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किसान विरोधी तीन अध्यादेशों को वापस लेने की मांग को लेकर पूरे देश में आंदोलन

संसद सत्र के पहले दिन 14 सितम्बर को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के आह्वान पर देश भर में किसानों ने आंदोलन किया. दिल्ली के जंतर मंतर से देश भर के गाँवों तक लाखों किसानों ने मोदी सरकार द्वारा देश की खेती किसानी को कारपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का गुलाम बनाने की नीतियों का विरोध किया. किसान मोदी सरकार के किसान विरोधी तीन अध्यादेशों को वापस लेने, बिजली सुधार कानून वापस लेने, पैट्रोल डीजल की कीमतों को कम करने और एक देश एक एमएसपी की मांग कर रहे थे.

एआईकेएससीसी से जुड़े 250 किसान संगठनों के अलावा भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) ने भी इन तीनों अध्यादेशों की वापसी की मांग पर विरोध स्वरूप धरना-प्रदर्शन आयोजित किए. इस आंदोलन में किसानों की गोलबंदी देश भर में देखी गई. सबसे ज्यादा 15 हजार किसान बरनाला (पंजाब) में जुटे जहां अखिल भारतीय किसान महासभा से जुड़ी पंजाब किसान यूनियन और भारतीय किसान यूनियन ढकोंदा ने मुख्य रूप से जन गोलबंदी की थी. बरनाला की इस विशाल रैली को किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुलदू सिंह ने संबोधित किया. पंजाब में पांच शहरों में हजारों की संख्या में किसानों ने प्रदर्शन किया. किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड राजा राम सिंह पटना के कार्यक्रम थे.

दिल्ली के जंतर मंतर पर भी अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति से जुड़े किसान नेताओं ने प्रदर्शन किया. यहां एआईकेएससीसी के राष्ट्रीय संयोजक वीएम सिंह, स्वराज अभियान के योगेंद्र यादव, किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का. प्रेमसिंह गहलावत, राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा,

एआईकेकेएमएस के सत्यवान, ए  आईकेकेएस के कामरेड विमल,  एआईकेएस के भगत सिंह, कामरेड धरमपाल मुरादाबाद आदि दर्जनों नेता शामिल हुए. जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक अभिक शाह और किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कार्तिक पाल और राष्ट्रीय सचिव जयतु देशमुख कोलकाता में, भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत दिल्ली आते समय गाजीपुर बॉर्डर गाजियाबाद में पुलिस द्वारा रोक दिए गए. उन्होंने अपने साथियों के साथ वहीं धरना दिया.

किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष फूलचंद ढेवा, राष्ट्रीय सचिव रामचन्द्र कुलहरि राजस्थान में, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जय प्रकाश नारायण राय उत्तर प्रदेश में, राष्ट्रीय सचिव अशोक प्रधान उड़ीसा में, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डी हरिनाथ आंध्र प्रदेश में, राष्ट्रीय सचिव पूरन महतो झारखंड में प्रदर्शनों का नेतृत्व किए. बिहार में किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष विशेश्वर यादव, राज्य सचिव राम आधार सिंह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष केडी यादव, शिव सागर शर्मा, कार्यालय सचिव राजेन्द्र पटेल,  राज्य सह सचिव उमेशसिंह सहित तमाम नेताओं ने विरोध कार्यक्रमों का नेतृत्व किया.

बिहार से किसान महासभा के राज्य सचिव कामरेड राम आधार सिंह की रिपोर्ट के अनुसार एआईकेएससीसी के आह्वान पर अखिल भारतीय किसान महासभा बिहार इकाई ने दर्जनों स्थानों पर कार्यक्रम को लागू किया. पटना के गरदनी बाग धरना स्थल पर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर से संयुक्त रुप से कार्यक्रम को सफल किया गया कार्यक्रम में मार्च निकालकर उक्त स्थान पर पहुंचा गया तथा विरोध सभा आयोजित की गई जिसमें अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिव सागर शर्मा राज्य सचिव मंडल सदस्य उमेश सिंह तथा राज्य कार्यालय सचिव अविनाश पासवान भाग लिया. बेगूसराय में भी समन्वय समिति के बैनर से मार्च निकाला गया तथा प्रधानमंत्री का पुतला दहन किया गया इसमें महासभा के राज्य कमेटी सदस्य बैजू सिंह शामिल हुए.

 

पटना सिटी में जला किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर से कार्यक्रम सफल हुआ जिसका नेतृत्व किसान महासभा के राज्य कमेटी सदस्य शंभूनाथ मेहता तथा मनोहर लाल व चंद्र भूषण शर्मा ने किया. पटना ग्रामीण के 9 प्रखंडों के दर्जनों गांव में कार्यक्रम सफल हुआ. नौबतपुर में राज्य सह सचिव डा कृपानारायण सिंह पालीगंज में रविंद्र सिंह व अन्य साथी भाग लिए. वैशाली जिला के राजापाकर ब्लॉक के रंदहा गांव में राज्य अध्यक्ष विशेश्वर यादव तथा इसी जिला के बहुआरा गांव में रामनाथ सिंह ने अपने साथियों के साथ कार्यक्रम में भाग लिया. भोजपुर जिला के 9 प्रखंडों में कार्यक्रम आयोजित की गई. अगिया व चंद्रदीप सिंह राज्य उपाध्यक्ष भाग लिए. नवादा जिला समाहरणालय पर प्रदर्शन किया गया.

प्रदर्शन में किशोरी प्रसाद राज्य कार्यकारिणी सदस्य भाग लिया. शेखपुरा में राज्य परिषद सदस्य कमलेश कुमार मानव भाग लिया. नालंदा जिला के थरथरी ब्लॉक अंतर्गत धर्मपुर गांव में राज्य कमेटी सदस्य मुनीलाल यादव सहित दर्जनों लोग भाग लिया. अरवल जिला के निगमा गांव में राज्य सचिव सह राष्ट्रीय सचिव रामाधार सिंह दर्जनों किसानों  के साथ प्रतिवाद दिवस में भाग लिया.

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़, गोरखपुर, राय बरेली, लखीमपुर खीरी, चंदोली, सोनभद्र, गाजीपुर, मथुरा, मुरादाबाद, जालौन आदि में, उत्तराखंड के नैनीताल व अल्मोड़ा जिलों में, झारखंड के रामगढ़, गिरीडीह आदि जिलों में, उड़ीसा के भुवनेश्वर, रायगढ़ा, पूरी आदि जिलों में, राजस्थान के झुंझुनू जिले के ठिन्चोली, चारावास, झारोड़ा, घरडाना आदि में धरना दिया गया. आंध्र प्रदेश, पान्डूचेरी, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा में भी अखिल भारतीय किसान महासभा ने कार्यक्रम आयोजित किए. तमिलनाडु में किसान महासभा की यूनिट ने किसानों की मांगपत्र पर 30 हजार किसानों के हस्ताक्षर कराए हैं.

14 सितम्बर 2020 को अपने आन्दोलन के माध्यम से किसानों ने देश भर से देश के महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन प्रेषित किए जो इस प्रकार है –

 “ हम भारत के किसान, अपने संगठन ’अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, एआईकेएससीसी’, जिसके 250 से अधिक किसान तथा कृषि मजदूर संगठन घटक हैं, आपको यह पत्र लिखकर यह उम्मीद कर रहे हैं कि भारत की सरकार ने कोरोना लाकडाउन के दौरान जो तेज हमला देश भर के किसानों पर किया है, उसका विरोध करने में और किसानों को बचाने में आप हमारा साथ देने की कृपा करेंगे. कई सालों से हम इन समस्याओं को उठाते रहे हैं और उम्मीद करते रहे हैं कि सरकार इन्हें हल करेगी और अगर नहीं हल करेगी तो कम से कम विपक्षी दल इन सवालों पर किसानों का साथ देंगे. 

हम बताना चाहते हैं कि इस बीच जैसे-जैसे कोविड-19 महामारी आगे बढ़ती गयी है, हमने कड़ी मेहनत करके यह सुनिश्चित किया है कि देश के खाद्यान्न भंडार भरे रहें, तथा इतना पर्याप्त अनाज देश में मौजूद है कि किसी भी नागरिक को भूखा रहने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यही वह आधार है जिस पर हम खड़े होकर उम्मीद करते हैं कि आप सब एक आवाज में सुनिश्चित करेंगे कि देश के कड़ी मेहनत करने वाले किसान व मजदूर, जो देश की कुल श्रमशक्ति का आधे से ज्यादा हिस्सा हैं, इस वजह से संकट का सामना ना करें कि उनकी समस्याओं को किसी ने सुना ही नहीं. 

हमें इस बात से बहुत निराशा हुई कि जब केंद्र कि मोदी सरकार ने अपने कृषि सुधार पैकेज की घोषणा की, तो उसमें ना केवल हमारी समस्याओं को सम्बोधित नहीं किया गया, बल्कि उन्हें बढ़ा दिया गया है. सरकार ने एक ओर तीन नये अध्यादेश पारित किये हैं जो ग्रामांचल में तमाम किसानी की व्यवस्था को, खाद्यान्न की खरीद, परिवहन, भण्डारण, प्रसंस्करण, बिक्री को, यानी तमाम खाने की श्रंखला को ही बड़ी कम्पनियों के हवाले कर देगी. किसानों के साथ छोटे दुकानदारों तथा छोटे व्यवससियों को बरबाद कर देगी. इससे विदेशी कम्पनियां व घरेलू कारपोरेट तो मालामाल हो जाएंगे, पर देश के सभी मेहनतकश, विशेषकर किसान नष्ट हो जाएंगे. 

अमल किये गए यह तीन किसान विरोधी अध्यादेश दिनांक 05.06.2020 को जारी किये गए थे और अब इन्हें संसद में पारित कराकर कानून की सूरत देने की योजना है. इन तीनों अध्यादेशों, (क) कृषि उपज, वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020; (ख) मूल्य आश्वासन पर (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा अध्यादेश 2020; (ग) आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) 2020 को वापस लिया जाना चाहिए और इन्हें कानून नहीं बनना देना चाहिये. ये अध्यादेश अलोकतांत्रिक हैं और कोविड-19 तथा राष्ट्रीय लाकडाउन के आवरण में अमल किये गए हैं. ये किसान विरोधी हैं. इनसे फसल के दाम घट जाएंगे और बीज सुरक्षा समाप्त हो जाएगी. इससे उपभोक्ताओं के खाने के दाम बढ़ जाएंगे. खाद्य सुरक्षा तथा सरकारी हस्तक्षेप की सम्भावना समाप्त हो जाएगी. ये अध्यादेश पूरी तरह भारत में खाने तथा खेती व्यवस्था में कॉरपोरेट नियंत्रण को बढ़ावा देते हैं और उनके जमाखोरी व कालाबाजारी को बढ़ावा देंगे तथा किसानों का शोषण बढ़ाएंगे. किसानों को वन नेशन वन मार्केट नहीं वन नेशन वन एमएसपी चाहिए.

दूसरा बड़ा खतरनाक कदम है बिजली बिल 2020. इस नए कानून में गरीबों, किसानों तथा छोटे लोगों के लिए अब तक दी जा रही बिजली की तमाम सब्सिडी समाप्त हो जाएगी, क्योंकि सरकार का कहना है कि उसे अब बड़ी व विदेशी कम्पनियों को निवेश करने के लिए प्रोत्साहन देना है और एक कदम उसमें उन्हे सस्ती बिजली देना भी है. इस लिए अब सभी लोगों को एक ही दर पर, बिना स्लेब के लगभग 10 रुपये प्रति यूनिट बिजली दी जाएगी. किसानों की सब्सिडी बाद में नकद हस्तांतरित की जाएगी. केन्द्र सरकार को यह बिल वापस लेना चाहिए कोरोना दौर का किसानों, छोटे दुकानदारों, छोटे व सूक्ष्म उद्यमियों तथा आमजन का बिजली का बिल माफ करना चाहिए. डीबीटी योजना को नहीं अमल करना चाहिए.

जब भाजपा की सरकार 2014 में बनी थी, उस समय से अब तक डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 28 रुपए लीटर व पेट्रोल पर 24 रुपये लीटर बढ़ा दी गयी है, जिसके कारण वैट ड्यूटी भी बढ़ गयी है, हालांकि तब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल के दाम 106 डालर प्रति बैरल थे और आज 40 डालर प्रति बैरल हैं. इसके बावजूद डीजल पेट्रोल के दाम केंद्र की सरकार ने बढ़ा रखे हैं. केंद्र सरकार देश के गरीबों से, खासतौर से किसानों से 52 रुपये प्रति लीटर डीजल व पेट्रोल के वसूल रही है और उनका जीना मुश्किल किया हुआ है. इस परिस्थिति में हम आपको यह पत्र लिख रहे हैं इस उम्मीद के साथ कि आप इन तीनों अध्यादेशों का, बिजली बिल 2020 और डीजल के दाम में टैक्स घटाकर उसका दाम आधा कराएंगे ” . 

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