समकालीन जनमत
कविता

‘ कविता, जीवन का उत्सव है/कविता थकने का नहीं/ लड़ने का नाम है ‘

आशाराम जागरथ, उमेश पंकज और भगवान स्वरूप कटियार का कविता पाठ 

लखनऊ। जन संस्कृति मंच (जसम), लखनऊ की ओर से ‘सृजन हमारे समय में’ श्रृंखला के अन्तर्गत आशाराम जागरथ के कविता संग्रह ‘कविता कलाविहीन’, उमेश पंकज की काव्य कृति ‘जो मुट्ठी में है’ और भगवान स्वरूप कटियार की चयनित कविताओं का संग्रह ‘समय का चेहरा’ को जारी किया गया। इस मौके पर इन कवियों ने अपने संग्रह से चुनिंदा कविताओं का पाठ किया तथा इनकी कविताओं पर परिचर्चा भी हुई।

यह कार्यक्रम सी बी सिंह जन सभागार (इंडियन काफ़ी हाउस के ऊपर), 18 जहांगीराबाद मैंशन, हज़रतगंज में सम्पन्न हुआ। इसकी अध्यक्षता जाने माने कवि और चर्चित उपन्यासकार वीरेंद्र सारंग ने किया। संचालन किया जसम, लखनऊ के संयोजक कथाकार फरजाना महदी ने।

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कवि व जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने कवियों का परिचय दिया और कहा कि आज जिन कवियों के कविता पाठ का आयोजन किया गया है, इनकी कविताओं के सरोकार सामाजिक है। आज हम जिस दौर में हैं, ये उनके सवालों से टकराती हैं। ये सामाजिक राजनीतिक सच्चाई पर पर्दा नहीं डालती हैं बल्कि उन्हें कविता का विषय बनाती हैं।

आशाराम जागरथ ने ‘कैसा विकास’, ‘कविता कलाविहीन’, ‘चमारिन गाय’, ‘निराशा’, ‘प्यार, पैसा, जाति’, ‘मौलिकता’ आदि कविताएं सुनाईं। वे कहते हैं ‘बीड़ी बोली सिगार से /कौन सा विकास है/ किस बात का अभिमान है /मैं भी सुलग रही हूं /तू भी सुलग रहा है’। एक अन्य कविता में कहते हैं ‘कैद हो तो क्या हुआ/ निर्माण कर सकता हूं /निराशाओं का पहाड़ /उनकी खुशियों के सामने /बाहर भी अंदर भी।’

उमेश पंकज ने ‘जो मुट्ठी में है’ के साथ ‘महाराज’ शीर्षक से चार कविताएं सुनाईं। वर्तमान सत्ता का चरित्र उन्होंने कुछ यूं उकेरा ‘आप धुरंधर खिलाड़ी हैं महाराज !/लंगी मारकर आगे निकल जाना/खूब जानते हैं/धोबिया पाट से पटखनी देने की कला/तो कोई आपसे सीखे/धन्य हैं महाराज!जयी विश्वजयी!!’ उमेश पंकज ने ‘स्थाई पता’ तथा कोरोना काल की विभीषिका को सामने लाने वाली कविताएं भी सुनाई।

भगवान स्वरूप कटियार ने चयनित कविताओं का संग्रह ‘समय का चेहरा’ से कई कविताएं सुनाईं। ‘फर्क’ कविता में वे कहते हैं ‘ लिखे जाने से/भले ही/ उतना फर्क न पड़ता हो/पर न लिखें जाने से बहुत फर्क पड़ता है/जैसे बोलने से फर्क पड़े/या न पड़े/ पर चुप्पी तो/प्रतिरोध का निषेध है ‘। इसी तरह एक कविता में वे कहते हैं ‘कविता, जीवन का उत्सव है/कविता समझने के लिए/ कविता होकर जीना /और कविता बनकर मरना होता है /कविता थकने का नहीं/ लड़ने का नाम है’। कटियार जी ने विनोद मिश्र पर लिखी कविता भी सुनाई।

कविताओं पर चर्चा भी हुई। आलोचक अजीत प्रियदर्शी का कहना था इन कविताओं में अनसुनी आवाज का ताप है, साथ ही प्रतिरोध के साथ संवेदनात्मक सघनता है। दलित रचनाकारों पर कलाविहीनता का आरोप लगता है परंतु आशाराम जागरथ की कविता में नंगी सच्चाई को प्रस्तुत करना ही कला है। उमेश पंकज की नजर अपने आसपास पर है। देशज बिम्बों का खूबसूरत इस्तेमाल है। वहीं, कटियार जी की कविता की दुनिया वामपंथी विचारों से अनुप्राणित है। इनके लिए लिखना, बोलना व पढ़ना सांस्कृतिक कार्य है जो बहुत जरूरी है।

युवा आलोचक आशीष सिंह ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कविता हृदय से फूटती है। वह दुख दर्द से जुड़ती है। जागरथ जी हमारे समाज में जाति, वर्ण, धर्म आदि के आधार पर जो भेदभाव है, उसे कविता का विषय बनाते हैं। यहां दबाए लोगों की पीड़ा है। कविता उनके साथ खड़ी होती है। उमेश पंकज की कविता सामान्य व्यक्ति को संबोधित है। वे मौजूदा सत्ता की क्रूरता को सामने लाते हैं। कटियार जी पाश, बेंजामिन मोलायस, विनोद मिश्रा जैसे योद्धाओं पर कविताएं रचते हैं। यही सामाजिक भाव-भूमि इन कवियों को जरूरी बनाती है।

वर्कर्स काउंसिल के महासचिव ओ पी सिन्हा का कहना था कि ये जमीनी कवियों की कविताएं हैं। साहित्य की दुनिया सत्य और सौंदर्य की दुनिया है। इसी से यह दुनिया बचेगी। कविताएं सत्य को उद्घाटित करती हैं। इसे उद्घाटित करने में कई बार जान की बाजी भी लगानी पड़ती है। सत्य और सौंदर्य का यह कारवां आगे बढ़ता रहेगा, यह उम्मीद है। इस मौके पर अवतार सिंह बहार एडवोकेट, केके शुक्ला और प्रताप दीक्षित ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में वीरेंद्र सारंग ने कहा कि कविता का रिश्ता लय, तुक, छंद आदि से है। उसे ताल की जरूरत नहीं है। ताल संगीत का हिस्सा है। उनका कहना था की आशाराम जागरथ की कविता में भोगी हुई अनुभूतियां हैं। वे कविता लिखते नहीं समाज के दर्द को जीते हैं। उमेश पंकज की कविता आम आदमी से जुड़ती है। ‘महाराज’ और ‘जो मुट्ठी में है’ गहरी व्यंजना है। इससे कविता में धार आती है। कटियार जी संबंधों, घटनाओं और व्यक्तियों पर कविताएं लिखते हैं। इनमें वैचारिक ताजगी है। ये भाव और संवेदना से भरी है।

जसम, लखनऊ के सह संयोजक कलीम खान ने सभी का धन्यवाद दिया। इस मौके पर ओमप्रकाश नदीम, राम किशोर, अनिल कुमार श्रीवास्तव, अशोक श्रीवास्तव, वीरेंद्र त्रिपाठी, विमल किशोर, कल्पना पांडे, राकेश कुमार सैनी, अजय गुप्ता, अजय शर्मा, राजेश श्रीवास्तव, ज्योति राय, सी एम शुक्ला आदि श्रोता के रूप में उपस्थित थे।

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