बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की १२८वीं जयंती की पूर्व संध्या पर अन्तर्जातीय -अंतर्धार्मिक विवाह सम्मान समारोह का आयोजन संपन्न
जलियांवालाबाग़ के शहीदों को श्रद्धांजलि!
युवा आलोचक रामायन राम की पुस्तक ‘ डॉ. अम्बेडकर : चिंतन के बुनियादी सरोकार’ का लोकार्पण
दिनांक 13 अप्रैल, 2019 को ऑल इंडिया पीपुल्स फ़ोरम, जन संस्कृति मंच, दलित लेखक संघ, नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति और सम्यक बुद्ध विहार द्वारा सामूहिक आयोजन दिल्ली के मंगोलपुरी में आयोजित किया गया।
इस अवसर पर जलियाँवालाबाग कांड को याद करते हुए ना सिर्फ शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गयी, बल्कि बाबा साहब अम्बेडकर के 128 वें जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर एक बृहत परिचर्चा, सांस्कृतिक कार्यक्रम और अंतरजातीय/अंतर्धार्मिक शादी-शुदा जोड़ों को सम्मानित किया गया। इसमें आठ जोड़ों को सम्मान के लिए आमंत्रित किया गया था.
सभी जोड़ों ने सम्मानित होने के बाद अपने अपने अनुभवों को साझा किया और कहा कि इस तरह के फैसले के लिए हमें सम्मानित किया जा रहा है यह ख़ुशी की बात है, यह अपने आप में एक नयी पहल है. कुछ जोड़ों को अभिभावक भी साथ में सम्मानित होने आये थे.
कार्यक्रम की शुरुआत युवा आलोचक रामायन राम की पुस्तक ‘डॉ. अम्बेडकर: चिंतन के बुनियादी सरोकार’ के लोकार्पण से हुई. इसके बाद ” हम जाति-मुक्त समाज का निर्माण कैसे कर सकते हैं?” इस विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन भी हुआ जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास की शोधार्थी सुनीता कुमारी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पूर्व छात्र नेता शालू यादव, दलित लेखक संघ की महासचिव डॉ. पूनम तुषामड़ और सामाजिक कार्यकर्ता ज्योति गौतम ने भाग लिया।
परिचर्चा की शुरुवात करते हुए शालू यादव ने कहा कि ‘सबसे पहले यह सवाल उठता है कि आखिर हमें जाति को ख़त्म करने की जरुरत क्यों है? इसके लिए मैं तेलंगाना में हुई घटना का जिक्र करुँगी जिसमे प्रणय नाम के युवक की इसलिए हत्या कर दी जाती है क्योंकि उसने तथाकथित अपने से ऊँची जाति में शादी किया था.
उनकी हत्या लड़की के घर वालों ने ही की थी. लेकिन उनकी पत्नी अमृता अभी भी इसके ख़िलाफ़ अपने न्याय के लिए लड़ रही हैं. इसलिए जाति ख़त्म करने की जरुरत है. सरकारें भी ऐसे जोड़ों को जो प्रोत्साहन राशि देती हैं वह संख्या में बहुत कम हैं. इसी से पता चलता है कि सरकारें इस सवाल पर कितनी गंभीर हैं.’ पूनम तुषामड़ ने कहा कि अंतरजातीय विवाह करना आज भी बहुत चुनौती भरा काम है. जिस परिवेश में हम रहते हैं उसमे लड़की और लडके दोनों के ऊपर कमोबेश बंदिशें होती हैं.
दलित समाज में भी पितृसत्ता काम करती है. ऐसा नहीं है कि दलित समाज की लड़कियों को प्रेम की आजादी है. हर समाज में पितृसत्ता लगभग समान रूप से काम करती है. हमें जाति की मानसिकता से लड़ना पड़ेगा. जाति तोड़ने के लिए अंतरजातीय विवाह एक प्रभावी पहल है. सहभोज भी एक पहल है लेकिन केवल इसी से जाति नहीं टूटेगी.
हमें समाज में इसके ख़िलाफ़ व्यापक अभियान चलाना पड़ेगा.’ इस कार्यक्रम में स्थानीय पार्षद ने भी अपनी बात कही. सामाजिक कार्यकर्ता ज्योति गौतम ने अपने अनुभवों को साझा किया. सुनीता कुमारी ने कहा कि बाबा साहब को केवल दलितों के नेता के रूप में माना जाता है जबकि उन्होंने स्त्रियों की आजादी के लिए हिन्दू कोड बिल का प्रस्ताव रखा.
इसके लिए उन्होंने मंत्री पद से भी स्तीफा तक दिया लेकिन नारीवादियों ने उनको श्रेय नहीं दिया जबकि वे विदेशी नारीवादियों का उल्लेख करती रहीं. सांस्कृतिक चुनौती बहुत बड़ी है.
अंतरजातीय विवाह जाति तोड़ने की दिशा में एक पहल है. इसको मैं स्त्री सतंत्रता और चुनने की आजादी के रूप में देखती हूँ. आजादी देने की चीज नहीं है वह तो हमें हमारा संविधान देता है. आर्थिक आधार सबसे जरुरी है इस तरह के फैसले के लिए. धर्म स्त्रियों की आजादी में बाधक है.’ शामिल वक्ताओं ने स्पष्ट रूप से इस बात को चिन्हित किया कि “जाति विहीन समाज” की परिकल्पना स्पष्ट रूप से समाज और ख़ास कर मौजूदा जातियों के अंदर महिलाओं को दिए जाने वाले अधिकारों और समानता पर संभव है।
बाबा साहब का स्पष्ट मानना कि नारियों को स्वतंत्रता दिए बग़ैर और हर तरह के निर्णयों में बराबर की हिस्सेदारी के बग़ैर जातिविहीन समाज की परिकल्पना अधूरी रहेगी को स्पष्ट रूप से चिन्हित किया गया।
अंतरजातीय या अंतर्धार्मिक विवाह जरूर आज के दौर में हिम्मत और सराहना का कार्य है, लेकिन जातिविहीन समाज निर्माण के लिये एकमात्र हथियार नहीं।
वक्ताओं ने आगाह किया कि बाबा साहब को सिर्फ दलित चिंतक के रूप में स्थापित करना उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक चिंतन को नज़रअंदाज करना ना बन जाए। शिक्षा ग्रहण करो, संगठित हो और संघर्ष करो, दरअसल ना सिर्फ सामाजिक बदलाव का सूत्रवाक्य है बल्कि राजनैतिक तौर पर पहलक़दमी को भी प्रेरित करने के लिए है। मनुवादियों और उसे बनाये रखने वाले ब्राह्मणवादी, सामंती और फासीवादियों से राजनैतिक तौर पर लड़े बग़ैर और उनकी आर्थिक इजारेदारी तोड़े बग़ैर “जाति विहीन समाज” की दिशा में बढ़ना संभव नहीं। वक्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक तौर पर चल रहे सभी बदलावकारी और ईमानदार संघर्षों से एकजुटता ही इस दिशा में बढ़ने की गति को तेज कर सकता है।
इस कार्यक्रम में “संगवारी नाट्य ग्रुप” ने ‘शादी डॉट कॉम’ की बेहतरीन नाट्य प्रस्तुति दी और गीत गया. इसके माध्यम से संगवारी ने महिलाओं की शोषण की परिस्थितियों पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया. इसके बाद काव्य पाठ का आयोजन हुआ जिसमें शम्भू यादव, साक्षी सिंह, आलोक मिश्रा और संजीव कौशल ने अपनी अपनी कविताओं का पाठ किया।
दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी मिथिलेश कुमार ने स्वरचित और हबीब जालिब की गज़ल की गीतात्मक प्रस्तुति दी. आल इण्डिया पीपल्स फोरम के दिल्ली संयोजक मनोज सिंह ने अपना वक्तव्य दिया और कहा कि हमें ऐसी शक्तियों की पहचान करना जरुरी है जो जाति व्यवस्था को बनाये रखना चाहती हैं.
उनके ख़िलाफ़ लगातार संघर्ष चला कर ही हम जाति-मुक्त समाज की स्थापना कर सकते हैं. कार्यक्रम की अध्यक्षता दलित लेखक संघ के अध्यक्ष हीरालाल राजस्थानी तथा वरिष्ठ लेखक शीलप्रिय बौद्ध जी ने किया. स्वागत वक्तव्य समयक बुद्ध विहार के अध्यक्ष कंचन सिंह गौतम ने दिया.
इस महत्वपूर्ण अवसर पर इस बात को भी चिन्हित किया गया कि वर्तमान मनुवादी व्यवस्था के दौर में किस तरह दलितों, पिछड़ों और ग़रीब लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और सम्मान से वंचित रखने की लगातार साजिशें चल रही हैं और इस दौर में दलित, पिछड़े और शोषित समाज को किस तरह आगे बढ़ कर 2019 के चुनाव में हर हाल में मनुवादी-फ़ासीवादी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए आगे आना होगा।
यह वक़्त संविधान बचाने का, आरक्षण बचाने का और हिंदुस्तान बचाने का है। इस अवसर पर ऑल इंडिया पीपुल्स फ़ोरम द्वारा तैयार “भारतीय जनता का घोषणा पत्र” भी एक फोल्डर के रूप में वितरित किया गया। इस कार्यक्रम को लोगों ने जाति-मुक्त समाज का उत्सव के रूप में मनाया और खाना खाया.
कार्यक्रम का संचालन जसम के सचिव राम नरेश राम और मुखराम भारती ने किया. इसको आयोजित करने में वरिष्ठ कॉमरेड सत्यप्रकाश बौद्ध की बड़ी भूमिका थी. धन्यवाद ज्ञापन कमलेश जी ने किया. इस अवसर पर कॉमरेड अमर तिवारी, सत्यवंत यादव, दिनेश कबीर, शुभम यादव, भास्कर, शीतल गौतम, शालिनी वाजपेयी, अनिमेष, कंचन सिंह गौतम समेत तमाम लोग मौजूद थे.
प्रस्तुति –
मनोज सिंह एवं राम नरेश राम
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