समकालीन जनमत
Shirley JACKSON (फोटो विकीपीडिया )
कहानी

पढ़िए शर्ली जैक्सन की मशहूर कहानी ‘ लाटरी ’

अमरीकी लेखिका शर्ली जैक्सन डरावनी और रहस्मय रचनाओं के लिए विशेष रूप से जानी जाती हैं। उन्होंने लगभग दो दशक के रचनाकाल में छह उपन्यास, दो संस्मरण और दो सौ कहानियाँ लिखीं। शर्ली जैक्सन को अधिकतर लोग उनकी 1948 में लिखी कहानी ‘लाटरी’ ( Copyright © Shirley Jackson 1948, 1949, Copyright renewed  © Laurence Hyman, Barry Hyman, Sarah Webster and Joanne Schnurer 1967, 1977) के कारण से जानते हैं। यह अमरीका की सबसे प्रसिद्ध कहनियों में से एक है, और अमेरिका के हाई स्कूल की अंग्रेज़ी कक्षाओं के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन चुकी है। इसके अतिरिक्त लेखिका अपने दो उपन्यासों के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। दि हांटिंग ऑफ़ हिल हाउस, और वी हैव ऑलवेज़ लिव्ड इन दि कैसल। ‘ दि हांटिंग ऑफ़ हिल हाउस ’ पर एक टीवी सीरियल भी बन चुका है।  शर्ली को रोज़मर्रा के जीवन में भय और आतंक देख लेने का विशेष हुनर है। कभी-कभी उनकी कहानियों में सुपरनेचुरल, अतीन्द्रिय और दुष्ट जीवात्माओं का प्रत्यक्ष वर्णन मिलता है लेकिन उनका सम्बन्ध भी मानव मस्तिष्क और मनोवैज्ञानिक गुत्थियों से बहुत गहरा होता हैं। उनकी अधिकतर रचनाएँ साधारण मनुष्यों के प्रतिदिन के वास्तविक भय से सम्बंधित होती हैं। बस वे उसमें हल्का सा मोड़ देकर उसे डरावनी कहानी बना देती हैं, लेकिन इतना नहीं कि वो समझ से बाहर हो जाए। समकालीन जनमत के पाठकों के लिए प्रस्तुत है उनकी मशहूर कहानी ‘ लाटरी ’. इस कहानी का हिंदी अनुवाद कोलंबिया विश्वविद्यालय में हिन्दी-उर्दू भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक  डॉक्टर आफ़ताब अहमद ने किया है.  डॉक्टर आफ़ताब अहमद ने उर्दू के महाँ हास्य लेखक मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी और पतरस बुख़ारी की रचनाओं का उर्दू से हिन्दी में अनुवाद किया है . सं . 

                               लाटरी

                                                      शर्ली जैक्सन

सत्ताईस जून की सुबह साफ़ और धूपीली थी। गर्मी के लम्बे दिनों की ताज़ी गर्माहट अपने अन्दर समोए हुए। प्रकृति ने हरी-हरी घास की चादर पर रंग-बिरंगे फूलों की पिचकारियाँ छोड़कर वातावरण को वसंतमय बना दिया था। दस बजे के आसपास गाँव के लोग डाकघर और बैंक के बीच वाले मैदान में लाटरी के लिए जमा होने लगे। कुछ गाँवों की आबादी इतनी अधिक थी कि लाटरी के कार्यक्रम में दो दिन लग जाते थे, इसलिए इसे छब्बीस जून को ही शुरू करना पड़ता था। लेकिन इस गाँव में, जिसकी जनसंख्या लगभग 300 होगी, लाटरी का सम्पूर्ण कार्यक्रम दो घंटे में समाप्त हो जाता था। कार्यक्रम सुबह दस बजे शुरू होता और इतने समय में निपट जाता कि गाँव वाले घर जाकर आराम से दोपहर का खाना खा सकते थे।

स्पष्ट है कि पहले बच्चे एकत्रित हुए। हाल ही में गर्मी की छुट्टियाँ हुई थीं। अधिकतर बच्चे इस आज़ादी से बेचैनी सी महसूस कर रहे थे। थोड़ी देर तक तो वे ख़ामोशी से एकत्रित होते रहे। फिर उनके हंगामे और शोर-गुल शुरू हो गए। वे अभी भी स्कूल, क्लास, शिक्षकों और उनकी झिड़कियों के बारे में बातें कर रहे थे। बॉबी मार्टिन ने अपनी जेबें पत्थरों से ठूँस रखी थीं और जल्द ही दूसरे बच्चों की जेबें भी पत्थरों से भर गईं। उन्होंने गोल-गोल चिकने-चिकने पत्थर चुने। बॉबी, और हैरी जोंस और डिक्की डेलाक्रोइक्स–गाँव वाले उसे “डेलाक्रॉय” कहते थे–ने अंततः मैदान के एक कोने में पत्थरों का एक बड़ा सा ढेर जमा कर लिया। वे दूसरे बच्चों की लूटपाट से पत्थरों की सुरक्षा कर रहे थे। लड़कियाँ एक किनारे खड़ी आपस में गपशप कर रही थीं। वे कनखियों से लड़कों को देख लिया करती थीं। ज़्यादा छोटे बच्चे धूल में लोटें लगा रहे थे, या अपने बड़े भाई या बहनों के हाथ पकड़े हुए थे।

धीरे-धीरे मर्द एकत्रित होने शुरू हुए। वे अपने बच्चों को देखते हुए बुआई, बारिश, ट्रैक्टर और टैक्स के बारे में बातें कर रहे थे। पत्थरों के ढेर से दूर, मैदान के एक कोने में वे एक साथ खड़े थे और आहिस्ता-आहिस्ता हँसी–मज़ाक़ कर रहे थे। वे हँसने से ज़्यादा मुस्कुरा रहे थे। मर्दों के आने के थोड़ी देर बाद उनकी पत्नियाँ पहुँचीं। वे पुराने-धुराने रोज़ाना के घरेलू कपड़े और स्वेटर पहने हुए थीं। उन्होंने एक दूसरे को हेलो-हाय किया और हल्की-फुल्की गपशप के बाद अपने पतियों के पास जा खड़ी हुईं। जल्द ही इन औरतों ने अपने बच्चों को पास बुलाना शुरू किया। बच्चे चार-पाँच बार पुकारने के बाद बेमन से उनसे आ मिले। बॉबी मार्टिन अपनी माँ के हाथों के नीचे से सरककर निकल गया और हँसता हुआ वापस पत्थरों के ढेर की तरफ़ भागा। उसके पिता ने डांटकर बुलाया तो वह जल्दी से आकर पिता और बड़े भाई के बीच में खड़ा हो गया।

स्क्वायर डांस, युवा क्लब और हैलोवीन प्रोग्रामों की तरह लाटरी के कार्यक्रम का संचालन भी मिस्टर समर्स करते थे। इन सामाजिक कार्यक्रमों के लिए उनके पास पर्याप्त समय था और पर्याप्त ऊर्जा भी। वे गोल चेहरे और हँसमुख स्वभाव के व्यक्ति थे। उनका कोयले का बिज़नेस था। लोगों को उन पर बहुत तरस आता था, क्योंकि उनके कोई संतान नहीं थी और उनकी पत्नी बहुत बदमिज़ाज और चिड़चिड़ी थी। जब मैदान में वे लकड़ी का एक काला बॉक्स लिए पहुँचे, गाँव की भीड़ में भिनभिनाहट भरी आवाज़ उभरी। उन्होंने हाथ हिलाते हुए कहा, “सज्जनों, आज थोड़ी देर हो गई।” उनके पीछे-पीछे पोस्टमास्टर, मिस्टर ग्रेव्स एक तिपाया स्टूल लिए हुए आए। स्टूल को मैदान के बीच में रख दिया गया। मिस्टर समर्स ने काले बॉक्स को स्टूल पर रखा। गाँव वालों ने उनसे दूर खड़े रहकर अपने और स्टूल के बीच एक दूरी बनाए रखी। मिस्टर समर्स ने जब पूछा कि “आपमें से कोई हमारा हाथ बँटाना चाहेगा?” तो लोग असमंजस में दिखे। फिर दो व्यक्ति, मिस्टर मार्टिन और उनका सबसे बड़ा बेटा बक्स्टर, आगे बढ़े ताकि जब मिस्टर समर्स बॉक्स के अन्दर रखी पर्चियों को मिलाएँ तो वे स्टूल पर बॉक्स को थामे रखें।

लाटरी के मूल उपकरण बहुत पहले खो चुके थे। स्टूल पर रखा यह काला बॉक्स गाँव के सबसे बुज़ुर्ग व्यक्ति, मिस्टर वार्नर के जन्म से भी पहले से, प्रयोग होता आ रहा था। मिस्टर समर्स गाँव वालों से अक्सर नए बॉक्स बनवाने की बात उठाते थे, लेकिन किसी को परंपरा में इतना भी परिवर्तन गवारा नहीं था, जितने का प्रतिनिधत्व इस काले बॉक्स से होता था। इसके विषय में एक  कहानी थी कि वर्तमान बॉक्स में इससे पहले वाले बॉक्स के कुछ टुकड़े लगे थे और भूतपूर्व बॉक्स उस समय बना था जब इस गाँव को आबाद करने के लिए कुछ लोग यहाँ आकर बसे थे। हर साल लाटरी के कार्यक्रम के बाद मिस्टर समर्स फिर नए बॉक्स की चर्चा करते थे। लेकिन हर साल कुछ किये बिना यह चर्चा धीरे-धीरे लुप्त हो जाती थी। प्रति वर्ष काला बॉक्स और भी जर्जर होता गया। अब तो यह पूरी तरह काला भी नहीं रह गया था। इसके एक तरफ़ की लकड़ी बुरी तरह  उखड़ गई थी, जिससे असली लकड़ी का रंग दिखता था। कहीं-कहीं बॉक्स का रंग उड़ गया था या उस पर धब्बे पड़ गये थे।

मिस्टर मार्टिन और उनके बेटे बक्स्टर ने काले बाक्स को स्टूल पर तब तक थामे रखा जब तक मिस्टर समर्स ने अपने हाथों से पर्चियों को पूरी तरह मिला नहीं दिया। चूँकि लाटरी की रस्म से सम्बंधित बहुत सी बातें या तो भुलाई जा चुकी थीं या उनको त्यागा जा चुका था, इसलिए मिस्टर समर्स, लकड़ी के टुकड़ों के बदले, जिनका प्रयोग पीढ़ियों से होता आ रहा था, पर्चियाँ प्रयोग करने में सफल हो गये थे। उनका तर्क था कि लकड़ी के टुकड़े उस समय बिल्कुल उचित थे जब गाँव बहुत छोटा था। लेकिन अब जबकि गाँव की आबादी तीन सौ लोगों से अधिक थी और इसमें और भी वृद्धि की संभावना थी, इसलिए किसी ऐसी वस्तु का प्रयोग आवश्यक था जो बॉक्स में आसानी से समा सके। लाटरी से पहले वाली रात को मिस्टर समर्स और मिस्टर ग्रेव्स ने काग़ज़ की पर्चियाँ बनाकर बॉक्स में रख दी थीं। फिर इसे मिस्टर समर्स की कोयला कम्पनी ले जाया गया। वहाँ इसे अलमारी में बंद करके तब तक के लिए ताला लगा दिया गया, जब तक अगली सुबह मिस्टर समर्स इसे मैदान में ले जाने के लिए तैयार न हो जाएँ। साल के शेष दिनों में बॉक्स कभी एक जगह रहता, कभी दूसरी जगह। एक साल यह मिस्टर ग्रेव्स के गोदाम में रहता, तो दूसरे साल यह डाकघर में उनके पैरों तले पड़ा रहता। और कभी यह मार्टिन की किराने की दुकान में अलमारी में रख दिया जाता।

मिस्टर समर्स के लाटरी कार्यक्रम आरम्भ करने की घोषणा से पहले दुनिया भर की औपचारिकताएँ होतीं। एक सूची तैयार की जातीــــــــــــ  परिवार के मुखियाओं की सूची, प्रत्येक परिवार के प्रत्येक घर के मुखियाओं की सूची, प्रत्येक परिवार के प्रत्येक घर के प्रत्येक सदस्य की सूची। लाटरी के संचालक के तौर पर मिस्टर समर्स को पोस्टमास्टर द्वारा एक औपचारिक शपथ दिलवाई जाती। कुछ लोगों  को याद था कि अतीत में कभी लाटरी के संचालक द्वारा एक गीत गाया गया था। इसे हर साल बेमन से, बेसुरे अंदाज़ में यंत्रवत दोहराया जाता। कुछ लोगों का मानना था कि लाटरी के पहले संचालक ने जब वह गीत पढ़ा या गाया था, तो बिल्कुल इसी तरह खड़ा हुआ था। दूसरों का मानना था कि संचालक का दायित्व था कि वह लोगों के बीच में टहलता घूमता रहे। लेकिन वर्षों पहले इस रस्म को त्यागा  जा चुका था। पहले एक औपचारिक अभिवादन भी होता था जो लाटरी-संचालक हर उस व्यक्ति को संबोधित करने के लिए करता था, जो बॉक्स से पर्ची निकालने आता था। लेकिन समय के साथ यह रस्म भी बदल गई। अब सिर्फ़ इतना ही ज़रूरी समझा जाता था कि संचालक पर्ची निकालने वाले व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से संबोधित करे। मिस्टर समर्स इन बातों में बहुत कुशल थे। अपनी साफ़-सफ़ेद शर्ट और नीली जीन्स में, काले बॉक्स पर लापरवाही से एक हाथ रखे, और मिस्टर ग्रेव्स और मार्टिन से बिना रुके बातें करते हुए, वे बहुत माक़ूल और महत्वपूर्ण व्यक्ति नज़र आते थे।

अंततः जब मिस्टर समर्स गुफ़्तगू समाप्त करके गाँव वालों की ओर मुड़े, तभी मिसेज़ हचिन्सन तेज़ी से चलती हुई मैदान में पहुँचीं। उनका स्वेटर उनके कन्धों पर पड़ा था। वे भीड़ में पीछे  की तरफ़ एक जगह घुस गईं।“मैं तो बिल्कुल ही भूल गई थी कि आज कौन सा दिन है,” उन्होंने मिसेज़ डेलाक्रॉय से कहा जो उनकी बग़ल में खड़ी थीं। दोनों धीरे से हँसीं। “मैं समझी कि मेरे पति बाहर लकड़ियाँ गाँज रहे हैं,” मिसेज़ हचिन्सन ने बात जारी रखी। “फिर मैंने खिड़की से बाहर झाँका। बच्चे भी जा चुके थे। फिर मुझे याद आया कि आज तो सत्ताईस जून है, और मैं भागती हुई आ रही हूँ।” उन्होंने अपने एप्रन से हाथ पोंछा। मिसेज़ डेलाक्रॉय बोलीं “लेकिन आप समय पर आ गईं। वे लोग अभी भी वहाँ खड़े बातें कर रहे हैं।”

मिसेज़ हचिन्सन ने गर्दन तानकर भीड़ का निरीक्षण किया और अपने पति और बच्चों को अगली पंक्ति में खड़ा देखा। उन्होंने मिसेज़ डेलाक्रॉय की बाँहों को थपथपाकर ख़ुदा हाफ़िज़ कहा और भीड़ के अन्दर आगे बढ़ीं। लोगों ने प्रसन्नतापूर्वक अलग हटकर उन्हें जाने का रास्ता दिया। दो या तीन लोगों ने बस इतनी ऊँची आवाज़ में कि भीड़ के ऊपर से सुनाई पड़ जाए, कहा, “यह रहीं हमारी मिसेज़ हचिन्सन,” और “बिल, आख़िरकार ये पहुँच ही गईं।” मिसेज़ हचिन्सन अपने पति के पास पहुँचीं, और मिस्टर समर्स जो उनका इंतज़ार कर रहे थे, ख़ुश-मिज़ाजी से बोले, “टेस्सी (मिसेज़ हचिन्सन), हमने सोचा कि तुम्हारे बिना ही कार्यक्रम शुरू करना पड़ेगा।” मिसेज़ हचिन्सन मुस्कुराते हुए  बोलीं “बर्तनों को सिंक में छोड़ आना तो मुनासिब नहीं था। क्यों जोए, सही कहा न मैंने?” हँसी की हल्की सी लहर भीड़ में दौड़ गई। मिसेज़ हचिन्सन के पहुँचने के बाद लोग अपनी-अपनी जगहों पर जमकर खड़े हो गये।

मिस्टर समर्स ने गंभीर स्वर में कहा, “मेरा विचार है कि अब हम कार्यक्रम शुरू कर दें, और जल्द-से-जल्द इसे निपटाकर अपने-अपने कामों पर लौट जाएँ। क्या यहाँ कोई ग़ैर-हाज़िर है ?”

“डनबार,” कई लोग बोले। “डनबार। डनबार।”

मिस्टर समर्स ने सूची देखी। बोले, “क्लाइड डनबार।  हाँ, वे नहीं हैं। दरअसल उनका पैर टूट गया है। उनके बदले कौन पर्ची निकालेगा?”

“मैं निकालूँगी” एक औरत बोली। मिस्टर समर्स उसे देखने को मुड़े। उन्होंने कहा, “पति की जगह पत्नी पर्ची निकाल सकती है। लेकिन जेनी, क्या तुम्हारा कोई बड़ा बेटा नहीं जो तुम्हारी जगह पर्ची निकाले?” हालाँकि मिस्टर समर्स और गाँव के हर व्यक्ति को जवाब अच्छी तरह मालूम था, लेकिन लाटरी के संचालक का दायित्व था कि वह ऐसे औपचारिक प्रश्न पूछे। मिस्टर समर्स ने आदरपूर्वक मिसेज़ डनबार(जेनी) के जवाब का इंतज़ार किया।

वे हसरत भरे स्वर में बोलीं, “होरेस अभी सोलह वर्ष का नहीं हुआ। इस साल मुझे ही अपने पति की जगह लेनी पड़ेगी।”

“ठीक है,” मिस्टर समर्स बोले। उन्होंने अपने हाथ में पकड़ी सूची में कुछ लिखा। फिर पूछा, “वाटसन परिवार का कोई मर्द इस साल पर्ची निकाल रहा है?”

भीड़ में एक लम्बे लड़के ने हाथ उठाकर कहा, “जी जनाब। अपनी और अपनी माँ  की ओर से मैं पर्ची निकालूँगा।” भीड़ में कुछ इस प्रकार की आवाज़ें उभरीं “बहुत अच्छे, जैक” और “यह ख़ुशी की बात है कि तुम्हारी माँ के पास इस काम के लिए कोई मर्द तो है।” जैक ने घबराकर आँखें झपकाईं और सिर को झुका लिया ।

“बहुत अच्छा” मिस्टर समर्स बोले, “मेरे विचार से हम तैयार हैं। हमारे बुज़ुर्ग वार्नर साहब भी आ गए?”

“यहाँ हूँ।” एक आवाज़ आई, और मिस्टर समर्स ने सिर हिलाया।

जब मिस्टर समर्स ने खखारकर गला साफ़ किया और अपनी सूची को देखा, तो अचानक भीड़ में गहरा सन्नाटा छा गया। “सब लोग तैयार हैं?” उन्होंने पूछा। “अब मैं नाम पढूँगा। सबसे पहले परिवारों के मुखियाओं के नाम पढ़े जाएँगे, और मर्द यहाँ आकर बॉक्स से पर्ची निकालेंगे। जब तक कि सब अपनी-अपनी पर्चियाँ बॉक्स से निकाल न लें, कोई अपनी पर्ची खोलेगा नहीं। सारी बात स्पष्ट है?”

लोगों ने यह सब इतनी बार किया था कि उन्होंने निर्देशों को आधा-अधूरा ही सुना। अधिकतर लोग चुप थे। वे अपने सूखे होंठों पर ज़बानें फेर रहे थे, और किसी तरफ़ नहीं देख रहे थे। फिर मिस्टर समर्स ने एक हाथ ऊपर उठाया और कहा “एडम्स।” एक आदमी भीड़ से निकलकर आगे बढ़ा। “हेलो, स्टीव,” मिस्टर समर्स ने कहा। मिस्टर एडम्स ने जवाब दिया, “ हेलो, जोए।” वे एक दूसरे को देखकर हँसे। घबराई हुई बेजान सी हँसी। फिर मिस्टर एडम्स ने काले बॉक्स में हाथ डालकर एक तह की हुई पर्ची निकाली। वे उसके एक कोने को मज़बूती से पकड़े हुए मुड़े और जल्दी से भीड़ में अपने स्थान पर वापस चले गए। वहाँ वे अपने परिवार से थोड़ा सा अलग होकर खड़े हो गए। वे अपने हाथ की तरफ़ नहीं देख रहे थे।

“एलन,” मिस्टर समर्स ने पुकारा। “एंडरसन…… बेन्थम।”

“ लगता है जैसे दो लाटरियों के बीच अब कोई फ़ासला ही नहीं रह गया,” पिछली पंक्ति में खड़ी मिसेज़ डेलाक्रॉय ने मिसेज़ ग्रेव्स से कहा। पिछली लाटरी जैसे अभी हफ़्ते भर पहले ही हुई हो।”

“सचमुच समय बहुत तेज़ भागता है!” मिसेज़ ग्रेव्स ने कहा।

“क्लार्क ….. डेलाक्रॉय”

“वह रहे मेरे पति।” मिसेज़ डेलाक्रॉय ने कहा। वे साँसें रोके अपने पति को आगे बढ़ते देखती रहीं।

“डनबार,” मिस्टर समर्स ने पुकारा। मिसेज़ डनबार संतुलित क़दमों से बॉक्स की ओर बढ़ीं। एक औरत ने पुकारा “जेनी, जाओ, तुम्हारी बारी।” दूसरी बोली “ वह, रही जेनी।”

“अब हमारी बारी है,” मिसेज़ ग्रेव्स ने कहा। उन्होंने मिस्टर ग्रेव्स को बॉक्स के एक तरफ़ से आते देखा। मिस्टर ग्रेव्स ने मिस्टर समर्स को गंभीरता से हेलो कहा और बॉक्स से एक पर्ची चुन ली। अब पूरी भीड़ में मर्द अपने लम्बे हाथों में तह की हुई छोटी पर्चियाँ पकड़े, घबराहट में उन्हें खोले बिना उलट-पलट रहे थे। मिसेज़ डनबार और उनके दोनों बेटे एक साथ खड़े थे। मिसेज़ डनबार के हाथ में पर्ची थी।

“हर्बर्ट….. हचिन्सन।”

“बिल, जल्दी पहुँचो वहाँ,” मिसेज़ हचिन्सन ने कहा। उनके क़रीब खड़े लोग हँस पड़े।

“जोंस।”

मिस्टर एडम्स ने अपने पास खड़े सर्वाधिक वृद्ध व्यक्ति वार्नर से कहा: “लोग कहते हैं कि उत्तर वाले गाँव में लाटरी की रस्म को बंद करने की बात चल रही है।”

बुज़ुर्ग वार्नर खरखराती आवाज़ में बोले “ पागलों का झुण्ड है वह। उन लौंडों की बातें सुनो तो उनके लिए कुछ भी अहम नहीं। जानते हो अब वे क्या कहेंगे? अब वे कहेंगे कि गुफाओं में चलकर रहो। कोई काम-धाम मत करो। यूँ ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहो। कहावत थी कि ‘जून में लाटरी हो तो  भुट्टे की फ़सल न्यारी हो।’ यह बात लिख लो कि अब उबली हुई दूब और बांजफल ही हमारे नसीब में होंगे।” फिर उन्होंने चिड़चिड़े स्वर में कहा, “लाटरी हमेशा से होती आ रही है। मेरा दुर्भाग्य है कि दो दिन के लौंडे जोए समर्स को वहाँ हर किसी से हँसी ठट्ठा करते हुए देखना पड़ रहा है।”

“कुछ जगहों पर पहले ही लाटरी की रस्म त्यागी जा चुकी है।” मिस्टर एडम्स ने कहा।

बूढ़े वार्नर ने दृढ़ता से कहा,“इसमें अपशकुन के सिवा कुछ नहीं है। मूर्ख लौंडों का झुण्ड!”

“मार्टिन।” और बॉबी मार्टिन ने अपने पिता को आगे बढ़ते देखा। “ओवरडाइक….. पर्सी।”

“काश जल्दी से ये लोग कार्यक्रम समाप्त करें। अच्छा हो जल्दी से सब कुछ निपट जाए।” मिसेज़ डनबार ने अपने बड़े बेटे से कहा।

“बस समाप्त ही होने को है।” उनका बेटा बोला।

“तैयार रहो, दौड़कर अपने डैडी को बताने के लिए।” मिसेज़ डनबार ने कहा।

मिस्टर समर्स ने ख़ुद अपना नाम पुकारा और फिर नपे-तुले क़दमों से आगे बढ़कर बॉक्स से एक पर्ची चुनी। फिर उन्होंने पुकारा “वार्नर।”

“लाटरी का यह मेरा सतहत्तरवाँ वर्ष है।” बूढ़े वार्नर ने भीड़ में से गुज़रते हुए कहा। “सतहत्तरवीं बार।”

“वाटसन।” लम्बा लड़का अजीब बेढंगेपन से भीड़ से निकलकर आगे बढ़ा। किसी ने कहा, “घबराओ नहीं, जैक।” मिस्टर समर्स ने कहा। “बेटे, कोई जल्दी नहीं, आराम से निकालो पर्ची।”

“ज़निनी।”

उसके बाद एक लंबा अंतराल था। एक ऐसा अंतराल जिसमें भीड़ की सांसें थम सी गई थीं। फिर मिस्टर समर्स ने अपने हाथ में पकड़ी हुई पर्ची को ऊपर उठाकर कहा, “साथियो, अब अपनी पर्चियाँ खोलिए।” एक मिनट तक कोई हिला नहीं। फिर सारी पर्चियाँ खोली गईं। अचानक सारी औरतें एक साथ बोलने लगीं, “किसको मिली वह पर्ची?” “वह पर्ची किसको मिली?”, “डनबार को मिली क्या?”, “वाटसन को मिली?” फिर आवाज़ें कहने लगीं, “हचिन्सन को मिली।” “बिल को।” “बिल हचिन्सन को मिली है पर्ची।”

“दौड़कर अपने डैडी को ख़बर करो,” मिसेज़ डनबार ने अपने बड़े बेटे से कहा।

लोग मुड़-मुड़कर मिसेज़ हचिन्सन को देखने लगे। बिल हचिन्सन चुपचाप खड़े थे और अपने हाथ की पर्ची को घूरे जा रहे थे। अचानक टेस्सी हचिन्सन मिस्टर समर्स पर चिल्लायीं, “आपने इनको इतना समय नहीं दिया कि ये अपनी मर्ज़ी से पर्ची निकालते। मैंने देखा था। यह अन्याय है!”

“टेस्सी, बचकानी बात मत करो।” मिसेज़ डेलाक्रॉय बोलीं, और मिसेज़ ग्रेव्स बोलीं, “हम सबने बराबर का जोखिम उठाया था।”

“चुप भी करो टेस्सी,” बिल हचिन्सन ने कहा।

मिस्टर समर्स ने कहा “तो उपस्थित सज्जनो, पहला चरण तो बहुत शीघ्र समाप्त हो गया। अब हमें थोड़ी और जल्दी करनी होगी ताकि सब कुछ समय पर निपट जाए।” उन्होंने अपनी दूसरी सूची पर नज़र डाली और कहा “बिल, आप हचिन्सन परिवार के लिए पर्ची निकालिए। क्या हचिन्सन परिवार में कोई और घर शामिल है?”

“डॉन और ईवा हैं,” मिसेज़ हचिन्सन चीखीं। “उनसे भी पर्ची निकलवाइए!”

“बेटियाँ अपने पतियों के परिवार के साथ पर्ची निकालती हैं, टेस्सी,” मिस्टर समर्स ने नरमी से कहा। “सबकी तरह तुम भी यह बात जानती हो।”

टेस्सी ने कहा, “यह अन्याय है।”

“और कोई नहीं है, जोए”, बिल हचिन्सन ने दुखी स्वर में कहा। मेरी बेटी अपने पति के परिवार के साथ पर्ची निकालती है। यही उचित भी है। बच्चों के अतिरिक्त मेरे पास और कोई नहीं है।”

“फिर जहाँ तक परिवार के लिए पर्ची निकालने की बात है, तो यह आप निकालेंगे,” मिस्टर समर्स ने स्पष्ट किया। “और घर के लिए भी पर्ची आप ही निकालेंगे। ठीक है?”

“ठीक है” मिस्टर हचिन्सन ने कहा।

“कितने बच्चे हैं बिल?” मिस्टर समर्स ने औपचारिक रूप से पूछा।

“तीन,” बिल हचिन्सन ने कहा। “बिल जूनियर, नैंसी, नन्हा डेव, टेस्सी और मैं।”

“तो ठीक है,” मिस्टर समर्स ने कहा, “हैरी, तुमने इनकी पर्चियाँ ले लीं?”

मिस्टर ग्रेव्स ने हाँ में सिर हिलाया, और पर्चियों को ऊपर उठाकर दिखाया। “इन्हें बॉक्स में डाल दो” मिस्टर समर्स ने निर्देश दिया। “बिल की पर्ची भी बॉक्स में डाल दो।”

“मेरे विचार से हमें फिर से लाटरी करनी चाहिए,” मिसेज़ हचिन्सन ने इतने धीरे से कहा जितने धीरे से कहना उनके लिए संभव था ।

“मैं आपसे कह रही हूँ, यह अन्याय है। आपने इन्हें पर्ची चुनने के लिए अधिक समय नहीं दिया। सबने देखा।”

मिस्टर ग्रेव्स ने पाँच पर्चियाँ चुनीं और उन्हें बॉक्स में डाल दिया। शेष सारी पर्चियों को फ़र्श पर गिरा दिया, जिन्हें वहाँ से हवा उड़ा ले गई।

“कृपया मेरी बात तो सुनिए,” मिसेज़ हचिन्सन अपने चारों तरफ़ की भीड़ से कह रही थीं।

“बिल, तैयार हो?” मिस्टर समर्स ने पूछा। बिल हचिन्सन ने अपनी पत्नी और बच्चों पर एक नज़र डाली और हाँ में सिर हलाया।

मिस्टर समर्स ने कहा “पर्ची निकालिए, और याद रहे जब तक सब अपनी-अपनी पर्चियाँ न निकाल लें, इन्हें खोलना नहीं है। हैरी, तुम नन्हे डेव की मदद करो।” मिस्टर ग्रेव्स ने छोटे बच्चे का हाथ पकड़ा, जो उनके साथ आराम से बॉक्स के पास आया। “बॉक्स में से एक पर्ची निकालो डेव,” मिस्टर समर्स ने कहा। डेव ने अपना हाथ बॉक्स में डाला और हँस पड़ा। “सिर्फ़ एक पर्ची निकालो,” मिस्टर समर्स ने कहा। “हैरी, तुम इसकी तरफ़ से पर्ची पकड़ो।” मिस्टर हैरी ने बच्चे का हाथ पकड़ा और उसकी सख्ती से बंद मुट्ठी में से पर्ची निकालकर अपने हाथ में ले ली। नन्हा डेव उनके पास खड़ा उनको हैरानी से देखता रहा।

“अब नैंसी की बारी है,” मिस्टर समर्स ने कहा। नैंसी बारह साल की थी। जब वह अपना स्कर्ट  लहराती हुई आगे बढ़ी और उसने बहुत नफ़ासत के साथ बॉक्स से एक पर्ची निकाली तो उसके स्कूल के दोस्तों ने गहरी साँसें खींचीं। “बिल जूनियर,” मिस्टर समर्स ने कहा। बिली, लाल चेहरे के साथ लम्बे डग भरता हुआ आगे बढ़ा और पर्ची निकालते समय बॉक्स को ठोकर मारते-मारते बचा। “टेस्सी,” मिस्टर समर्स ने पुकारा। मिसेज़ हचिन्सन एक मिनट तक हिचकिचाईं, विद्रोहपूर्ण तेवर से इधर-उधर देखा, फिर होंठ भींचकर बॉक्स की ओर बढ़ीं। उन्होंने बॉक्स से एक पर्ची जल्दी से उठाई और अपने पीछे छुपा ली।

“बिल,” मिस्टर समर्स ने कहा। मिस्टर हचिन्सन ने बॉक्स में हाथ डालकर टटोला। अंततः हाथ बाहर निकाला तो उसमें एक पर्ची थी।

भीड़ ख़ामोश थी। एक लड़की फुसफुसाई, “ईश्वर करे नैंसी न को न मिली हो।” उसकी फुसफुसाहट भीड़ के अंतिम छोर तक सुनी गई।

“पहले ऐसा नहीं होता था।” बूढ़े वार्नर ने कहा। अब पहले जैसे लोग रह ही नहीं गए।”

मिस्टर समर्स ने कहा, “अच्छा, अब पर्ची खोलिए। हैरी, तुम नन्हे डेव की पर्ची खोलो।”

मिस्टर ग्रेव्स ने पर्ची खोली। उन्होंने हाथ ऊपर उठाया तो भीड़ ने लम्बी साँस ली। सब ने देखा कि पर्ची कोरी थी। नैंसी और बिल जूनियर ने अपनी पर्चियाँ एक साथ खोलीं और दोनों खुलकर हँस पड़े। वे भीड़ की तरफ़ मुड़े। उनके सिर के ऊपर उनकी कोरी पर्चियाँ थीं।

“टेस्सी,” मिस्टर समर्स ने कहा। एक निस्तब्ध मौन। फिर मिस्टर समर्स ने बिल हचिन्सन की ओर देखा। बिल ने अपनी पर्ची खोलकर दिखाई। यह भी कोरी थी।

“टेस्सी को मिली।” मिस्टर समर्स ने कहा। फिर धीमी आवाज़ में बोले, “बिल, हमको टेस्सी की पर्ची दिखाओ।”

बिल हचिन्सन अपनी पत्नी के पास गए और उनके हाथ से पर्ची ज़बरदस्ती छीन ली। उस पर एक काला चिन्ह बना था। यह वही काला चिन्ह था जिसे मिस्टर समर्स ने कोयला कम्पनी के कार्यालय में चटक पेन्सिल से कल रात को बनाया था। बिल हचिन्सन ने उसे ऊपर उठाया। भीड़ में एक सुगबुगाहट मच गई।

“ ठीक है मित्रो,” मिस्टर समर्स ने कहा। “आइये, हम जल्दी से कार्यक्रम निपटा लें।”

हालाँकि गाँव वाले रस्म भूल चुके थे और असली काला बॉक्स भी खो चुका था, लेकिन वे पत्थरों के प्रयोग से अभी भी वाक़िफ़ थे। पत्थरों का ढेर तैयार था, जिसे बच्चों ने सुबह ही जमा कर दिया था। फ़र्श पर भी पत्थर बिखरे थे जिनपर वो पर्चियाँ थीं जो बॉक्स से गिराए जाने के बाद उड़कर उनसे उलझ पड़ी थीं। मिसेज़ डेलाक्रॉय ने एक पत्थर चुना, जो इतना बड़ा था कि उन्हें दोनों हाथों से उठाना पड़ा। वे मिसेज़ डनबार की तरफ़ पलटीं, “आइये, जल्दी कीजिये।”

मिसेज़ डनबार के दोनों हाथों में छोटे-छोटे पत्थर थे। उन्होंने फूली हुई साँसों के दरमियान कहा, “मैं बिल्कुल दौड़ नहीं सकती। आप आगे जाइए, मैं पहुँचती हूँ।”

बच्चों के पास पहले से ही पत्थर थे। किसी ने नन्हे डेव हचिन्सन को भी कुछ पत्थर पकड़ा दिए थे।

मिसेज़ हचिन्सन (टेस्सी) अब मैदान के केंद्र में एक स्वच्छ स्थान पर खड़ी थीं। जब गाँव वाले उनकी तरफ़ बढ़े तो उन्होंने हताशा से अपने हाथ उनकी ओर दया के लिए फैलाए। “यह अन्याय है,” उन्होंने कहा। एक पत्थर उनके सिर से टकराया।

बूढ़ा वार्नर कह रहा था “आइये, आइये, सब लोग आ जाइये।” स्टीव एडम्स गाँव की भीड़ की अगली पंक्ति में थे और मिसेज़ ग्रेव्स उनकी बग़ल में थीं।

“यह अन्याय है, यह ठीक नहीं है।” मिसेज़ हचिन्सन चीखीं, और फिर सब उन पर टूट पड़े।

(जून 1948)

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