निरंजन श्रोत्रिय
युवा कवयित्री रोशनी वर्मा की कविताएँ सधे हाथों से लिखी ऐसी कविताएँ हैं जो एक हौले स्वर में पाठकों से संवाद करती हैं। चीजों के पार देखने का औत्सुक्य रोशनी में भरपूर है और उसे उसी तरह अभिव्यक्त करने की सर्जनात्मकता भी।
‘खाली जगह’ कविता में वे रिक्त स्थानों की खोज करते हुए उन्हें भरे जाने की संभावनाओं की तलाश करती हैं यहाँ तक कि वे खाली बर्तन में खनक की ध्वनि सुनने को आतुर हैं। कविता के क्लाईमेक्स में वे अचानक दार्शनिक हो उठती हैं-‘खाली हाथ हमेशा याचक नहीं होते/ वे सूचक होते हैं जीवन के अंतिम सत्य के।’ ‘पसीने की खुशबू’ कविता में कवयित्री ने प्रकृति में व्याप्त तमाम गंधों की पड़ताल की है। यहाँ यहाँ रेखांकित करने योग्य यह है कि कवयित्री ‘पसीने’ के साथ ‘गंध’ के बजाए ‘खुशबू’ शब्द का प्रयोग करती हैं। यह कवयित्री की आस्था और प्रतिबद्धता का संकेत है। संप्रभु वर्ग के ऐशो आराम में किसी मेहनतकश के पसीने की खोज वर्ग भेद के वैषम्य का पता कविता में देती है।
‘हम जो देखते हैं’ कविता में दृश्यमान के पीछे छुपे अदृश्य की शिनाख्त है। पेड़, सड़क, नटनी का खेल और शहर के चेहरों के पार जाकर कवयित्री उस मर्म या कारक की तलाश करती है जो प्रकट दृश्य से एकदम भिन्न है। देखना केवल देखना ही नहीं भेदना भी है।
‘तस्वीर के पीछे’ कविता को मैं एक थ्री डायमेन्शनल रचना कहूँगा। इसमें अनुभूति का तीसरा आयाम उद्घाटित किया गया है। यदि किसी तस्वीर को रंग और रोशनी का उचित संयोजन माना जाए तो रंग एवं रोशनी कला के दो आयाम हैं जो कि दृश्य हैैं लेकिन तीसरा आयाम समय है जो अदृश्य है। ‘वह मुस्कुराई’ कविता में कवयित्री स्थितियों और चरित्रों से मानो क्रीड़ा कर रही है। एक खिलंदड़ेपन का भाव ज़रूर इस कविता में है लेकिन क्लाईमेक्स कविता के समूचे रंग को बदल देता है-‘हर वक्त मुस्कुराती/ वह भूल गई/ दुःख में रोया जाता है।’
‘कविता में स्त्री’ स्त्री विमर्श की एक ताकतवर कविता है। इसमें कवयित्री गोया विमर्शकारों को चुनौति देते दीख पड़ती है। स्त्री की देह हर पल किस कदर अदृश्य चुभन को झेलती है। हम स्त्री को देह विमर्श में सिमटा कर उसके भीतर समाई एक समूची दुनिया को अनदेखा कर देते हैं। क्या स्त्री की कथित छठी इंद्री का यही काम है कि वह हर वक्त देह के व्यास में उग आए अनचाही नागफनियों से खुद को सचेत करती रहे? ‘ये बारिश भी’ कविता बरसात, नदी और समुद्र की कविता है। कवयित्री बारिश को बूँदों का समुच्चय बताते हुए हर बूँद को समुद्र की संरचनात्मक और क्रियात्मक इकाई के रूप में स्थापित करती है। यह बारिश से दोस्ती का एक मार्मिक गीत है। ‘गुमी हुई चीजें’ थोड़ी कठिन या कहें कि एब्स्ट्रेक्ट कविता है। किसी चीज का अपनी जगह से खो जाना दरअसल उसे खोजने की दुरूह प्रक्रिया का आरंभ बिन्दु है। खोज की यह यात्रा बहुत ही आंतरिक किस्म की और अन्वेषक प्रकृति की होती है।
‘मौन’ कविता की संरचना कुछ-कुछ उर्दू नज़्म-सी है। शब्दों के चुनाव और कुछ फॉर्म के स्तर पर। कविता में मनुष्य एवं प्रकृति के कोमलतम पक्षों और अहसासों की मानो बयार बह रही है। अपनी आंतरिक प्रकृति में यह एक प्रेम कविता है जिसमें दो व्यक्तित्वों के बीच पसरे मौन को सुनने और समझने की पुरजोर कवि-कोशिश है। ‘प्रेम’ एक विशुद्ध कविता है। प्रेम एक अनिर्वचनीय अनुभूति है। उसे आत्मा की गहराईयों से ही महसूस किया जा सकता है। वह पवित्र आत्माओं की विश्राम स्थली है इत्यादि…इत्यादि बताते कवयित्री प्रेम को दो प्रेमियों के एकांत की खूबसूरत अभिव्यक्ति निरूपित करती है। इसे हम मौलिक स्थापना न भी मानें मगर प्रेम की एक समांतर परिभाषा तो कह ही सकते हैं। रोशनी वर्मा कविता को साधने में कोशिशरत एक संभावनाशील युवा कवयित्री हैं। बाह्य जगत से अंर्तजगत के बीच पेण्डुलम की तरह दोलन करता एक कवि मन जो इस गति के जरिये तीसरे आयाम समय को प्रकट करता है।
रोशनी वर्मा की कविताएँ
1. अशांत समय में
कई आवाज़ों आहटों में दबी शांति पसरी है
ओसारों से चौराहों तक
बाहर चुप्पी के तालों में बंद है सारे शोर
अशांत समय में
सुबह के कलरव को शहर की शांति
नश्तर सी चुभती है
कहीं सपनों की किरचें बिखरी पड़ी हैं बीती रात से
उम्मीद का बिम्ब निहारते हुए
जीते हैं मनुज
अशांत समय को
कई दम तोड़ती आवाज़ें
रुदाली हैं समय की
कुछ आवाज़ें अंधरे की
जो रोशनी से कहीं ज्यादा तेज हैं
अशांत समय के हस्ताक्षर की काली रेखा हैं
कोलाहल से भरा मौनअभिशप्त है
अशांत समय में रोने के लिए.
2. खाली जगह
खाली जगह
खाली नहीं होती
भरी होती है उम्मीद से
होती है भरी
नए सृजन और आविष्कार की संभावनाओं से
इस भरी दुनिया में
खाली जगह कहाँ खाली रह पाती है
उसमें बसे होते हैं किसी के आशियाने के ख्वाब
खाली बर्तन भी खनक से भरा होता है
हर खाली चीज में अनुपस्थित
भाव अभाव से भरा होता है
वाक्य में छूटा खाली स्थान भी
उचित शब्द के लिए बना होता है
और कई बार शब्द अपने अर्थ खो देते हैं
उपयुक्त जगह के अभाव में
खाली जगहों का अपना लम्बा इतिहास भी रहा
जिन्हें भर पाना हर युग में असंभव रहा
खाली दिमाग और खाली जगह शैतान का घर
ये सूक्ति टंगी होती है खाली वक्त की दीवार पर
जीवन में कभी भर नहीं पाती
किसी प्रिय को खोने से बनी खाली जगह
और कभी-कभी खालीपन को भी भर देता है
एक स्नेहिल सम्बन्ध
खाली होना हमेशा खत्म होना नहीं होता
खाली हाथ हमेशा याचक ही नहीं होते
वे सूचक होते हैं जीवन के अंतिम सत्य के।
3. पसीने की खुशबू
रसोई में पकते अन्न की खुशबू
तृप्ति देती है नाक को
पेट से पहले
वो पहचानती है एक देह की गंध
जो तय कर मीलों का सफर
पहुँचती है उस तक
मिट्टी यूँ ही नहीं महक उठती
बूँदों के पड़ने से
जज़्ब होती है उसमें
किसी खेतिहर के पसीने की खुशबू
परफ्यूम, डियो, इत्र में दबी
पोशाक का रेशा-रेशा
पैदाइश है उस बूँद की खुशबू का
बोझ के नीचे दबा
पसीना किसी की जिंदगी को
हलका कर बहता रहता है तन से
एक घर
जिसकी ईंटों के जोड़ में शामिल है
किसी मजदूर के दो वक्त की रोटी
बच्चों की परवरिश
और कई सपने
जो पसीना बन साकार करते हैं
किसी सुनहरे घर का ख्वाब
सारे ऐशो आराम
साजो सामान में दफ़्न हैं
किसी मेहनतकश का पसीना
इस तरह ताउम्र
बनी रहती है जीवन में
किसी के पसीने की खुशबू
4 . हम जो देखते हैं
नहीं दिखती उसकी कराह
नहीं दिखती उसकी स्वरलहरियां
दिखता नहीं उसमें बसा घर
हम जो देखते हैं
वो एक पेड़ है
नहीं दिखती उसकी थकान
नहीं दिखती सम भावना
दिखता नहीं उसका अंतहीन सफर
हम जो देखते हैं
वह एक सड़क है
नहीं दिखती रस्सी पर झूलती मौत
नहीं दिखती चिपके पेट की भूख
दिखती नहीं डमरू से डोलती गुलामी
हम जो देखते हैं
वो एक नटनी का खेल है
नहीं दिखती
चकाचौंध में उसकी उदासी
नहीं दिखती भीड़ में उलझी उसकी नसें
दिखती नहीं विस्तार में गुम होती मासूमियत
हम जो देखते हैं
वो एक शहर है
हम जो देखते हैं
कहाँ होता है वो पूरा सच
देखना
केवल एक क्रिया ही तो नहीं होती।
5. तुम मेरी भाषा के महाकाव्य हो
कैसे कहूँ कि तुम
बिना कहे सुन लो
जैसे कहती है धरती
अपने आसमान से
और वह हरिया देता है
उसका मन
जैसे कहती है हवाएँ
और झूम जाती है डालियाँ
फूल खुशबू बन कर फैल जाते हैं
हर तरफ
जैसे कहते हैं बादल
और नाचने लगते हैं मोर
जैसे कहती हैं बूंदें
धरती से और देह में बहने लगती है कविता की सलिला
जैसे कहती हैं नदियाँ
और सागर
महाकाव्य बन जाता है
कैसे कहूँ कि तुम
मेरी भाषा के महाकाव्य हो।
6. तस्वीर के पीछे
औचक किसी पल
नज़र ठहरती है
कमरे में टंगी तस्वीर
जिसमें कैद पल
तमाम दुखों को स्थगित कर
फैला रहे हैं उजास
भर रहे हैं खुशरंग से कमरे को
खुशहाली की तस्वीर
तस्वीर में खुशहाली
तस्वीर की करामात है
असल तस्वीर के पीछेे होती है
तस्वीर की सच्चाई
जहाँ धुंधला अंधेरा हर समय
तैनात खुशी की हिफाज़त करता है
एक अच्छी तस्वीर रंग और रोशनी का
उचित संयोजन होती है
ठीक इसके विपरीत
तस्वीर के पीछे
समय अपनी परछाइयों को समेटे लीन होता है
अपने एकांत में
अबोल
अडोल।
7. वह मुस्कुराई
उसने कहा
तुम हँसती हो तो फूल खिलते हैं
वह मुस्कुराई
घर की एक कप चाय और
तुम्हारे चेहरे की मुस्कान
सारी थकान हर लेती है
वह मुस्कुराई
माँ! तुम्हारा उतरा हुआ मुँह
मुझे अच्छा नहीं लगता
वह मुस्कुराई
बड़ी भली है वह
सबको खुश रखती है
लोग कहते
सुनकर वह मुस्कुराई
हर वक्त मुस्कुराती
वह भूल गई
दुःख में रोया जाता है।
8. कविता में स्त्री
कवि यदि तुम स्त्री पर कविता लिखो
तो लिखना उसकी देह के व्यास में चुभते शूल को
पृथ्वी की गोलाई को सदियों से नाप रहे
बिवाइयों वाले पैरों को देखना
जिनमें फँसे हुए हैं बीते युगों के चिन्ह
क्या तुम्हें कभी उसके कमर के कटाव में लिपटी
असंख्य आँखें नजर आईं
जो नापती रहीं मांसल सौन्दर्य का मापदण्ड
तुम मत ढूँढना उसकी कमनीयता में आश्रय
कुछ क्षण वामांग को जागृत कर गढ़ना
उस स्त्री को कविता में
देखना उसकी कोमलता में आत्मा के छाले
जो छुपा लेते हैं हर दहकते घाव को
उसकी आँखों की गहराई तो लिखी जा सकती है
कभी उनमें समेटा हुआ
समूची धरती का खारापन भी देखना
कभी उस पवित्र नदी की खोज लिखो
जिसमें बह जाएँ स्त्री के सारे दुःख
देह की भाषा में पढ़ लेती है स्त्री अच्छे-बुरे स्पर्श
तुम पढ़ सकते हो भाषा में
अच्छे-बुरे भाव।
9. ये बारिश भी
बारिश बूूँदों का समुच्चय है
हर बूँद की अपनी एक कहानी
सागर के सारे दुख-सुख
जमा है इनकी कोख में
यूँ ही नहीं है सागर खारा
सारी नदियाँ मिलकर रोती हैं
सुनाती हैं अपना दुखड़ा
सुनता है जो दिन-रात सागर भी
वे कितने पाप ढो रही हैं युगों से
इसमें प्रवाहित अस्थियाँ
अपने साथ लाती हैं अनंत कहानियाँ
सागर का
विशाल बेचैन हृदय पसीज
उमड़ता है आकाश की ओर
बादलों के कोश में जमा
ये रंग इंद्रधनुषी
दरअसल इन्हीं किस्से-कहानियों से बने हैं
धरती के सारे रंग
बारिश से
बारिश के सारे रंग
धरती से
ये बारिश भी
हम तुम-सी…।
10. गुमी हुई चीजें
हम अक्सर
गुम हो जाते हैं
गुमी हुई चीजों के साथ
पहुँच जाते हैं उस वितान में
जहाँ देह की सारी ऊर्जा
उस रिक्त स्थान को ढूँढती है
जहाँ गुमी हुई चीजें पाई जा सकती हों
गुमी हुई चीजों के साथ भटकते हैं
उस वलय में जिसके बाहर सारी चीजें
जगह पर होती हैं
और हम होते हैं
उन गुमी हुई चीजों के साथ
वो अक्सर याद आ जाती है
अन्य चीजों के गुमने पर
एक हरे हुए दुःख की तरह
गुम हुए रिश्ते सालते हैं सारी उम्र
और पूरा जीवन
इन गुमी हुई चीजों का इतिहास हो जाता है।
11. मौन
मेरे और तुम्हारे बीच
एक गहरा रिश्ता है
मौन का
तमाम आवाजों और दृश्यों को
भेदते हमारे शब्द पहुँचते हैं मानस झील में
जहाँ लीन है दो हंस मौन मुक्तक को चुगते
मौन सीमाओं से परे फैल जाता है
पूरे आकाश में
बादलों में छुपे बिम्ब शब्द हैं जिसके
ये सरगोशियां हवाओं की
आहट है उसकी
दुनिया के सारे शोर
जिसमें लुप्त हो जाते हैं
सुन सुको तो सुनो!
बह सको तो बहो
चलो न सुनते हैं थाप पानी की
मिल जाते हैं जहाँ दिन रैन
वक्त की रवानी में
लिखते हैं नाम फ़िज़ाओं पर
छूकर जाएगा जब भी
संदली हवाओं का झोंका
महककर गूँज उठेगी सभी दिशाएँ
मेरे और तुम्हारे नाम से।
12. प्रेम
अनहद नाद है
आत्मा के राग का
झंकृत करता है हमारी रगों को
इसका स्पर्श
प्रेम
जितना कहा गया उतना ही अनकहा रहा
एक व्यक्त सच के बाद की चुप्पी की तरह
मौन की गिरहों में
उलझा शब्द है प्रेम
जिसमंे उलझना लगता है सुखद
दुनिया की सारी सभ्यताएँ
जिसकी रोशनी में छिपाती हैं
अपने अँधेरों को
जिसके वितान में सद्भावनाएँ
दुनिया के रहने लायक बनाती हैं
प्रेम एक ऐसा आरामगाह
जहाँ पवित्र आत्माएँ
आकर विश्राम करती हैं
अचानक एक दिन
घटित होता है किसी
चमत्कार की तरह
फैल जाता है
खुशबू की तरह हवाओं में
बन जाता है भाषा
मेरे और तुम्हारे एकांत की
मेरे और तुम्हारे
एकांत की खूबसूरत अभिव्यक्ति है
प्रेम।
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(कवयित्री रोशनी वर्मा , जन्मः 10 जून 1974, इंदौर में । शिक्षाः हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर
सृजनः एक काव्य पुस्तिका एवं कई साझा संकलनों में कविताएँ प्रकाशित
सम्मानः माहेश्वरी सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान, शब्दसाधिका सम्मान
सम्प्रतिः गृहिणी और समाजसेवा
सम्पर्कः 5, अहिल्यापुरी, इंद्रपुरी के पास, ए बी रोड, इंदौर (म.प्र.)
ईमेल: roshnionline26@gmail.com
टिप्पणीकार निरंजन श्रोत्रिय ‘अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान’ से सम्मानित प्रतिष्ठित कवि,अनुवादक , निबंधकार और कहानीकार हैं. साहित्य संस्कृति की मासिक पत्रिका ‘समावर्तन ‘ के संपादक . युवा कविता के पाँच संचयनों ‘युवा द्वादश’ का संपादन और शासकीय महाविद्यालय, आरौन, मध्यप्रदेश में प्राचार्य रह चुके हैं. संप्रति : शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गुना में वनस्पति शास्त्र के प्राध्यापक।
संपर्क: niranjanshrotriya@gmail.com)