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कारपोरेट के हित में की जा रही रेलवे प्रेस की बंदी: पीआरकेएस

  31 जुलाई को बंद हो जायेगा पूर्वोत्तर रेलवे का प्रिंटिंग प्रेस

पूर्वोत्तर रेलवे कर्मचारी संघ ने प्रेस के गेट पर प्रदर्शन कर सभा की

गोरखपुर, 12 जुलाई । ‘ रेलवे के छापाखानों की बंदी बड़े कारपोरेट घरानों की साजिश का परिणाम है। रेलवे ने आउटसोर्सिंग के जरिये निजी कंपनियों से कराने के लिए ही प्रिंटिंग प्रेस को बंद करने का निर्णय लिया है। ’

आज पूर्वोत्तर रेलवे के प्रिंटिंग प्रेस पर आयोजित प्रदर्शन में सभा को संबोधित करते हुए पूर्वोत्तर रेलवे कर्मचारी संघ के संयुक्त महामंत्री व एन एफ आई आर के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य ए के सिंह ने यह आरोप लगाया। मालूम हो कि इसी साल 31 जुलाई को गोरखपुर स्थित रेलवे प्रिंटिंग प्रेस पूरी तरह बंद हो जायेगा। प्रेस के कर्मी और रेल यूनियनें कई वर्षों से इसकी बंदी की आशंका जता रहे थे। मार्च में रेलवे बोर्ड ने गोरखपुर समेत कई रेल मुख्यालयों पर स्थित रेलवे प्रेस को बंद का निर्णय ले लिया। इसके बाद से ही विरोध में रेलकर्मी आंदोलन चला रहे हैं।

श्री सिंह ने कहा कि रेलवे में कैलेंडर, डायरी, कई तरह के परिपत्र व टिकट आदि की छपाई के लिए इन प्रिंटिंग प्रेसों की स्थापना की गयी थी। सरकार यदि रेलवे प्रेस को बंद रही है तो करेंसी छापने वाले प्रेस भी बंद कर दे और करेंसी छापने को भी अंबानी अडानी को आउटसोर्स कर दे। क्योंकि रेलवे प्रेस में छपने वाले टिकट भी एक तरह की करेंसी हैं।

संघ के महामंत्री रामकृपाल शर्मा ने कहा कि प्रेस की बंदी का निर्णय रेलवे के लिए आत्मघाती और मजदूर विरोधी है। मोदी सरकार देश के सभी सार्वजनिक कल कारखानों को अपने कारपोरेट मित्रों को सौंप देना चाहती है। संघ के मुख्यालय अध्यक्ष ने कहा कि हम बंदी का पुरजोर विरोध करेंगे। प्रेसकर्मियों के नेता सतीश कुमार सिंह ने कहा प्रेस को बंद करने के बजाय इसका आधुनिकीकरण किया जाय और रेल तथा श्रमिक विरोधी प्रेस बंदी के निर्णय को वापस लिया जाय।

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