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युवा महत्वाकांक्षा और सहज ग्रामीण जीवन संघर्ष की कथा ‘पंचायत’

नॉवल कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी के चलते दुनियां भर में कई देशों ने सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी है. भारत में भी सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा हो चुकी है. इस लाक डाउन में समय काटने के लिए लोग किताबें पढ़ रहे हैं, कुकिंग कर रहे है, अपनी पसन्दीदा फिल्मों की सूची साझा कर रहे हैं लेकिन इन सब एक्टिविटीज के बीच जो सबसे ज्यादा पॉपुलर ट्रेंड देखने को मिल रहा है वो है ‘वेब सीरीज’ का.
बीते दो सालों पर गौर करें तो डिजिटल प्लेटफार्म पर इंटरटेनमेंट सेगमेंट में वेब सीरीज ने कब्जा जमा लिया है. इसकी कई वजहें हैं. पहली तो यह कि टीवी सीरियल्स की तरह यहां वही पुराना घिसा पीटा कंटेट नहीं है, न ही एडवरटाइजमेन्ट ब्रेक.
दूसरा, टीवी सीरियल्स की तरह यहां कहानी सालों तक और हज़ार एपिसोड्स की तरह लम्बी नही खींची जाती. वेब सीरीज का एक सीजन 8 से 10 एपिसोड्स का होता है और  तेजी से भागती इस ग्लोबल जनता के मनोरंजन के लिये इससे बेहतर क्या हो सकता है.
तीसरा कि टीवी सीरियल्स और फिल्मों की तरह वेब सीरीज सेंसर बोर्ड की कैंची की पहुँच में अभी तक नहीं है. इसलिए एडल्ट, वायलेंट कंटेट भी धड़ल्ले से परोसे जा रहे है और युवा वर्ग इन्हें पसन्द भी कर रहा है.
चौथी वजह यह है कि वेब सीरीज के इस डिजिटल खजाने में सबके लिए कुछ न कुछ मौजूद है. जहां बच्चों के लिए ‘चीयर’ (नेटफ्लिक्स), ‘फेमिली रीयूनियन'(नेटफ्लिक्स) जैसी सीरीज है तो वहीं वयस्कों के लिए ‘सेक्रेड गेम्स’ (नेटफ्लिक्स), ‘मिर्जापुर'(अमेजन प्राइम) जैसे कंटेंट है. वहीं ‘स्ट्रेंटजर थिंग्स'( नेटफ्लिक्स) जैसी वेब सीरीज भी है जिन्हें बच्चे, युवा, बुजुर्ग सब देख सकते हैं.
कुल मिलाकर कहा जाए तो डिजिटल प्लेटफॉर्म  के इस बक्से में  सबके लिए कुछ न कुछ है जिससे इसका दायरा व्यापक हुआ है और होता जा रहा है.
वेब सीरीज की चर्चा हो रही है तो हाल ही में लॉक डाउन के दौरान  अमेजन प्राइम पर 3 अप्रैल को रिलीज हुई वेब सीरीज ‘पंचायत’ का जिक्र करना जरूरी हो जाता है.
दीपक मिश्रा के निर्देशन में बनी यह वेब सीरीज गांव को जस का तस परोसती है. अगर आप इस बंदी में रोमांस, क्राइम, थ्रिलर, सस्पेंस मूवी/वेब सीरीज देखकर बोर हो गए हैं तो एक बार ‘पंचायत’ का रुख करिये.
‘पंचायत’ की कहानी बलिया के फुलेरा ग्राम पंचायत को केंद्र में रखकर प्रस्तुत की गई है. एक शहरी नौजवान, जिसकी महत्वकांक्षा एमबीए करके बड़ी नौकरी पाने की और पैसे कमाने की है, जब उसकी नौकरी फुलेरा ग्राम पंचायत में बतौर पंचायत सचिव लगती है तो वो किन किन परिस्थितियों का सामना करता है.
वेब सीरीज के मुख्य पात्र अभिषेक त्रिपाठी को ‘स्वदेश’ फ़िल्म के ‘मोहन भार्गव’ के किरदार की तरह नासा की नौकरी छोड़कर गांव आकर सुधार करने वाला हीरोइक और सुधारवादी ना दिखाते हुए महत्वाकांक्षी, बड़ी नौकरी के सपने पाले हुए एक आम शहरी नौजवान जैसा होता है वैसा ही दिखाया गया है. लेकिन वेब सीरीज बेहद हल्के फुल्के अंदाज में दहेज, गांव में बढ़ती जनसंख्या, अंधविश्वास, महिलाओ के प्रतिनिधित्व के प्रश्न को उठाती ना सही दिखाती जरूर है.
मसलन , एक सीन में जब बीडीओ साहब आदेश देते है कि गांव में जगह जगह जागरूक करने वाले स्लोगन जैसे कि  ‘दो बच्चे है मीठी खीर, बाकी है बवासीर’ लिखे जाएंगे तो गांव के लोग जिनके चार पांच बच्चे है वो विरोध करते हैं.
ऐसे ही गांव में एक बारात आती है तो दूल्हा नाश्ते के पैकेट खाने से मना कर देता है क्योंकि उसके पैकेट में 5 मिठाई और  बाकी बारातियों के पैकट में 7 मिठाई होती है.
ऐसे ही छोटी छोटी घटनाओं के माध्यम से इस वेब सीरीज में बिना अतिनाटकीयता के शुद्ध और सरल हास्य परोसा गया है.
जितेंद्र कुमार ने ‘अभिषेक त्रिपाठी’ (पंचायत सचिव), रघुबीर यादव ( प्रधानपति, इनकी पत्नी असल प्रधान हैं लेकिन उ का है ना कि पिछली बार महिला सीट आयी थी इसलिए मेहरारू को खड़ा करवा दिए ) ,नीना गुप्ता(प्रधान), चन्दन रॉय ने ‘विकास'(सचिव सहायक), फैसल मलिक ने उप प्रधान का किरदार निभाया है.
जितेंद्र कुमार ने टीवीएफ की ही वेब सीरीज ‘कोटा फैक्ट्री’ के किरदार ‘जीतू भैया’ से लोगों के दिल में जगह बना ली थी. उसके बाद ‘गॉन केस’ और ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ जैसी फिल्मों में लीक से हटकर भूमिका निभाने के  बाद से वो और प्रॉमिसिंग लगने लगे हैं. पंचायत में भी उन्होंने ये सिलसिला जारी रखा है. रघुबीर यादव और नीना गुप्ता के विषय में कुछ कहने की जरूरत ही नही हैं. दोनों ही अपने किरदारो में खूब जमे हैं. नीना गुप्ता जी को कम स्क्रीन स्पेस मिला है लेकिन उतने में ही वो यकीन करा ले जाती हैं कि वह बात बात में अपने पति को ताने देने वाली गांव की कोई फुआ /चाची ही हैं.
रघुबीर यादव जिस तरह एक घड़ी असमंजस में और दूसरी ही घड़ी वोटों के लिए प्रॉब्लम सॉल्वर की भूमिका में शिफ्ट होते रहते हैं, उन्हें देखकर भारतीय गांवों के जुगाड़ू प्रधान की याद आ जाती है. इसके अलावा बड़े अधिकारियों से काम बनवाने के लिए बात बात पर अपने खेत की लौकी भिजवाने का अंदाज भी एकदम गांव से उठाया हुआ लगता है.
फैजल मलिक,  उपप्रधान जी प्रधान जी के पक्के अनुसरणकर्ता, चाटुकार के किरदार में अपने भोले चेहरे और हीहीही वाली हँसी के साथ जब भी स्क्रीन पर आए हैं दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान ला दी है.
बाकी अगर पंचायत की शुद्ध, सरल, देशी घी वाली दाल में किसी ने जानदार तड़का लगाया है तो वो हैं  ‘चन्दन रॉय’.
सचिव सहायक की भूमिका में चंदन जी की एक्टिंग एकदम एफर्टलेस लगी है. ऐसा लगता है मानो अपने गांव का कोई लड़का हो. चाल, ढाल, चेहरे के भाव एकदम गांव जवार वाले भैया जी जैसे लगे हैं. चन्दन जब ‘अभिषेक’ को ‘अभसेक’ कहते हैं तो लगता ही नहीं कि उनके कहने के अंदाज़ में कहीं कोई बनावट है.
छोटी भूमिकाओं में अंकित मोटघरे (ठेकेवाले) प्रत्येक पचौरी (बबलू) भी खूब जँचे है.
चन्दन रॉय( बिकास,सहायक सचिव ) एक इंटरव्यू के दौरान बताते हैं कि ‘ शूटिंग की लोकेशन मध्यप्रदेश की एक वास्तविक ग्राम पंचायत थी इसलिए रोजाना केवल 3 या 4 घण्टे ही शूटिंग हो पाती थी’. इसके बावजूद निर्देशक दीपक मिश्रा और स्क्रिप्ट राइटर ने डिटेलिंग में कोई कसर नही छोड़ी है.
वेब सीरीज के रिलीज के बाद चन्दन रॉय सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं. उनसे जब इस बाबत एक पत्रकार ने पूछा कि कैसा लग रहा है तो उन्होंने कहा किये प्रशंसा किसी भी पुरस्कार से बड़ी है.
तो इस बंदी में गांव जंवार, घर, दुआर को याद करने और हल्के फुल्के , स्वस्थ मनोरंजन के लिए एकबार पंचायत जरूर देखी जा सकती है.

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