समकालीन जनमत
कविता

पंकज की कविताएँ जाति-संरचना के कठोर सच की तीखी बानगी हैं

सुशील मानव


पंकज चौधरी की कविताएँ दरअसल विशुद्ध जाति विमर्श (कास्ट डिस्कोर्स) की कविताएँ हैं। जो अपने समय की राजनीति, संस्कृति ,समाज, अर्थशास्त्र न्याय व्यवस्था और घटना-परिघटना को जाति विमर्श के दृष्टिकोण से देखती हैं।

आर्थिक उदारीकरण के बाद बहुजन समुदाय का एक तबका संस्कृतिकरण के जरिए खुद का ब्राह्मणीकरण कर लेता है और जाने अंजाने ब्राह्मणवाद का संरक्षक बन बैठा। पंकज चौधरी अपनी रचनाओं में पिछड़ी, दलित आदिवासी समुदायों के भीतर पैठ कर चुके ब्राह्मणवाद की शिनाख़्त करते हैं-

“ एक रविदासिये चमार ने कहा/ कि हम रविदासिये जो होते हैं/ वे चमारों में ब्राह्मण होते हैं/ और बाकी चमार अश्पृश्य/ एक मधेशी पासवान ने कहा/ कि हम मधेशी जो होते हैं/ वे पासवानों में राजपूत होते हैं/ और बाकी पासवान पिछड़े/ एक नावरिया खटिक ने कहा/ कि हम नावरिया जो होते हैं/ वे खटिकों के राजा होते हैं/ और बाकी खटिक उनकी प्रजा/ एक किस्कू आदिवासी ने कहा/ की हम किस्कू जो होते हैं/ वे आदिवासियों में शेर होते हैं/ और बाकी आदिवासी गीदड़/”

बहुजन समुदाय के संस्कृतिकरण का नतीजा ये हुआ कि बहुजन समाज के लोग अपनी अस्मिता की खोज,करने के बजाय अपनी असल पहचान को छोड़कर बहुजन समाज का उत्पीड़न व दमन करने वाली मनुवादी संस्कृति को अपनी पहचान से जोड़ने व खुद को हिंदू मानने लगे। इस तरह वो अपनी मूल अस्मिता से काटकर अपने ही वर्ग समुदाय के खिलाफ़ इस्तेमाल होने वाले हथियार में तब्दील कर दिए गए।

इस वर्ग का इस्तेमाल सांप्रदायिकता के उभार में किया गया। अधिकांशतः पिछड़े वर्ग के लोगो ने ही कारसेवक बनकर बाबरी मस्जिद ढहाने जैसे संविधान-विरोधी कृत्य को अंजाम दिया था। हिंदू युवती से प्रेम करने वाले एक मुस्लिम मजदूर की बर्बतापूर्वक हत्या करके हिंदुत्ववादी संगठनों के ‘लव जेहाद’ एजेंडे को आगे बढ़ाने वाला शंभू रैगर भी एक दलित ही था।

सितंबर 2019 को मध्यपप्रदेश के भावखेड़ी गाँव में खेत में शौच कर रहे बाल्मीकि समाज के दो बच्चों की हत्या करने वाला हाकिम और रामेश्वर यादव पिछड़े वर्ग से थे। सन 2002 में गुजरात में हुए मुस्लिम जनसंहार का पोस्टर ब्वॉय अशोक मोची भी दलित समुदाय का था। सत्ता द्वारा दलित, पिछड़े समाज के लोगो को किस तरह सत्ता ने हनुमान बनाकर अपने हिंदुत्ववादी एजेंडे को आगे बढ़ाया पंकज चौधरी सत्ता की उस प्रवृत्ति को कविता में रेखांकित करते हैं-

पिछड़ो

तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हें हिन्‍दुत्‍व  का कर्णधार बना देंगे

और पिछडो
तुम हमें 10 साल का वोट दो
हम तुम्‍हें भी मनु के प्रदेश में लौटा देंगे।

साल 2014 में ‘अच्छे दिन’ के जुमले उछले और इसके बाद देश के हालात एकाएक बदल गए। हालात जुमले के ठीक विपरीत बनाए गए। कभी भी देश के किसी कोने से मॉब लिंचिंग की ख़बर आ जाती है। मरने वाले अल्पसंख्यक, दलित व आदिवासी समुदाय के लोग। जबकि मारने वालों को सत्ता का ऐसा संरक्षण कि उनके खिलाफ़ कभी कोई कार्रवाई नहीं होती।

कुछ दिन के लिए वो जेल गए भी तो निकलने के बाद सत्ता मे काबिज लोग उनका फूल माला मिठाई के साथ स्वागत करते दिखे। अल्पसंख्यकों और अवर्णों की लिंचिंग को सत्ता के संरक्षण में चलाया गया। देश के संसद से कुछ सौ मीटर की दूरी पर देश का संविधान जलाया गया और संविधान जलाने वालों ने पूरे दुस्साहस के साथ सेल्फी बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल किया। आरक्षण और दलित सुरक्षा से जुड़े कानून पर बार बार हमला किया गया। ‘अच्छे दिन’ जुमले के मंसूबे को पकड़ते हुए पंकज चौधरी ‘अच्छे दिनों में’ शीर्षक से एक कविता लिखते हैं। ‘अच्छे दिनों में’ कविता राज्य सत्ता की आलोचना है।

अच्‍छे दिनों में
मनु लौट रहे हैं
अपने पूरे लाव-लश्‍कर के साथ

अच्‍छे दिनों में
मुसलमान लगा रहे हैं
वंदे मातरम, जय श्रीराम के नारे

अपराध एक व्यवस्थाजनित उत्पाद है। समाजिक और राजनीतिक सत्ता द्वारा बहुत ही व्यवस्थित ढंग से इसका मनोविज्ञान बनाकर समाज में रूढ़ कर दिया जाता है। अमेरिका में काले लोगों और भारत में अवर्णों का अपराधीकरण इसका उदाहरण है। सामंतवादी काल से निकलकर पूंजीवादी काल में आने पर भी बहुत कुछ नहीं बदलता। पूँजीवाद ने अपराध को मजदूर वर्ग तक सीमित करने के लिए बुर्जुआ और मजदूर वर्गों के लिए दो अलग शब्दावली गढ़ा गया। सज़ा के अलग प्रवाधान, जेल तक अलग अलग बनाई गई –

उसके गुप्‍तांगों में पेट्रोल डाल दिया गया था।
और उस सबसे भी नहीं हुआ
तो उसके लहूलुहान मगज पर
चार बोल्डरों को और पटक दिया गया था।
जुर्म उसका यही था
कि वह चोरी करते पकड़ा गया था।
दुनिया के सबसे बड़े और महान लोकतंत्र में
मानवाधिकार का साक्षात् उल्लंघन हो रहा था।

ऐन उसी रोज़ एक चोर और पकड़ा गया था
जो राष्ट्र का अरबों रुपया डकार गया था
लेकिन उसके लिए एयरकंडीशंड जेल का निर्माण हो रहा था!

सवर्ण वर्ग के दबदबे के चलते इस देश की प्रशासनिक व्यवस्था सदैव ही सामंतवाद का सबसे मजबूत गढ़ बना रहा। मौजूदा व्यवस्था में प्रशासनिक अधिकारी सामंतवाद के लठैत की तरह हाशिए के समुदाय के प्रति कितनी क्रूर और बेशर्म हैं इसका उद्घाटन पंकज चौधरी की ‘बेशर्मी’ कविता करती है-

“बेटिकट था
टीटीई को देखते ही
ट्वैलेट में घुस गया
टीटीई ने भी
ट्वैलेट का दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया!”

कहने को तो देश आजाद हो चुका है, कहने को तो देश में जनतंत्र भी है, और उसी जनतंत्र के भरोसे का एहसास दिलाने के लिए पांच वर्षों पर चुनाव का प्रावधान भी है। पर क्या मौजूदा हालात में कोई आम आदमी इस कथित लोकतंत्र के चुनाव में हिस्सा लेकर चुनावी जीत दर्ज कर सकता है। पूंजीवाद ने चुनाव में पूँजी के वर्चस्व को स्थापित करके इसमें गरीब, मेहनतकश दलित, आदिवासी समुदाय के स्वतंत्र रूप से भाग लेकर प्रतिनिधित्व का अधिकार हासिल करने के रास्ते ही खत्म कर दिए हैं। ऐसे में उनके प्रतिनिधित्व की एक विंडो बचती है। जो आरक्षण के प्रावधान के तहत देश का संविधान प्रदान करता है। दूसरा विकल्प भी संविधान में मिला वोट का अधिकार और क्षेत्र विशेष में मौजूद जाति विशेष के मतदाताओं की संख्या से बनता है।
ऐसे में सहज प्रश्न उठता है कि आखिर ये चुनाव है क्या? तमाम राजनीतिक दलों द्वारा जातीय गणित साधकर चुनावों में प्रत्याशी उतारने का शह-मात का खेल ही ना। पंकज चौधरी इसे जातिसभा का चुनाव कहते हैं।

“भूमिहारों का टिकट कटा
ब्राह्मणों को टिकट मिला।

यादवों को ज्‍यादा सीटें मिलीं
कुर्मियों को उससे कम।

चमारों को दो सीटें ज्‍यादा मिलीं
दूसाधों को दो सीटें कम”

ये देश जाति में सोता है, जाति में जगता है, जाति में सांस लेता है, जाति में जीता है। इस देश में जब भी कोई दो अंजान व्यक्ति मिलते हैं तो उन्हें तब तक चैन नहीं मिलता जब तक कि येन केन प्रकारेण एक दूसरे की जाति न जान लें। देश का कोई व्यक्ति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई उपलब्धि हासिल करता है तो इस देश के लोग सबसे पहले इंटरनेट पर उसकी जाति सर्च करते हैं, ऐसी तो मनोदशा है। ‘इंडिया मीन्स कास्ट’  कविता में पंकज चौधरी देश को जाति में आरोपित करते हुए इस मनोदशा को उघेड़ते हैं-

“स्वीडन में उनको
नोबेल प्राइज के लिए शॉर्टलिस्टेड किया जा रहा था

ऑक्सफ़ोर्ड में उनके नाम पर
चेयर स्थापित की जा रही थी

xxx  xxx xxx

लेकिन उसी वक़्त
इंडिया में
गूगल पर
उनकी जाति सर्च की जा रही थी।”

सबसे बड़ा जातिवाद न्यायतंत्र में बैठा है। जहां सब कुछ कोलेजियम सिस्टम के नाम पर छुप जाता है। न्याय के नाम पर जाति विशेष के लोगो के साथ अन्याय होता है। दलित, मुस्लिम जनसंहार के मामले में फैसले नहीं आते, और कभी आते भी हैं तो आरोपी किसी न किसी तरह छोड़ दिए जाते हैं। दरअसल इस देश में न्याय को भी जाति के चश्में से ही देखा जाता है। आखिर किसी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने पर आरोपी के बजाय आरोप लगाने वाले को ही जेल भेज देना एक जातिवादी न्यायतंत्र में ही मुमकिन है। ‘जस्टिस कर्णन’ कविता में पंकज चौधरी न्याय व्यवस्था के जातिवाद को कुछ यूँ कुरेदते हैं-

“जस्टिस तुम भी हो
जस्टिस द्विज भी हैं

संविधान का तुम भी आदर करते हो
संविधान का द्विज भी आदर करते हैं

लेकिन इससे क्या
तुम द्विज नहीं हो
और वे द्विज हैं
जिनसे संविधान भी छोटा है
और जो भारत के सुप्रीम संविधान हैं!”

उत्तर प्रदेश और बिहार हिंदी पट्टी के दो मुख्य राज्य हैं। इन्हीं राज्यों से आर्थिक न्याय की आवधारण ने जमीन पर आकार लेना शुरु किया। फिर दोनो ही राज्यों में पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले नए राजनीतिक विकल्प भारत की राजनीतिक फलक पर उभरकर आएं। राज्य और केंद्र में इनकी भागीदारी से गठबंधन सरकारे बनी और सही मायने में लोकतंत्र का विकास हुआ। इसका परिणाम ये हुआ कि समाज में सामाजिक न्याय और अंबेडकरवादी राजनीतिक चेतना का व्यापक विकास हुआ।

इन पार्टियों के उभार और बहुजन पिछड़े वर्ग में राजनीतिक चेतना के विकास से मनुवादी विचारधारा और फासिस्ट ताकतों को अपने अस्तित्व के लिए ख़तरा महसूस हुआ। तो उन्होंने भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर बहुजन राजनीतिक नायकों को ठिकाने लगाने का फुलप्रूफ तरीका ईजाद किया। पंकज चौधरी ‘भ्रष्टाचार तो एक बहाना है उर्फ़ मनु कोड ऑफ़ बिल’ मनुवादी सत्ता के इस साजिश को संबोधित करती है-

‘तुम्हारी उपस्थिति ही चुनौती बनती है
चुनौती बनने की सज़ा तुझे मिली

भ्रष्टाचार तो एक बहाना है
कोई छोटा चोर कोई बड़ा चोर
सब चोर-चोर

मनु ने कहा है-
शूद्र के पास यदि धन हो जाए
तो उस धन को जब्त कर लेना चाहिए
और उसके लिए सबसे बड़ी सज़ा मुकर्रर होनी चाहिए
यही तुम्हारी नियति है!’

साहित्य समाज का बहुमूल्य दस्तावेज होता है, जिसमें काल विशेष के समाज, संस्कृति, राजनीति, अर्थनीति आदि का समावेश होता है। साहित्य एक काल की यात्रा करके दूसरे काल में समाज के इतिहासबोध को गढ़ने का काम करती है। यही कारण है कि विजित जातियों ने हमेशा ही पराजित जातियों को शिक्षा से वंचित रखा ताकि वो अपना साहित्य न रच सकें।

आज आजादी के बाद भी दलित साहित्य को अपना स्थान बनाने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ा। मौजूदा दौर की सत्ता भी ब्राह्मणवादी मान्यताओं को चुनौती देने वाली दलित साहित्य को हर तरह से बैन करने की कोशिश करती दिखती है। फिर चाहे दिल्ली विश्वविद्यालय से ए के रामानुजन के तीन सौ रामायणें,या कांचा इलैय्या शेफर्ड की तीन किताबें हटाने का फैसला हो या हिमांचल में सत्ताधारी भाजपा सरकार ने सिलेबस से ओम प्रकाश बाल्मीकि के जूठन हटाने का फैसला। पेरुमल मुरुगन को तो अपने उपन्यास ‘ मोधोरुबागन’ उपन्यास के बाद मिली जान से मारने की धमकी के बाद अपने लेखकीय मौत की घोषणा करनी पड़ी। कर्नाटक के दलित लेखक हचंगी प्रसाद पर जानलेवा हमला किया गया।

देश में प्रगतिशील जमात के बीच स्त्री विमर्श का जबर्दस्त क्रेज है, किंतु स्त्री विमर्श के भीतर जाति के सवाल की अनुपस्थिति पर भी गहरा कटाक्ष पंकज चतुर्वेदी की कविताओं में देखा जा सकता है

‘भारत की महिलाओं के लिए 
पचास फीसदी नहीं बल्कि अस्सी फीसदी आरक्षण हों 
इसकी पुरज़ोर वकालत करती हैं वे 
लेकिन उसमें दलित-बहुजन महिलाओं का भी कोटा तय हो 
के सवाल पर 
अपने एक मित्र को तुरंत अनफ्रेंड कर देती हैं वे!’

पंकज चौधरी के पास भले ही बहुत सुघड़ शिल्प न हो। या हिंदी के अन्य कवियों की तरह बहुत सधी भाषा न हो लेकिन विडंबनाओं को प्रभावशाली ढंग से उघेड़ते रेटरिक का लाजवाब टूल्स है उनके पास। बिंब विधान में उलझने-उलझाने के बजाय कविता पाठक तक संप्रेषित हो इस बात ज़्यादा जोर देते हैं यही कारण है को अपनी हर कविता में संबोधित करते हुए पाठक से संवाद स्थापित करते हैं और कविता खत्म होने के बाद पाठक के दिमाग में बहुत कुछ सोचने के लिए छोड़ देते हैं। उनकी ‘कविता हत्या के पक्ष में’ की बानगी देखिए-

देश की राजधानी में इंदिरा गांधी की जब हत्‍या हुई
तो पूरे देश में सिखों का कत्‍लेआम हुआ।

श्रीपेरुम्‍बदूर में राजीव गांधी की जब हत्‍या हुई
तो पूरे देश में द्रविड़ तमिलों का खून-खराबा हुआ।

और कश्‍मीर में जब गोलीबारी हुई
एवं जवान मारे गए
तो पूरे देश से कश्‍मीरियों को खदेड़ा जा रहा है
और उनका अदृश्‍य कत्‍लेआम हो रहा है।

वहीं एक हिन्‍दू ने
जब राष्‍ट्रपिता की हत्‍या की
तो वह पूरे देश में पूजा जाने लगा।

राजनीति और व्यवस्था के अलावा पंकज चौधरी की कविताओं का एक स्वर प्रेम और अकेलेपन का भी है जो ज़्यादा प्रमाणिक, ज़्यादा अनुभूतिपरक है। निजी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति जहाँ से आने लगती है पंकज की कविता में बिंब, उपमा व रूपक आने लगते हैं। उनकी इन कविताओं में भाषा और शिल्प भी बदल जाती है। प्रेम और सृजन की पुनर्रचना के लिए पंकज बार बार प्रकृति के पास जाते हैं माटी, पानी और उष्मा लेने।

 

 

पंकज चौधरी की कविताएँ

1. संगठन

ब्राह्मण
ब्राह्मण के नाम पर
हत्यारे को नायक कह देता है

भूमिहार
भूमिहार के नाम पर
बूचर को दूसरा गांधी कह देता है

राजपूत
राजपूत के नाम पर
बलात्कारी को क्लीन चिट देने लगता है

कायस्थ
कायस्थ के नाम पर
भ्रष्‍टाचारी को संत कहने लगता है

बनिया
बनिया के नाम पर
यत्र-तत्र मूतने लगता है

जाट
जाटों के नाम पर
खापों को न्यायसंगत ठहराने लगता है
गुर्जर
गुर्जर के नाम पर
सर फोड़ देता है

यादव
यादव के नाम पर
अपराधियों की दुहाई देने लगता है

कुर्मी
कुर्मी के नाम पर
बस्तियां उजाड़ देता है

कोयरी
कोयरी के नाम पर
खून का प्यासा हो जाता है

चमार
चमार के नाम पर
अछूतानंद को दलितों का सबसे बड़ा कवि मानने लगता है

खटिक
खटिक के नाम पर
उदितराज को सबसे बड़ा दलित नेता मानता है

पासवान
पासवान के नाम पर
रामविलास पासवान को एकमुश्त वोट दे देता है

वाल्मीकि
वाल्मीकि के नाम पर
वाल्मीकियों को ही असली दलित मानता है

और मीणा
मीणा के नाम पर
आदिवासियों का सारा डकार जाता है

अब सवाल यह पैदा होता है
कि क्या भारत में
“जाति” से भी बड़ा कोई संगठन है?

2. हेडलेस पोएट्री

एक श्रोत्रिय ब्राह्मण ने कहा
कि हम श्रोत्रिय जो होते हैं
वे ब्राह्मणों में सर्वश्रेष्ठ होते हैं
और बाकी ब्राह्मण शूद्र

एक वत्स भूमिहार ने कहा
कि हम वत्स जो होते हैं
वे भूमिहारों में सर्वश्रेष्ठ होते हैं
और बाकी भूमिहार अधम

एक चौहाण राजपूत ने कहा
कि हम चौहाण जो होते हैं
वे राजपूतों में सबसे बड़े होते हैं
और बाकी राजपूत नीच

एक अम्बष्ठ कायस्थ ने कहा
कि हम अम्बष्ठ जो होते हैं
वे कायस्थों में सर्वश्रेष्ठ होते हैं
और बाकी कायस्थ निम्न

एक भगत कलबार ने कहा
कि हम भगत जो होते हैं
वे कलबारों में सर्वश्रेष्ठ होते हैं
और बाकी कलबार अंत्यज

एक कृष्णायत यादव ने कहा
की हम कृष्णायत जो होते हैं
वे यादवों में सर्वश्रेष्ठ होते हैं
और बाकी यादव कमीन

एक अवधिया कुर्मी ने कहा
कि हम अवधिया जो होते हैं
वे कुर्मियों में सर्वश्रेष्ठ होते हैं
और बाकी कुर्मी चांडाल

एक मौर्य कोयरी ने कहा
कि हम मौर्य जो होते हैं
वे कोयरियों में सर्वश्रेष्ठ होते हैं
और बाकी कोयरी अज्ञात-कुलहीन

एक बालियांन जाट ने कहा
कि हम बालियान जो होते हैं
वे जाटों में सर्वोच्च कुलोत्पन्न होते हैं
और बाकी जाट शुद्रातिशूद्र

एक नागर गुर्जर ने कहा
की हम नागर जो होते हैं
वे गुर्जरों में सर्वश्रेष्ठ होते हैं
और बाकी गुर्जर अछूत

एक रविदासिये चमार ने कहा
कि हम रविदासिये जो होते हैं
वे चमारों में ब्राह्मण होते हैं
और बाकी चमार अश्पृश्य

एक मधेशी पासवान ने कहा
कि हम मधेशी जो होते हैं
वे पासवानों में राजपूत होते हैं
और बाकी पासवान पिछड़े

एक नावरिया खटिक ने कहा
कि हम नावरिया जो होते हैं
वे खटिकों के राजा होते हैं
और बाकी खटिक उनकी प्रजा

एक किस्कू आदिवासी ने कहा
की हम किस्कू जो होते हैं
वे आदिवासियों में शेर होते हैं
और बाकी आदिवासी गीदड़

जिस देश को
इतनी जातियों और उपजातियों में
बांट दिया गया हो
और जहां पर
एक ही जाति के कुछ लोग
अपने को सर्वश्रेष्ठ और सबसे बड़ा बताते हों
और अपने ही भाई-बंधुओं को अधम और नीच
उसके लिए
भारत क्या ख़ाक सर्वश्रेष्ठ और सबसे बड़ा होगा!

 

3. इंडिया मीन्‍स कास्‍ट

स्वीडन में उनको
नोबेल प्राइज के लिए शॉर्टलिस्टेड किया जा रहा था
लन्दन से उनके लिए
बुकर प्राइज की घोषणा की जा रही थी
फिलिपिन्स में उनके नाम पर
रेमन मैगासेसे पुरस्कार के लिए
विचार-विमर्श चल रहा था
ऑक्सफ़ोर्ड में उनके नाम पर
चेयर स्थापित की जा रही थी
हारवर्ड में उनकी राइटिंग्स और स्पीचिंचेस को
सिलेबस का हिस्सा बनाया जा रहा था
और कोलम्बिया यूनिवर्सिटी
उनको पिछली शताब्दी का सबसे ब्रिलियंट स्टूडेंट
करार दे रही थी
लेकिन उसी वक़्त
इंडिया में
गूगल पर
उनकी जाति सर्च की जा रही थी!

 

4. अपने-अपने अंधविश्‍वास

ब्राह्मणों को राजपुतों से एलर्जी है
तो राजपुतों को भूमिहारों से

कायस्थों को राजपुतों से एलर्जी है
तो राजपुतों को ब्राह्मणों से

कायस्थ भूमिहार को दोस्त मानते हैं
तो ब्राह्मण खत्रियों को

भूमिहार को यादवों से एलर्जी है
तो यादवों को ब्राह्मणों से

यादवों से कायस्थ घृणा करते हैं
तो यादव कुर्मी-कोयरिओं से

यादव राजपुतों को पसंद करते हैं
तो जाट-गुर्जर यादवों को

ब्राह्मण बनियों को दोस्त मानते हैं
तो बनिये ब्राह्मण-यादव दोनों को

कुर्मियों-कोयरिओं की कायस्थों से दोस्ती है
तो भूमिहारों की कुर्मियों-कोयरिओं से

जाटों-गुर्जरों को चमारों से एलर्जी है
तो चमारों को यादवों से

खटिकों को चमारों से एलर्जी है
तो पासवानों को भी चमारों से

धोबियों को पासियों से एलर्जी है
तो वाल्मीकियों को चमारों से

चमारों की ब्राह्मणों से दोस्ती है
तो राजपुतों की चमारों से दुश्मनी

वाल्मीकियों की बनियों से दोस्ती है
तो खटिकों की यादवों से

पासवानों को भूमिहार पसंद है
तो मल्लाहों को राजपूत

हज़्ज़ामों की राजपुतों से यारी है
तो कुम्हारों, कहारों और बढ़इयों की यादवों से

यादवों की मुसलमानों से दोस्ती है
तो द्विजों की मुसलमानों से दुश्मनी

इस दोस्ती और दुश्मनी की गांठें
भविष्य में कुछ और मजबूत होंगी
भारत की तस्वीर
कुछ और अजब-गजब होंगी।

5. साहित्‍य में आरक्षण

अखबार के भी वही संपादक बनते हैं
गोष्ठियों की भी वही अध्‍यक्षता करते हैं
चैनलों पर भी वही बोलते हैं
प्रधानमंत्री के भी शिष्‍टमंडल में
विदेशी दौरे वही करते हैं
लाखों के भी पुरस्‍कार वही बटोरते हैं
वाचिक परंपरा के भी लिविंग लीजेंड वही कहलाते हैं
महान पत्रकार, महान संपादक, महान आलोचक
महान कवि, महान लेखक भी वही कहलाते हैं

और ‘साहित्‍य में आरक्षण नहीं होता’
ये भी वही बोलते हैं।

6. लहर है

लहर है
पाखंड के ट्ट्टूओं की लहर है

लहर है
कच्‍चा गोश्‍त खाने वाले आदमखोरों की लहर है

लहर है
विज्ञान का तंत्रीकरण, मंत्रीकरण और जोशीकरण करने की लहर है

लहर है
चंद्रगुप्‍त मौर्य को चंद्रगुप्‍त द्वितीय बताने वालों की लहर है

लहर है
तक्षशिला को भारत में करने की लहर है
लहर है
देश को ‘हिन्‍दुस्‍थान’ बनाने की लहर है

लहर है
हाशिमों, अब्‍दुल्‍लों, रहमानों को टुकड़े-टुकड़े कर देने की लहर है

लहर है
अंसारियों, कुरेशियों से बदला लेने की लहर है

लहर है
नाजनीनों की कोख में त्रिशूल भोंक देने की लहर है

लहर है
दिलीप कुमारों को पाकिस्‍तानी एजेंट बताने वालों की लहर है

लहर है
ग्राह्म स्‍टेन्‍स और उनके मासूमों को जिंदा जला देने की लहर है

लहर है
जसोदा बेनों को वनवासों में भेजने की लहर है

लहर है
पिछड़ों को हनुमान बना देने की लहर है

लहर है
वाल्‍मीकियों को ‘कर्मयोग’ का पाठ पढ़वाने की लहर है

लहर है
बाबासाहेब को ‘’झूठा देवता’’ बताने वालों की लहर है

लहर है
पुष्‍यमित्र शुंगों के लौटने की लहर है

लहर है
मनु की औलादों की बाढ़ आने की लहर है

लहर है
कबीर पर हंसने वालों की आमद बढ़ने की लहर है

लहर है
चार्वाकों को जिंदा जला देने की लहर है

लहर है
महात्‍मा बुद्ध पर शंकराचार्यों को बिठाने की लहर है

लहर है
भारत को आग का दरिया बना देने की लहर है

लहर है
अल्‍लाह के विध्‍वंसकों की लहर है

लहर है
गांधी के हत्‍यारों की लहर है

लहर है
पूरे देश को हाफ पैंट पहना देने की लहर है!

7. कैसा देश, कैसे-कैसे लोग

कल तक जो बलात्‍कार करते आया है
और बलत्‍कृत स्‍त्री के गुप्‍तांगों में बंदूक चला देते आया है
कल तक जो अपहरण करते आया है
और फिरौती की रकम न मिलने पर
अपहृत की आंखें निकालकर
और उसको गोली मारकर
चौराहे के पैर पर लटका देते आया है

कल तक जो राहजनी करते आया है
और राहगीरों को लूटने के बाद
उनके परखचे उड़ा देते आया है

कल तक जो बात की बात में
बस्तियां दर बस्तियां फूंक देते आया है
और विरोध नाम की चूं तक भी होने पर
चार बस्तियों को और फूंक देते आया है

कल तक जिसे
दुनिया की तमाम बुरी शक्तियों के समुच्‍चय के रूप में समझा जाता रहा है
और लोग-बाग जिसके विनाश के लिए
देवी-देवताओं से मन्‍नतें मांगते आया है
आज वही छाती पर
कलश जमाए लेटा हुआ है दुर्गा की प्रतिमा के सामने
उसकी बगल में
दुर्गा सप्‍तशती का सस्‍वर पाठ किया जा रहा है
भजन और कीर्तन हो रहे हैं
लोग भाव-विभोर नृत्‍य कर रहे हैं
उसकी आरती उतारी जा रही है
अग्नि में घृत, धूमन और सरर डाले जा रहे हैं
घंटी और घंटाल बज रहे हैं
दूर-दूर से आए दर्शनार्थी
अपने हाथों में फूल, माला, नारियल आदि लिए उसकी परिक्रमा कर रहे हैं
उसके पैरों में अपने मस्‍तक को टेक रहे हैं
और करबद्ध ध्‍यानस्‍थ
एकटंगा प्रतीक्षा कर रहे हैं
उससे आशीर्वाद के लिए

ये कैसा देश है
और यहां कैसे-कैसे लोग हैं!

8. दिल्ली

दिल्ली में समाज नहीं है
दिल्ली में व्यक्ति ही व्यक्ति है

दिल्ली में राम का नाम नहीं है
दिल्ली में सुबह और शाम काम ही काम है

दिल्ली में श्रम का दाम नहीं है
दिल्ली में श्रम ही श्रम है

दिल्ली में प्यार नहीं है
दिल्ली में तिज़ारत ही तिज़ारत है

दिल्ली में नीति नहीं है
दिल्ली में राज ही राज है

दिल्ली में दिल नहीं है
दिल्ली मैं बेदिल ही बेदिल है

दिल्ली में कला नहीं है
दिल्ली में खरीदार ही खरीदार है

दिल्ली में मुक्तिबोध नहीं है
दिल्ली में क्रीतदास ही क्रीतदास है

दिल्ली में वाम नहीं है
दिल्ली में दक्षिण ही दक्षिण है

दिल्ली में आराम नहीं है
दिल्ली में हरामी ही हरामी है

दिल्ली में लोकतंत्र नहीं है
दिल्ली में धनतंत्र ही धनतंत्र है

दिल्ली में धर्म नहीं है
दिल्ली में शंकराचार्य ही शंकराचार्य है

दिल्ली में मां-बाप कुछ नहीं है
दिल्ली में आश्रम ही आश्रम है

दिल्ली में लोक-लाज कुछ नहीं है
दिल्ली में थेथरई ही थेथरई है

दिल्ली में दाता नहीं है
दिल्ली में लूटेरा ही लूटेरा है

दिल्ली में कोई आज़ाद नहीं है
दिल्ली में गुलाम ही गुलाम है

दिल्ली में रक्षक नहीं है
दिल्ली में शिकारी ही शिकारी है

दिल्ली में प्रतियोगिता नहीं है
दिल्ली में ताबड़तोड़ तेल मालिश है

दिल्ली में शूद्र नहीं है
दिल्ली में द्विज ही द्विज है

दिल्ली में रहम नहीं है
दिल्ली में बेरहम ही बेरहम है

दिल्ली में अनाड़ी नहीं है
दिल्ली में खिलाड़ी ही खिलाड़ी हैं

बाकी
दिल्ली में पैंट उतार दो
दिल्ली में पैसा ही पैसा है!

9. मैं हार नहीं मानूंगा, तो तुम जीतोगे कैसे

मैं हार नहीं मानूंगा
तो तुम जीतोगे कैसे

मैं रोऊंगा नहीं
तो तुम हंसोगे कैसे

मैं दुखी दिखूंगा ही नहीं
तो तुम सुख की अनुभूति करोगे कैसे

मैं ताली ही नहीं बजाऊंगा
तो तुम ताल मिलाओगे कैसे

मैं अभिशप्‍त नायक ही सही
लेकिन तू तो खलनायक से भी कम नहीं

मैं खुद्दारी की प्रतिमूर्ति ही सही
लेकिन तू तो किसी पतित से कम नहीं

माना कि प्रकृति भी मेरे साथ नहीं
लेकिन प्रकृति भी तो सदैव तेरी दास नहीं

तुम मुझे क्‍या अपमानित करोगे
तुम तो खुद सम्‍मानित नहीं

तुम मुझे औकात में क्‍या रखोगे
तुम्‍हारी खुद की तो कोई औकात नहीं

तुम मुझे क्‍या डराओगे
तुम तो मुझसे खुद डरते हो

मेरे ऊपर तुम क्‍या शक करोगे
विश्‍वास तो तुझे खुद अपने ऊपर भी नहीं

तुम मेरा रास्‍ता क्‍या रोकेगे
तुम्‍हारा रास्‍ता तो अपने आप है बंद होने वाला

मेरी इज्‍जत तुम क्‍या उतारोगे
तुम्‍हारी इज्‍जत तो खुद है तार-तार

तुम मेरा इतिहास क्‍या खंगालोगे
तुम्‍हारा इतिहास तो खुद है दाग-दाग

मैं राहु का वंशज ही सही
लेकिन तुम भी तो चंद्रमा के रिश्‍तेदार नहीं!

10. लड़ना जरूरी है

लड़ो
क्योंकि लोगों ने लड़ना छोड़ दिया है

लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े कुछ नहीं मिलता

लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े घुट-घुटकर जीना पड़ता है

लड़ो
क्योंकि अभी तक तुम्हें जो कुछ भी मिला है
लड़कर ही मिला है

लड़ो
क्योंकि लड़ने वाले का इंतजार होता है

लड़ो
क्योंकि नहीं लड़ने से ही जंगलराज कायम होता है

लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े इंसान पिट्ठू बन जाता है

लड़ो
क्योंकि जो लड़ेगा वही बचेगा

लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े
इंसान को अंधा, बहरा, गूंगा और लूला माना जाता है

लड़ो
क्योंकि नहीं लड़ोगे तो लोग तुम्हें खा लेंगे

लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े अग्नि स्वर्ग से पृथ्वी पर नहीं लाई जाती

लड़ो
क्योंकि तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं

लड़ो
क्योंकि पाने के लिए ही तुम्‍हारे पास सारा जहान है।

11. पिछड़ो, तुम हमें वोट दो

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हें गोडसे देंगे

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हें हनुमान बनाएंगे

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हें धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद
और प्रतिनिधित्व के सिद्धांतों से महरूम संविधान देंगे

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम तुम्हें जनसंख्‍या बढ़ाने की अबाध छूट देंगे

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हें दलित राजनीति का खात्मा वाला देश देंगे

पिछड़ों
तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हारे राजनेताओं को विकलांग बना देंगे

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हें मुस्लिमविहीन पार्लियामेंट देंगे

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम मुसलमानों, ईसाईयों और बौद्धों को हिन्‍दू बना देंगे

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हें देश को गोधरा और मुजफफरनगर
में तब्दील करने की छूट देंगे

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हें मस्जिदों, चर्चों
और स्‍तूपों को नेस्तनाबूद करने की आजादी देंगे

पिछड़ों
तुम हमें वोट दो
हम कटुओं और म्‍लेच्‍छों से देश को आजाद करा देंगे

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हें क्षत्रीय का दर्जा देंगे

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हें हिन्‍दुत्‍व का कर्णधार बना देंगे

पिछड़ो
तुम हमें वोट दो
हम तुम्‍हें धर्मयोद्धा होने का सर्टिफिकेट देंगे

और पिछड़ों
तुम हमें 10 साल का वोट दो
हम तुम्‍हें भी मनु के प्रदेश में लौटा देंगे।

 

12. जस्टिस कर्णन

पैसा तुम्हारे पास भी है
पैसा द्विजों के पास भी है

योग्यता तुम्हारे पास भी है
योग्यता द्विजों के पास भी है

कानून तुम भी जानते हो
कानून द्विज भी जानते हैं

लोग तुम्हें भी जानते हैं
लोग द्विजों को भी जानते हैं

ईश्वर की शपथ तुम भी लेते हो
ईश्वर की शपथ द्विज भी लेते हैं

राजनीति तुम भी जानते हो
राजनीति द्विज भी जानते हैं

जस्टिस तुम भी हो
जस्टिस द्विज भी हैं

संविधान का तुम भी आदर करते हो
संविधान का द्विज भी आदर करते हैं

लेकिन इससे क्या
तुम द्विज नहीं हो
और वे द्विज हैं
जिनसे संविधान भी छोटा है
और जो भारत के सुप्रीम संविधान हैं!

(कलकत्ता हाई कोर्ट के दलित जज सीएस कर्णन को सुप्रीम कोर्ट ने 6 माह की जेल की सजा इसलिए सुना दी, क्योंकि जस्टिस कर्णन ने जजों के भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे रहने का भंडाफोड़ किया था)

 

(कवि पंकज चौधरी, जन्म वर्ष-15 जुलाई, 1976, जन्म स्थान : ग्राम+ पोस्‍ट-कर्णपुर, थाना+जिला – सुपौल, राज्‍य-बिहार,शिक्षा : एमए (हिंदी)
प्रकाशित किताब- ‘उस देश की कथा’ कविता संग्रह।
‘आम्‍बेडकर का न्‍याय दर्शन’ एवं ‘पिछड़ा वर्ग’ नाम से 2 वैचारिक आलेखों की किताबों का सम्‍पादन। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं और ब्लॉग्स पर कविताएँ प्रकाशित। सम्मान : बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का ‘युवा साहित्यकार सम्मान’, पटना पुस्तक मेला का ‘विद्यापति सम्मान’ और प्रलेस का ‘कवि कन्‍हैया स्‍मृति सम्‍मान’। पत्रकारीय कार्यानुभव- आज समाज, दैनिक जनवाणी, फॉरवर्ड प्रेस, युद्धरत आम आदमी एवं सूचना एवं प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, नई दिल्‍ली जैसी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं और संस्‍थानों में सम्‍पादकीय पदों पर नौकरी।

सम्प्रति :
‘कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन’, नई दिल्‍ली में कार्यरत्।

सम्‍पर्क :
348/4, (दूसरी मंजिल)
गोविंदपुरी, कालकाजी, नई दिल्‍ली-110019
मोबाइल नंबर : 9910744984, 9971432440
ई-मेल : pkjchaudhary@gmail.com

टिप्पणीकार सुशील मानव फ्रीलांस जर्नलिस्ट हैं)

 

 

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion