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पुलिस का लाठीचार्ज रोक न सका राजभवन मार्च, 10 हजार से अधिक किसान मार्च में शामिल हुए 

पटना. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर आज 10 हजार से अधिक किसानों ने राजभवन मार्च किया ।राजभवन मार्च कर रहे किसानों को प्रशासन ने गांधी मैदान से निकलते ही जेपी चौक पर रोक देना चाहा. लेकिन प्रदर्शनकारी अपनी मांगों का ज्ञापन राज्यपाल को देना चाहते थे. जेपी चैक पर प्रशासन ने धक्का-मुक्की किया, लेकिन वह किसान सैलाब को रोक न पाई. मार्च डाकबंगला की ओर बढ़ा और फिर वहां एक बार प्रशासन ने दमनात्मक रवैया अपनाया. पुलिस लाठीचार्ज में कई किसान नेता घायल हो गए।

लाठीचार्ज के बाद डाक बंगला चौराहा को जाम करके किसान नेताओं ने सभा आरंभ कर दी। बाद में अपनी किसान संघर्ष समन्वय समिति के नेताओं ने अपना एक ज्ञापन बिहार के राज्यपाल को भी सौंपा. अखिल भारतीय किसान महासभा की ओर से प्रतिनिधिमंडल में घोषी के विधायक रामबलि सिंह यादव शामिल हुए.

इसके पूर्व गांधी मैदान से अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर से अपनी मांगों से संबंधित तख्तियां लेकर हजारों किसानों ने राजभवन मार्च का आरंभ किया. मार्च का नेतृत्व काॅ. राजाराम सिंह के अलावा अशोक प्रसाद, ललन चौधरी,  अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य सचिव रामाधार सिंह, राज्य अध्यक्ष विशेश्वर प्रसाद यादव आदि नेताओं ने किया.

मार्च के दौरान तीनों काले कृषि कानून रद्द करो, बिजली बिल 2020 वापस लो, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान सहित सभी फसलों की खरीद की गारंटी करो, बिहार में मंडी व्यवस्था बहाल करो आदि नारे लगा रहे थे.

डाक बंगला चौराहा पर  सभा को संबोधित करते हुए पूर्व विधायक राजाराम सिंह ने कहा कि आज भगत सिंह का पंजाब और स्वामी सहजानंद के किसान आंदोलन की धरती बिहार के किसानों की एकता कायम होने लगी है, इससे भाजपाई बेहद डरे हुए हैं. बिहार की धरती सहजानंद सरस्वती जैसे किसान नेताओं की धरती रही है, जिनके नेतृत्व में जमींदारी राज की चूलें हिला दी गई थीं. आजादी के बाद भी बिहार मजबूत किसान आंदोलनों की गवाह रही है.

उन्होंने कहा कि 70-80 के दशक में भोजपुर और तत्कालीन मध्य बिहार के किसान आंदोलन ने किसान आंदोलन के इतिहास में एक नई मिसाल कायम की है. अब एक बार नए सिरे से बिहार के छोटे-मंझोले-बटाईदार समेत सभी किसान आंदोलित हैं. बिहार से पूरे देश को उम्मीदें हैं. आज 29 दिसंबर के राजभवन मार्च ने साबित कर दिया है कि अब पूरा देश भाजपा के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है.

सभा को तरारी विधायक सुदामा प्रसाद ने भी संबोधित किया. सुदामा प्रसाद आज ही दिल्ली किसान आंदोलन में अपनी भागीदारी निभाकर पटना लौटे हैं. उन्होंने कहा कि पंजाब के किसानों को बिहार के किसानों से बहुत उम्मीद है. आज के इस राजभवन मार्च से निश्चित रूप से पंजाब व पूरे देश के किसान आंदोलन को एक नई उर्जा हासिल होगी.

अन्य नेताओं ने कहा कि बिहार सरकार ने सबसे पहले 2006 में ही बाजार समितियों को खत्म कर दिया. एमएसपी खत्म होने की वजह से आज किसी भी क्षेत्र में बिहार के किसानों का सही समय पर धान की खरीद नहीं होती है, न्यूनतम समर्थन मूल्य की तो बात ही जाने दी जाए. जो काम नीतीश जी ने 2006 में बिहार में किया मोदी सरकार अब पूरे देश में वही करना चाहती है. बिहार के किसानों की दुर्दशा के लिए भाजपा-जदयू जवाबदेह है. नीतीश कुमार से हम पूछना चाहते हैं कि वे बताएं कि बिहार के किसानों को कहां-कहां न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल रहा है. इन लोगों का काम किसानों को बस ठगना है.

किसानों के राजभवन मार्च में भाकपा-माले के सभी विधायक और खेत मजदूर संगठनों-महिला संगठनों व छात्र-युवा संगठनों के नेताओं ने भी भाग लिया. माले विधायक दल के नेता महबूब आलम, तरारी विधायक व अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य सुदामा प्रसाद, काराकाट विधायक व अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव अरूण सिंह, दरौली विधायक व खेग्रामस के सम्मानित बिहार अध्यक्ष सत्यदेव राम, सिकटा विधायक व खेग्रामस के बिहार राज्य अध्यक्ष बीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, फुलवारी विधायक व खेग्रामस के बिहार राज्य सचिव गोपाल रविदास, अगिआंव विधायक व इनौस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मंजिल, अरवल विधायक महानंद सिंह, पालीगंज विधायक व आइसा के महासचिव संदीप सौरभ, डुमरांव विधायक व इनौस के बिहार राज्य अध्यक्ष अजीत कुशवाहा, घोषी विधायक रामबली सिंह यादव, पूर्व सांसद व खेग्रामस के सम्मानित अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद आदि लोग किसानों के मार्च में शामिल हुए.

मार्च में भाकपा-माले के पोलित ब्यूरो सदस्य व खेग्रामस के राष्ट्रीय महासचिव धीरेन्द्र झा, ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, ऐपवा की बिहार राज्य अध्यक्ष सरोज चैबे, राज्य सचिव शशि यादव, ऐक्टू नेता आरएनठाकुर, मनरेगा संगठन के राज्य सचिव दिलीप सिंह आदि नेताओं की भी भागीदारी दिखी.

भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल ने राजभवन मार्च में शामिल किसानों के शांतिपूर्ण मार्च पर पुलिसिया कार्रवाई की कड़ी आलोचना की और कहा कि सरकार को आंदोलित किसानों के प्रति संवेदनशील रूख अपनाना चाहिए, लेकिन वह लाठी-गोली की भाषा बोल रही है. सरकार दमनात्मक कार्रवाइयों से बाज आए.

 

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