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ख़ुदाबख़्श लाइब्रेरी: ज्ञान के एक और केंद्र पर हमला

जीतेन्द्र वर्मा


बिहार में ख़ुदाबख़्श खां ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी को तोड़ने की तैयारी हो रही है। ओवरब्रिज के निर्माण के लिए सरकार देर – सवेर इसे तोड़ कर ही दम लेगी ।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ( माले ) तथा बुद्धिजीवी इसे बचाने के लिए आंदोलनरत हैं। सदन के भीतर और सदन के बाहर विरोध हो रहा है परंतु सरकार इसकी नोटिस नहीं ले रही है ।अभी के वातावरण में इसे बचाने के लिए अगर बड़ा आंदोलन नहीं चला तो निश्चित रूप से सरकार इसे तोड़ देगी ।

आजकल यहाँ के प्रचार माध्यमों ने ऐसा वातावरण बनाया है कि विकास का मतलब कंक्रीट और ईट है । चूंकि उसमें कमीशन मिलता है । इसलिए सत्ता में बैठे लोगों यह प्रिय है । यह सब प्रचार माध्यमों की देन है । यहाँ ज्ञान और विवेक की कोई जगह नहीं है ।

यह पुस्तकालय कोई आम पुस्तकालय नहीं है । यहाँ मध्यकाल की कई दुर्लभ पांडुलिपियाँ , पेंटिग और दस्तावेज सुरक्षित हैं । इनके महत्त्व को देखते हुए ही इन्हें लॉकर में रखा गया है जिसकी एक चाभी पटना के कमिश्नर और दूसरी चाभी भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सचिव के पास रहती है। यहाँ अरबी , फारसी , उर्दू की दुर्लभ पांडुलिपियाँ हैं । भारत में मध्यकाल में ऑयल पेंटिंग बने । इसे प्रमाणित करती पेंटिंग्स यहाँ हैं ।

इन ऑयल चित्रों पर अकबर सहित अन्य मुगल बादशाहों के सोने के हरफो में में हस्ताक्षर हैं । इसके लिए यह विश्व प्रसिद्ब है । कई पांडुलिपियाँ महीन अक्षरों में लिखी गई हैं । इनकी स्याही की चमक अभी भी कायम है । ये पांडुलिपियाँ भारत की तकनीकी और विज्ञान की प्रगति को भी बताती हैं । ये पांडुलिपियाँ सरकार के प्रयास से नहीं जमा हुई हैं ।

इसकी स्थापना एक न्यायाधीश और जमींदार ख़ुदाबख़्श खां ने अपने रुपये से सन 1891 में की थी । इसका नाम ओरियंटल पब्लिक लाइब्रेरी रखा । किसी भी संस्था की तरह यह पुस्तकालय एक दिन में विकसित नहीं हुआ है । इसने लंबा सफर तय किया है ।

खुदाबख्श खां ने अपनी और अपने पुरखों की सारी संपत्ति इसमें लगा दी । यह पटना में गंगा नदी के किनारे अवस्थित है । उनकी इच्छा थी कि यह पुस्तकालय यहाँ से नहीं हटे । उन्होंने अपनी यह इच्छा अपने वसीयत में व्यक्त की है।

उनकी कब्र भी इसी परिसर में है। सन 1969 में भारतीय संसद ने इसकी उपयोगिता को देख कर इसे राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था घोषित किया और इसका नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया । तब से यह पुस्तकालय भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन है । इसके पदेन अध्यक्ष बिहार के राज्यपाल होते हैं । ऐसी संस्था को तोड़ने का निर्णय विवेकशून्यता का परिचायक है ।

अपने ज्ञान को सुरक्षित नहीं रखपाने के कारण ही स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों ने कहा था कि भारत का ज्ञान यूरोप के सामने एक रैक में कुछ किताबों के बराबर है । भारत में शिक्षा को लेकर बने आयोग के अध्यक्ष मैकाले ने कहा था कि एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की अलमारी भारत और अरब के संपूर्ण देशी साहित्य के बराबर होगी । ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि हमारे यहाँ ज्ञान को सुरक्षित रखने की कोई परंपरा नहीं रही है । प्राचीन काल में ज्ञान कंठ में रहता था । वे जाति के आधार पर देते थे ।

इस पुस्तकालय में रखी पांडुलिपियाँ , पेंटिंग तथा अन्य दस्तावेज भारत के ज्ञान को पुरी दुनिया के सामने प्रमाणित करते हैं । पूरे देश में ऐसा पुस्तकालय नहीं है । सरकार ऐसा पुस्तकालय नहीं खोल सकी परंतु उसे नष्ट करने में रुचि है ।

आज भी स्थिति बदली नहीं है । भारत में प्रकाशित पुस्तकें तीस चालीस साल के बाद भारत में नहीं मिलती हैं । वे अमेरिका , लंदन , रूस के पुस्तकालय में मिलती हैं । कहने के लिए देश में चार राष्ट्रीय पुस्तकालय कार्यरत हैं । इन्हें प्रतेयक प्रकाशित पुस्तक , पत्रिका , फोल्डर , पम्पलेट आदि निशुल्क प्राप्त करने का अधिकार है । इन्हें सुरक्षित रखने की जिम्मेवारी इनकी है परंतु सरकार के दिशाहीनता के कारण यह काम ठीक ढंग से नहीं हो रहा है । जबकि अमेरिकन लाइब्रेरी नियमित रूप भारतीय भाषाओं की किताबें खरीदता है तथा उन्हें सुरक्षित रखता है। भोजपुरी लेखन – प्रकाशन से जुड़े होने की वजह से मैंने नजदीक से देखा है कि भोजपुरी की पुस्तक पत्रिका वह नियमित मंगवाता है ।

इसमें रखी पांडुलिपियों को देखकर वायसराय कर्जन , गाँधी जी , जवाहरलाल नेहरू सहित कई हस्तियॉं चकित – विस्मित हुई ।

मीडिया ने नीतीश कुमार की छवि एक पढ़े – लिखे नेता की बनाई है परंतु उनके शासन काल नें कला – संस्कृति से जुड़ी संस्थाओं की दुर्गति हुई है । बिहार – राष्ट्रभाषा – परिषद , बिहार हिंदी ग्रन्थ अकादमी , काशी प्रसाद जयसवाल शोध संस्थान , बिहार रिसर्च सोसाइटी , पाँचो भाषाई अकादमियाँ , पटना संग्रहालय , संगीत नाटक अकादमी , हिंदी भवन अपने सबसे खराब स्थिति में हैं ।

सरकार ने बिहार – राष्ट्रभाषा -परिषद की जमीन पर दूसरी संस्था खोल दी क्योंकि विश्व बैंक से एक बड़ी इमारत बनाने के लिए पैसा मिला था । उस इमारत के लिए नई जमीन खोजने की जरूरत नहीं समझी गई । परिषद की यह जमीन प्रेस , पुस्तक विक्रय – केंद्र , शोध पुस्तकालय , अतिथि गृह आदि विभिन्न कामों के लिए अधिग्रहित की गई थी ।

इसका सदन और बाहर विरोध हुआ परंतु नीतीश सरकार ने किसी की नहीं सुनी । इसके पहले भी इस जमीन पर तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने संस्कृत बोर्ड के भवन का शिलान्यास कर दिया था । यहाँ भी यह याद दिलाना जरूरी है कि मीडिया ने उनकी छवि भी बड़ी सुसंस्कृत बनायी थी । परंतु तब पटना उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप कर इस जमीन को बचाया था । आज बिहार . राष्ट्रभाष . परिषद जैसी संस्था गरिमाहीन हो चुकी है । कहने के लिए नीतीश सरकार ने पटना में एक नया म्यूजियम बनवाया है ।

चौदह अरब की लागत से बने इस म्युजियम का ठेका विदेशी कम्पनी को दिया गया । विदेशी कंपनियों को ठीका देने का एक बड़ा लाभ यह होता है कि कमीशन का लेन .- देन सुगमता से होता है। कोई हल्ला – गुल्ला नहीं होता है । इस म्युजियम की एक बडी विशेषता यह है कि इसमें नया कुछ करने की जगह पुराने म्यूजियम का समान रखवाने को प्राथमिकता दिया गया । इसे ही कहते हैं – एक कोठिला के धान दोसरा कोठिला में कइल (निरर्थक काम करना ) ।

आज बिहार में साहित्य . संस्कृति का बजट नाच . गाना में चला जाता है । कोई गम्भीर काम नहीं होता है ।

आज प्रचार माध्यमों ने लोगों के मन में यह बैठाया गया है कि बड़ी – बड़ी इमारते, ओवरब्रिज , चौड़ी – चौड़ी सड़कें, मॉल — यही विकास के पर्याय हैं । भूख, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, साहित्य, संस्कृति, न्याय आदि की बातें दकियानूसी बताई जा रही है।

 

 

(लेखक परिचय
जीतेन्द्र वर्मा
जन्मतिथि : 15 सितम्बर 1973
शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी., पटना विश्वविद्यालय, पटना
प्रकाशित पुस्तकें :
1. साहित्य का समाजशास्त्र और मैला आँचल (आलोचना)
2. संत दरियादास (जीवनी)
3. जगदेव प्रसाद (जीवनी)
4. सुबह की लाली (उपन्यास)
5. अब ना मानी भोजपुरी (हास्य-व्यंग्य)
6. आधुनिक भोजपुरी व्याकरण (व्याकरण)
7. सरोकार से संवाद (बातचीत)
8. भोजपुरी साहित्य के सामाजिक सरोकार ( आलोचना )
9.भोजपुरी साहित्य के सामाजिक सरोकार (आलोचना )
10. भिखारी ठाकुर : साहित्य और समाज ( आलोचना )
संपादित पुस्तकें :
1. ग्रामीण जीवन का समाजशास्त्र ( आलोचना )
2 .गोरख पांडेय के भोजपुरी गीत ( गीत – संग्रह )
3. श्रीमंत रचनावली ( गद्य संग्रह )
4. यह कहानी यही खत्म नहीं होती ( आलोचना )

सम्प्रति – स्वतंत्र लेखन
साहित्य के सामाजिक सरोकार में विश्वास करने वाले डॉ. वर्मा डॉ. भीमराव अंबेडकर को अपना आदर्श मानते हैं ।

संपर्क : वर्मा ट्रांसपोर्ट, राजेन्द्र पथ, सीवान–841226, बिहार। ईमेल : jvermacompany@gmail.com
मोबाईल : 9955589885)

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