समकालीन जनमत
स्मृति

रामकृष्ण का पूरा जीवन न्याय, समानता और मानवीय गरिमा के लिये संघर्षों को समर्पित था

लखनऊ। नागरिक परिषद व राज-समाज के संयुक्त तत्वावधान में प्रसिद्ध सोशल एक्टिविस्ट रामकृष्ण की स्मृति में श्रध्दांजलि सभा का आयोजन 21 जनवरी को मवैया पार्क, लखनऊ में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता भगवती सिंह व संचालन एडवोकेट वीरेंद्र त्रिपाठी व ओ. पी. सिन्हा ने किया। इस मौके पर जन संस्कृति मंच, भाकपा, भाकपा (माले), रिहाई मंच, आल इंडिया वर्कर्स कौंसिल, फारवर्ड ब्लाक, गदर पार्टी, एसयूसीआई, अमिट, आईपीएफ आदि संगठनों सहित अनेक व्यक्तियों ने उन्हें याद किया और अपना श्रद्धा सुमन अर्पित किया।

अध्यक्षीय संबोधन में भगवती सिंह ने रामकृष्ण जी के वामपंथी आंदोलन में निभाई गयी वैचारिक भूमिका की चर्चा की। उनका प्रयास था कि किसी तरह पूरा वामपंथ एकजुट होकर समाज के सामने एक विकल्प पेश करे।

साथी रामकृष्ण के संघर्षशील जीवन के बहुत से पहलू थे और उन पर तमाम वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किये। वक्ताओं में क्रांति शुक्ला, कौशल किशोर, ओ. पी. सिन्हा, भगवान स्वरूप कटियार, एम के सिंह, अवधेश कुमार सिंह, रमेश सिंह सेंगर, डा. नरेश कुमार, होमेंद्र मिश्रा, महेश देवा, ज्योति राय, जर्नादन शाही, जय प्रकाश नारायण, यादवेंद्र पाल, मंदाकिनी, प्रभात सिंह, वन्दना मिश्रा, डा. रमेश दीक्षित, डी एल रावल, रामकिशोर, श्री कृष्णा, ओंकार सिंह, अरुणा सिंह, प्रणव प्रियदर्शी, दिलीप सिंह, जय प्रकाश मौर्य, प्रभात कुमार, उदयवीर सिंह, मो. शोएब, आदियोग, इमरान अहमद, दिनकर कपूर, राधेश्याम कनौजिया, आशुकान्त सिन्हा, कल्पना पांडे, मलखान सिंह, रूप राम गौतम, बिंदा पंजम, शिवाजी राय, हरिशंकर, शैलेश राव, हरिकिशन पटेल सहित अन्य लोगों ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम में बोलते हुए वक्ताओं ने कहा कि वे एक जननेता के साथ श्रमिक वर्ग के सम्मानीय नेता थे।

ज्ञात हो कि रामकृष्ण का दुखद निधन बीते 11 जनवरी को सड़क दुर्घटना में हुआ। वे मवईया में रहते थे। उनका पूरा जीवन न्याय, समानता और मानवीय गरिमा के लिये संघर्षों, आंदोलनों को पूरी तरह समर्पित था। छात्र जीवन से ही वामपंथी आंदोलन से जुड़कर छात्र युवा आंदोलन के एक क्रांतिकारी नेता के रूप में चर्चा में आये। शुरू में उनका कार्य क्षेत्र फैजाबाद, अयोध्या था। छात्र जीवन मे वे एआईएसएफ छात्र संगठन से जुड़े। तत्पश्चात सीपीआई के नौजवान सभा में फैजाबाद जिला सचिव बने।

80 के दशक में लखनऊ आए। यहां आने के बाद पत्रकारिता से लेकर जन आंदोलनों, किसान आंदोलनों एवं श्रमिक आंदोलनों में उनकी भूमिका बढ़ती गई। हर जगह वे नेतृत्वकारी भूमिका में प्रतिष्ठित होते गये। फैजाबाद से निकलने वाले अखबार से ही नहीं जुड़े बल्कि मवईया में श्रीकृष्ण प्रेस की स्थापना की। यह प्रेस जनवादी साहित्य व ‘राज समाज’ अखबार से लेकर जन आंदोलनों के पर्चे आदि के प्रकाशन का मुख्य केंद्र रहा है। पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रियता और अपनी भूमिका के कारण ही वे उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार एसोसिएशन (पंजीकृत) के सचिव बने। कई वर्षों तक उन्होंने इस संस्था का नेतृत्व किया और इस पद पर रहे। वे भाकपा माले से उस वक्त जुड़े जब यह पार्टी भूमिगत हुआ करती थी। उनका निवास आईपीएफ का राज्य कार्यालय हुआ करता था जो माले का जन राजनीतिक संगठन था।

रामकृष्ण की जन आंदोलन में भूमिका दिन दिन बढ़ती गई । जब लोकपाल को लेकर अन्ना का आंदोलन पूरे देश में शुरू हुआ लखनऊ में उस आंदोलन के अग्रणी लोगों में वे शामिल थे । बाद के दिनों में उनके बिना लखनऊ में किसी जन आंदोलन की बात नहीं होती थी। अनेक आंदोलनों में उनकी बढ़ती भूमिका पर गहराई से बात करके ही हम उनकी वैचारिकी और मानवीय प्रतिबद्धता को समझ सकते हैं।

वैचारिक धरातल पर साथी रामकृष्ण जी एक सचेत मार्क्सवादी थे लेकिन उनका सामाजिक बदलाव से जुडे हरेक प्रगतिशील विचारधारा के साथ एक आत्मीय संवाद था। वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं के प्रति उनका नजरिया वैज्ञानिक था। विशेष रूप से वे गांधी जी के विचारों से बहुत कुछ सीखने पर जोर देते थे। साम्प्रदायिक सौहार्द्र और न्याय का सवाल उनके प्रिय विषय थे। जातिगत भेदभाव को उन्होंने अपने व्यवहारिक एवं पारिवारिक जीवन में पूरी तरह खारिज कर दिया था। एक तरह से उन्होंने सिध्दांतों को अपने जीवन में उतार दिया था। अपने विचारों के अनुकूल ही उनका जीवन था। साम्प्रदायिकता के खिलाफ उनका संघर्ष कभी कमजोर नहीं पड़ा और समाज के हर समूह के साथ मानवीय-आत्मीय संबंध बनाकर वे साम्प्रदायिकता की जड़ों को कमजोर कर रहे थे। उनका पूरा जीवन उत्साह और उम्मीदों से लबरेज था और सभी पर प्रभाव डालता था। वे सभी साथियों की आत्मिक ताकत थे। फिलहाल वे ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल, नागरिक परिषद, पीपुल्स यूनिटी फोरम आदि अनेक जन संगठनों में उनकी सक्रिय और नेतृत्वकारी भूमिका थी। ऐसे साथी का असमय जाने से जो अंतराल पैदा होता है, उसे भर पाना संभव नहीं है। साथी रामकृष्ण बहुत याद आयेंगे।

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