समकालीन जनमत
पुस्तक

‘ निराला का कथा साहित्य ‘ पर आयोजित हुई परिचर्चा

पूजा

 

इलाहाबाद, जसम की जिला इकाई की श्रृंखला ‘ किताब पर बातचीत ‘ के अंतर्गत दुर्गा सिंह की किताब ‘ निराला का कथा साहित्य’  पर परिचर्चा 4 मई को आयोजित की गयी। किताब आलोचना विधा से जुड़ी है। यह आयोजन शहर के सिविल लाइन्स स्थित बाल भारती स्कूल के सभागार में हुआ।

किताब के बनने की प्रक्रिया पर अपनी बात रखते हुए दुर्गा सिंह ने कहा कि शोध के दौरान बहुत से लेखकों और कहानीकारों से मिला। इसी में नीलकांत जी से मुलाकात हुई। उसी समय नीलकांत जी ने सलाह दी कि मौका मिले तो निराला का कथा साहित्य पढ़ना। निराला के यहाँ प्रेमचंद से ज्यादा किसान जीवन के डिटेल्स मिलेंगे। नीलकांत जी की यह बात दिमाग में पड़ी रही। 2019 में निराला की कहानियाँ पढ़ने का सिलसिला बना। पढ़ने का यह सिलसिला लिखने तक गया। लेखों को लिखते समय समझ बनाने में रामजी राय और प्रणय कृष्ण दादा से बातचीत मददगार रही। यह लेख जब समकालीन जनमत पोर्टल पर प्रकाशित होने लगे, तो गोपाल प्रधान जी ने भाषा और विचार के स्तर पर अपने सुझाव दिये। पोर्टल पर छपे लेखों ने ही किताब की शक्ल ली।


उन्होंने कहा कि निराला कहानी लिखना शुरू करते हैं 1933 से, उनके उपन्यास  1930 से छपने लगे थे।  1934  से निराला में बदलाव शुरू होता है। ‘ देवी ‘ कहानी से यह प्रक्रिया शुरू होती है और ‘कुल्ली भाट’ में जाकर पूरी होती है।

मुख्य वक्ता गोपाल प्रधान ने कहा कि इस किताब के एकाध लेख जब आने शुरू हुए तो लगा कि दुर्गा  निराला के कथा साहित्य में कुछ नया देख पा रहे हैं।

निराला का कुल्ली भाट उस समय कितने बहिष्करण का शिकार था, ब्राह्मण होकर इक्का चलाते हैं। इसके चलते जाति से, समलैंगिक होने के चलते समाज से। मुसलमानिन से विवाह करते हैं। दलित जाति के बच्चों के लिए स्कूल खोले हुए हैं। निराला भी साहित्य में बहिष्कृत रहते हैं। कविताएँ पत्रिकाओं से लौट आती थी। सम्पादकों में बहुत स्वीकृत नहीं होते हैं।  निराला कहीं भी अपनी कहानियों में निरपेक्ष दर्शक नहीं हैं और यह सब इस किताब में है।


विषय वस्तु के विश्लेषण में कई बार भाषा की विशेषता छूट जाती है। निराला के कथा साहित्य के विश्लेषण में उसे और विस्तार देने की जरूरत है।

गोपाल प्रधान ने आगे बात रखते हुए कहा कि निराला के गद्य में संकेत बहुत हैं, वैसे ही इस किताब में संकेत बहुत हैं। यह किताब निराला के बारे में जिस जगह पर ले जाती है, उसके बाद निराला के लिए एक नयी दृष्टि पैदा करती है। निराला एक सेकुलर राष्ट्रवाद की बात करते हैं और आधुनिक सेकुलर राष्ट्रवाद के कारण ही स्त्री के प्रति दृष्टिकोण, जाति के प्रति नजरिया अलग है। यह  प्रभाव बांग्ला नवजागरण के कारण था।

उस समय नवजागरण की बहुरंगी तस्वीर दिखाई पड़ती है, उसका एक स्रोत निराला साहित्य भी है। उस समय के भारत को समझने का, उस समय की बहुस्तरीयता को समझने के लिए  निराला को स्रोत के रूप में पढ़ सकते हैं। उसमे अनेक लोग आते-जाते हैं, अनेक जगहों पर लगेगा प्रेमचंद  निराला से संवाद करते नज़र आते हैं, लेकिन प्रेमचंद की भाषा से निराला की भाषा अलग है। निराला बहुअर्थी किस्म की भाषा का इस्तेमाल करते हैं।  तात्कालिक आजादी का  आन्दोलन जो चल रहा था, उनके लेखन में मिलता है और वे राजनीतिक  मुक्ति के साथ सामाजिक  मुक्ति पर जोर देते हैं। उन्होंने ठीक ही भगतसिंह के सवालों को जोड़ा, आखिर 70 साल तक कैसे बिना सैनिक तख्तापलट के भारत में लोकतंत्र बचा रह गया, यदि इसे अति कथन न माना जाए तो इसका वैचारिक केन्द्र रूसी क्रांति से लिया गया है। लेनिन ने कहा था साम्राज्यवाद अपनी सबसे कमजोर कड़ी पर टूट जाएगा।


उस दौर में भारत का जो स्वाधीनता आंदोलन था अपने चरम पर था, विश्व युद्ध के कारण भारत में किसानों के बेटे दुनिया भर में थे। उसी समय यह सुनाई दिया था कि फौजी ही है जो विरोध किया था, इन्होंने सुना था रूसी क्रांति ने किसानों का राज स्थापित कर दिया, यह चेतना निराला जी में थी, दुर्गा जी ने यह सब उद्घाटित किया है। गोपाल प्रधान ने आगे कहा कि भाषा के सौन्दर्य के सम्बन्ध में मेरा मानना है कि इस पर और काम किया जाना चाहिए।

यथार्थ केवल बाहर का ही नहीं होता, मन के भीतर का भी होता है। रामविलास शर्मा जी कहते हैं निराला की भाषा प्रभावी बोध का अतिक्रमण करती है, उसकी वक्रता का स्रोत यह नहीं कि निराला चमत्कार पैदा करना चाहते हैं। सामाजिक पदानुक्रम को तोड़ने वाली भाषा उससे भिन्न नजर आती है, किताब में जो संकेत हैं, उसे उठाया जाना चाहिए, उस पर बात होनी चाहिए।

अध्यक्षता करते हुए रामजी राय ने कहा कि इस किताब की खास बात यह है, कि इसमें निराला के कथा साहित्य के माध्यम से निराला की कविताओं को देखा गया है। इसके पहले निराला के कथा साहित्य को उनकी कविताओं के माध्यम से देखा गया था। उन्होंने कहा कि निराला को उनके विकास क्रम में देखना होगा। उन्होंने कहा कि निराला की कविता राम की शक्तिपूजा में महाशक्ति की कल्पना को देवी दुर्गा से जोड़ कर देखा जाता है। लेकिन, निराला ‘देवी’ कहानी में पगली के लिए कहते हैं कि उसके बच्चे में भारत और उसमें महाशक्ति दिखी। ‘देवी’ कहानी से ‘राम की शक्तिपूजा’ कविता  को देखने पर कविता का मर्म मिलेगा।

  पुस्तक में निराला के यहाँ आधुनिकता की चर्चा पर रामजी राय ने कहा कि आधुनिकता जो आयी एकदम उसी रूप में नहीं रही होगी जब वह पूंजीवाद के उदय के साथ आयी, उसका भी विकास हुआ होगा। आधुनिकता के विषय में फ्रेडरिक जेम्सन ने कहा यह आधुनिकता अधूरी है, इसलिए हमारे कवियों, रचनाकारों के अपने जीवन के अनुभवों से समझौते भी करने पड़े। हमारे सबसे पहले आधुनिक कवि मिर्जा ग़ालिब हुए। वे कहते हैं, जितना जल्दी हो यह सल्तनत ढह जानी चाहिए। स्वतंत्रता और न्याय की सर्वाधिक चर्चा उनके शेरों में है।

रामजी राय ने कहा कि निराला और प्रेमचंद अपने समय के सबसे विषम स्वर थे। उन्होंने आधुनिकता की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि साम्राज्यवाद पूंजीवाद की चरम अवस्था है। पूंजीवाद से लड़े बगैर आधुनिकता पूर्णतः प्राप्त नहीं की जा सकती। यह जो आधा अधूरापन है उससे लड़ने के लिए निराला को पढ़ना चाहिए।  पूंजीवाद के बाद ही आधुनिकता की कल्पना संभव है और निराला इस उच्चता को छूते हैं। उन्होंने रोजा लक्जमबर्ग के हवाले कहा कि सच्ची आधुनिकता क्रांति से ही आयेगी। पूंजीवादी लोकतंत्र के भीतर से पूंजीवाद को परे करके ही सच्ची आधुनिकता पायी जा सकती है।

इस कार्यक्रम में कवि हरीश्चन्द्र पाण्डे, प्रोफेसर अनीता गोपेश, प्रोफेसर संतोष भदौरिया, प्रोफेसर मालविका, सन्ध्या नवोदिता, अंशुमान कुशवाहा, प्रतिमा सिंह, नीतू सिंह, माही, विवेक, शशांक, सुनील मौर्य, अनिल वर्मा, चन्द्रशेखर समेत कई छात्र, शोधार्थी उपस्थित थे।

कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन  प्रेमशंकर सिंह  ने किया और कार्यक्रम का कुशल संचालन शोधार्थी साथी किरन ने किया।

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