समकालीन जनमत
स्मृति

मीना राय का साधारण जीवन असाधारणता का उदाहरण – वंदना मिश्र

लखनऊ। ‘समकालीन जनमत’ की प्रबंध संपादक और जसम उत्तर प्रदेश की वरिष्ठ उपाध्यक्ष कामरेड मीना राय का अचानक जाना उनके साथ के लोगों को नि:शब्द कर देने वाला रहा है। ऐसे ही गमगीन माहौल में 24 नवम्बर को लखनऊ में उनकी याद में स्मृति सभा का आयोजन जसम, एपवा और भाकपा-माले की ओर से लोहिया मजदूर भवन, लखनऊ में किया गया।

उन्हें याद करते हुए कई साथियों का गला भर आया। भाकपा माले के वरिष्ठ नेता ईश्वरी प्रसाद से बोलना ही संभव नहीं हो पा रहा था। बाद में अपने को संयत करने के बाद छात्र जीवन की उन यादों को साझा किया जिसमें मीना राय की भूमिका थी।

लाल बहादुर सिंह ने भी विस्तार से उनके व्यक्तित्व के विविध आयाम पर प्रकाश डाला और बताया कि ‘समर न जीते कोय’ के दूसरे हिस्से का तीन खण्ड लिखा। उसे आगे लिखना था। उनके जाने से ऐसे बहुत से काम अधूरे रह गए। उन्होंने कहा कि उनके संपर्क में तीन से चार पीढ़ियां रही हैं जिनके लिए वे मीना राय नहीं मीना भाभी थीं।

स्मृति सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार और सोशल एक्टिविस्ट वन्दना मिश्र ने की। उन्होंने जनसंदेश टाइम्स में प्रकाशित ‘समर न जीते कोय’ के अंश की चर्चा करते हुए कहा कि उनकी साधारणता में असाधारणता थी। कठिनाइयों के आगे हार नहीं मानी और संघर्षों के दौरान अपने को बदला। समता व अंकुर को ही नहीं अनेक साथियों को तैयार किया।

स्मृति सभा की शुरुआत जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने की। उनका कहना था कि वे परंपरावादी व सामंती पारिवारिक पृष्ठभूमि से आई थीं। पति क्रांतिकारी पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे । ऐसे में उन्होंने जीवन की कठिनाइयों से जूझते हुए अपनी राह बनाई। साथियों का जिस तरह ख्याल रखा, उन्हें तैयार किया, उसे देखते हुए उनमें गोर्की के उपन्यास ‘मां’ की याद हो आती है। पुराना कटरा वाले घर को उन्होंने कम्यून में बदल दिया था । अपने को डीक्लास करना आसान नहीं होता। यह खूबी सबके लिए अनुकरणीय है।

‘जनसंदेश टाइम्स’ के प्रधान संपादक सुभाष राय, कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर, भाकपा-माले के राज्य स्टैंडिंग के सदस्य कामरेड रमेश सिंह सेंगर, एपवा की मीना सिंह व कमला गौतम, आइसा के शशांक, आल इंडिया वर्कर्स कौंसिल के ओ पी सिन्हा और मंदाकिनी राय ने उनके राजनीतिक व सांस्कृतिक आंदोलन में उनके असाधारण गुणों तथा सामाजिक योगदान की चर्चा करते हुए उनके साथ की यादों को साझा किया।

सभी का कहना था कि उनका जाना ऐसे समय में हुआ है जब उनकी सबसे अधिक जरूरत थी। वे फासीवाद विरोधी संघर्ष की अगली कतार में एक जिम्मेदार साथी की तरह मजबूती से डटी थीं जो अन्य साथियों को प्रेरित करने वाला रहा है। इस विकट समय में उनका जाना सामाजिक व राजनीतिक बदलाव के संघर्ष में अपूर्णीय क्षति है।

स्मृति सभा का संचालन जसम लखनऊ के सचिव फ़रज़ाना महदी ने किया। उनका कहना था कि दुर्गा भाभी की तरह साथियों के बीच वे मीना भाभी के रूप में लोकप्रिय रही हैं। इस मौके पर उपस्थित सभी ने उनकी तस्वीर पर फूल चढ़ाए तथा दो मिनट का मौन रखकर उनके प्रति अपना श्रद्धा सुमन अर्पित किया।

 

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