समकालीन जनमत
कुलपति प्रो अरविन्द कुमार अग्रवाल (फाइल फोटो, स्रोत-एमजीसीयू वेबसाइट)
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महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के कुलपति धमकी देते हैं -कौओं की तरह टांग दिये जाओगे

पटना/ नई दिल्ली. महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय, मोतिहारी, बिहारके शिक्षक संघ ने कुलाध्‍यक्ष (राष्‍ट्रपति) को पत्र भेजकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अरविन्द कुमार अग्रवाल पर गंभीर आरोप लगते हुए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है. इस पत्र में शिक्षक संघ ने कुलपति पर  परिवीक्षा अवधि में शिक्षकों को बर्खास्‍त करने की धमकी देने, आरक्षण के नियमों का खुला उल्‍लंघन करने, कारण बताओ नोटिसों के द्वारा विश्‍वविद्यालय में आतंकी माहौल बनाने, यौन उत्‍पीड़न की झूठी शिकायतों द्वारा शिक्षकों का मानसिक उत्‍पीड़न करने, शिक्षकों के खिलाफ विद्यार्थियों का इस्‍तेमाल करने, अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने में भाई-भतीजावाद करने,  विश्‍वविद्यालय के सर्वोच्‍च पदों को खाली रखने, अकादमिक कलैंडर न होना और सत्र 2018-19 में कोई प्रवेश ही न लिए जाने का गंभीर आरोप लगाया है. शिक्षक संघ ने कहा है की कुलपति शिक्षकों को धमकी देते हैं कि –कौओं की तरह टांग दिये जाओगे’। संघ ने लखा है कि शिक्षक लगभग डेढ़ साल से यंत्रणा में जी रहे हैं और अब वे इस निष्‍कर्ष पर पहुँच चुके हैं कि अब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। पत्र के साथ कुलपति पर लगाये गए आरोपों के बारे में प्रमाण भी भेजे गए हैं.

 राष्ट्रपति को भेजा गया शिक्षक संघ का पत्र

 

शिक्षक संघ विश्‍वविद्यालय के कुलाध्‍यक्ष महामहिम राष्‍ट्रपति महोदय (भारत गणराज्‍य), से महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय की आपात स्थिति में त्‍वरित हस्‍तक्षेप हेतु प्रार्थना करता है :

महामहिम जी,

            विश्‍वविद्यालय के एक शिक्षकों की तरफ से यह शिक्षक संघ आपका ध्‍यान हमारे विश्‍वविद्यालय – महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय, बिहार में उत्‍पन्‍न आपातकालीन स्थिति और गतिरोध की तरफ आकर्षित करते हुए आपसे अपेक्षित हस्‍तक्षेप की प्रार्थना करता है। आपके अवलोकनार्थ शिक्षक संघ आपको सूचित करता है कि इस विश्‍वविद्यालय में इसके उद्घाटन अर्थात 3 अक्‍टूबर 2016 से लेकर अब तक भय का माहौल व्‍याप्‍त है। यहाँ पर आये दिन शिक्षकों के संविधान प्रदत्‍त मौलिक अधिकारों का हनन होता आ रहा है जिसमें सबसे बड़ी भूमिका विश्‍वविद्यालय के कुलपति तथा प्रशासन की है। भारत के संविधान की धारा 12 से लेकर 35 तक भारत के हर एक नागरिक को जो विभिन्‍न मौलिक अधिकार प्रदत्‍त किये गये हैं, उनमें से ज्‍यादातर का किसी न किसी रूप में इस विश्‍वविद्यालय में कुलपति तथा प्रशासन द्वारा हनन किया गया है और आज की तारीख तक यह प्रवृत्ति बदस्‍तूर जारी है।

डॉ. संजय की मॉब लिंचिंग से पहले का सबसे ताजा मामला जंतु विज्ञान के शिक्षक डॉ. बुद्धिप्रकाश जैन का था जिनको अनापत्ति प्रमाणपत्र मांगने पर कारण बताओ नोटिस बेबुनियाद कारण गढ़ते हुए जारी कर दिया गया। इसके चलते वह शिक्षक मानसिक अवसाद में चला गया।  विश्‍वविद्यालय प्रशासन ने उन पर किसी दूसरे विश्‍वविद्यालय के विज्ञापन भर्ती नियमों की अनुपालना न करने तथा तथ्‍यों को छुपाकर दूसरे विश्‍वविद्यालय में नौकरी हेतु परीक्षा देने का हवाला देकर यह कारण बताओ नोटिस 29 मई 2018 को जारी किया था। इस संदर्भ में प्रशासन ने केन्द्रीय सिविल सेवाएँ (आचरण) नियमावली, 1964 (सीसीएस 1964) की दफा 3 का हवाला दिया था। किंतु वह कारण बताओ नोटिस सरासर बेबुनियाद था। जहाँ तक दूसरे विश्‍वविद्यालय के भर्ती नियमों का सवाल है, तो वे इस विश्‍वविद्यालय पर लागू नहीं होते। और जहाँ तक सीसीएस 1964 की दफा 3 के संदर्भ में तथ्‍यों को छिपाने की बात है तो सनद रहे कि तथ्‍य छिपाये नहीं गये, बल्कि तथ्‍य बताया नहीं गया था। और उचित समय आने पर शिक्षक द्वारा स्‍वयं इस तथ्‍य से विश्‍वविद्यालय प्रशासन को अवगत भी करा दिया गया था। यह कारण बताओ नोटिस शिक्षकों को गुलाम बनाये रखने के लिए विश्‍वविद्यालय के उद्घाटन दिवस से जारी एक व्‍यापक षड्यंत्र का ही एक नमूना था। य‍ह कारण बताओ नोटिस संविधान द्वारा प्रदत्‍त रोजगार की स्‍वतंत्रता के मूल अधिकार (अनुच्‍छेद 16) और सम्‍मानपूर्व निजी जीवन निर्वाह के मूल अधिकार अनुच्‍छेद 21 का भी उल्‍लंघन है। विदित हो कि अनुच्‍छेद 13 कहता है कि कोई ऐसा कानून या उस कानून के तहत किसी कार्यालय द्वारा जारी किया गया पत्रादि स्‍वत: अप्रासंगिक और खारिज हो जायेगा जो संविधान प्रदत्‍त मौलिक अधिकारों की अवहेलना करता हो।

विश्‍वविद्यालय की शुरुआत से लेकर अब तक किस प्रकार इन मौलिक अधिकारों की हत्‍या होती आ रही है, उसके कुछ उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं :

परिवीक्षा अवधि में बर्खास्‍तगी के डर के साये में घुट-घुटकर जीते शिक्षक : महामहिम को विदित हो कि विश्‍वविद्यालय के कुलपति और प्रशासन द्वारा सार्वजनिक मंचों से अनेकों बार सभी शिक्षकों को परिवीक्षा अवधि से लेकर परिवीक्षा अवधि समाप्‍त होने के बाद भी लगातार नौकरी से निकाल देने की धमकियाँ दी जाती रही हैं। इससे शिक्षकों को जिस भयावह यंत्रणा से गुजरना पड़ा, वह अक‍थनीय है।

  • कुलपति और प्रशासन द्वारा परिवीक्षा अवधि में शिक्षक-शिक्षिकाओं को बार-बार चेतावनी दी गई कि आप विवाह नहीं कर सकते और आपको छुट्टी नहीं दी जायेगी। और जो विवाह करने छुट्टी पर गये भी तो उन्‍हें आकस्मिक अवकाश लेने के लिए मजबूर किया गया।
  • महामहिम को विदित हो कि बर्खास्‍तगी की धमकियाँ ही नहीं दी गई बल्कि उन्‍हें दो शिक्षकों – डॉ. अमित रंजन तथा डॉ. शशिकांत रे पर अमलीजामा भी पहनाया गया। ज्ञातव्‍य है कि उस समय शिक्षकों, विद्यार्थियों और अधिशासी परिषद के दबाव में बिना शर्त वापस भी लिया गया।
  • प्रशासन के अनुचित दबाव में कई शिक्षकों को अपना त्‍यागपत्र देने के लिए मजबूर होना पड़ा, जैसे – डॉ. संदीप कुमार, श्री अतुल त्रिपाठी, श्री ओमप्रकाश गुप्‍ता, डॉ. आर्तृत्राण पाल आदि। कई अन्‍य अध्‍यापक भी हैं जिन्‍होंने इस्‍तीफा दिया है, किंतु आज भी प्रशासन के भय से चुप बैठे हुये हैं।
  • महामहिम के समक्ष में निवेदन है कि श्री अतुल त्रिपाठी जी का इस्‍तीफा आज भी प्रशासन के पास है और डॉ. बुद्धिप्रकाश को जारी किये गये कारण बताओ नोटिस के संदर्भ में जब वे विश्‍वविद्यालय के कुलपति से मिलने गये तो उन्‍हें कुलपति द्वारा बेइज्‍जत किया गया। उन्‍हें बोला गया कि वे चाहे जो कर लें, उनका इस्‍तीफा फाड़ा नहीं जायेगा। श्री अतुल त्रिपाठी को डर है कि भविष्‍य में उनके इस्‍तीफे का उन्‍हीं के खिलाफ दुरुपयोग किया जायेगा।
  • महामहिम को विदित हो कि डॉ. संदीप के बारे में यह चर्चा है कि उनके ऊपर यौन उत्‍पीड़न के आरोप लगाकर उन्‍हें दबाव में डालकर इस्‍तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था। तमाम लोगों के प्रयासों के उपरांत अधिशासी परिषद ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए जाँच समिति बैठाने की अनुशंसा की थी किंतु आज तक कोई जाँच समिति इस मसले में गठित ही नहीं की गई।
हमले में घायल डॉ संजय कुमार

महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय में हो रहा है आरक्षण के नियमों का खुला उल्‍लंघन

  • महामहिम के समक्ष विनम्र निवेदन है कि महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय द्वारा 6 जून 2017 के विज्ञापन द्वारा गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के कुल 52 पद विज्ञापित किये गये। इनमें से वर्ग ए, बी और सी के क्रमश: 10, 17 और 25 पद थे। इनमें अन्‍य पिछड़ा वर्ग के लिए 5, अनुसूचित जाति के लिए 0 और अनुसूचित जनजाति के लिए भी 0 पद आरक्षित थे। आप ही बताइए कि क्‍या यह आरक्षण के नियमों का उल्‍लंघन नहीं है?
  • निवेदन है कि शैक्षणिक पदों का रोस्‍टर आज तक विश्‍वविद्यालय ने सार्वजनिक नहीं किया है।
  • महामहिम को यह भी सूचित किया जाता है कि विश्‍वविद्यालय के अध्‍यादेश के मुताबिक स्‍नातक में प्रवेश परीक्षा हेतु न्‍यूनतम योग्‍यता 12 वीं में 50 प्रतिशत सामान्‍य वर्ग के लिए है जबकि आरक्षित वर्ग के लिए 45 प्रतिशत है। किंतु पिछली बार अध्‍यापकों के विरोध के बावजूद यह न्‍यूनतम प्रतिशत बढ़ाकर क्रमश: 60 और 55 कर दिया गया। स्‍पष्‍टत: जानबूझकर आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों को प्रवेश से वंचित रखने की साजिश की गई। प्रवेश परीक्षा के आधार पर जारी मेधा सूची में भी कट ऑफ अंक की आड़ में आरक्षित वर्ग के बच्‍चों को आरक्षण से वंचित किया गया, उन्‍हें ज्‍यादा अंक लाने पर भी सामान्‍य वर्ग में शामिल नहीं किया गया। इसका दुष्‍परिणाम निकला कि ज्‍यादा अंक लाने पर भी आरक्षित अन्‍य पिछड़े वर्ग के बच्‍चों को प्रवेश नहीं मिला जबकि कम अंक लाने वाले सामान्‍य वर्ग के बच्‍चों को विश्‍वविद्यालय के विभिन्‍न पाठ्यक्रमों में प्रवेश मिल गया।
  • आरक्षण नियमों के त्रुटिपूर्ण क्रियान्‍वयन द्वारा आरक्षित वर्ग के बच्‍चों को एक साजिश के तहत प्रवेश से हर संभव तरीके से वंचित करने की कोशिश की गई।
  • निवेदन है कि एस.सी.-एस.टी. सेल आज तक विश्‍वविद्यालय में स्‍थापित नहीं किया गया जो सरकारी नियमों के अनुसार कानून का उल्‍लंघन है।

 

कारण बताओ नोटिसों के द्वारा विश्‍वविद्यालय में आतंकी माहौल

  • महामहिम के समक्ष निवेदन है कि बैसिर-पैर के मुद्दों पर विभिन्‍न शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस दिेये गये हैं, जिनके कारण सभी शिक्षक आतंकित हैं।
  • कम्‍प्‍यूटर विज्ञान के शिक्षक श्री अतुल त्रिपाठी को जिंस पहनने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया जो जीवन शैली की आज़ादी का उल्‍लंघन है।
  • जंतु विज्ञान के शिक्षक डॉ. बुद्धिप्रकाश जैन को अनापत्ति प्रमाणपत्र मांगने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया जो रोजगार की स्‍वतंत्रता का उल्‍लंघन है।
  • ध्‍यातव्‍य है कि इसी नोटिस के कारण डॉ. बुद्धिप्रकाश जैन भयावह मानसिक तनाव के कारण चिकित्‍सालय में अपना उपचार करवा रहे हैं।
  • विश्‍वविद्यालय के शिक्षक जब अवकाश हेतु आवेदन करते हैं तो निर्धारित समयावधि के भीतर उनकी छुट्टियों के अनुमोदन की सूचना नहीं दी जाती है। और जब वे चले जाते हैं तो उन्‍हें बिना सूचना अनुपस्थित रहने पर कारण बताओ नोटिस थमा दिया जाता है और उन्‍हें सर्विस ब्रेक की धमकी दी जाती है। गणित विभाग की शिक्षिका डॉ. बबीता के साथ ऐसा घटित हो चुका है।

यौन उत्‍पीड़न की झूठी शिकायतों द्वारा शिक्षकों का मानसिक उत्‍पीड़न

  • महामहिम जी के समक्ष निवेदन है कि विश्‍वविद्यालय के अंदर यौन उत्‍पीड़न की शिकायतों के निपटान हेतु कोई तंत्र आज तक लिखित रूप से नहीं बनाया गया है।
  • शिक्षकों को फर्जी ढंग से यौन उत्‍पीड़न के मामलों में फंसाने की कोशिशें की गई हैं।
  • प्रशासन के दबाव में आकर कुछ शिक्षकों द्वारा कई शिक्षकों के ऊपर विश्‍वविद्याल की छात्राओं के मार्फत यौन उत्‍पीड़न के फर्जी मामलों की शिकायतें विश्‍वविद्यालय प्रशासन में करवाई गई।
  • नियम के अनुसार जिन शिक्षकों के खिलाफ इस प्रकार की शिकायतें दर्ज हुई हैं, उन्‍हें इस संबद्ध में लिखित नोटिस दिया जाना चाहिए और 90 दिनों के अंदर शिकायत पर समुचित कार्रवाई होनी चाहिए। किंतु न नोटिस दिया जाता है और न कार्रवाई की जाती है जबकि शिकायतों को प्रशासन द्वारा सार्वजनिक कर दिया जाता है। दूसरी तरफ जिन शिक्षकों के खिलाफ शिकायत करवाई जाती है, उन्‍हें मौखिक रूप से प्रत्‍यक्ष-अप्रत्‍यक्ष रूप से धमकाया जाता है कार्रवाई के नाम पर।
  • निवेदन है कि प्रथमदृष्‍टया यह सब प्रशासन का आपराधिक षड्यंत्र है। उन शिक्षकों और छात्राओं पर कार्रवाई होनी चाहिए थी जो इसप्रकार के फर्जी यौन उत्‍पीड़न शिकायतों के सूत्रधार रहे हैं किंतु कभी कोई कार्रवाई की ही नहीं गई।
  • विश्‍वविद्यालय के तमाम शिक्षकों के निजी कक्षों में और सहायक प्रोफेसरों के बैठक कक्ष में उच्‍च क्षमता के कैमरे लगाये गये हैं जिनके बारे में आशंकायें हैं कि ध्‍वनि और दृश्‍य, दोनों रिकार्ड किये जाते हैं।
  • इन्‍हीं रिकार्डिंग के आधार पर शिक्षकों को स्‍वयं कुलपति जी और उनके करीबी लोगों द्वारा धमकाया जाता है। शिक्षकों की यों रिकार्डिंग करवाना और उन्‍हें धमकाना आपराधिक कृत्‍य है। यह निजता के अधिकार का उल्‍लंघन भी है।
  • विश्‍वविद्यालय के शिक्षकों के निजी और सार्वजनिक बैठक कक्षों में कैमरे (सीसीटीवी) लगाये गये हैं जिनसे शिक्षिकायें विशेष रूप से असहज महसूस करती हैं। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:’ वाले इस महान भारत देश में यह स्‍त्री शालीनता पर पुंसवादी हमला है। यह भी निश्‍चय ही यौन उत्‍पीड़न में आता है।
  • हमारी जानकारी में देश के किसी विश्‍वविद्यालय में शिक्षक-शिक्षिकाओं की इस तरह सीसीटीवी में रिकार्डिंग करवाने हेतु उनके निजी कक्षों में कैमरे आदि नहीं लगाये गये हैं।
  • अस्‍तु, सीसीटीवी कैमरों के माध्‍यम से स्‍वयं प्रशासन प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष यौन उत्‍पीड़न में सक्रिय रूप से शरीक है।

विश्‍वविद्यालय प्रशासन द्वारा शिक्षकों के खिलाफ विद्यार्थियों का इस्‍तेमाल 

  • महामहिम जी के समक्ष निवेदन है कि प्रशासन द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षकों के खिलाफ उकसाया जाता है, झूठी शिकायतें करवाई जाती हैं।

विश्‍वविद्यालय के सर्वोच्‍च पदों को खाली रखना

  • महामहिम जी के समक्ष निवेदन है कि विश्‍वविद्यालय प्रशासन द्वारा अपने अनैतिक और भ्रष्‍ट कार्यों पर पर्दा डालने के लिए महत्‍वपूर्ण प्रशासनिक पदों को रिक्‍त रखना, जैसे कुलाधिपति, वित्‍त अधिकारी, परीक्षा नियंत्रक, पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष, चिकित्‍सा अधिकारी, कानूनी सलाहकार आदि।
  • ज्‍यादातर गैर शैक्षणिक पदों को रिक्‍त रखकर कुछ पदों पर अपने चहेते लोगों की नियुक्ति गलत ढंग से करना।

निजी दस्‍तावेजों की गोपनीयता भंग

  • महामहिम जी के समक्ष निवेदन है कि शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के मन में अपने कटु अनुभवों और प्रशासनिक धमकियों के बाद भय और आशंका बैठ गई है कि प्रशासन के पास जमा उनके निजी दस्‍तावेजों की गोपनीयता भंग होने का खतरा है।
  • अपने दस्‍तावेजों के साथ हेरफेर की आशंका भी शिक्षक सार्वजनिक रूप से व्‍यक्‍त करते रहे हैं।

एनपीएस (न्‍यू पेंशन स्‍कीम) कटौती किंतु एनपीएस खाता में भुगतान न होना  

  • महामहिम जी के समक्ष निवेदन है कि विश्‍वविद्यालय के स्‍थाई शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की तन्‍ख्‍वाह से एनपीएस (न्‍यू पेंशन स्‍कीम) के तहत पैसे तो काटे जा रहे हैं किंतु ये पैसे उनके एनपीएस खाते में जमा नहीं हो रहे हैं। क्‍या यह गंभीर आर्थिक अनियमितता नहीं है ?
  • ध्‍यातव्‍य है कि शिक्षकों की नियुक्ति के लगभग डेढ़ साल बाद जाकर ही ये खाते खुल पाये थे।
  • जो शिक्षकगण किसी प्रकार के अवकाश आदि पर दूसरी संस्‍थाओं से आये हैं, उनके एनपीएस पैसे उनकी मूल संस्‍थाओं में स्‍थानांतरित नहीं किये गये हैं।

अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने में भाई-भतीजावाद

  • महामहिम जी के समक्ष निवेदन है कि विश्‍वविद्यालय में नियुक्ति के समय सभी शिक्षकों से यह अनुबंध भरवाया गया था कि कोई भी शिक्षक परिवीक्षा अवधि में दूसरी जगह नौकरी के लिए आवेदन नहीं करेगा और अगर करता है तो विश्‍वविद्यालय उसके आवेदन पर अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी नहीं करेगा।
  • किंतु तमाम नियमों को ताक पर रखकर कुछ शिक्षक-शिक्षिकाओं को इस प्रकार के अनापत्ति प्रमाणपत्र दिये गये।

चिकित्‍सकीय सुविधा और तद्विषयक पुनर्भुगतान की व्‍यवस्‍था नहीं

  • महामहिम जी के समक्ष निवेदन है कि विश्‍वविद्यालय अभी तक स्‍थाई या अस्‍थाई चिकित्‍सा अधिकारी की नियुक्ति नहीं कर पाया है।
  • अपने शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के चिकित्‍सा व्‍यय के पुनर्भुगतान का अपना कोई तंत्र ही विश्‍वविद्यालय के पास नहीं है।

प्रयोगशालाओं की माकूल व्‍यवस्‍था नहीं

  • महामहिम जी के समक्ष निवेदन है कि विश्‍वविद्यालय के विज्ञान के शिक्षक और विद्यार्थी आज तक बिना समुचित प्रयोगशालाओं के भटक रहे हैं।
  • बार-बार लिखित अनुरोध पत्र देने पर भी विश्‍वविद्यालय प्रशासन कुंभकरण की नींद सो रहा है।
  • शिक्षकों को बिना प्रयोग करवाये प्रायोगिक परीक्षायें करवाने का दबाव डाला जाता है।

अकादमिक कलैंडर न होना और सत्र 2018-19 में कोई प्रवेश ही न लिया जाना

  • विश्‍वविद्यालय का कोई अकादमिक कलैंडर अभी तक जारी नहीं हुआ है। पिछली साल भी शिक्षकों के बारंबार कहने पर सत्र के बिल्‍कुल अंत में जाकर यह कलैंडर जारी किया गया था।
  • स्‍पष्‍ट है कि बच्‍चों के भविष्‍य और विश्‍वविद्यालय के शैक्षणिक कार्यक्रमों को लेकर प्रशासन में घनघोर उदासीनता है।
  • कुलपति और प्रशासन की अयोग्‍यता का प्रमाण तो यह है कि वे वर्तमान अकादमिक सत्र में अभी तक कोई प्रवेश तक नहीं ले पाये हैं।

      इस प्रेस विज्ञप्ति के माध्‍यम से महामहिम के संज्ञान में लाये गये इन तथ्‍यों के आलोक में शिक्षक संघ का निवेदन है कि हम शिक्षकों ने ऐसे विश्‍वविद्यालय की परिकल्‍पना करनी चाही थी जहाँ हमारे मौलिक अधिकारों का हनन न होता हो, हमें विश्‍वविद्यालय में कदम रखते ही इस बात का भय न सताये कि कब किस कारण से हमें हमारी नौकरी से बर्खास्‍त कर दिया जायेगा या किसी दूसरे तरीके से प्रताड़ि‍त किया जायेगा। देश के नागरिक समाज, मीडिया कर्मियों, शिक्षक और छात्र संघों, केंद्र और राज्‍य सरकार समेत तमाम प्रगतिशल ताकतों और बुद्धिजीवियों से अनुरोध है कि बापू की कर्मस्‍थली में स्‍थापित देश के इस सबसे नये केंद्रीय विश्‍वविद्यालय की भ्रूण हत्‍या होने से रोकी जाये। शिक्षक संघ कुलपति और प्रशासन द्वारा बारंबार शिक्षकों को दी गई इस चेतावनी को प्रकश में लाना चाहता है कि ‘कौओं की तरह टांग दिये जाओगे’। हम विगत के लगभग डेढ़ सालों की इस यंत्रणा के बाद आज इस निष्‍कर्ष पर पहुँच चुके हैं कि अब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। अंत में महामहिम से करबद्ध प्रार्थना है कि इस आपात स्थिति में आप विश्‍वविद्यालय के कुलाध्‍यक्ष के नाते इस मामले में सक्रिय और त्‍वरित हस्‍तक्षेप करते हुए हम शिक्षकों के संवैधानिक और मौलिक अधिकारों की रक्षा करते हुए हमें कृतार्थ करें। ’

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