14 फरवरी को सी.आर.पी.एफ के काफिले पर घात लगा कर हमला किया गया,वह बेहद निंदनीय है. पूरे देश में इसको लेकर जो आक्रोश है, वह जायज है. यह तो एक तरह का नरसंहार है.
कश्मीर जैसे आतंकवाद के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र में सुरक्षा बलों पर इस तरह के हमले का हो जाना आश्चर्यजनक है. इस वारदात और उसके इर्दगिर्द घटित कुछ और घटनाओं से,सुरक्षा बलों पर हुए इस आत्मघाती हमले के संदर्भ में कई सवाल खड़े होते हैं.
पहला सवाल तो यही है कि इतने बड़े काफिले पर ऐसा हमला कैसे मुमकिन हुआ.इस संदर्भ में अब यह तथ्य सार्वजनिक हो चुका है कि वारदात से 48 घण्टे पहले ऐसी वारदात होने का इंटेलिजेंस इनपुट था. इंटेलिजेंस एजेंसियों ने एक ट्विटर हैंडल- “313_get” पर अपलोड हुए एक संदेश की सूचना दी थी. इसमें सोमालिया में सुरक्षा बलों पर हमले का एक 33 सेकेंड का वीडियो था और लिखा हुआ- “…..कश्मीर में भी ऐसा ही होगा……” और कश्मीर में वैसा ही हुआ.
जम्मू कश्मीर पुलिस के पुलिस महानिरीक्षक की तरफ से यह जानकारी सभी सुरक्षा बलों को भेजी गई थी और उन्हें अपने आवागमन और तैनाती के इलाकों को अच्छी तरह साफ(sanitize) करने को कहा गया था. कैसे घटना को अंजाम देंगे, इसका वीडियो ट्विटर पर अपलोड हुआ. इससे अधिक स्पष्ट जानकारी और क्या हो सकती है. प्रश्न यह है कि इतनी साफ जानकारी के बावजूद 2500 जवानों का काफिला खुलेआम क्यों चल रहा था ?जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मालिक ने कहा कि आंशिक तौर पर यह हमला इंटेलिजेंस फेलियर है क्योंकि इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक कार में लादे जाने का पता नहीं लगाया जा सका.
यह सही बात है. जम्मू कश्मीर में लगभग 6 लाख सुरक्षा बल के जवान और 1 लाख इंटेलिजेंस कर्मी तैनात हैं. इंटेलिजेंस की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद कोई एक सिरफिरा विस्फोटकों को गाड़ी में भरता है, सुरक्षा बलों के काफिले में घुसता है और विस्फोट भी कर देता है तो यह इंटेलिजेंस तंत्र की क्षमता पर बेहद गंभीर सवाल खड़े करता है. प्रश्न यह भी है कि हमले की चेतावनी के बावजूद सुरक्षा बलों के इतने बड़े काफिले को,दिन दहाड़े ,ऐसे इलाके में जहां आसानी से हमला होना मुमकिन था,चलाने का आदेश किसने और क्यों दिया?
पुलवामा की वारदात के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान को व्यापार के क्षेत्र में दिया गया-मोस्ट फेवर्ड नेशन(एम.एन. एफ.) का दर्जा वापस ले लिया है.डब्लू.टी.ओ. में हुए करार के बाद यह दर्जा दिया गया था,जो 1996 से चला आ रहा था.अंग्रेजी दैनिक इकनोमिक टाइम्स के अनुसार एम.एन. एफ. दर्जा समाप्ति का प्रतीकात्मक महत्व अधिक है क्योंकि भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार अपेक्षाकृत कम है.
लेकिन व्यापार संबंधी इस दर्जे की समाप्ति से भी कुछ सवाल निकलते हैं.
प्रश्न यह है कि इस एम.एन. एफ. दर्जा समाप्ति का असर क्या भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल के बेटे शौर्य डोवल पर भी पड़ेगा ?यह प्रश्न इसलिए है क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के बेटे शौर्य डोवल जो जेमिनी फाइनेंसियल सर्विसेज नामक कम्पनी चलाते हैं, उसमें उनके साथ सऊदी अरब के प्रिंस मिशाल बिन अब्दुल्लाह बिन तुर्की बिन अब्दुलजीज अल साऊद के साथ ही पाकिस्तान के सय्यद अली अब्बास भी शामिल हैं. यह अजब उलटबांसी है कि पूरे देश को राष्ट्रप्रेम सिद्ध करने के लिए पाकिस्तान से घृणा का अत्याधिक प्रदर्शन करना होगा और वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के बेटे का व्यापारिक साझीदार पाकिस्तानी है !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रिय उद्योगपतियों अडानी, अम्बानी, सज्जन जिंदल का भी व्यापारिक कारोबार पाकिस्तान में है. ये कारोबारी रिश्ते इस तथ्य के बावजूद हैं कि भारत ने तो पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दिया हुआ था,लेकिन पाकिस्तान ने यह दर्जा भारतीय व्यापार को नहीं दिया है. सोचिये तो ये कैसे कारसाज लोग हैं,जो पाकिस्तान से व्यापारिक कारोबार चलाते हैं और देश में इनकी सरपरस्ती वाली सरकार और उसके समर्थक घृणा का कारोबार चलाते हैं !
एक प्रश्न यह भी है कि जिस समय पुलवामा की घटना हुई तो देश का शीर्षस्थ नेतृत्व कहाँ था ?दोपहर में लगभग सवा तीन बजे यह हमला हुआ.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस वक्त उत्तराखंड में रामनगर के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में मौजूद थे.पांच बजे वहीं से उन्होंने मोबाइल के जरिए रुद्रपुर में आयोजित जनसभा को संबोधित किया.रात 8 बजे वे,वहां से निकले हैं. रुद्रपुर के संबोधन में पुलवामा की घटना का कोई जिक्र नहीं है. जो लोग इस या उस से सवाल पूछ रहे हैं, वे प्रधानमंत्री से क्यों नहीं पूछते कि महोदय इतनी बड़ी वारदात के बावजूद आप कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में निश्चिंत भाव से बैठे क्या कर रहे थे ?
उड़ी, पठानकोट के बाद फिर सुरक्षा बलों पर हमला हो गया और यह अब तक का भीषणतम हमला है.प्रधानमंत्री और देसी जेम्स बॉन्ड के तौर पर प्रचारित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल से यह सवाल क्यों नहीं होना चाहिए कि उनकी काबिलियत की जो सारी महगाथायें हैं, क्या वे सिर्फ प्रचार के लिए हैं? आतंकवादी,जिन्होंने यह वहशियाना हरकत की वे जिम्मेदारी ले रहे हैं. जिम्मेदारी का बोध सही में उनको होता तो ऐसी दरिंदगी वे करते ही क्यों?पर सवाल यह कि देश के सुरक्षा बलों पर हुए इस भीषणतम हमले के मामले में सत्ता प्रतिष्ठान में किसी पर जिम्मेदारी आयद होगी यह नहीं ? ऐसे हमलों से देश को बचाना भी तो किसी की जिम्मेदारी होगी या फिर जिम्मेदारी सैर-सपाटा और गाल बजाने तक ही सीमित है ?
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