समकालीन जनमत
साहित्य-संस्कृति

पंडिता कलापिनी कोमकली के गायन पर व्योमेश शुक्ल की टीपें

एक

थोड़ी सी दूरी बहुत से समय में तय करके हमलोग कलापिनीजी को सुनने पहुँचे तो वह ‘श्याम कल्याण’ के ख़याल के बीच में थीं. यह बात, कि हमलोग शुरूआत से उनके साथ नहीं थे, खिन्न कर सकती थी, कि तभी ओंकारनाथ ठाकुर की प्रतिमा के बीच में से दूर मंच पर बैठी वह एक अनादि और शाश्वत फ्रेम के भीतर दिखीं. भीतर सभागार ठसाठस भरा हुआ था और कहीं बैठने की जगह नहीं थी. हमलोग आने-जाने वाली गैलरी में बैठ गए. कुछ देर बाद मैंने गौर किया कि मेरे ठीक आगे एक मशहूर शल्य चिकित्सक बैठी थीं. वह निमग्न और बेसुध थीं और उधर उनकी ओपीडी का समय था और पल-भर के लिए यह बात बनारस थी.
शुक्रिया कलापिनी जी. आपकी गायकी की वजह से एक बार फिर असल बनारस से मिलना हुआ.

दो
कलापिनीजी के गायन की सादगी. उसमें थोड़ा सा भी अतिरिक्त ढूँढना मुश्किल है. ‘श्याम कल्याण’ के ख़याल के बाद उन्होंने कुमारजी-रचित एक जोड़ राग ‘जलधर देस’ का तराना शुरू किया. बीच में थोड़ी देर के लिए वह रुकीं – मुँह पोछने, पानी पीने और तानपुरा मिलाने के लिए. दोबारा शुरू करने से पहले उन्होंने कहा : इसके बाद एकाध भजन सुनाकर पूरा करुंगी तो प्रेक्षागृह में से आवाज़ आई : ‘कबीर’. उन्होंने कहा : हाँ. बनारस आकर कबीर नहीं गाऊंगी तो पाप लगेगा.

हमलोग सावधान हो गए : अब कुमारजी भी उनके साथ गाने वाले थे.

तीन

श्याम कल्याण के तराने के बीच में कलापिनीजी ने कहा : तराने के शब्द सतह पर निरर्थ होते हैं. कान हों तो शब्दों के पार जाकर अर्थ सुनना चाहिए.

चार

कलापिनी कोमकली कहती हैं : ‘पिता कन्नड़, माँ मराठी, मैं मालवी.’

पाँच
नंद में बड़ा ख़याल और छोटा ख़याल सुनाने के बाद कलापिनी कोमकली ने कहा कि अब वह धनवसंती सुनाएंगी – कुमारजी का बनाया राग – पहली बार सुनने पर पूरिया धनाश्री और दूसरी बार सुनने पर वसंत. दो रागों का जोड़, लेकिन दिखेगा नहीं. एक राग की पटरी पर दूसरे राग की रेलगाड़ी के आने की आहट.

यों हर बार, लोहे पर कान लगाना पड़ता है.

छह

कलापिनी कोमकली विज्ञान की छात्रा रही हैं और उनके जीवन-व्यवहार में एक आधुनिक स्त्री का स्वाभिमान है. दूसरी ओर, परंपरा का बल तो वहाँ है ही. उनके किरदार में ये दोनों रंग बारी-बारी से, चकित करते हुए झिलमिलाते हैं. उनका संगीत भी उनके व्यक्तित्व जैसा है. विनय और अभय, दुस्साहस और कोमलता, उल्लंघन और स्मृति उनके गायन में साथ-साथ पुष्पित-पल्लवित होते हैं.

Fearlessly expressing peoples opinion