रमण कुमार सिंह
अवधी पृष्ठभूमि के कवि नीरज की कविताएँ किसान जीवन और संस्कृति से हमारा साक्षात्कार कराती हैं। सबसे ज्यादा आकर्षित करती है उनकी भाषा की देसज भाव-भूमि और उसकी ताजगी। उनकी भाषा का जो खिलंदड़ापन है, वह इन दिनों साहित्य में, खासकर हिंदी कविता में गंवई संस्कृति और खेती-किसानी की तरह उपेक्षित है। लेकिन नीरज अपनी कविता में उस संवेदना को नए सिरे से सिरजते हैं और उसे अगोरते हैं।
किसानों की जब भी बात होती है, तो अक्सर लोग उसके शोषण, उत्पीड़न, मुश्किलों का जिक्र करते हैं, लेकिन नीरज उनकी परेशानियों से बाखबर होते हुए उनकी प्रेम कहानियों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं।
उनकी काव्य पंक्तियों पर एक नज़र डालने भर से उनके काव्य-सामर्थ्य और किसानों के प्रेम की व्यापकता का अंदाजा लगाया जा सकता है-
कभी किसी किसान जोड़े को/खेतों में काम करते हुए देखो/मुहब्बत की एक नई परिभाषा दिखेगी/दोमट/बलुआही/ और मटियार के पन्नों पर/इनकी प्रेम कहानियों की दस्तख़त से उगते प्राणों का सोहर/निराये जाते मोथों का निर्गुण/खुरपियों का लोकगीत/पाग में सनी हंसी/और/महकती देह/खेतों में मुहब्बत की ऐसी अँजोरिया फैलाते हैं।
किसानों की प्रेम कहानियाँ चूंकि खेतों में अँजोरिया फैलाती हैं, इसलिए नीरज कहते हैं कि –
खेतों में की गई/इनके प्रेम की चहलकदमी सुनी जानी चाहिए/अठखेलियां देखी जानी चाहिए/दुनिया हरी-भरी बनी रहती है इससे/ और प्रेम की सलामती की ताबीजें बनती रहती हैं!
दरअसल प्रेम नीरज की कविताओं का केंद्रीय तत्व है, इसलिए वह जी भर जीने की सलाह देते हैं, क्योंकि जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं है कि कब वह आपके नाम का बिरादरी भोज करवा दे। इसलिए वह कहते हैं-
प्रेम के दालानों में बैठकर/मुहब्बत की कथरियों की उधड़ चुकी तुरपाई को/इश्क के धागों से तुरपो/जिंदगी की काज में/प्रेम की बटन फंसाओ/ यकीन मानो दुनिया और सुंदर लगने लगेगी!
दुनिया को और भी सुंदर बनाने की जतन में लगे किसानों की कदर करने की सत्ताधीशों को सलाह देते हुए कवि एक तरह से चेतावनी देते हैं कि-
किसानों की कदर करो साहब/गुहार है/नहीं, अगर ये हटे/तो इतनी हलुक हो जाएगी धरती/कि सिंहासन पताने लगेगा/पांचर लगाने से भी नहीं थम्हेगा।
इसी तरह तीन बोरी डीएपी शीर्षक कविता में वह कहते हैं-यह दुनिया का सबसे बड़ा सत्य है/जिस दिन किसान अपने बारे में/सोचने लग जाएगा/यकीन मानिए/भालू बिना लुहकारे ही भाग जाएगा/और तुम्हारी उगाई घासें झुरा जाएंगी।
मौजूदा वक्त में जिस तरह से मूल्यों का क्षरण हो रहा है और संवेदना व करुणा के राग से भरी-पूरी दुनिया बिला रही है, कवि नीरज उसे भी अपनी कविता में रेखांकित करते चलते हैं-
दुनिया को जोतकर/पानी से भर देना चाहिए/एक ऊंचा टीला छोड़कर/जिस पर कोई बैठकर फिर से देख सके प्रलय प्रवाह/जैसे कभी देखा गया था/और बहुत लहान से रोपी गई थी दुनिया/वो दुनिया/अब बिला रही है!
हालांकि कवि जानते हैं कि भले ही नोह-छोह और राग-बंध की वह दुनिया बिला रही है, लेकिन कुछ सकारात्मक बदलाव भी हो रहे हैं और वही भविष्य के लिए उम्मीद जगाते हैं-
रामधन अभी भी शौकीन हैं/अब उन्हें बिटिया को पढ़ाने का शौक है/रोशनी बहुत चंठ है/वह पढ़ेगी ,खूब पढ़ेगी/रामधन की हर शौक पूरा करेगी!
नीरज की कविताएँ बताती हैं कि इस जीवन को, इस दुनिया को और इस देश-समाज को अगर कुछ भी बचाए रखेगा, तो वह है प्रेम, और इस प्रेम को हर तरह से बचाया जाना चाहिए जैसे किसान अपनी किसानी के जरिये धरती की हरियाली को बचाकर प्रेम को अक्षुण्ण रखता है। नीरज संभावना शील कवि हैं और उम्मीद है कि आगे उनकी और भी अच्छी-अच्छी कविताएँ पढ़ने को मिलेंगी।
नीरज पाण्डेय की कविताएँ