समकालीन जनमत
स्मृति

मेरी मातृभूमि का कोई मुआवज़ा नहीं हो सकता: सुंदरलाल बहुगुणा

मई 1995 में वर्तमान में उत्तराखण्ड में शिक्षक नवेंदु मठपाल टिहरी बांध आंदोलन और वहाँ के डूब क्षेत्र के गाँवों की स्थितियों को नज़दीक से समझने टिहरी गए। वे तब श्रीनगर गढ़वाल में पत्रकारिता के विद्यार्थी थे। 25 मई 1995 को श्रीदेव सुमन के जन्मदिन पर बहुगुणा जी से लंबी बातचीत की। उसका सारांश समकालीन जनमत पत्रिका में जून 95 में छपा था। स्मृतिशेष सुंदरलाल बहुगुणा जी को श्रद्धांजलि प्रस्तुत करते हुए यहाँ उसे पुनः प्रकाशित किया जा रहा है। -सम्पा.

आज श्रीदेवसुमन का जन्मदिन है। यदि वे जिंदा होते तो आज 80 बर्ष के हो जाते।उन्होंने टिहरी की रियासत के खिलाफ जनता के बोलने के अधिकार, सभा करने के अधिकार के लिए,अपने प्राण त्याग दिए। मुझे वह दिन अच्छी प्रकार याद है तब मेरी उम्र 17 साल की थी,84 दिन तक उन्होंने उपवास किया था, कहने को तो आज मैं भी उपवास पर हूँ परन्तु बहुत फर्क है। मुझे गिरफ्तार कर बड़े बड़े अस्पतालों में भेजा जा रहा है, डाक्टर मेरी नाड़ी देख रहे थे,मैने कहा मेरी नाड़ी क्या देख रहे हो,सरकार की नाड़ी देखो। हम तो सत्य के मार्ग पर संघर्ष कर रहे हैं।हमारा कोई कुछ नही बिगाड़ सकता। जो गरीबों को घरों से उजाड़ रहे हैं।गंगा को हमसे छीन रहे हैं,उनसे लड़ो।

लोग कह रहे हैं कि बहुगुणा जी आपके बैठने से सरकार ने मुआवजे की रकम बड़ा दी है। हमारी मातृभूमि का कोई मुआवजा नही हो सकता।क्या माँ की कीमत मांगी जा सकती है। मेरी माँ के पसीने का कोई मुआवजा नही हो सकता।हम कोई व्यापारी नही हैं।इस सबके साथ साथ हमारी पीढ़ियों की यादें जुड़ी हुई हैं।भूल कर भी यहां से विस्थापित होने की गलती मत करना।

कहा जा रहा है मैं विकास का विरोधी हूँ, पहाड़ के हज़ारों हज़ार लोगों को विस्थापित कर दिल्ली के पांच सितारा होटलों को बिजली व पानी देना व मेरठ के बड़े किसानों को पानी मुहैय्या कराना क्या विकास है? मैं अपने विकास में पहाड़ के लोगों का सुखी जीवन देखता हूँ, उसमें भी महिलाओं का सबसे पहले।आजादी के 50 बर्षों बाद आज भी महिलाओं को कई कई किलोमीटर दूर से पानी, लकड़ी व घास लानी पड़ती है। कुछ ही वर्ष पूर्व यहीं नजदीक के गांव में 18 से 22 बर्ष की 7 नवयुवतियों ने आत्महत्या कर ली। आज भी यह सवाल सोचनीय है कि कोई अपनी भरी जवानी में क्यों आत्महत्या कर ले रहा है।मुझे अपने बचपन की याद आती है तो मां का चेहरा याद आता है।एक सम्पन्न परिवार की बहू होने के बाबजूद जब वे थक कर जम्हाई लेती थीं तो कहती थी,”भगवान मेरी मौत क्यों नहो आ जाती”।मैं अगली पीढ़ी को यह कहते नहीं देखना चाहता। शराब ने भी पहाड़ की महिलाओं का पारिवारिक जीवन नारकीय बना दिया है। यह भी बन्द होनी चाहिए। मेरी इस अंतिम लड़ाई में मैंने कहा है जल, जंगल व जमीन को हमसे न छीना जाय। आज बांध विरोधियों को देशद्रोही की संज्ञा दी जा रही है।अरे हमने तो नारा दिया है,”धार ऐच पाणी ढाल पर डाला,बिजली बणावा खाला खाला”(प्रत्येक ऊंचाई वाले स्थान पर पानी हो,हर ढाल पर वृक्ष हों, छोटी छोटी बिजली परियोजनाएं बनें)

आप अपनी लड़ाई में अटल रहिए।आपको कोई यहां से हटा नही सकता।यह आत्मघाती योजना जरूर बन्द होकर रहेगी।

मैं पहली बार 13 बर्ष की उम्र में श्रीदेव सुमन से मिला था, उन्होंने तब एक सवाल पूछा था,जो मुझे आज भी जस का तस याद है,”उन्होंने पूछा तुम पढ़ लिख कर क्या करोगे?मैंने कहा ,”दरबार(टिहरी रियासत)की सेवा।” वे बोले तब इन गरीबों की सेवा कौन करेगा। मैंने कहा, मैं।तब उन्होंने कहा-दो काम एक साथ सम्भव नहीं, लेकिन क्या तुम अपने को चांदी के चंद टुकड़ों में बेच दोगे? मैंने कहा ,नहीं।

औऱ मैंने गांधी जी की फौज में भर्ती होने का निश्चय कर लिया…

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