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पूँजी की कोई भी संस्था लोकतांत्रिक नहीं होती है : प्रो गोपाल प्रधान

मऊ. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के जयंती व राहुल सांकृत्यायन की पुण्यतिथि पर राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ के लाइब्रेरी हाल में “परंपरा की नव्यता बरास्ते बुद्ध, राहुल सांकृत्यायन, डॉ बी आर अंबेडकर” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।

गोष्ठी का आधार वक्तव्य रखते हुए डॉक्टर संजय राय ने अंबेडकर और राहुल सांकृत्यायन के सामाजिक संघर्षों और सामाजिक सरोकारों पर चर्चा करते कहा कि दोनों ने मनुष्य को मनुष्यता एवं मानवीय गरिमा दिलाने के लिए एक बड़ी लड़ाई लड़ी है। उन्होंने केवल विचार ही नहीं दिया, सड़क पर खड़े होकर संघर्ष किया। प्रश्न यह है कि जब आज हम राहुल सांकृत्यायन और डॉ अंबेडकर को याद कर रहे हैं तो केवल हम उनकी जन्मतिथि और निर्वाण तिथि को मिलाकर किसी परंपरा का चयन हम नहीं कर सकते। परंपरा का चयन हमारे जीवन के प्रश्नों और ज्वलंत प्रश्नों में होता है।

गोष्ठी को संबोधित करते हुए आजमगढ़ से आए विशेष अतिथि जयप्रकाश नारायण ने कहा कि बिना किसी नायक से मुठभेड़ किए मनुष्य की विकास यात्रा आगे बढ़ नहीं सकती। हमें आज नायकों से मुठभेड़ में जाना होगा। इसलिए आज के प्रश्न में यह सवाल बहुत बड़ा है कि आप उससे मुठभेड़ करते हैं कि नहीं। परंपरा के नाम पर नवरात्रि के दस दिन में भारतीय लोकतंत्र की जड़ें खोद कर फेंक दी गई। न कानून, न राज, न संस्थान, न कोई मूल्य,न कोई भय। सारी चीजें बुलडोजर के अधीन ला दी गई हैं। राहुल सांकृत्यायन और डॉक्टर अंबेडकर बीसवीं सदी के नायक हैं। बीसवीं सदी बहुत जटिल और तूफानी सदी है जो 18वीं सदी के तूफानी दौर से आगे बढ़ी है। उन्होंने कहा कि अब पूंजी श्रम को मुक्त करना चाहती है। धर्म आज के सवालों को समाधान नहीं हो सकता चाहे उसमें कितनी भी मानवीय मूल्य हो।

गोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रोफ़ेसर गोपाल प्रधान ने कहा कि पूँजीवाद की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह हमारे दिमाग में यह विचार स्थापित कर देती है कि वह शाश्वत है, हमेशा से पूंजी की जरूरत रही है मनुष्य को, इसलिए पूंजी हमेशा बनी रहेगी। कोई भी जो व्यवस्था होती है वह सबसे पहले मनुष्य के दिमाग पर इसी तरह से कब्जा जमा लेती है कि वह शाश्वत है, मानव स्वभाव के अनुकूल है वह हमेशा बनी रहेगी। यह भी कि पूंजी ही मनुष्य के स्वभाव का स्वभाविक तंत्र है। जो भी शासन हो वह हमेशा इस बात को स्थापित करने की कोशिश करता है कि उसका तंत्र शाश्वत है हमेशा से बना हुआ है, मनुष्य के शासन के अनुकूल है इसलिए उसमें बदलाव नहीं हो सकता। जबकि परिवर्तन ही एक स्थाई तत्व है। परिवर्तन सत्य है। परिवर्तन ही किसी अत्याचारी शासन के प्रतिरोध का भी रास्ता तैयार करता है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में एक तरह का वर्ण व्यवस्था जन्म ले रही है क्योंकि बड़े -बड़े लोगों के बेटे ही बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ सकते है। जो लोकतंत्र है सीमित ही सही उस लोकतंत्र के निर्माण में पूँजीपतियों का रत्ती भर योगदान नहीं है क्योंकि पूँजी की कोई भी संस्था लोकतांत्रिक नहीं होती है। पूँजी के स्वभाव में ही लोकतंत्र नहीं है इसलिए उसने हमेशा लोकतंत्र के साथ एक दुश्मनी बरती है।

प्रो गोपाल प्रधान ने कहा कि परंपरा को फिर से एक नवीनता प्रदान करने का समय है। अंबेडकर समर्थक ताकतें भी अपनी तरह से उस परंपरा को नवीनता प्रदान कर रही हैं। हमें उनको समझने की जरूरत है और खुद भी यह जो संघर्षों की परंपरा है लोकतंत्र के पक्ष में इस पूँजी के हाथ से छीन लेना है। पूँजी ने लोकतंत्र कभी नहीं दिया है। वह केवल और केवल मजदूरों के संघर्ष के बल से हासिल हुआ है।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में सेवानिवृत्त जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी शिवचंद राम ने कहा कि आखिर वह कौन सी परंपराएं थी कौन सी मूल्य थीं जिनके रास्ते गौतम बुद्ध, राहुल और अंबेडकर ने अन्याय , शोषण गैर बराबरी की प्रचलित मानव विरोधी परंपरा को तोड़ने का कार्य किया। यदि कोई परंपरा जिसे भले धर्म मान्यता दे रहा हो, बड़ी संस्थाएं भी मान्यता दे रही हों, बहुत सारे लोग भी मान्यता दे रहे हों अगर मानवता विरोधी है, आज के आधुनिक जीवन मूल्य स्वतंत्रता समता, बंधुत्व, न्याय की विरोधी हो तो उसको जितनी जल्दी हो सके बेरहमी से बेदर्दी से उसे तोड़ देने का संकल्प लेना चाहिए।

गोष्ठी में वीरेंद्र यादव एडवोकेट, प्रेमचंद कौशल एडवोकेट ,रमेश मौर्य, रामविलास भारती ने भी अपने अपने विचार रखें।

अंत में कथाकार हेमंत कुमार ने गोष्ठी में आए हुए सभी मेहमानों , अतिथियों का आभार व्यक्त किया। गोष्ठी का संचालन जयप्रकाश धूमकेतु ने की ।

गोष्ठी में प्रमुख रूप से अजय राय, मोती प्रधान, अनुभव दास, अब्दुल अजीम खां ,राम अवतार सिंह, अर्चना उपाध्याय , विरेंद्र कुमार , ओमप्रकाश सिंह, रामकमल राय, रामु प्रसाद, अरविंद मूर्ति ,बसंत कुमार ,अजय कुमार मिश्रा, कल्पनाथ आदि शामिल रहे।

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