कुछ ही ऐसे कलाकार होते हैं जो बगैर किसी आर्थिक या महत्वकांक्षी समर्थन के लंबे समय तक निरंतर सक्रिय रह पाते हैं | ऐसा तब ही हो पाता है जब कलाकार की कलात्मक जिजीविषा बहुत दृढ़ होती है | भारतीय उपमहाद्वीप में कला के लिए आर्थिक अवसर बहुत ही कम है। कला का बाजार बहुत संकीर्ण है। यहां कला एक अनुपयोगी उद्यम की तरह है। यही कारण है कि एक से एक प्रतिभावान कलाकारों की रचनाशीलता घुट कर रह जाती है | हां, कुछ ऐसे भी होते हैं जो एक जिद की तरह रोज कुछ न कुछ रचते रहते हैं ।
रचनाशीलता के लंबे अनुभव के बाद भी मैं यह नहीं जान पाया हूँ कि ऐसा क्यों है ? इस रचनाशीलता की वजह क्या है , इसकी प्रेरणा क्या है , इसका प्रयोजन क्या है ? यह एक प्रश्न है जिसके अनेक बौद्धिक उत्तर हो सकते हैं लेकिन वे संतुष्ट कतई नहीं करते।
वैसे रचनात्मक आवेग का आनंद तो अतिसक्रियता में ही परिलक्षित होता है। दुनिया वेगवान हो चुकी है। परिघटनाएं क्षण-क्षण बदल रही हैं मगर जीवन की मुश्किलें ज्यों की त्यों खड़ी हैं। रोजी रोटी अर्थात् जीने की पहली शर्त , प्रत्येक निम्न मध्यवर्गीय परिवार की सबसे बड़ी मुश्किल है। एक तरह से कहें तो यहां प्रत्येक निम्न मध्यवर्गीय मानुष का पेट पहाड़ है जिसके बोझ तले कलाकारी निरी खाली पीली बेकार बेकाम की चीज है जिसकी बदौलत दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं होती। अंततः बात आती है आत्माभियक्ति की , महत्वकांक्षा की या आत्मसंतुष्टि की | जो कभी कभी जीवन की अन्य जरुरतों पर भारी पड़ती है।
कला इतिहास में हमने देखा है कि अधिकांश कलाकारों का जीवन फाकामस्ती और फक्कड़पन में ही गुजरा | आश्चर्य यह होता है कि खस्ताहाली , फाकामस्ती और फक्कड़पन में भी महान कलाओं ने जन्म लिया जिसके बडे़ उदाहरण के बातौर वान गॉग और पॉल गोंग्वे के जीवन और कला को देखा जा सकता है |
कला की कई परिभाषाएं और सूत्र मौजूद हैं। कला के प्रमुख तत्व सौन्दर्य को केंद्रित कर तो अनेक पुस्तकें भी लिखी गईं। अधिकतर सौन्दर्य शास्त्री कलाकार नहीं हैं , अधिकतर कला आलोचक कलाकार नही हैं लेकिन जिस तरीके से उन्होंने गहराई में उतर कर बात की है, वह दिलचस्प है। यह अच्छी बात है कि अब बहुत सारे कलाकारों ने भी लिखने बोलने की कला हासिल कर ली है और उसे लगातार उन्नत कर रहे हैं। निश्चित ही कलाकारों का यह बौद्धिक विकास कम्यूनिकेशन को बढ़ावा देगा।
कुछ कलाकार अति ऊर्जावान होते हैं। उनकी रचनात्मक ऊर्जा चकित कर देती है | एक ऐसे ही कलाकार हैं प्रमोद प्रकाश। बिहार के बेगूसराय के रहने वाले प्रमोद प्रकाश ने लंबे समय से अपने रचनात्मक आवेग को न सिर्फ बनाए रखा है बल्कि उसे लगातार उन्नत किया है , वह भी बगैर किसी निश्चित आर्थिक संरक्षण के | ‘ ड्रॉइंग बेस्ड ‘ काम करने वाले प्रमोद प्रकाश की हर एक कलाकृति आश्चर्यजनक रुप से रचनात्मक होती है। यह इतनी रचनात्मक होती है कि जी चाहता है बस देखते रहें। सबसे कमाल की बात तो यह है कि वे अपनी हर एक कलाकृति को अर्थपूर्ण शीर्षक भी देने की कोशिश करते हैं | रचनात्मक रुप से अति सक्रिय कलाकार पर बात करना थोडा़ चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि जब तक हम उस पर कोई धारणा बनाते हैं तब तक वह बहुत आगे निकल चुका होता है |
प्रयास और प्रवेश
प्रमोद प्रकाश का जन्म बिहार राज्य के बेगूसराय जिले में अवस्थित उलाव नाम के गांव में हुआ। उनके पिता मटूकी राम एक स्वप्रशिक्षित कलाकार थे और माता पार्वती देवी एक कुशल गृहणी थी | प्रमोद बताते हैं कि मेरा सात भाई बहनों का भरा पूरा परिवार है जिसमें मैं छठे नम्बर पर हूँ। बचपन से ही प्रमोद को कला में रुचि थी | पिता स्वयं एक कलाकार थे और अपने हुनर के लिए इलाके में प्रसिद्ध थे | प्रमोद बताते हैं कि हम अति पिछड़े वर्ग से आते थे, इसके बावजूद मेरे पिता जी की कला में ऐसी कशिश थी कि उन्हें सम्मान के साथ मंदिर में चित्रकारी के लिए बुलाया जाता था | उनके पिता धार्मिक आख्यानों पर चित्र बनाते जरूर थे लेकिन वे कुरीति और पाखंड के प्रबल विरोधी थे | एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि प्रमोद प्रकाश को कलात्मक हुनर और कुरीति के खिलाफ विद्रोह की प्रवृत्ति विरासत में मिली।
1984 में उन्होंने अपने गांव के विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, उसके बाद 1986 में बेगूसराय के जी डी कॉलेज से इन्टर की परीक्षा पास की | प्रमोद प्रकाश के पिता जी की दिली ख्वाहिश थी कि मेरा बेटा एक अच्छा कलाकार बने। इसके लिए वे विधिवत कला एवं शिल्प महाविद्यालय पटना तक प्रमोद को ले गये लेकिन उस समय उनका नामांकन नहीं हो पाया। हालांकि उनके पिता ने घर पर ही उन्हें प्रारम्भिक तौर पर प्रशिक्षित कर दिया था | ( प्रमोद बताते हैं कि पिता जी ने विक्टर पेरार्ड की प्रसिद्ध किताब ह्यूमैन एनाटॉमी ले जाकर घर में ही मेरा खूब अभ्यास करवाया था |) तब प्रमोद ने बेगूसराय के जी डी कॉलेज में स्नातक में दाखिला लिया | लेकिन लगातार तैयारी करते रहे | वहां से उन्होंने दो साल का पास कोर्स किया और फिर पटना आर्ट कॉलेज में नामांकन करवाया |
लेकिन पटना आर्ट कॉलेज का माहौल उन्हें रास नहीं आया | यहां कुछ साल तक पढाई करने के बाद प्रमोद बड़ौदा चले गये | बड़ौदा एम एस विश्वविद्यालय के कला संकाय में जाने के बाद जैसे प्रमोद का कला के विराट संसार से साक्षात्कार हुआ। कला की कठोर साधना करते हुए उन्होंने वहां से 1995 में स्नातक तथा 1998 में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की।
चक्करदार गलियां और प्रमोद की कला
आर्ट कॉलेज से पढ़ लेने से आपके लिए कला की दुनिया खुल जाएगी ऐसा कोई जरूरी नहीं है। वहां होता यह है कि आपको कुछ हुनर सिखा दिया जाता है , कुछ तकनीक की जानकारी दे दी जाती है , कला का इतिहास पढ़ा दिया जाता है और जम कर अभ्यास करवाया जाता है , बस | यानी कला की दुनिया में जाने के लिए आपको थोडा़ तैयार कर दिया जाता है। कला की दुनिया के रास्ते अज्ञात होते हैं | कोई नहीं जानता वहां प्रवेश कैसे किया जाता है | सफलता कहां गड़ी होती है | प्रसिद्धि कैसे मिलती है और बिक्री कैसे और क्यों होती है | वहां पहुँचे और स्थापित हो चुके कलाकार भी यह नहीं जानते | हर एक कलाकार को अपने रास्ते खुद गढ़ने होते हैं |
खैर, प्रमोद प्रकाश ने कला में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल करने के बाद बम्बई का रुख किया जिसे आजकल मुम्बई कहा जाता है। उनके सहपाठी और मित्र चिंतन उपाध्याय और हेमा उपाध्याय उस समय वहीं रहते थे और कला की दुनिया में अपने हुनर के जलवे बिखेर रहे थे | मुम्बई में उन्होंने लगभग साल भर तक संघर्ष किया मगर असफल रहे | उसके बाद गांव लौट गये फिर पटना गए फिर मुम्बई गए फिर बडौ़दा फिर और फिर और फिर … | यह फिर फिर और फिर अभी तक बना हुआ है , भटकना और खाक छानना जारी है | यह कहानी केवल प्रमोद प्रकाश की नहीं है , सैकड़ो हजारों कलाकारों की है जो अतृप्त आत्मा की तरह दुनिया भर में भटक रहे हैं | यह एक कठोर सत्य है कला की रंगीन और चमकदार दुनिया का | पुरस्कार है , सम्मान है , प्रसिद्ध आकादमियां हैं , चमकदार कला दीर्घाएं हैं , अरबो खरबो का व्यापार है लेकिन वहां पहुँचने के रास्ते लगभग नहीं हैं |
बहुत सारी दिल को तोड़ने वाली बातें हैं | अवसाद में ढकेल देने वाली स्थितियां हैं | लेकिन जिजीविषा है कि हर हाल में जिंदाबाद है | प्रमोद प्रकाश लगभग रोज रचना करते हैं और बहुत जानदार चित्र बनाते हैं | उनकी रचनाओं को देखते हुए प्रेक्षक दुनिया की तमाम मुश्किलों को भूल जाता है और रचनात्मक बहाव के साथ बहने लगता है | यह प्रमोद की कला की जीवटता है |
रचनाशीलता का धरातल और प्रमोद प्रकाश
हमारा जीवन, समाज और यह पूरी दुनिया बहुस्तरीय है | इसके अनगिनत स्तर हैं , अनेक परत है | सब एक दूसरे से जुडे़ हुए भी हैं और अलग-अलग भी। प्रमोद प्रकाश की कलाकृतियों में इन स्तरों और परतों को बड़ी स्पष्टता से देखा जा सकता है। रेखाओं के ऊपर रेखाएं , आकृतियों के ऊपर आकृतियां , रंगों के ऊपर रंग और सब कुछ बिल्कुल पारदर्शी। क्रियाशील मानव आकृतियों की विविध भंगिमाएं , विविध मुद्राएं , भाव प्रवण अलग-अलग अंग , पृष्ठभूमि से कहीं स्पष्ट उभरती हुई और कहीं पृष्ठभूमि में ही विलीन होती हुई तरह तरह की देखी अनदेखी आकृतियां, कहीं मुख, कहीं हाथ, कहीं पैर, कहीं देह की आकृतियां, उसमें घुली मिली हुई पशु और पक्षी की आकृतियां , एक के ऊपर एक आकृतियां। उनकी कलाकृतियों में आत्मविश्वास से भरी हुई, लोचदार, लयात्मक गतिशील रेखाकृतियां और विविधवर्णी छटाओं का अद्भुत प्रवाह देखते ही बनता है। रंगों के धब्बे जैसे जीवन की लय और ताल पर नृत्मग्न हो उठते हैं | तूलिकाघात में भी थपकी जैसी अजीब सी कोमलता , कहीं महबूब से मिलन और आलिंगन सा सुखद एहसास तो कहीं जीवन मरण का भीषण संघर्ष | जीवन की तमाम भावानुभूतियां उनके चित्रों में स्पंदित होती हैं।
भारतीय वांड़मय में उद्धृत हर्ष शोक विषाद के भाव हों या पश्चिमी सौन्दर्यशास्त्र की मानवातावादी और कलावादी सूत्रों का द्वंद , उनकी दृश्यात्मक उपस्थिति उनकी रचनाओं में दिखती है। उनकी रचनाओं में एक अजीब किस्म का कसाव है। दृश्यात्मक स्तर पर एकदम कसा हुआ संयोजन। वह भी तब जबकि उनके रंगों और रेखाओं में अद्भुत जिंदादिल बहाव है। कला के पुर्वनिर्धारित व्याकरण से इतर शायद प्रमोद प्रकाश की रचनाओं का अपना एक मुकम्मल व्याकरण है। उनका अपना अनुशासन है। इसका भान उनके हरेक चित्र में जरूर दिखेगा। हालाँकि कहीं कहीं इसकी अति भी दिखती है। अति तो कहीं कहीं रेखाओं , रंगों और आकृतियों के प्रवाह में भी दिखता है। ‘ट्रांसपैरेंट ओवरलैपिंग ( Transparent overlapping )’ हिन्दी में कहें तो शायद पारदर्शी अतिछाया प्रमोद की रचनाओं की खासियत भी है और उनकी धैर्यहीनता भी | कभी कभी ऐसा लगता है कि प्रमोद प्रकाश एक ही बार में बहुत सारी स्थितियों को चित्रित कर देना चाहते हैं | वे धैर्य नहीं रख पाते या केंद्रित नहीं कर पाते लेकिन यही उनकी खासियत भी है। यही उनका गुण भी | अतृप्ति ही तो वह चीज है या वह जिजीविषा ही तो है जो प्रमोद प्रकाश को रचनात्मक स्तर पर निरंतर क्रियाशील रखता है | विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी |
कला की तकनीक और जीवन की जटिलताएं
वैसे प्रमोद प्रकाश प्रमुखतः ऐक्रेलिक और वाटर कलर में काम करते हैं | इसके साथ ही रेखाओं के लिए किसी दूसरे माध्यम का भी बखूबी इस्तेमाल करते हैं | कैनवास उपल्बध हो तो ठीक अन्यथा वह कागज के टुकड़ों पर ही धड़ाधड़ रचनाएं करते हैं | कला की तकनीकि जटिलता हो या जीवन की जटिलता , प्रमोद प्रकाश उसे बड़े कायदे से ठिकाने लगाते हैं | एकदम रचनात्मक तरीके से | वे ठहरते नहीं हैं निरंतर चलते रहते हैं | जटिलताएं खुद ब खुद किनारे होती चली जाती हैं वे आगे बढ़ जाते हैं | यह उनकी विशेषता है जो कि उनकी रचनाओं में दिखती है | उनकी कलाकृतियों में बिम्बों और रूपों की जो परत दर परत बुनावट दिखती है वह शायद जीवन और कला की ही जटिलता है |
वैसे भी तकनीक कला के लिए होता है कला तकनीक के लिए नहीं होती | लगभग तीन दशक से अधिक की लंबी कला यात्रा में प्रमोद प्रकाश ने शैली और शिल्प की तरह अपनी तकनीक भी विकसित की है | वह वाटर कलर या ऐक्रेलिक कलर के तकनीकि उलझाव में बिल्कुल नहीं पड़ते बल्कि उसे अपने अनुकुल ढ़ाल लेते हैं। यहां उनका रचनात्मक उत्कर्ष दिखता है । तकनीकि स्तर पर उनके चित्रों की जो सबसे बड़ी खासियत है वह यह कि उनके चित्रों में प्रयुक्त प्रत्येक तत्व , अपनी स्वतंत्र सत्ता कायम रखते हैं | वह रंगों की छटाएं हो , रेखाएं हों , आकृतियां हों या फिर सम्मिलित रुप से पूरा संयोजन | सबमें एक अर्थपूर्ण एकता भी है और सबकी स्वतंत्र सत्ता भी है | ऐसा संयोजन बहुत कम कलाकारों के यहां देखने को मिलता है |
कला की दुनिया और प्रमोद की अंतहीन यात्रा
कला की दुनिया में प्रमोद प्रकाश की कला यात्रा निरंतर जारी है | इस कला यात्रा में उन्हें अनेक सम्महैंजनक उपलब्धियां हासिल हुई हैं, और अभी अनेक उपलब्धियां हासिल होनी बाकी है | इतना जरूर है कि अभी तक की हासिल उपलब्धियों में से कोई इतनी बड़ी नहीं हैं जो उन्हें स्थाई रुप से स्थापित कर सके | वैसे एम एफ हुसैन साहब के अनुसार “आपको लाइम लाइट में खुद को बनाए रखना होता है |” यह भी एक कला है जो सबके पास नहीं होती | प्रमोद प्रकाश डूब कर काम करने में विश्वास रखते हैं |
कला का एक प्रमुख एलिमेंट है प्रदर्शन | बहुत सारे अच्छे – अच्छे कलाकार प्रदर्शन नहीं कर पाते | योजना जरूर बनाते हैं लेकिन अमली जामा नहीं पहना पाते | प्रमोद प्रकाश काम तो निरंतर करते हैं लेकिन प्रदर्शनी की निरंतरता कायम नहीं रख पाते | यह सच है कि बगैर किसी कला दीर्घा या संस्थान के सहयोग के कलाकार प्रदर्शन की निरंतरता नहीं बनाए रख सकता। लेकिन यह भी सच है कि जब अवसर उपलब्ध कराने के लिए जबाबदेह इकाई या संस्थान नाकारा हों तब अवसर निर्मित करना और अवसर का उपयोग करना भी कलाकार का ही काम है। ऐसा पहले भी था और आज भी है।
मेरी बातों में विरोधाभास नजर आ सकता है लेकिन यह विरोधाभास केवल और केवल मेरा नहीं है , यह विरोधाभास प्रमोद प्रकाश की रचनाशीलता का भी है और असल बात तो यह है कि यह विरोधाभास समकालीन भारतीय कला का भी है | प्रमोद प्रकाश की यह कला यात्रा कहां तक जाएगी यह तो खैर आने वाले वक्त के गर्भ में है लेकिन यह जरूर है कि प्रमोद प्रकाश की रचनात्मक क्षमता बेजोड़ है और उनकी कलाकृतियां वक्त की जटिलता को जीवंतता के साथ अभिव्यक्त करती हैं।