ख़ुदेजा ख़ान
मधु सक्सेना की कविताओं का मूल स्वर भले ही स्त्री केंद्रित है तथापि इसमें सामाजिक संदर्भों की एक वृहत्तर शृंखला दिखलाई पड़ती है जो एक पारिवारिक इकाई से लेकर समकालीन विषयों तक फैली है यहाँ तक कि युद्ध की विभिषिका के परिणामों को देखते हुए जब वह कहती हैं कि युद्ध से पहले आधी आबादी की अनुमति लेनी चाहिए। वीर सैनिकों की मांओं के ह्रदय की पीड़ा को युद्ध करने वाले सत्ताधीश नहीं समझते।
मधु सक्सेना की स्त्री क़तई निरीह या असहाय नहीं बल्कि प्रश्नाकुलता से भरपूर प्रतिकूलता के समक्ष डटकर सामना करने को तैयार है क्योंकि अब उसके ज्ञानचक्षु पहले की तरह कुंद रहे, न कुंठित। दुनिया की समझ, समय के साथ उसके भीतर भी विकसित हुई है।
‘स्त्री तुम’, ‘युद्ध’, ‘आधी दुनिया’, ‘मुक्ति’, ‘किसी स्त्री ने’, इन कविताओं में स्त्री की वो प्रगतिशील सोच तथा परिपक्व मानसिकता झलकती है जिनके बूते वो अपने अस्तित्व का होना, एक मनुष्य के रूप में सिद्ध करती है। उस जर्जर सामाजिक ढांचे को ध्वस्त करना चाहती है जिसने सदियों स्त्री को अपने क़दमों तले रौंदना चाहा।
स्त्री तुम उपमा में रहोगी, सौंदर्य शास्त्र में तुमको परिभाषित किया जाएगा, देवी बनाकर महिमा मंडन किया जाएगा लेकिन जब स्त्री के अधिकारों की बात आएगी तो वहाँ उसे पीछे धकेल दिया जाएगा।
आदर्श और देवत्व से मुक्ति दे दो
कि छटपटाहट बढ़ती जा रही माँओं की
यहाँ माँ एक स्त्री ही है जिसे त्याग, ममता, समर्पण की मूर्ति बनाकर सामान्य जीवन जीने से वंचित कर दिया जाता है।
सच है कि किसी स्त्री ने प्रेम में नहीं बनाया ताजमहल सा स्मारक, शीशमहल, ना सपनों के राजकुमार के लिए युद्ध जीता। केवल प्रेम किया और प्रेम को सर्वेसर्वा मानकर उसी में डूबी रही, बस यहीं चूक हो गई कि स्वयं के प्रति स्वार्थी न हुई। इसी निस्वार्थ प्रेम ने उसे मूर्ख घोषित कर दिया।
आधी दुनिया की बात हो तो भी कवयित्री चाहती है कि आधी दुनिया अगर स्त्री को कहा जाता है तो हर महत्वपूर्ण कार्य में उसकी सहमति लेनी चाहिए, फिर चाहे वो कोई युद्ध ही क्यों न हो।
‘रंग’, ‘चयन’, ‘एक चुप’ जैसी कविताओं में विचार भंगिमाएं बदली हुई हैं किंतु बहुत समसामयिक संवेदनाएँ अन्यान्य रूप में प्रकट हुई हैं। जैसे खेल- खेल में नकली पिस्तौल से खेलता बच्चा, मौका मिला तो असली पिस्तौल चलाने से भी नहीं चूकेगा।
युद्ध और शांति का चयन मनुष्य के हाथों में है, केवल गीता पढ़ना सार्थक नहीं उसके अर्थ को भी आत्मसात करना होगा। एक सघन, दीर्घ चुप्पी गुब्बारे की तरह होती है जिसमें एक कविता की पिन चुभती है और सारी हवा निकल जाती है। रचनात्मकता का बल इतना प्रभावशाली होता है।
‘वाह रे बसंत’, पर्यावरण को लेकर दूरगामी चिंता प्रकट करती है। बसंत भी समय से कहाँ आ पाता है इन दिनों। दूषित वातावरण, जलवायु परिवर्तन ने बसंत को बंधक बना लिया है। वह तो निराला, बिहारी, सेनापति, जायसी आदि के काव्य में सिमट के रह गया है और यहाँ आम आदमी बसंत के स्वागत और आगमन की प्रतीक्षा ही करता रह जाता है। एक कविता बहुत हटकर है-
आजकल मेरी पीठ पर
निकल आए हैं
नाक, कान और आंख
कुछ लोगों को
पता चल ही गई है यह बात
घबराकर अब वह समेट रहे हैं
औजार
घिस रहे हैं हथियार।
इस कविता के प्रत्येक पाठक के हिसाब से अनेक पाठ हो सकते हैं।
सचेत रहने और सतर्क करने के।
मुखौटा विहीन चेहरा भी इसका प्रतिफल हो सकता है जहाँ जैसा चेहरा है वैसा ही दिखाई दे अनावृत, हटी हुई परतों के बीच, सच का सामना कटु होता है ऐसे में प्रतिपक्ष अपना वार करने को तत्पर रहता है।
मधु सक्सेना की कविताएँ
1. स्त्री तुम
स्त्री तुम हर दिन, हर समय
होते हुए भी नही हो
हर दिन, हर समय
तुम रहोगी उन दिनों
जिन दिनों पूजी जाओगी
कोई निराहार रहेगा
कोई जुबान काट कर चढ़ा देगा
कोई बकरे, मुर्गे या नर की बलि देगा..
तुम रहोगी सिर्फ उस दिन
जिस दिन तुम्हारी शान में
पढ़े जायेगे कशीदे
दुर्गा, काली की उपमा से
नवाज कर
सोशल मीडिया भर जाएगा
तुम्हारी तारीफों से ..
तुम उन दिनों में भी रहोगी
जब युद्ध होगें तुम्हारे नाम पर
लड़ेगें वो , मारेंगे, मरेंगे भी वो
पर कारण तुम्हे बनाया जाएगा
और सारे बदले तुम्हारी देह से लिए जाएंगे ..
तुम उस समय भी रहोगी
जब सीरत के बदले सूरत के गीत गाये जायेगें
उकेरा जाएगा जब तुम्हारी गढ़न को
पत्थरों पर ,कागज़ों पर, और लोलुपो के दिमाग पर
तुम उस दिन भी रहोगी ..
परिवार और सृजन के साथ
जब रीतिरिवाजों और कर्तव्य के बंधन
बांधे जाएंगे …
स्त्री तुम उस दिन नही रहोगी जब
हिसाब मांगोगी अपने पर हुए अत्यचारो का
उड़ान के लिए खोलोगी अपने पंख
गाओगी और नाचोगी खुद के लिए
सारी वर्जनाओं को तोड़कर निकल पडोगी …
मत डरना…
डराने वाले ही सबसे ज्यादा डरे हुए होते है
स्त्री तुम रहो ,बनी रहो ,नही रहने के कारणों बीच से ही
खुद को गढ़ना होगा –
हर स्त्री के लिए ..हर स्त्री के कारण, हर स्त्री के साथ साथ ..
2. युद्ध
तुमने खेतों में बीज बोए
आशीर्वाद दिया उसने ..भरपूर फसल का
तुमने नौकरी की ..
उसकी दुआ मिली उन्नति करने की
तुमने ब्याह किया ..
उसने सुखी जीवन का आशीष दिया
तुम युद्ध मे जाने तैयार हुए
विजयाशीष आशीष देते हुए
कांपे थे उसके हाथ …
एक बार उस माँ से पूछ लेते
क्यों कांपे थे उसके हाथ.
3 .आधी दुनिया
तुम कहते हो आधी दुनिया हम से है
तो हर युद्ध के फरमान पर होनी चाहिए
अनुमति हमारी ..
हमारी ना भी लो तो
हर युद्ध माँ की अनुमति से होने चाहिए .
4. वाह रे बसंत
बसंत बहरा हो गया
गूंगा और अंधा भी
भूल गया शब्द
और उनके अर्थ भी …
जबसे बाल्मीकि, बिहारी, सेनापति
और पद्माकर ने गुण गाये
अपने मद में चूर है
जाने कहाँ पड़ा है
ये मूढ़ता नही तो और क्या ?
यहाँ हम सब बधाइयों संग
उसके आगमन की
राह देख रहे और
कविताएँ लिख रहे .
धत्त !!
बसंत तो गायब है ..।
5. रंग
वो पड़ोस का
शैतान सा बच्चा
नकली पिस्तौल चलाकर
असली रंग देखना चाहता था
मिन्नत करके कह रहा था –
“प्लीज़ मर जाओ ना ”
कल अगर उसे
असली पिस्तौल मिली तो
कहेगा नहीं
असली रंग दिखा देगा।
6. चयन
तेज़ आवाजें
चीख -पुकार
धमाके, आग, लपटें
जलता हुआ पृथ्वी का एक हिस्सा
दहशत में
तन और मन
धुंआ – धुंआ
सब धुंधला
सूरज भी सहम गया
इतनी आग तो उसके पास भी नही
बिखेर गए बिखेरने वाले
बर्बाद कर गए करने वाले
ये क्या चुन लिया
कौन सी दुआ भटकी
कौन सा काला जादू फला
किसका घड़ा भरा पाप का ..?
सब विस्मित ,सब शामिल
सब गुनहगार ,सब बेकसूर
मनुष्य तब्दील हुआ कबाड़ में
बिखर गए अंग और अवयव
बचे हुए सब कबाड़ी
उठाओ ,फेंको ,दफ़नाओ
आर्तनाद करो , समेटो
बनाओ फिर से सब
कितने भी दशक लगे
नया बन ही जायेगा
नए मकान ,नए ऑफिस
नए बाजार , नए मनुष्य ,
नए हथियार , नए बम ..
बना सको तो बना लो
मनुष्य में मनुष्य तत्व
प्रकृति में प्रकृति तत्व ?
ईश्वर तो सो गया
आँख फेर कर ..
ले ही लिया भक्तों ने भी भांग प्रसाद …
फिर से होगा युद्ध
बनाओ बनाओ सब
युद्ध के लिए
नष्ट होने के लिए …
चयन तो तुम्हारा ही है
बन-बन के बिगड़ने दो
कुछ मत सोचो, गीता पढ़ो आगे बढ़ो.
7. मुक्ति
स्त्रियों! मत सुनना किसी की
मीठी सी लगने वाली बात
ख़ुश मत होना बधाइयों के सैलाब से
मत पढ़ना आज किसी की कविता
मत देखना स्टिकर से भरी हुई
सोशल मीडिया की कोई दीवार
बच्चे को पालना-सम्हालना
कोई बड़ा काम नही था
किसी पर कोई अहसान नही
वो तो तुम्हारी आत्मा का अंश था
मत महसूसना खुद को महान
तुम्हे अभिभूत करके
एक चुप की तरफ धकेला जाएगा
ईश्वर तत्व बना कर
तुम्हारे स्त्रीत्व की हत्या की साज़िश है ये …
सच कह दो आज
आज ही फुर्सत है सबको सुनने की
फिर कल से सब पीठ कर लेंगे
कह दो की नहीं होना महिमा मंडित
नहीं पुजना, नहीं चाहिए देवत्व
आदर्श और सिद्धांत के खाते से बरी होना है
कह दो कि –
“मान लो माँ को भी एक साधारण स्त्री
जान लो, स्वीकार कर लो उसकी कमजोरियाँ
उसकी अधूरी इच्छाओं को समझ लो
उसके मन की परतों को खोलो
कभी बनो उसके पिता
उसकी शैतानियों पर
लाड कर लो छोटी बच्ची मान
कभी ऐसे मित्र बन जाओ की
ख़ुशबू ले सको उसके पहले प्रेम की
आज भी वो कह सके कि कौन सबसे अच्छा लगता है
और कौन सबसे ज्यादा याद आता है ?
कभी ले चलो अकेले
किसी सिनेमा, कैफे या पार्क में
खूब बातें करके
अपनी कहो ,मेरी सुनो ..
या रहने दो ये ढोंग दुनियाभर के ..
अब इस आदर्श और देवत्व बोझ से मुक्ति दे दो
कि छटपटाहट बढ़तीं जा रही माँओं की ..
8. एक चुप
एक चुप ने पसारे अपने पैर
हर जगह पसरी है
कमरे, बिस्तर और सम्बन्धों में
फूलती है..और फूलती है
गुब्बारे की तरह ..
जब चुप बहुत बढ़ जाती है तो
कागज़ ,कलम बन जाते है कंठ और आवाज़
आकार लेती है कविता
निकल जाती है चुप की हवा
कविता की पिन से …
9 .मेरी पीठ
आजकल मेरी पीठ पर
निकल आये है
नाक, कान और आँख
कुछ लोगों को,
पता चल ही गई ये बात…!
घबराकर
अब वो समेट रहे हैं औज़ार
घिस रहे हैं हथियार ..
10. किसी स्त्री ने
किसी स्त्री ने नही बनवाया
प्रेम में …
कोई ताज महल
ना ही कोई इमारत
नही खोदा कोई पहाड़
न कोई लड़ाइयाँ लड़ीं
स्त्री के पास न धन संपत्ति है
न राज्य, न कोई सेना
ना ही अहंकार …
बलि ही चढ़ती रही
धन, युद्ध, रंजिश और
अहंकार के ….
अबला ,बेचारी, मूर्ख सुनते हुए भी
प्रेम से इतर कुछ
जमा ही नहीं कर पाई ।
कवयित्री मधु सक्सेना, जन्म – 24 अगस्त। जन्म स्थान – खांचरोद जिला उज्जैन (म.प्र.)। कला , विधि और पत्रकारिता में स्नातक ।
हिंदी साहित्य में विशारद ।
प्रकाशित काव्य संग्रह: मन माटी के अंकुर, तुम्हारे जाने के बाद, एक मुट्ठी प्रेम, पत्ते, लौटना ज़रूर
आकाशवाणी और दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण ।
मंचो पर काव्य पाठ ,कई साझा सग्रह में कविताएँ ।विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन ।सरगुजा और बस्तर में साहित्य समितियों की स्थापना । हिंदी कार्यक्रमों में कई देशों की यात्रायें ।
सम्मान..(1).नव लेखन ..(2)..शब्द माधुरी (3).रंजन कलश शिव सम्मान (4) सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान (5) प्रोफे. ललित मोहन श्रीवास्तव सम्मान – 2018 (6) वासुदेव प्रसाद खरे स्मृति सम्मान 2019..(7) कमलादेवी पराशर सम्मान (2021)(8)कुसुम कुमारी जैन वरिष्ठ लेखिका सम्मान 2023।
सम्पर्क:
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रायपुर, छत्तीसगढ़ 492001