समकालीन जनमत
जनमतपुस्तक

जीवनपुर हाट जंक्शन : कहानी की शक्ल में संस्मरण और संस्मरण की शक्ल में कहानी

नई दिल्ली. दो  सितम्बर को नोएडा में प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक के स्मृति संग्रह ‘ जीवनपुर हाट जंक्शन ’ पर घरेलू गोष्ठी में एक परिचर्चा आयोजित की गयी. यह पुस्तक सत्तर के दशक में एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर अशोक भौमिक के जीवनानुभवों की रचनात्मक अभिव्यक्ति है. यह कहानी की शक्ल में संस्मरण और संस्मरण की शक्ल में कहानी संग्रह है.

इस परिचर्चा की शुरुआत करते हुए कहानीकार योगेन्द्र आहूजा ने अपने आधार आलेख के माध्यम से अपना विचार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि ये कहानियाँ इस वक्त कहानी की अपेक्षा को पूरा करने वाली हैं.

शोध छात्र मिथिलेश ने क्रमशः सात कहानियों पर अपने विचार व्यक्त किये और कहा कि ये कहानियाँ बेचैन करने वाली हैं.

शालू यादव ने कहा कि यह कहानी संग्रह पढ़ते हुए मन में ये सवाल आता है कि क्या इन कहानियों की घटनाएँ सच्ची हैं ? उन्होंने कहा कि ये कहानियाँ हर अभिरुचि की हैं.

अनुपम सिंह ने कहा कहानियों में स्त्री पात्र लेखक की पूरी संवेदना के साथ आयें हैं. इनकी भाषा सहज और सरल है. इनमे विचारों की स्पष्टता है. ऐसा नहीं लगता कि ये कहानी में थोपे गए हैं.

साक्षी ने कहा कि इन कहानियों की भाषा और शिल्प सहज हैं. इनको किस विधा में रखा जाए कहा नहीं जा सकता है लेकिन सचेतन कुछ चीजें इसमें रखी गयी लगाती हैं.

सुनीता ने कहा कि कहानियों की स्त्री पात्रों में प्रतिरोध है. यह जरुरी नहीं है कि वह मुखर स्वर में ही हो. यहाँ प्रतिरोध जीवन का स्वाभाविक हिस्सा बनकर आता है.

स्वाति भौमिक ने कहा कि इन कहानियों को पढ़ते हुए यह नहीं लगता कि ये वही अशोक भौमिक हैं जिन्हें मैं जानती हूँ .
कार्यक्रम में वंदना सिंह ने भी अपना विचार व्यक्त किया.

उमा ने कहा कि ‘संगरोध’ कहानी में पत्नी का यह कहना कि ‘मुझे मरने का डर नहीं है’ मुझे इस पंक्ति में एक गहरा असुरक्षा बोध नज़र आता है, जिसे लेखक ने प्रेम का दर्जा दिया है और ‘पलायन’ कहानी के डॉ मुकेश का अतिसंवेदनशील होना, वह एक तरह की स्वकेन्द्रिकता ही है. इन दोनों ही कहानियों में स्थिति को ग्लोरिफ़ाई किया गया है.

तूलिका ने कहा कि संस्मरण के सारे पात्र अपनी स्थितियों में इसको कहानी बनाने की ओर बढ़ते हैं. लेकिन इनका ‘मैं’ उतना आर्गेनिक ढंग से सामने नहीं आता.

अखिलेश ने कहा कि इस पुस्तक को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है कि जो एम आर है वह लेखक कभी बना ही नहीं.
दिनेश ने ‘आतंकवादी’ कहानी के हवाले से ‘मैं’ कि स्थिति पर अपनी बात रखी. स्तेफिन चाप्सकी के उपन्यास ‘द पर्क ऑफ बिंग अ वाल फ्लावर’ का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह इस उपन्यास में छिपकली चुपचाप कमरे कि सारी स्थितियों को देखती रहती है उसी तरह इन कहानियों का लेखक भी समाज में घट रही घटनाओं का सघन प्रेक्षक है. अरुणाभ सौरभ ने कहा कि ‘शिप्रा एक नदी का नाम है’ उपन्यास बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन इस पर चर्चा नहीं हो पायी.

उमाकांत चौबे ने कहा कि कहानी जरुरत के हिसाब से ही नैरेटर को सामने लाती है. समाज कि आहट जिसको लम्बे समय से नजरअंदाज किया गया था उसे अशोक दा सामने लाते हैं. संजय जोशी ने कहा 1984 पर लिखी ‘सुरजीत’ नाम की कहानी उस समय का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है. यह संग्रह कहीं कहानी तो कहीं रिपोर्ताज लगता है.

प्रेमशंकर ने कहा कि ‘शरफुद्दीन’ कहानी को पढ़कर जो लगा उसके अनुसार अगर नैरेटर अशोक भौमिक होते तो चन्द्रमोहन की सारी चालाकियाँ पकड़ते हुए उसको उसका दंड देते. ऐसा लगता है कि महिलाओं से सम्बंधित कहानियों में कोई एक ही पेंटिंग है. उन सभी पात्रों में कोई न कोई सम्बन्ध है.


आशुतोष कुमार ने कहा कि मैं को लेकर जो बहस चल रही है उस मुझे लगता है जानबूझकर एक ऐसी शैली अपनाई गयी है कि न तो यह संस्मरण लगे न ही कहानी. इसमें लेखक ने रचना को कहानी नहीं बनने दिया है लेकिन वह संस्मरण भी नहीं रहने देता है.

रवीन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि यह रचना पारिभाषिक रूप में कहानी नहीं है. समाज में मौजूद तथ्य यहाँ हैं. यह रचना लेखकों को अपने आप को भी देखने कि प्रेरणा देती है. रचना का मैं केवल चित्रकार अशोक भौमिक नहीं है बल्कि एक काल्पनिक व्यक्ति भी है. अपने परिवेश को कैसे देखा जाय इसकी भी दृष्टि देती है यह रचना. जीवनपुर हाट जंक्शन के लेखक अशोक भौमिक ने अपनी रचना प्रक्रिया पर विस्तार से बात की.

लीलाधर मंडलोई ने कहा कि प्रकाशक और पाठक के तौर पर मैं इस रचना से गुजरा. क्या यह वाकई कहानी कि किताब है ? बहुत सोचकर मैंने इसे स्मृति आख्यान कहा. इसका आवरण संग्रह को व्याख्यायित करता है. विचारधारा की कंडिशनिंग के लिहाज से रचना को नहीं पढ़ा जाना चाहिए. ये दास्तानें केवल फ्लैशबैक में संभव थीं. आज जो लेखक है वह उस समय नहीं है जब वह कहानी लिख रहा है. एक्सट्रीम लॉन्ग शॉट से क्लोजअप टेक्निक का इस्तेमाल इस रचना में है. लेखक ने मैं पर अशोक भौमिक का कोई प्रभाव नहीं पड़ने दिया है. ये कहानियाँ डाक्यूमेंट हैं. रचनाकार की कुछ चीजें पाठक के ऊपर छोड़ देनी चाहिए. अशोक जी एब्स्ट्रैक्ट के चित्रकार हैं. वे अपनी कहानियों में भी इसका इस्तेमाल करते हैं. कहानी के टूल्स से इस रचना को नहीं पढ़ा जा सकता है. इसमें कई विधाओं का समावेश है.

गोष्ठी का संचालन कवि मृत्युंजय ने किया.

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion