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गिरमिटिया महोत्सव के रूप में आयोजित होगा 12वां लोकरंग, गयाना , मारीशस और सूरीनाम से आ रही टीम

गोरखपुर. कुशीनगर जिले के जोगिया जनूबी पट्टी गांव में हर वर्ष आयोजित होने वाला लोकरंग समारोह इस वर्ष 11-12 अप्रैल को आयोजित हो रहा है. इस वर्ष लोकरंग का 12 वर्ष है और इस बार यह आयोजन गिरमिटिया महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है. समारोह में सूरीनाम, गयाना और मारीशस से सांस्कृतिक टीमें अपनी प्रस्तुति देने आ आ रही हैं. इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, पं बंगाल, राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ और बिहार की लोक सांस्कृतिक टीमें भी अपनी प्रस्तुतियां देंगी.

इस तरह से जोगिया गांव के मंच पर 185 वर्ष  पहले इसी माटी से अनजान द्वीपों पर गए मजदूरों के वंशज अपनी गीत गवनई के साथ-साथ होंगे तो पंजाब के सूफी कौव्वाल, पश्चिम बंगाल का बाउल गायक और कुशीनगर के सोरठी बृजभार गायक भी.  दर्शकों को उत्तर प्रदेश के बिजनौर के सपेरा नृत्य, राजस्थान का चकरी व घूमर, भवाई व कच्ची घोड़ी नृत्य भी देखने को मिलेगा.

जोगिया गांव में लोकरंग का आयोजन 2008 में शुरू हुआ था. गांव के निवासी कथाकार सुभाष चन्द्र कुशवाहा की अगुवाई में बनी लोकरंग सांस्कृतिक समिति ने लोक संस्कृतियों को सहेजने और संवर्धन का निर्णय लिया और फिर सिलसिला चल पड़ा हर वर्ष लोकरंग के आयोजन का. इस आयोजन में लोकगीतों, नृत्यों, लोक नाट्यों को मंच मिलने लगा. लोकरंग के मंच पर यूपी, बिहार से लेकर झारखण्ड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों की लोककलाएँ प्रदर्शित हुईं. मंच पर एक तरफ लुप्त हो रहीं गीत, नृत्य की तमाम रूपों का मंचन हुआ वहीँ लोक रूपों के जरिये विभिन्न प्रयोग कर रहे जनवादी चेतना से लैस टीमों की भी प्रस्तुतियां हुईं.

10वें और 11वें लोकरंग में उपस्थित होकर सूरीनाम के प्रसिद्ध सरनामी गायक राजमोहन ने इस कार्यक्रम को एक अलग ही पहचान दे दी. 12वें लोकरंग का गिरमिटिया महोत्सव के रूप में आयोजित होने में राजमोहन की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है.

एस्टॉन रमदहल

राजमोहन के पूर्वज इसी पूर्वांचल की माटी से गिरमिटिया मजदूर के रूप में अंग्रेजों द्वारा सूरीनाम ले जाये गये थे. राजमोहन के पूर्वज बस्ती जिले के हर्रैया तहसील के सरनागी गांव के रहने वाले थे और 1908 में सूरीनाम ले जाये गये थे.

12 वें लोकरंग में राजमोहन तो खुद आ ही रहे हैं, उनके प्रयास से दक्षिणी अमेरिकी देश, गयाना के मूल निवासी और वर्तमान में अमेरिकी नागरिक, एस्टॉन रमदहल अपनी टीम के साथ पधार आ रहे हैं. रमदहल ने छठी पीढ़ी में भी भोजपुरी गायकी को जिंदा रखा हुआ है. वह ‘तान सिंगर’ हैं. वह अपने परदादा की ‘तान गायकी’ को, जो बिहार से गयाना पहुंची, जिंदा रखे हुए हैं. उनके साथ शैलेश शंकर भी आ रहे हैं जो ढोलक वादक हैं. शैलेश सूरीनाम में पैदा हुए और न्यूयॉर्क में पले-बढ़े हैं.

मॉरीशस से सरिता बुधु आ रही हैं जो मॉरीशस की भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन, मिनिस्ट्री ऑफ आर्ट एण्ड कल्चर की अध्यक्ष हैं. सरिता बुधु मारीशस में जपुरी गायक हैं और लेखन तथा लोक संस्कृति की हिफाजत में लगी हुई हैं. उन्होंने भोजपुरी को संयुक्त राष्ट्र संघ तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. उनके साथ मॉरीशस की 25 सदस्यीय गीत गवाई टीम भी लोकरंग में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करने आ रही है जिसे नेस्को ने विश्व मानवता की हिफाजत में अतुलनीय योगदान के रूप में मन्यता प्रदान किया है.

सरिता बुधु

सरिता बुधु के के पूर्वज बलिया के थे। इनके परदादा स्व. माखन राय, 1872 में 18 वर्ष की उम्र में बलिया के गांव दरामपुर से मॉरीशस गये थे.

गिरमिटिया मजदूरों की दर्दनाक कहानी, इतिहास के पन्नों में दर्ज है. उन्न्सवीं सदी में जब पश्चिमी देशों में दास प्रथा खत्म हो गई तो ब्रिटिश उपनिवेशों में दासों की प्रतिपूर्ति के लिए भारतीय मजदूरों को ले जाया गया. मजदूरों से मात्र अंगूठा लगाकर कलकत्ता, मद्रास और पांडिचेरी से पानी के जहाज में बैठा कर अनजान टापुओं पर ले जाया गया जो तब ब्रिटिश उपनिवेश के हिस्से थे. उन मजदूरों को एक एग्रीमेंट के तहत विदेश भेजा गया जिसकी जानकारी मजदूरों को न थी. अनपढ़ मजदूर एग्रीमेंट को गिरमिट बोलते थे. तभी से उन मजदूरों को गिरमिटिया कहा जाने लगा और मालिकों को गिरमिट .

गिरमिटिया प्रथा अंग्रेजों द्वारा सन् 1834 से आरम्भ हुई और 1917 तक चलती रही. वर्ष 1917 में इसे निषिद्ध घोषित किया गया.  एग्रीमेंट के बावजूद पैसे के अभाव में ज्यादातर गिरमिटिया मजदूर अपने वतन वापस न आ सके और सदा-सदा के लिए अपना गांव, घर-परिवार और रिश्तेदारों को छोड़ वहीं बस गये. वहां उन्होंने अपनी भोजपुरी संस्कृति को कुछ हद तक बचा कर रखा और आज भी कुछ कलाकार भोजपुरी गीतों को गाकर पूर्वांचल की संस्कृति से जुड़ाव को जिंदा रखे हुए हैं.

बाउल की दो टीमें आ रही हैं लोकरंग में

इस बार लोकरंग में पश्चिम बंगाल के बाउल गायन के भिन्न-भिन्न रूप देखने को मिलेंगे. बाउल की दो टीमें आ रही हैं जो दोनों रात अपना प्रदर्शन करेंगी.  शम्भुनाथ सरकार के नेतृत्व में 8 सदस्यीय टीम आ रही है. शम्भुनाथ जी का कहना है -बाउल केवल एक संगीत नहीं है, जीवन पद्धति है। यह शब्द बातुल या बउला से निकला है. यह बताता है कि कैसे जीयें ? बाउल कहते हैं-‘मानुष भोजले सोनार मानुष पाबी’ अर्थात यदि आप मनुष्य से प्यार करेंगे तो आप सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं. देखा जाये तो मानव प्रेम का बाउल गान, सूफी, नाथ और कबीर दर्शन से भी जुड़ता है.

लोकरंग में दिल्ली से हामिद बहुरूपिया भी आ रहे हैं. लोकरंग में बहुरूपिया कला का प्रदर्शन मंच से परे, गांव में और अतिथियों से मिलने-मिलाने में किया जाता है.

नाटक ‘ बेटीबेचवा ‘ और ‘ राजा फोकलवा ‘ का मंचन 

लोकरंग में लोक शैली के नाटकों का एक अलग आकर्षण रहा है. इस बार दो नाटक प्रस्तुत हो रहे हैं -बेटीबेचवा और राजा फोकलवा.
भिखारी ठाकुर कृत नाटक -बेटी बेचवा में स्त्री पीड़ा को मार्मिक तरीके से प्रस्तुत किया गया है जो कभी ग्रामीण जीवन का यथार्थ था. एक बूढ़े और बीमार मगर पैसे वाले व्यक्ति के साथ, ब्याह दी गयी नाबालिग लड़की, एक बार भागती भी है मगर हमारी अमानवीय परम्पराएँ उसे फिर ससुराल में पटक देती हैं. इस लोक नाट्य को परिवर्तन रंग मंडली, जीरादेई, सिवान की टीम प्रस्तुत करेगी । नाटक का परिकल्पना और निर्देशन पंकज कुमार राम का है.

नाटक ‘ बेटी बेचवा ‘

दूसरी रात यानि 12 अप्रैल को ‘ राजा फोकलवा ‘ नाटक प्रस्तुत किया जायेगा जो एक बहुश्रुत किन्तु लगभग विस्मृत लोक-कथा पर आधारित है. इस कथा को परिमार्जित कर समकालीन रूप प्रदान किया गया है. फोकलवा की पुनर्रचना तथा निर्देशन के दौरान लोक – कथात्मकता तथा लोक – रूपों के संयोजन एवं सामंजस्य का विशेष ध्यान रखा गया है. वर्तमान सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि को समावेषित करते हुए इस नाटक की प्रासंगिक प्रस्तुति की चेष्टा की है. छत्तीसगढ़ की अद्भुत लोकविविधता एवं गम्मत शैली के प्रयोग तथा हास्य – व्यंग्य के जरिये समकालीन पतनोन्मुखी राजतंत्र तथा नौकरशाही पर गहरा कटाक्ष किया गया है.

नाटक ‘ राजा फोकलवा ‘ का एक दृश्य

नाटक ‘राजा फोकलवा’ में नाचा, भरथरी, पंडवानी, चंदैनी, पंथी, कर्मा, ददरिया, बांस, बिहाव जैसे लोकरूपों और तत्वों के साथ बस्तर व सरगुजा की लोकधुनों का इस्तेमाल किया गया है. नाटक में कुसंगति, चाटुकारिता, परिवारवाद, व्यक्तिवाद, राजनैतिक षड़यंत्र और मानव मूल्यों के विघटन को उजागर करने का प्रयास किया गया है. इस नाटक की प्रस्तुति छत्तीसगढ़ के रायपुरकी चित्रोत्पला लोककला परिषद करेगी. इसके निर्देशक /लेखक राकेश तिवारी हैं.

सूफ़ी कौव्वाली

लोकरंग में जालंधर, पंजाब के पासला गाँव से सूफ़ी कौव्वाली की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम भी आ रही है जिसमें श्री कुलदीप, निर्मल, सुरजीत कुमार, मंजीत कुमार, सुखवीर, सन्नी कुमार, गोपाल, प्रभुदीप, और गुलाम अली शामिल हैं. इस टीम का इतिहास 50-60 साल पुराना है । सार्क सम्मेलन में भी इस टीम ने कार्यक्रम दिया है. पद्मश्री हंसराज हंस जी इनके कार्यक्रम से प्रभावित हो नृत्य कर चुके हैं. इन्होंने उस्ताद नुसरत अली खान के साथ भी गाया है.

पासला गांव की सूफी कव्वाली गायक

 ‘गिरमिटिया लोकसंस्कृति का पुरबिया संबंध ’  पर विचार गोष्ठी

लोकरंग 2019 में दूसरे दिन 12 अप्रैल को प्रातः 11 बजे से – ‘गिरमिटिया लोकसंस्कृति का पुरबिया संबंध ’  पर विचार गोष्ठी होगी जिसमें गोरेलाल चंदेल (लोक संस्कृति विशेषज्ञ, रायगढ़, छत्तीसगढ़), राजेन्द्र प्रसाद सिंह (वरिष्ठ साहित्यकार, सासाराम, बिहार), तैयब हुसैन (लोकसंस्कृति मर्मज्ञ, पटना), प्रो. दिनेश कुशवाह (वरिष्ठ कवि, रीवा), जय प्रकाश कर्दम (वरिष्ठ साहित्यकार), सरिता बुधू (चेयरपर्सन ऑफ भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन, मॉरीशस), वरुना जोधुन (सदस्य, भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन, मॉरीशस ) प्रभात सिंह (वरिष्ठ पत्रकार, नोयडा), प्रो अर्चना कुमार, प्रो. संजय कुमार और प्रो. राजकुमार, बी.एच.यू., बनारस, डॉ0 क्षमाशंकर पाण्डेय (वरिष्ठ साहित्यकार), अश्विनी कुमार आलोक (लोकसंस्कृति विशेषज्ञ), बलभद्र (कवि/आलोचक, गिरिडीह), मदनमोहन (वरिष्ठ कहानीकार, गोरखपुर), रामजी यादव (कहानीकार, वाराणसी), रामप्रकाश कुशवाहा (आलोचक, बलिया), संतोष पटेल (अध्यक्ष, भोजपुरी जनजागरण अभियान), विद्याभूषण रावत (लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता, नोयडा), डा. महेन्द्र प्रसाद कुशवाहा (आलोचक, रानीगंज, पं.बंगाल), मनोज कुमार सिंह (सामाजिक कार्यकर्ता, वरिष्ठ पत्रकार, गोरखपुर) आदि साहित्यकार/रंगकर्मी भाग लेंगे.

हर वर्ष की तरह गाजीपुर से संभावना कला मंच के 15 सदस्यीय टीम डॉ. राजकुमार सिंह के नेतृत्व में जोगिया गांव आएगी और गांव को कला ग्राम के रूप में सजाने का कार्य करेगी.

 

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