प्रयागराज. शहर के अशोकनगर मोहल्ले के पास गंगानगर नेवादा के कछार में करीब सौ परिवार प्रवासी मजदूरों के हैं । येे लोग पिछले कई वर्षों से फसल की कटाई के सीजन में यहां आते रहे हैं। मूलतः यह परिवार उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिलों और उनसे सटे मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेशों से आते हैं।
इस बार भी ये तमाम मजदूर परिवार काम की तलाश में शहर आए हुए थे। अभी कटाई भी पूरी नहीं हुई थी और कुछ किसानों ने मशीन से फसल कटवा ली थी, इस कारण खेतों में काम कम मिला । शहर में ये लोग निर्माण कार्य में दिहाड़ी भी करते थे जो अचानक हुए लॉक डाउन के कारण पूरी तरह बंद हो गया।
अब इन परिवारों के सामने भुखमरी का संकट है। शनिवार 28 मार्च को इनकी खबरें सोशल मीडिया पर एडवोकेट हाई कोर्ट महाप्रसाद के जरिए आई, जो पास के ही मोहल्ले गंगानगर में रहते हैं। इस पर उन्होंने प्रशासन को भी खबर दी । जिसके अगले दिन यानी 29 तारीख इतवार को शाम चार बजे कुछ फूड पैकेट प्रशासन ने वहां बंटवाया लेकिन यह इतना कम था कि उससे इन परिवारों का एक वक्त का भी पेट नहीं भर पाता।
यह देखते हुए एडवोकेट महाप्रसाद ने मोहल्ले और कुछ अन्य साथियों से संपर्क किया। जिसके बाद के के पाण्डेय, शहनाज, परवीन , महा प्रसाद के साथ 29 की शाम उस बस्ती पहुंचे. बस्ती के लोगों की संख्या की जानकारी के बाद हम लोगों ने शहर के कुछ अन्य नागरिकों से सहयोग का अनुरोध किया कि हम इन मजदूरों के लिए कुछ दिन का राशन का इंतजाम कर सकें.
कई मित्रों ने इसमें भरपूर सहयोग दिया और 30 मार्च की सुबह पूरी एक टीम जिसमें एडवोकेट महाप्रसाद, शहनाज परवीन, अंजुम शेख, आशीष, एडवोकेट मोहम्मद दानिश, गंगानगर मोहल्ले के 5-6 नौजवान आनंद, अंकुर, अश्वनी, भानु ,राहुल ,सौरभ, राजू सोनकर टीम बनाकर वहां पहुंचे । प्रति परिवार 5 किलो चावल तथा 1 किलो दाल, आटा, आलू इत्यादि वितरित किया गया।
यहां बिग बाजार का नंबर जारी करते हुए प्रशासन ने कहा था कि लोगों को 1500रु से ऊपर की खरीद पर सामान उनके घर पहुंच जाएगा। लेकिन लगातार फोन करने पर पहले तो फोन नहीं उठा, फिर एक काम करने वाले परिचित से बात हुई कि सुबह आटा मिल जाएगा। लेकिन सुबह जब महप्रसाद ने फिर फोन किया तो फोन बंद मिला। ये एडवोकेट महाप्रसाद वही हैं जिनकी बहन चित्रकूट मेडिकल कॉलेज में जीवन मौत की लड़ाई में जूझ रही हैं।
31मार्च को पुलिस प्रशासन ने दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा है कि नागरिक या संस्थाएं केवल अपने थाना क्षेत्र में और वह भी पुलिस को एक दिन पहले सूचित करके उनका सहयोग लेकर ही लोगों की मदद करें। सवाल उठता है कि क्या इतना पुलिस बल है प्रशासन के पास। बिना वालेंटियर के मुहल्ले मुहल्ले यह पता कर पाना असम्भव है कि सचमुच किन लोगों को तत्काल सहायता की जरूरत है, और यह जरूरी नहीं कि जिस मुहल्ले में जरूरतमंद लोग हैं वहीं के आसपास के लोग उनकी जरूरत पूरी कर सकें। अभी कम्युनिटी किचन लोगों की जरूरत पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में सरकार गरीबों को किनके भरोसे छोड़ रही है।
कल जब हमलोग इन प्रवासी मजदूरों की बस्ती में थे तभी एक वाहन पास लगाए गाड़ी मैदान में आकर रुकी। पूछने पर पता चला कि ये दो लोग सेवा भारती नामक संस्था से हैं। पत्रकार के बतौर मेरा परिचय जानने के बाद उनलोगों ने कहा कि इन लोगों की सूचना मिलने पर आए हैं। मैंने पूछा आप लोग क्या कर सकते हैं तो बोले देखते हैं। फिर कुछ फोटो वगैरह खींच कर चले गए। ऐसी पासधारक गाड़ियां और संस्थाएं भी घूम रही हैं।
इस बस्ती के लोग अब अपने घर वापस जाना चाहते हैं । पूछने पर मालूम चला कि 30 की रात पुलिस प्रशासन के लोग पूरी लिस्ट बनाकर ले गए हैं । आशा की जानी चाहिए कि प्रशासन इन्हें सहयोग करेगा और इन मजदूरों को उनके घरों तक भिजवाने की कोई व्यवस्था करेगा और जब तक यह ना हो सके तब तक वह भुखमरी का शिकार ना हो, इसकी भी कोई राह निकालेगा। हालांकि अभी तक पूरे प्रदेश में जो हालत है उसमें इन मजदूरों का क्या होगा कहा नहीं जा सकता.