उत्तम कुमार, संपादक दक्षिण कोसल
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल तथा पूर्व प्रधानमंत्री के ना रहने के बीच मैं सबसे ज्यादा नुलकातोंड मुठभेड़ को लेकर चिंतित हूं. कथित मुठभेड़ स्थल में हम चौबीस घंटे रहे. बड़े टीवी चैनलों और अखबार ने नुलकातोंग में माओवादियों के खात्मे का जो खबर चलाया है, वह गलत है. मूलनिवासियों के साथ हमारी वृहद बातचीत और गहरी जांच-पड़ताल में यह स्पष्ट हो जाता है कि यह मुठभेड़ नहीं बल्कि मूलनिवासियों को जल-जंगल-जमीन और उनके संस्कृति से बेदखल करने के लिए ऑपरेशन प्रहार-4 था. मौके पर कोई माओवादी नहीं था बल्कि सैकड़ों की संख्या में सुरक्षा बलों के जवानों को देखकर ग्रामीण भागने और छिपने की कोशिश कर रहे थे जिन पर बिना कुछ कहे और बताए गोलियां बरसा दी गईं. मरने वालों में दो-तीन नाबालिग थे.
सुकमा एसपी का बयान गलत साबित हो रहा है. पत्रकारों और सिविल सोसायटी के लोगों को स्वतंत्र रूप से इन युद्ध क्षेत्रों में जाने से पहले थाने में जानकारी देने के लिए कहा जा रहा है और बिना किसी जिम्मेदार अधिकारियों के अनुमति के जाने से रोका जा रहा है. उनके कामों में विध्न पहुंचाया जा रहा है.
हम चाहते हैं कि सच्चाई सामने आए और बड़े अखबारों के पत्रकारों से निवेदन है कि वह बिना वस्तुस्थिति जाने खबरों को अखबारों और टीवी में ना चलायें. इससे मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं. सुकमा जिले के नुलकातोंग में 6 अगस्त को हुई कथित माओवादी मुठभेड़ में 15 नक्सलियों के मारे जाने का पुलिस का दावा सरासर झूठा है. यह मुठभेड़ फर्जी है और हम इसे मुख्यमंत्री रमन सिंह के उस बयान से जोडक़र देख रहे है जहां पिछले दिनों उन्होंने माओवादियों को चेतावनी देते हुए कहा था कि मुख्यधारा में लौटो या गोली खाओ. अगर यूं ही युद्ध चलता रहा तो आदिवासियों के खात्मे के साथ लोकतंत्र भी खत्म हो जायेगा.
जो लोग मुठभेड़ में मारे गए हैं, उनके परिजनों से हमारी जो बात हुई है. उनका कहना है कि मरने वाले माओवादी नहीं थे. सुरक्षा बलों के ऑपरेशन से आक्रोशित ग्रामीणों ने परिजनों के शवों के साथ स्थानीय थाने का घेराव भी किया. ग्रामीणों में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिजन भी शामिल थे. मुठभेड़ के बाद जब शव सौंपने की बात आई तो बच्चों के माता-पिताओं ने कहा कि पुलिस ने हमारे बच्चों को षड्यंत्र करके घेरकर मार डाला है.
मुठभेड़ के बाद जब अगले दिन शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल लाया गया तो वहां मृतकों के परिजनों ने बताया कि उनके बच्चे रात को खेत-खलिहानों में सो रहे थे. ग्रामीणों ने हमें पूरी घटना बताई कि पुलिस फोर्स ने उन्हें घेरा तो वे डर कर भागे, भागने पर पुलिस ने उन्हें गोली मार दी. मरने वालों में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें गांव से निकालकर मारा गया है. यह कोई कपोल कल्पना नहीं, ‘ऐसा हम नहीं कहते, यह गांव वालों का कहना है. मारे गए कई नाबालिग हैं जिन्हें हथियारों के बारे में एबीसी नहीं मालूम हैं.
मुठभेड़ में 15 माओवादियों को मार गिराने के पुलिस के दावों की पोल अगले दिन ही खुल गई जब कोंटा में महिलाओं ने प्रदर्शन किया और कहा कि मारे गए लोग माओवादी नहीं थे. उनका कहना है कि पुलिस ने नक्सल अभियान को सफल दिखाकर प्रशंसा और आउट टर्न प्रमोशन पाने के लिए बेगुनाहों को मौत के घाट उतार दिया. वे साधारण किसान थे जिनको मार गिराए जाने के बाद पुलिस माओवादी करार दे रही है.
इस बीच पी विजय और सोनम पेंटा एक झूठा विरोध प्रदर्शन कर बेला भाटिया और नंदनी सुन्दर के ऊपर हमला करते हुए माओवादियों का साथ देने का कहानी गढऩे की कोशिश कर रहे हैं और यह बता रहे हैं कि जो बस्तर और आदिवासियों के कंधे से कंधे मिलाकर खड़े होगा उन्हें सबक सिखाया जाएगा.
हम इसकी न्यायिक जांच के साथ स्वतंत्र एजेंसी से जांच की मांग करते है.
गांव वालों ने बताया कि घटना के वक्त मौके पर कोई माओवादी नहीं था। सच तो यह है कि बड़ी संख्या में पुलिस के जवानों को देखकर निहत्थे ग्रामीण भागने और छिपने की कोशिश कर रहे थे. जवानों ने बिना चेतावनी और आत्मसमर्पन के लिए घोषणा किए बगैर सीधा उन पर गोलियां दाग दीं। इसके बाद जब जवानों को पता चला कि वे माओवादी नहीं बल्कि ग्रामीण हैं तो वे घबरा गए और अपना गुनाह छिपाने के लिए घटना के प्रत्यक्षदर्शियों को भी मारना शुरू कर दिया. कई महिलाएं एवं पुरूष घायल और लापता हैं.
मडक़ाम शुक्का (40 वर्ष) सहित कई घायल हैं। बुधरी आत्मज मडक़म रामा (22 वर्ष)अब तक लापता है। परिवार को इसकी कोई सूचना नहीं है. मडक़म देवा, लखमा और सोड़ी हांदा को गिरफ्तार किया गया. इस दौरान नाबालिग मृतक मुचाकी मुखा के परिजनों ने बताया कि मृतक मुका के पिता मुचाकी बिमल को वर्ष 2008-09 में पुलिस द्वारा मार दिया गया था. इस बार उसके बेटे को मार दिया गया है.
ग्रामीणों के मुताबिक उन्हें भी मृतकों के परिजनों से मिलने नहीं दिया जा रहा था. हम किसी तरह चकमा देकर ग्रामीणों से मिल सके हैं। हमारा यह भी कहना है कि उनसे मुलाकात की भनक लगते ही पुलिस ने एक-एक करके सभी ग्रामीणों को छिपा दिया है। इस मुठभेड़ में पुलिस ने एक महिला सहित दो माओवादियों के जिंदा पकड़े जाने की भी बात की है. सुकमा के पुलिस अधीक्षक (एसपी) का दावा है कि मंगलवार को जब ग्रामीण माओवादियों के शव लेने कोंटा थाने पहुंचे तो उन्होंने बताया कि माओवादी रविवार 5 अगस्त को गांव पहुंचे थे और ग्रामीणों की एक बैठक भी ली. उनके अनुसार, ग्रामीणों द्वारा माओवादियों के खाने-पीने का इंतजाम करने की बात भी सामने आई है.
एसपी ने कहा, ‘जब मुठभेड़ हुई तो माओवादियों के लिए खाने की व्यवस्था करने आए कुछ ग्रामीण भी वहां मौजूद थे. जवानों को अपनी ओर बढ़ता देख माओवादियों ने फायरिंग शुरू कर दी. गोलीबारी के दौरान ज्यादातर ग्रामीण मौके से भाग खड़े हुए. दो ग्रामीण हाथ ऊपर कर खड़े हो गए. निहत्थे ग्रामीणों पर जवानों ने गोली नहीं चलाई और उन्हें हिरासत में ले लिया।’
एसपी मीणा का यह बयान काफी नहीं है. गांव के ग्रामीण कुछ और ही कहानी बता रहे हैं. क्या जिला सुकमा एसपी स्वतंत्र जांच के लिए तैयार हैं ? अगर तैयार हैं तो हमें जांच पड़ताल करने दें. जिला पुलिस प्रशासन द्वारा किसी भी जांच टीम को रोकना नहीं चाहिए. पुलिस गलत होती है तो ही रोक-टोक करती है. जब 13-14 अगस्त को हम गांव की पीडि़त महिलाओं से मिलने पहुंचे तो उन्होंने बताया कि वे दो दिन से भूखे हैं. उनके परिजनों की हत्या के बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ रहा है. कई लोगों को गोली लगी हुई है जिनका इलाज नहीं हो रहा है.
इससे पहले सोनी सोरी के नेतृत्व में दल नुलकातोंग जा चुका है और अब कांग्रेस ने भी मुठभेड़ पर संदेह व्यक्त किया है और जांच के लिए 18 सदस्यीय जांच दल बनाया है. प्रदेश में आदिवासी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अरविंद नेताम ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि जिस तरह के तथ्य सामने आ रहे हैं, उससे मुठभेड़ की प्रमाणिकता पर संदेह खड़ा हो रहा है. सवाल यह है कि मुठभेड़ के तुरंत बाद ग्रामीणों का थाने पहुंच जाना, कई लोगों का नाबालिग होना, मुख्यमंत्री और एसपी के बयान कई तरह के संदेह पैदा करते हैं. मुख्यमंत्री का बयान इस मुठभेड़ के परिप्रेक्ष्य में इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि उन्होंने माओवादियों को लेकर पिछले दिनों कहा था कि मुख्यधारा में लौटो या गोली खाओ। इसलिए कांग्रेस उक्त मुठभेड़ को फर्जी ठहरा रही है.
मुठभेड़ के बाद उसे फर्जी करार देते हुए नाराज ग्रामीणों और परिजनों ने कोंटा थाने तक पैदल मार्च निकाला और आधी रात को थाने का घेराव कर दिया। बाद में पुलिस ने समझाकर उन्हें वहां से रुखसत किया और उन्हें हिदायत दी कि वे अन्य लोगों से ज्यादा बात न करें। पुलिस पकड़े गए कथित माओवादी देवा को 5 लाख रुपये का ईनामी बता रही है. बताया जा रहा है कि देवा को अदालत ने 15 दिनों के लिए जेल भेज दिया है. मामले में पुलिस ने रिमांड के लिए मांग नहीं की है.
मुठभेड़ को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में भी दायर की गई है जिस पर अगली सुनवाई 29 अगस्त को तय किया है. सिविल लिबर्टी कमेटी के नारायण राव ने मामले में याचिका दायर की है। सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की पीठ करेगी.
पहले मडक़म हिड़में को बलात्कार कर गोली मार दी गई। कुछ महीने पहले रामे को मछली पकड़ते हुए गोली मार दी गई थी. घायल स्थिति में बाद में माओवादी बताकर जेल में डाल दिया गया है. मुचाकी बीमल को मार दिया गया. जुलाई माह में मडक़ागुड़ेमू, दुलेड़, एर्रापल्ली, मेट्टागुड़ा राशपल्ली, बोटटेलोंग जैसे गांवों में सुरक्षा बलों ने हमला किया।. मेट्टागुड़ा के तीन महिलाओं के साथ बलात्कार का भी आरोप है. छह अगस्त को बड़े केड़वाल, टोंडामरका गांवों पर ग्रामीणों की सम्पत्ति लूट ली गई और नुलकातोंग कथित मुठभेड़ क्षेत्र में भी जबरन जान-माल को नुकसान पहुंचाया गया। यही नहीं कई गभर्वती महिलाओं के साथ अभद्रतापूर्ण व्यवहार किया गया.
सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच सीजफायर होनी चाहिए. सैनिकों को बैरकों में वापस बुलाया जाए और आदिवासी क्षेत्रों से सुरक्षा कैम्पों को हटाया जाए। माओवादियों और सरकार के बीच नि:शर्त बातचीत का रास्ता अपनाया जाए।
नुलकातोंग मुठभेड में मारे गये लोग
1. गोमपाड़ सोयम सीता 24 धर्मे रामा गुर्रा
2. सोयम चेन्द्रा 24 सुब्बी चेंसाल गुर्रा
3. कड़ती अड़मा 25 हिड़मे देवाल कर्का
4. माड़वी नन्दाल 27 मुचो हिड़मा कामपेदागुड़ा
5. कडती आयत 12 लिंगे सुक्का कर्का
6. माडवी देवाल 29 मंगली वारे खूना
7. नुलकातोंग सोड़ी प्रभू 26 सुकड़ी — घोरेल
8. मडक़ाम टिंकू 26 बुदरी हिड़मा नेंगाम
9. ताती हुंगा 27 — हुंगा सिंगाम
10. मुचाकी हिड़मा 17 — लखमा
11. मुचाकी देवाल 19 सन्नी हुर्राल घोरेल
12. मुचाकी मूखा 13 सुकडी बोटी —
13. वेलपोस्सा वंजाम हुंगा 27 देवे नन्दा घोरेल
14. किल्द्रेम माडवी हुंगा 25 कोसी इंगा तोगूंम
15. एटेगट्टा माड़वी बामून 26 गंगी जोगा