकारी अस्पतालों में या तो डॉक्टर नहीं हैं या फिर सरकारी कार्यप्रणाली के चलते वे नौकरी छोड़ रहे हैं. बागेश्वर इसका ताजा उदाहरण हैं, जहां सरकारी बेरुखी के चलते साल भर पहले नियुक्त दो डॉक्टरों ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया.

गैरसैण को उत्तराखंड की राजधानी बनाये जाने के लिए उत्तराखंड में निरंतर आंदोलन है. लेकिन राज्य सरकार गैरसैंण के मामले में नित नए जुमले उछालती रहती है. पिछले वर्ष के बजट में कहा गया था कि गैरसैंण में अंतरराष्ट्रीय संसदीय अध्ययन शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान बनेगा,इस बार कहा गया है कि झील के निर्माण के सर्वे का कार्य प्रारंभ हो गया है.

केदारनाथ में निर्माण कार्यों को उपलब्धि के तौर पर पेश किया गया है, जबकि यह कार्य तो 2013 की आपदा के बाद से चल रहे थे. सवाल तो यह है कि केदार घाटी और उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों में आपदा प्रभावितों के विस्थापन के लिए क्या ठोस प्रयास किये गए?

बजट में 11 जनपदों में विकास प्राधिकरण बनाने को उपलब्धि बताया गया है, जबकि ये जिला विकास प्राधिकरण भ्रष्टाचार और लालफीताशाही के अड्डों के रूप में लोगों के लिए जी का जंजाल बनने लगे हैं. बागेश्वर में तो इसका खिलाफ बड़ा आंदोलन चल रहा है, अल्मोड़ा आदि अन्य स्थानों पर भी सरकार की इस तथाकथित उपलब्धि के खिलाफ लोग संघर्ष कर रहे हैं.

उत्तराखंड में इन्वेस्टर्स मीट में हुए एम.ओ.यू को सरकार की उपलब्धि बजट बताता है. जबकि देश के विभिन्न राज्यों में ऐसे इन्वेस्टर्स मीट का इतिहास बताता है कि ये एम.ओ.यू सिर्फ आकर्षक आंकड़ों से अधिक कुछ भी नहीं हैं.एम.ओ.यू के साथ उनके क्रियान्वयन की कोई अनिवार्य शर्त नहीं होती,इसलिए उनके जरिये रोजगार सृजन की बात एक खामख्याली ही है. यह भी याद रखा जाना चाहिए कि इस इन्वेस्टर्स मीट के जरिये राज्य की भाजपा सरकार ने राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि भूमि की खरीद पर से सभी बंदिशें विधेयक पास करवा कर हटा ली है. इसलिए इन्वेस्टर्स मीट को यदि किसी बात के लिए याद रखा जाना चाहिए तो वह है, जमीनों की खुली लूट का रास्ता कानूनी तरीके से खुलवाने के लिए.

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