समकालीन जनमत

Tag : संसद

कविता

किसने आखिर ऐसा समाज रच डाला है

सुधीर सुमन
सुधीर सुमन  “नहीं निकली नदी कोई पिछले चार-पाँच सौ साल से/ एकाध ज्वालामुखी ज़रूर फूटते दिखाई दे जाते हैं/ कभी कभार/ बाढ़ें तो आईं ख़ैर...
कविता

धूमिल की ‘नक्सलबाड़ी’

गोपाल प्रधान
धूमिल की यह कविता उनके पहले काव्य संग्रह ‘संसद से सड़क तक’ में कुल चार पृष्ठों में प्रकाशित है । संग्रह से पहले 1967 में...
ख़बर

संसद में मजदूर विरोधी श्रम कोड पेश करने के ख़िलाफ़ देश भर में ऐक्टू द्वारा विरोध प्रदर्शन

अभिषेक कुमार
  ऐक्टू ने श्रम मंत्रालय के सामने संसद सत्र में पेश होनेवाले श्रम संहिता विधेयकों की प्रतियाँ जलायी   नई दिल्ली, 16 सितंबर, 2020 :...
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