मीता दास
नवारुण दा क्रांति के कवि, कहानीकार एवं एक्टिविस्ट थे, विशेषकर नवारुण दा उस घराने के कवि हैं जो लोग मनुष्य के बीच या उनके करीब खड़े होने की बात करते हैं, उनमे मिल जाने की बात करते हैं उनके लिए प्रतिवाद करते हैं |
मूलतः वे प्रतिरोध के कवि हैं | वे सीधे लफ्जों में और सपाट शब्दों में कविताएँ लिखने वाले कवि हैं | उनकी सभी कविताएँ एक साधारण मनुष्य की अभिव्यक्ति और साधारण मनुष्य की समस्याओं पर ही केंद्रित रही |
अधिकतर नवारुण दा के रचना संसार में शोषित – दलित, मृत शिशु , रात , मांस , इश्तेहार , घोषणा पत्र , लिफलेट , हाथ चिट्ठी , प्रार्थना , विज्ञापन और भी असंख्य चिर-परिचित विषय होते हैं जो आम जनजीवन में मनुष्य इन सबके संग हर घड़ी दो – चार होता ही रहता है |
इन सारे विषयों से आम इंसान हर दिन मुठभेड़ करता ही रहता है | असल में नवारुण की कविताएँ पूर्णतया राजनैतिक एवं प्रतिरोध की कविताएँ हैं |
मनुष्यों की मूलभूत सुविधाओं और अधिकारों के प्रति उनकी कविताएँ इस तरह प्रवाहित होती हैं सीधे सपाट शब्दों में ये आप को बगैर झिझोड़े नहीं रहतीं और आप उनकी कविताओं के मध्य घिर कर अपना करीबी मान लेते हैं |
यही नवारुण की कविताओं की सार्थकता है | आम जन की भाषा , आम जन का प्रतिरोध और आम जन की मूलभूत अधिकार इसे चीन्हने का सलीका देती है यहीं नवारुण जन – जन के कवि हो उठते हैं | वे ज़मीनी हकीकत के कवि हैं |
वे हमेशा से ही कहते थे की मैं किसी भी राजनैतिक दल को खुश करने के लिए नहीं लिखता | वे कहते थे की एक लेखक जब लिखता है उसके दिमाग में एक ‘टेंसन इमेजरी पोसेस’ काम करता है और वह उसे ठीक उसी तरह पकड़ता है जैसे की वह एक ‘रिसीविंग सेट’ हो |
एक कविता के लिए यदि प्रेरणा मिलती है और उसे प्रयोग में लाने के लिए उस कवि की दक्षता ज़रूरी होती है | ज़रूरत होती है एक प्रस्तुति की , ज़रुरत होती है कठोर परिश्रम की |
नवारुण दादा के पहले कविता संग्रह ” यह मृत्यु उपत्यका मेरा देश नहीं ” से लेकर एक छोटी कहानी ” पृथ्वी का आखरी कम्युनिस्ट ” तक उनकी लेखनी में कम्युनिस्ट धारा का प्रभाव दीखता है |
जब 1971 में उन्हीं के आठ दोस्तों को उस वक़्त के बंगाल के सिद्धार्थ शंकर राय ने गोलियों से भून डाला तभी उनकी यह कविता ” यह मृत्यु उपत्यका मेरा देश नहीं ” लिखी और वे उसी धारा में बह गए उनकी कहानी ‘पृथ्वी का आखरी कम्युनिस्ट’ में वे समस्त संसार के भविष्य की विप्लव की कल्पना करते है और आशान्वित दिखते हैं |
००००००००
नवारुण भट्टाचार्य की कविताएँ-
1. छोटे – छोटे शीतल हाथ
छोटे – छोटे शीतल हाथ
अपने हाथों से तालियाँ बजा सकते थे
उनके तालियाँ बजाने से कई लोगों को हो सकती थी असुविधा
इस लिए उन्होंने नहीं बजाई
तालियाँ
अगर ऐसा ही होता तो
वे तालियाँ किसके लिए बजाते ?
सेलिब्रिटियों के लिए ?
मंत्रियों के लिए ?
डॉक्टरों के लिए ?
क्या अपने माँ – बाप के लिए ?
माँ के लिए शायद नहीं बजाते
क्यों की माँओं ने ही तो तैयार किया था उन्हें
पिताओं के लिए भी शायद नहीं
उन लोगों के दिमाग
ठीक से काम कर भी रहे हैं या नहीं ?
वे लोग कह ही सकते थे कि
हम सब हैं विसर्जन को ले जाते देवता
यह कहते हुए
अगले साल फिर आना
उन बच्चों ने कुछ कहा भी नहीं
कुछ कहने के लिए बोलना सीखना पड़ता है
बातें ही हैं जो पृथ्वी की दूरी को कम करती है
यह उन्होंने कभी नहीं चाहा
क्योंकि वे लोग थे बड़े
और उन्होंने कभी भी नहीं चाहा
छोटों को और भी क्षुद्र बनाना
बड़े जानते हैं की उन्हें क्या भुला देना चाहिए
उन्होंने कभी भी अपने मुँह से अपनी बड़ाई नहीं की
यही सच है न ?
इसलिए मैं कहता हूँ
उनका प्राण त्यागना ठीक ही था
उनका मरना अच्छा ही था
या तो वे थे ,
क्या कहूँ ?
कहूँ क्या !
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2 . आपने जो घड़ी पहन रखी है
आपने जो घड़ी पहन रखी है
हो सकता है एक दिन रक्त चूस कर
एक दीवार घड़ी में हो जाये तब्दील
दीवार घड़ी से बंधे अनेकों कंकाल
हड़प्पा और लोथल में मिले हैं
आजकल पूरे परिवार को टेलीविज़न
निगल चुकी है
ऐसे ख़बरें भी हैं मेरे पास कि —-
मेरे दोस्त की पत्नी के कानों से
सात सालों तक टेलीफोन चिपका रहा
और एंगेज़्ड टोन बजता रहा
आज वह पागल हो चुकी है
और वाशिंग मशीन से निकला हुआ
साफ़ – सुथरा धुल कर सूखा हुआ शिशु
अब हर घर में है मौजूद
अपने आप तैयार फालतू चमगादड़
सहसा ही अपने पंख बंद कर सकता है
और आईने के भीतर प्रवेश करने के बाद
हो सकता है अपने-आप वापस ही न आये
अगर कुछ घटित भी हो जाये
जैसे की सपरिवार आपकी कार
आपका कहना न मान कर
ब्रिज से कूद ही जाए
और जो वीडियो बना होगा
कॉम्पेक्ट डिस्क या ऑडियो कैसेट और
रह जायेंगे हवा को बाँटने की चेष्टा में
प्रयासरत कुछ फेफड़े
अगर ऐसा कुछ न भी हो
और अचानक डॉट पेन घुस जाए गले के भीतर
या सीने की जेब में दियासलाई की डिबिया फट जाए
पंखों के ब्लेड से उत्तर आयें जिलेटिन
और रेफ़्रिजेटर के भीतर
बर्फ के झालरों के मुंड
कमजकम समझा ही देंगे कि
आप लोग सूअर के बच्चों की तरह
क्लान्तिहीन परिश्रम करने को राजी होते तो
ऐसी परिणीति कभी भी घटित न होती ||
3. बिल्ली
अपने शायद ध्यान दिया हो कि इन दिनों
कानी , लंगड़ी बिल्लियों की संख्या
बढ़ती ही जा रही हैं
और यह भी आपकी आँखों से छुपा नहीं होगा
कि उनकी चिकित्सा की कोई व्यवस्थायें भी नहीं हैं
लाल दवा लगे रुई और अनायास दब गए
बिल्लियों के बच्चे , उबड़ – खाबड़ रास्तों में पड़े हुए
जरूर आप लोगों की सजग आँखों ने देखे होंगे
रोम और कायरा में कैसी दशा है बिल्लियों की
सही तौर पर पता न हो फिर भी यह तो पता ही है
कलकत्ते की बिल्लियां एक बेहद मुश्किल दौर के सम्मुख हैं
बिल्लियों की हालत अच्छी नहीं है
ख़बरों को अगर मीडिया ने जगह नहीं भी दी हो फिर भी
वे इतिहास में बने रहेंगे और भूगोल में भी
दिन में वे अंधी आँखों के सामने ही करते रहते आवाजाही
रात भर चलता लंगड़ा – लंगड़ा कर आहत या घायल करने की प्रक्रिया
और शाम ढले बादल डाब जाते बिल्लियों की देखा – देखी लाल दवा मलकर
सांझ की और बढ़ जाते | |
4. बस स्टॉप
जो उतरे थे वे सब चले गए
जो लोग चढ़े थे वे भी
सब कुछ के बाद
अकेला खड़ा है बस स्टॉप |
रास्ता भीग रहा है
रात की बारिश में
बूँद – बूँद पानी
तारों पर से बह चली है
अकेला खड़ा है बस स्टॉप |
पृथ्वी से अगर सभी चले जाएँ
एक भी कविता न लिखी जाये
बस स्टॉप का कुछ भी नहीं बिगड़ेगा |
अकेले रहने के डर से वह उबार गया है |
अकेला ही खड़ा रहेगा बस स्टॉप ||
5. लूला
लूले ने
अपने हाथ की मुट्ठी बांध ली है !
खबरे लिखते हैं जो लोग
की किस जगह के मनुष्य किस हाल में हैं
कौन सी नदी का बांध टूट गया है
कहाँ भीषण गर्मी पड़ रही है
कह ही नहीं हाँक रहे हैं उन्हें
कागज कलम अब तुम लोग बिस्तर बांधो
कह रहा है अब लूला |
जानना बाकि है लूले का
जिनके जितने लब्बो लुआब हैं
वही लोग अब अंत में जमीन पर गिर कर लोट लगाएंगे ||
6 . छोटे फ़ासिस्ट के लिए
छोटे फ़ासिस्ट ! इतने सपने मत देखो
इतने मीठे भूत देखना ठीक नहीं , क्षुद्र नात्सी
” आगामी चौबीस घंटो की आबोहवा की खबरों में कहा गया
सूर्य की देह पर डामर से स्वस्तिक चिन्ह बनाया जायेगा ” ……
छोटे फ़ासिस्ट , बड़बड़ करते हुए इतने सपने नहीं देखा करते |
छोटे फ़ासिस्ट , इतने जोर से खर्राटे न लो
इस तरह का अजीबोगरीब आवाज करना ठीक नहीं , क्षुद्र से नात्सी
तुम्हारे नाक के लाऊडस्पीकर से निकलती ” हेल हिटलर !”
तकियों के रुई को उड़ा रहे हैं बच्चे
छोटे फ़ासिस्ट , कुछ भी हो सकता है , कुछ भी खतरनाक सा हो ही सकता है !
छोटे फ़ासिस्ट , बन – बिलाव के च्यूँटी काटने पर मत नाचो बेटा
टाटा बाबा का बाप भी कुछ नहीं कर सकता ….. शोना बच्चा
डायलेक्टिक्स का नाम भी जिन लोगों ने कभी नहीं सुना …..
वे भी जनता हैं
चप्पल छोड़कर कौन लोग इतिहास के पन्नों से चम्पत हो गए
इतने सपने देखने से सपने ख़त्म हो जाते हैं ,
छोटे फ़ासिस्ट !
7. लुम्पेनों के लिरिक्स
हर रात हमारे जुआ के खेल में
कोई न कोई जीत ही लेता है चाँद
और उस चाँद को चिल्हरों में तब्दील कर हम तारों में बदल लेते हैं
हमारी जेबों में होते हैं सुराख
उन सुराखों से टपक कर
सारे तारे गिर जाते हैं और
तारे वापस उड़कर चले जाते हैं आसमान में
तब हमारे रंग उड़े आँखों में उतर आती है नींद
सपनो के दोलनों से हम थरथर कांपते हैं
रात हमें संग लिए हुए भी चलती ही रहती है
रात एक पुलिस वैन की तरह होती है
रात सच में एक काली पुलिस वैन ही है | |
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8. धूप
क्या तुम चमकीले वरक के टुकड़े – टुकड़े कर उड़ा रहे हो
जिसका नाम है धूप
धूप असल में एक बच्चे के हाथों का यो – यो खिलौना है
और सूर्य सर्कस के किसी साइकिल का एक पहिया है
जिसके स्पोक में झिलमिला रही है धूप
जबकि धूप के विशाल पोर्सिलिन वाले बेसिन में
मैंने एक दिन सीने के भीतर की हवा को चबाकर
खून की उल्टी कर दी थी
उन दिनों धूप के संग मेरी इतनी दोस्ती भी नहीं थी
यह सब बातें मैं भूल गया था
तुम भी भूल जाना
सूर्य एक बच्चे के हाथों का यो – यो खिलौना है
सूर्य तार के ऊपर रुका हुआ एक साइकिल का चक्का है
क्या तुमने चमकीले वरक़ के टुकड़े – टुकड़े कर उड़ा दिए
जिसका नाम था धूप ||
9. मृत शिशु का मुख
मृत शिशुओं के चेहरे पर मक्खियाँ भिनभिना रही हैं
तुम उन्हें उड़ा क्यों नहीं देते
मृत शिशु जब जिन्दा था
तब तुम नहीं आये
अब जब वो जिन्दा नहीं हैं
तब क्यों आये हो तुम ?
उसे कांधा देने के लिए
इतने लोगों की कोई जरूरत नहीं
उसने माँ की गोद से ही
आग { माँ } के खिंचाव में
अनल में खो जाना जान चूका है
तुम उड़ा क्यों नहीं देते ?
उसके मुंह में मक्खियाँ बैठ रही हैं
मृत शिशु का पिता
बंद कारखाने का श्रमिक है
मृत शिशु की माँ
बंद कारखाने के श्रमिक की पत्नी है
जब कारखाना बंद हुआ
तब तुम क्या कर रहे थे
एक – एक कर कारखाने
इस झूले से उस झूले
सब खाली हुए जा रहे हैं
क्या कर सकते हो तुम ?
मृत शिशुओं ने जो जगहें रिक्त कर गए हैं
कोई उसे नहीं भर सकता
किसी में इतनी ताकत भी नहीं
जो सबसे छोटे और दुर्बल थे
उनकी जगह कोई दख़ल कर सके
किन्तु मृत शिशुओं ने कोई भी
आरोप नहीं लगाया
इतने बड़े वे हो ही नहीं पाए
जन्म लेते ही जाना
कोई आसान बात नहीं
इस तरह का साहस हर किसी के सीने में नहीं होता
उन्होंने एक धुंधली सी पृथ्वी देखी थी
उसके बाद वह धुंधली पृथ्वी भी बुझ गई
तुम सालों – साल
इतना सब कुछ देखकर भी
इस तरह देखने का मूल्य समझ नहीं पाए
मर कर , जिन्दा रहकर कुछ ढूंढ़ नहीं पाए
इसलिए अब चुप रहकर सोचो
मुंह में कॉर्क ठूंस कर सोचो
उन्होंने किसी को दोषी नहीं ठहराया
वे प्रतिरोध करना भी जानते थे
नहीं आता था उन्हें खुद के मुख पर
भिनभिनाती मक्खियों को ही उड़ाना
कोई भी नहीं था उस वक्त ,
अब भी कोई नहीं है उनके करीब
सोचो
आग की गोद के बारे में सोचो
आग का काजल आंजने की बात सोचो
सोचो
फटे दूध का खट्टापन
उसे पीना कैसा कैसा लगता है
जरा सोचो
कैसा लगता है बगैर ऑक्सीजन के
कैसा विकल सा हो उठता है
इन्क्यूबेटर
सोचो
निर्लज्ज
नग्न
मंत्रियों , सुपर डॉक्टर एवं
तुम और हमें भी
जो लोग पीछा छुड़ा लेते हैं
वे लोग चुप ही रहते हैं
जिस तरह वे पहले थे
पर तुम्हे चुप रहना आता ही नहीं
इसलिए तुम्हारा होने का कोई मतलब ही नहीं
जिसका कोई वजन ही नहीं
उसका कोई लेना – देना भी नहीं
इसलिए तुम्हे कोई भी आग नहीं अपनाएगी
किसी के लिए कुछ खरीदूं या नहीं खरीदूं
के फेर में नहीं खरीद पाया लालीपॉप
खरीदनी पड़ी थी लकड़ियां
किसी के घर में नहीं था उजाला
न ही था पंखा
पर चूल्हे पर बिजली रक्खी थी
कोई नहीं आया करीब
किसी ने नहीं कहा —मैं हूँ न
मुंह से किसी ने भी नहीं उड़ाया
भिनभिनाती मक्खियों को
मुझे वे लोग श्राप देकर चले गए
कह गए —- तू जिन्दा रह
मरा हुआ बिस्कुट बनकर
स्मृतियों के मर्तबान में
तुझे घेर कर जैसे
झूले से
षष्ठी ठाकुर { देवी } , षष्ठी ठाकुर
कूद कर
उतर आये ………
10. राक्षस
रोटी के लिए गूंथे हुए आटे से
एक बच्चे ने सांप बनाया
उसके बाद रोटी , सब्जी और दाल खाकर
बच्चा सो गया
सांप सूख रहा है रात की हवा में
बच्चा सपना देख रहा है कि
कल वह एक हंस बनाएगा
उसके पिता और माता भी सोये हैं
आकाश , तारा , गैलेक्सी सभी हैं निर्वाक
एक दिन यही बच्चा
एक भरा पूरा इंसान बनेगा
कुछ बनाना चाहेगा
उसे बनाने के लिए आटा ,रोटी की जरूरत पड़ेगी
इन्ही सहज बातों से
रूपकथाओं की शुरुवात हुई थी
अचानक ही उसी के बीच एक राक्षस आ धमकता है | |
11. बुलेट बुलेट ही होता है
गर्भ में ही था जब बुलेट लगी थी
इसलिए जन्म ही नहीं ले पाया मैं
इसलिए यह कह भी नहीं सकता की
वे किस दल के थे , उस वक़्त किसकी पुलिस ने मारी थी गोली
बता ही नहीं सकता मेरी माँ तुझे कि
वे विप्लवी थे या विरोधी —
किस दाल के थे वे समर्थक
बुलेट किसी भी बाधा या रोक की परवाह ही नहीं करता
वह किसी की भी चमड़ी को छीलने या स्नेह की सूक्ष्म झिल्ली या
गर्भ के जल की भी परवाह नहीं करता
बुलेट की कोई समझ नहीं होती , नैतिकता भी नहीं होती
और गहरे विश्लेषण से भी कोई यथार्थ की बात या
कोई अव्यक्त सा कोई अर्थ भी नहीं होता
बुलेट बुलेट ही होता है
अगर उसे एक अँधा घातक मान लें
तो दृष्टिहीन लोग अपमानित होंगे
हत्याकारी भी अपनी मानवता खो देंगे
जो भी हो यह सच है कि गर्भ में बुलेट लगा था
इसलिए मैं जन्म ही नहीं ले पाया
मैं कौन हूँ मैं ही नहीं जानता
जानने का समय ही नहीं मिला
और कभी मिलेगा भी नहीं
मैं बहरा , मैं गूंगा , मैं अँधा और बेहोश हूँ
इस बार पुलिस , नेता , माफिया , वर्दी धारी , बगैर वर्दी धारी
सभी ढूंढने निकल पड़े हैं मुझे ,
निर्भय होकर , निर्मम होकर आओ
उस बार मैं डर गया था
इस बार तुम लोगों के अचंभित होने का अवसर है
तुम लोग बुलेट लिए मुझे ढूंढ रहे हो
पर याद रखो
बुलेट की कोई समझ नहीं होती , नैतिकता भी नहीं होती
और गहरे विश्लेषण से भी कोई यथार्थ की बात या
कोई अव्यक्त सा कोई अर्थ भी नहीं होता
बुलेट एक ग्लास पानी , शराब या एक सिगरेट भी नहीं
बुलेट सिर्फ बुलेट ही होता है
जन्म नहीं लिया फिर भी इस अन्धकार से ही मैं
उठाता हूँ एक – एक कर अनेकानेक प्रश्नो के लहर
की डर कर लहरें लौट जाती हैं
मेरा जन्म न लेना ही इतने सारे प्रश्नों के हैं
पत्थर , पाषाण और अन्धकार
जिनके प्रहार से उन्हें चूर्ण करना हर विस्फोट पर
हतबुद्ध बुलेट को ही कहाँ पता होता है
प्रखर , सत्यनिष्ठ पाठक क्या तुम्हे पता है ,
इतने असंभव जिज्ञासाओं के अर्थ |
12. शिशुओं के समाचार
माफिया , मंत्री , पुलिस
सभी आज एक खबर बने हुए हैं
कैबरे वाली , खुनी ट्रक , विषाक्त मेंढक के छत्ते
{ कुकुरमुत्ता }
वे भी हैं समाचार
समाचार के हेड लाईन में अंटे पड़े हैं लेनिन – कंठी ,
बम , बैलेट बॉक्स , कॉफिन भी
चारों और है समाचारों की धूम
शिशुओं ने देखा उनके गले में इतना जोर और
न ही है उनकी ऐसी किस्मत
की किसी भी तरह का कोई समाचार बन सकें
इसलिए वे इकट्ठे होकर मर गए | |
13. इच्छाओं का आसन
फुटपाथ का शिशु मर गया आंतरिक शोथ से
फुटपाथ पर माँ अब तक बैठी है भौंचक
वह मृत शिशु जिस पॉलीथिन के बिछौने पर सोया रहता था
अब तक उसका बिछौना पड़ा हुआ है उस दुकान के सामने
बिछा हुआ है उसकी ईच्छाओं का आसन |
चारों ओर चलायमान है यांत्रिक शहर और
टहल रहे हैं सब इस शहर के ही फुटपाथ पर और
वह शिशु अब नहीं खेलेगा कभी उस कुत्ते और न ही धूप संग
अब इस शहर में बांग्ला भाषा में कोई कविता नहीं लिखी जाएगी
गीत नहीं गायेगा कोई भोर का पंछी |
डीज़ल के धूयें से भरी सांझ बह रही है उस ओवर ब्रिज की ओर
और उस पार आसमान में उग रहा है सिरेमिक चाँद
अँधेरे में सुनाई दे रही रेलगाड़ी की आवाज और
आसमान के नीचे बिछा हुआ है ईच्छाओं का आसन |
फुटपाथ का शिशु मर गया आंत्रिक शोथ से और
उसकी माँ अब तक बैठी है फुटपाथ पर झिर – झिर बारिश में
वह मृत शिशु जिस पॉलीथिन के बिछौने में सोया रहता था
उस दुकान का फटा हुआ पॉलीथिन था जो हवा के थपेड़ों से
जरा – जरा सा खिसक रहा था और अगर हवा तेज हो जाये तो
उड़ भी सकता है उसकी ईच्छाओं का आसन
फुटपाथ पर माँ बैठी रहेगी चुपचाप और
हवा मुंह में भरकर , मुंह बंद कर
चला जायेगा ईच्छाओं का आसन | |
14. कवि का वैश्वीकरण
कवि जितनी लातें खा सकता है
उतनी लातें फुटबॉल भी नहीं खा सकता
कुत्ते जब हैरान – परेशान हो उठते हैं
कवि लोग तब भी रास्तों पर
फैंक गए डॉटपेन बीन रहे होते हैं
सिर गंजा कर उस पर काला पोतकर
और उस घोल को जीभ से चाट रहा हैं
यह सब समझ ही लेते हैं अपने – अपने अनुभवों से
की कोई असफल चोर या कोई अनुभवी कवि होगा
किन्तु यह सिद्धांत अंतिम सिद्धांत नहीं है
कवि को वैश्वीकरण समझ में आती है
पर कवि हरामी और बेहद खच्चर भी होते हैं ||
15. कीट
एक संग जलाये गए
दो मोमबत्तियाँ जल रही है
मोमबत्ती की देह से फिसल रही है सफ़ेद लहर
जलते हुए पेड़ से उतर रही है सुगंधित पत्ते
निचे जम रहा है मोम की कब्र
इन दोनों शुभ्र देह के
जलने से उनके संग जलने के मोह में
जो कीट आये थे
उन्हें भी क्या इन सब के मायने पता हैं ||
16. थका हुआ शहर
बार – बार टॉयलेट की दीवारों पर
किसी करुण होमोसेक्चुअल का या
गुम हुई किसी लड़की का मोबाईल नंबर
याद आ जाता है ,
कोई अनसुना
सोनाटा का स्वरलिपि
अब कभी नहीं लिखा जायेगा
कोई भी ऐसा सॉनेट ||
17. थियेटर
लालटेन जलाकर
लोडशेडिंग में ही होगा
वहाँ शेर का मुखौटा होगा
बजेगा ढोल – नगाड़े
जो देख रहे होंगे थियेटर
उनकी देह
पसीने से भिगाने होंगे ||
18. सिनेमा
सिनेमा में मक्खी और तिलचट्टों पाओगे
की वे जबड़ों से भात खा रहे हैं —– उनके दाँत है ही नहीं
कलकत्ते के दृश्यों को देखने से ही महसूस होगा
कि ये हैं हाथ – पाँव के कटे हुए प्लास्टर या
फैंके गए कमोड ||
19. रोशनदान
एक पर गौरैया बना रही है घर
दूसरे पर मैना बना चुकी है घर
मेरी ही है सारी मुसीबतें
साले …. धत्त तेरी !
किसके बच्चों को पकड़ेगा यह सोच कर
लार गिराती बैठी हुई है बिल्ली
बीच में मैं हूँ दौड़ लगाता हुआ
इस रोशनदान से उस रोशनदान की ओर
सोचता हूँ किस लिए दौड़ रहा हूँ मैं
घर बनाने की वाहवाही लेने
इस रोशनदान से उस रोशनदान तक
माँ गौरैया और पिता के
माँ और पिता मैना के इस घर – उस घर से फिसले हुए शिशु ,
और इतनी चीख – पुकार ——-
दौड़ते – दौड़ते
अचानक मुझे ध्यान हो आया
यह घर फिर है किसका ?
व्यथित होंठों की चीख सुनकर भी
क्या बंद कर दूँ मैं सांकल ?
डरे हुए परों के सामने फैला दूँ
अपना मालिकाना हक़ ? घर के कागजात ||
(नवारून भट्टाचार्य (23 जून 1948 – 31 जुलाई 2014) एक भारतीय बंगाली क्रांतिकारी और रेडिकल सौंदर्यशास्त्र के लिए प्रतिबद्ध लेखक थे। वह बहरामपुर (बहरामपुर), पश्चिम बंगाल में पैदा हुए थे। वह अभिनेता बिजोन भट्टाचार्य और लेखक महाश्वेता देवी की इकलौती सन्तान थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास हरबर्ट के लिये उन्हें सन् 1997 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
आज उनके जन्मदिन पर समकालीन जनमत टीम उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत हैं बांग्ला से हिंदी में अनूदित उनकी कुछ कविताएँ। इन कविताओं का अनुवाद मीता दास द्वारा किया गया है और टिप्पणी भी उन्होंनें ही लिखी है।
मीता दास का जन्म 12 जुलाई सन 1961, जबलपुर { मध्य प्रदेश }
शिक्षा बी.एस.सी विधा हिंदी भाषा & बांग्ला भाषा में कविता , कहानी , लेख , अनुवाद और संपादनप्रकाशित ग्रन्थ ” अंतर मम” काव्य ग्रन्थ , बांग्ला भाषा में 2003 में, नवारुण भट्टाचार्य की कविताएं ( अनुवाद – मीता दास ) प्रकाशित, भारतीय भाषार ओंगोने ( अनुवाद हिंदी कवियों का बांग्ला भाषा मे अनुवाद – मीता दास ) प्रकाशित , ” पाथुरे मेंये ” {बांग्ला काव्य संकलन } प्रकाशित, हिंदी कवि अग्निशेखर की कविताओं के बांग्ला अनुवाद – मीता दास प्रकाशित, नवारुण भट्टाचार्य की कविताओं के अनुवाद (अनुवाद – मीता दास ) शीध्र प्रकाशित, सुकान्त भट्टाचार्य की कविताओं का अनुवाद (मीता दास ) शीघ्र प्रकाशित। आकाशवाणी रायपुर से 25 वर्षों से लगातार स्वरचित कविताओं का प्रसारण, दूरदर्शन रायपुर से कविताओं का प्रसारण, भोपाल दूरदर्शन से गीतों का प्रसारण)
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