आरा। ‘‘ आज का दौर भारतीय लोकतंत्र के लिए एक नाजुक दौर है। इस दौर में लोकतंत्र को बचाने की जो चुनौती है, उसके लिए राजनीति के साथ सांस्कृतिक स्तर पर भी एक शक्तिशाली आंदोलन तेज करना होगा। हमारे शिक्षक और कामरेड मधुकर सिंह के साहित्य का यही संदेश है।’
यह बातें 2 जनवरी को धरहरा, आरा में जन संस्कृति मंच, भोजपुर द्वारा सुप्रसिद्ध कथाकार, गीतकार, संपादक और शिक्षक मधुकर सिंह की जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आरा सांसद कामरेड सुदामा प्रसाद ने कही।
‘ लोकतंत्र के योद्धा साहित्यकार मधुकर सिंह ’ विषयक परिचर्चा में अपने विचार व्यक्त करते हुए सुदामा प्रसाद ने कहा कि जब वे पढ़ाई के लिए आरा आए तो यहां की क्रांतिकारी वैचारिक गतिविधियों और ‘ युवा नीति ‘ से उनका जुड़ाव हुआ। उन्होंने मधुकर सिंह को उस सांस्कृतिक-वैचारिक मोर्चे पर अभिभावक की तरह भूमिका निभाते हुए पाया। उन्होंने कहा कि वह दौर आज की तरह आसान नहीं था। पुलिस और सामंतों के दमन का सामना करना पड़ता था। लेकिन दमन का जनता प्रतिरोध भी करती थी और चाहती थी कि उनके प्रतिरोध की सच्चाई को भी नाटकों में दर्शाया जाए। इसी कारण ‘ युवा नीति ‘ ने रमेश उपाध्याय लिखित नाटक ‘ हरिजन दहन ‘ का अंत बदल दिया था। मधुकर सिंह के साथ वे लोग रमेश उपाध्याय से मिले थे और नाटक के अंत में यह दिखाने की इजाजत ली थी कि जनता लड़ भी रही है।
भोजपुरी गीतों में बढ़ चुकी अश्लीलता का काट करने की जरूरत पर जोर देते हुए उन्होंने एक वाकया सुनाया कि जिन दिनों भोजपुर में बिहार प्रदेश किसान सभा के आंदोलन के दौरान दिन में सभाएं और रात में नाटक होते थे, उसी दौरान एक गांव में सामंतों ने नाटक की प्रस्तुति के समय लौंडा नाच रख दिया, पर दर्शक नाटक देखने के लिए ही उमड़े।
कामरेड सुदामा प्रसाद ने कहा कि मधुकर सिंह ने भोजपुर में सामंतवाद विरोधी लड़ाई लड़ने वाले नायकों की कहानियां लिखीं। भाकपा-माले उसी संघर्ष की वैचारिक परंपरा को आगे बढ़ा रही है। जमीन से उभरे हुए नायक आज भी साहस के साथ संघर्ष के मैदान में टिके हुए हैं।
कार्यक्रम के प्रारंभ में सांसद सुदामा प्रसाद समेत उपस्थित सभी लोगों ने मधुकर सिंह के चित्र पर माल्यार्पण कर उनकी याद में एक मिनट का मौन रखा।
विषय प्रवर्त्तन और संचालन करते हुए कवि-आलोचक सुधीर सुमन ने कहा कि मधुकर सिंह ने स्त्री-दलित-भूमिहीन किसान, खेत मजदूर सबके लोकतांत्रिक अधिकारों के संघर्ष को अपनी कहानियों और उपन्यासों का विषय बनाया। उनके पात्र शिक्षा और समानता की लड़ाई लड़ते हैं। वर्णव्यवस्थाजनित शोषण और धार्मिक पाखंड का वे विरोध करते हैं। वे स्त्री मुक्ति के प्रश्न को दलित मुक्ति से जोड़कर देखते हैं। उनके पात्र बेरोजगारी, महंगाई तथा श्रम के शोषण और हर तरह के अन्याय के खिलाफ लड़ते हैं। जाहिर है आज भारत में सरकारी संरक्षण में ये सारी समस्याएं नये सिरे से उभर उठी हैं, जो मधुकर सिंह के साहित्य को और अधिक प्रासंगिक बना रही हैं।
जन संस्कृति मंच, बिहार के अध्यक्ष कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने कहा कि मधुकर सिंह के लेखन ने भोजपुर आंदोलन को ऊर्जा प्रदान किया। क्रांतिकारी धारा के ऐसे साहित्यकारों को याद करना बहुत ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि कुछ मायने में मधुकर जी का साहित्य फणीश्वरनाथ रेणु के साहित्य से भी आगे है। उनके नायक सामंती उत्पीड़न, सामाजिक भेदभाव और अन्याय के साथ-साथ धर्मांधता के खिलाफ भी संघर्ष करते हैं।
वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र ने कहा कि मधुकर सिंह वर्गीय संघर्ष की चेतना को धार देने वाले साहित्यकार थे। उन्होंने शोषित, दलित, पिछड़ों की लोकतांत्रिक लड़ाई को आवाज देने का काम किया।
मधुकर सिंह के पुत्र ज्योति कलश ने कहा कि उनके बाबू जी लेखन और शिक्षा के माध्यम से समाज को बदलना चाहते थे।
संस्कृतिकर्मी रवि प्रकाश सूरज ने कहा कि मधुकर सिंह ने बहुत पहले ही भारतीय लोकतंत्र की कमजोरियों को चिह्नित कर लिया था। वे मानते थे कि दलितों और स्त्रियों को असली आजादी नहीं मिली है। इसलिए उन्होंने दलित-स्त्री मुक्ति को अपने साहित्य का केंद्रीय प्रश्न बनाया। उन्होंने बाल साहित्य भी लिखा है, जिस पर सरकार द्वारा सुनियोजित तरीके से शिक्षा की बर्बादी के इस दौर में विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए।
समाजसेवी दुर्गावती कुमार मौर्या ने कहा कि आज भी महिलाओं का शोषण हो रहा है और उन्हें अपने अधिकारों के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है। ऐसे में मधुकर सिंह का साहित्य हमारे लिए प्रेरणादायक है। उनकी रचनाओं में दबी-कुचली महिलाओं का संघर्ष मनगढ़ंत नहीं है।
रामरेखा राम ने कहा कि विचार को व्यवहार में उतारना होगा। भाकपा-माले जिला कार्यालय सचिव का. दिलराज प्रीतम ने कहा कि वे हमलोगों को राजनीति और समाज के बारे में शिक्षा देते थे।
जनकवि निर्मोही ने इस अवसर पर ‘ मिली जुली तेज करीं जा न्याय की लड़इया ’ नामक जनगीत सुनाया।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कवि सुमन कुमार सिंह ने कहा कि मधुकर जी हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी कहानियां हैं। वे आज अधिक पढ़े जाने की मांग कर रही हैं, क्योंकि उनके पात्र भी पाला बदल रहे हैं और यह भी बड़ी चुनौती है।
इस अवसर पर धरहरा में मधुकर सिंह की मूर्ति लगाने, आरा-जमीरा रोड का नाम उनके नाम पर करने, उनकी याद में पुस्तकालय और संस्कृति भवन का निर्माण करने तथा पुनर्परीक्षा की मांग करने वाले बीपीएससी अभ्यर्थियों के ऊपर लाठी चार्ज करने के विरोध संबंधी प्रस्ताव लिए गए।
इस मौके पर कथाकार सिद्धनाथ सागर, ऐपवा नेत्री शोभा मंडल और संगीता सिंह, शिक्षक और यूट्यूबर राम कुमार नीरज, का. राजेंद्र यादव, गीतकार का. जितेंद्र विद्रोही, आइसा नेता रौशन कुशवाहा, श्रीराम सिंह कुशवाहा, रंगकर्मी धनंजय, कलावती देवी, कामरेड कृष्णरंजन गुप्ता, मो. सुहैल, मिल्टन जी, पंकज कुशवाहा, शुभम कुमार, रणधीर कुमार राणा, संगीता वर्मा, प्रेमा देवी, रितु देवी, बबिता देवी, लगन देवी आदि मौजूद थे।