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असम के मियाँ कवियों के साथ एकजुटता में दिल्ली में प्रेस वार्ता

प्रेस कॉन्फ्रेंस 18 जुलाई, 2019
दोपहर 1 से 2:30 बजे, प्रेस क्लब, नई दिल्ली

यद्यपि ‘मियाँ’ शब्द का शाब्दिक अर्थ उर्दू में सज्जन है, बंगाली मूल के असमिया मुस्लिमों ने कम उम्र में सीखा है कि उनके गृह राज्य असम में, ‘मियाँ’ का आम बोलचाल में अर्थ “बांग्लादेशी” या “अवैध आप्रवासी” है।

‘मियाँ कविता’ प्रतिरोध, टकराव और सशक्तिकरण के एक उपकरण के रूप में उभरी है। यह समुदाय द्वारा सामना की जा रही शत्रुता, दर्द और राजनीति से जुड़ने का एक वैकल्पिक प्रयास है, जिसमें न्याय के विचार के साथ प्यार और करुणा की भावना का भी मेल किया गया है।

मियाँ कविता अपनी पहचान की एक सशक्त अभिव्यक्ति है। यह सामाजिक और प्रणालीगत भेदभाव के साथ-साथ NRC के माध्यम से बहिष्कार की संभावना से उत्पन्न समुदाय की आशंकाओं को प्रतिध्वनित करता है।

1985 में, खबीर अहमद ने ‘आई बेग टू स्टेट थॉट’ लिखा, जिसमें   “I am a settler, a hated Miya”. जैसी पंक्तियां शामिल थीं। यह 1983 के नेली नरसंहार के बाद लिखा गया था, जिसमें केवल छह घंटों में 2,000 से अधिक बंगाली मूल के मुसलमान मारे गए थे। उनकी कविता को ‘मियानेस’ का पहला सच माना जाता है और उन्होंने अपने समुदाय के भीतर प्रतिरोध की कविता की प्रवृत्ति को जन्म दिया है।

हाफ़िज़ अहमद, जो एक अकादमिक, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रसिद्ध कवि रहे हैं , ने अप्रैल 2016 में फेसबुक पर ‘राइट डाउन आई एम ए मिया’ रचना प्रकाशित की।

उनकी कविता को सैकड़ों लाइक्स, कमेंट्स और शेयर मिले, और सहज काव्य प्रतिक्रियाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गई। शालिम एम हुसैन, जो पहले  मुख्यतः प्रेम और मृत्यु के बारे में लिखा करते थे, ने ‘नाना आई हैव’  अपनी कविता के साथ जवाब दिया और पहली बार “मियाँ” के रूप में अपनी पहचान का दावा किया।

जून, 2019 में, ‘कारवाँ- ए- मोहब्बत’ ने ऑनलाइन एक वीडियो जारी किया, जिसका शीर्षक था, “आई एम मियाँ – रिक्वेस्टिंग आइडेंटिटी थ्रू प्रोटेस्ट पोएट्री।” वीडियो ने असम भर में एक बैकलैश पैदा कर दिया, जिसने मीडिया में एक बहस की शुरुआत की, जिनमें इसकी वैधता पर सवाल उठने लगे।
क्षेत्रीय समाचार पत्रों में झूठा प्रचार किया गया कि ये कवि असमिया समाज और राजनीति को अस्थिर करने के लिए विदेशों से धन प्राप्त कर रहे हैं।

अंततः असम भर में मियाँ कवियों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ विभिन्न अपराधों का आरोप लगाते हुए पुलिस शिकायतों की एक श्रृंखला आरंभ हो गई। कवि हाफिज अहमद, शालीम एम हुसैन, अब्दुल कलाम आजाद, रेहाना सुल्ताना, अशरफुल हुसैन आदि कई ऐसे नाम थे जिनके खिलाफ पुलिस में शिकायत की गई।  इस मामले में अग्रिम जमानत मिल चुकी है लेकिन पता चला है कि उन पर फ़िर से FIR दर्ज करवा दी गयी है, जिससे ज़ाहिर है कि प्रताड़ना का दौर अभी जारी रहने वाला है

प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य वक्ता प्रख्यात कवि और लेखक गीता हरिहरन, अशोक वाजपेयी, अपूर्वानंद और हर्ष मंदर वार्ता में शामिल रहे। जिन्होंने पुरज़ोर तरीके से कवियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले का विरोध कर उनके साथ अपनी एकजुटता ज़ाहिर की।

हम एक ऐसे समुदाय की आवाज़ को चुप कराने के इस प्रयास की कड़ी निंदा करते हैं, जो आज के ध्रुवीकृत, भयावह समय में अभिमान भरी आवाज से अपनी उपस्थिति और पहचान प्रस्तुत कर रहा है।

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