समकालीन जनमत
स्मृति

कबूतरी देवीः पहाड़ी बेगम अख़्तर का मज़दूर चेहरा

ज़हूर आलम

बुलन्द आवाज़ और खनकदार गले की मलिका स्वर कोकिला लोक गायिका कबूतरी देवी 7 जुलाई की सुबह दुनिया से विदा हो गईं और फ़िज़ाओं में छोडकर गईं अनगिनत गीत और ढेर सारा सुमधुर संगीत। उनकी लाजवाब गायिकी के सुरीले बोल हमेशा उनके चाहने वालों के कानों में गूंजते रहेंगे। कुछ लोग इस अद्भुत गायिका को पहाड़ की बेगम अख़्तर और कुछ ‘कुमाऊँ की तीजन बाई’ भी कहते थे। उनकी खरजदार आवाज़ कुछ हद तक बेगम अख़्तर से मिलती भी थी।

एक ज़माना था जब वह रेडियो की दुनिया की स्वर साम्राज्ञी कहलाती थी़ं। 70-80 के दशक में आकाशवाणी के लखनऊ, रामपुर, नजीबाबाद और मुम्बई केन्द्रों से गीत गाकर लोगों के दिलों पर राज उन्होंने किया। लखनऊ दूरदर्शन कन्द्र से भी उनके कार्यक्रम प्रसारित हुए। पहाड़ के मेलों में उनकी मंच गायिकी लोगों को दीवाना बना देती थी। यह मीठी गायिकी उन्हें मीरास यानी परम्परा में मिली थी। वह पहाड़ की मीरासी परम्परा की सुगढ़ वाहक थीं। अभी कुछ दिन पूर्व दिवंगत हुए उनके ककिया ससुर भानुराम सुकोटी इस परम्परा के एक सशक्त गायक थे। कबूतरी देवी का नाती पवनदीप राजन जो दो वर्ष पूर्व ‘ वायस आफ़ इण्डिया ’  का विजेता रहा है , ने भी बहुत मधुर कंठ पाया है।

हमारे समाज की यह कैसी विडम्बना है कि इतनी बड़ी गायिका को जीवन यापन के लिए ,जीवन भर संघर्ष करना पडा़। बच्चों का पेट पालने क लिए दूसरों के खेतों में मज़दूरी और साज़ बजाने वाले हाथों से पत्थर तोड़ने पड़े। कबूतरी देवी का पूरा जीवन दुख और गुरबत में ही गुज़रा।

कबूतरी देवी ने लोक और सामयिक संगीत को एक साथ साधा. एक तरफ़ वह पारम्परिक लोक गीत ऋतुरैण, चैती, न्योली, छपेली, धुस्का आदि गाती थीं, वहीं गीत, ग़ज़ल , ठुमरी गायकी का भी उनका अलग और अनोखा अन्दाज़ था.

1939 में कबूतरी देवी का जन्म कुमाऊँ के जिला चम्पावत के लेटी गाँव में हुआ था. पिता श्री देवी राम और माता श्रीमती देवकी देवी गायक थे. नौ बहनें एक भाई का उनका बड़ा परिवार पर था पर गरीबी बहुत थी. कबूतरी देवी की माँ ने अपने पिता से संगीत की शिक्षा ग्रहण की थी और वे बहुत मधुर गाती थीं. नाना संगीत के उस्ताद थे. कबूतरी देवी माँ को ही अपना गुरु मानती थीं.

13 साल की उम्र में कबूतरी देवी का विवाह पिथौरागढ़ ज़िले के ग्राम क्वीतड़ निवासी दीवानीराम से हुआ. वह दस तक पढे़ थे. नेतागिरी का शौक था, फक्कड़ किस्म के आदमी थे, ज़मीन जायदाद कुछ नहीं था. गाय-भैंस पालते और मज़दूरी करते थे. कभी भूखे रह कर भी दिन काटते.

पति ने कबूतरी देवी की संगीत प्रतिभा को आगे बढ़ाया. वे उनके साथ गीत लिखकर तैयार करते थे. वही कबूतरी देवी को आकाशवाणी की दहलीज़ तक ले गये. कबूतरी देवी की आवाज़ का जादू छाने लगा, प्रसिद्धि भी मिली. वे सच्चे स्वर लगाती थीं. उनकी आवाज़ का जादू सिर चढ़ कर बोलने लगा.

कबूतरी देवी का संगीत परवान चढ़ ही रहा था कि पति की मृत्यु हो गई. सारा शीराज़ा बिखर गया. कबूतरी देवी बीमार रहने लगीं. परिवार का बोझ सिर पर था. उन्होंने मेहनत मजदूरी की, खेतों में काम किया , पत्थर तोड़े फिर भी कभी खाना मिलता था कभी नहीं. बीमारी सिर उठा रही थी। दुबली- पतली काया, पित्त में पथरी , साँस की परेशानी, हाथ-पैर में गठिया, पर हिम्मत नहीं हारी और तीन बच्चों की शादी भी की.

एक गायिका के रुप में पति की मौत के बाद कबूतरी देवी के संगीत का सफ़र ख़त्म हो गया था. आकाशवाणी भी उन्हें कौन ले जाता. एक प्रतिभा गुमनामी के अंधेरों में खो गई. पर मेहनतकश और जुझारु कबूतरी देवी ने हार नहीं मानी और स्थितियों से लड़ती रहीं.

कई सालों तक गुमनामी में रहने के बाद कबूतरी देवी फिर मंज़रेआम पर आईं. संस्कृति कर्मी हेमराज बिष्ट उन्हें अपनी टीम के साथ कई मेलों में ले गये. फिर कबूतरी देवी ने स्वर लहरियां छेड़ीं और लोगों की वाह वाही लूटी. अखबारों में भी यह ख़बर दूर तक पहुँची. इसी बीच उत्तरा महिला पत्रिका की सम्पादक और मैत्री संगठन की कर्ता-धर्ता डा. उमा भटट् उनसे मिलने उनके गाँव जा पहुँची. उनके गीत रिकार्ड कर के नैनीताल लाईं और हम सभी को उनकी दर्दभरी आवाज़ से रुबरु होने का मौका मिला. फिर उन्हें महिला समाख्या के कार्यक्रम में नैनीताल बुलाया गया. उनकी सुरीली आवाज से सभी भाव विभोर थे. तय किया गया कि युगमंच और उत्तरा की पहल पर नैनीताल की सभी सांस्कृतिक व साहित्यिक संस्थायें जिसमें पहाड़ व नैनीताल समाचार शामिल थी, एक बड़ा कार्यक्रम करेंगी और कबूतरी देवी को बडे़ स्तर पर रीलांच किया जाएगा और उनकी अर्थिक सहायता के लिए राशि भी एकत्र की जाएगी.

‘ एक विरासत को सुनें ’ नाम से 20 सितम्बर 2004 को एक बड़ा आयोजन हुआ. नैनीताल के शैले हाॅल में लोग कबूतरी देवी को सुनने के लिए टूट पड़े थे. प्रेक्षागृह में जितने लोग कुर्सियों पर बैठे थे उससे ज्यादा खड़े थे. कई घंटे गायन का यह कार्यक्रम चला. कबूतरी देवी ने भी बेटी हेमंती के साथ दिल खोलकर गाया और श्रोताओं को तर कर दिया. इस कार्यक्रम को लोग आजतक याद करते हैं. इस कार्यक्रम का संचालन गिरीश तिवाड़ी गिरदा ने स्वयं किया था. कार्यक्रम से ठीक-ठाक राशि इक्ट्ठा हो गई। वीरेनदा (प्रख्यात कवि वीरेन डंगवाल) ने भी अमर उजाला बरेली से दस हजार की रक़म भिजवाई थी.

इस कार्यक्रम से एक महत्वपूर्ण बात यह हुई कि मीडिया ने भी कार्यक्रम को ठीक ठाक कवर किया था. बात दूर तक पहुँची. और फिर क्या था देहरादून, दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, हल्द्वानी, गाज़ियाबाद, चन्डीगढ़ आदि तमाम जगहों से कबूतरी देवी को बुलावे आने लगे. बेटी हेमंती जहाँ सम्भव हुआ और तबियत ने साथ दिया वहाँ वहाँ ले गईं. अगले वर्ष नैनीताल में 6 व 7 अगस्त 2005 को एक बड़ा कार्यक्रम हुआ.

युगमंच के इस कार्यक्रम ‘ हमारी लोक विरासत ’ में कबूतरी देवी सहित उत्तराखण्ड के सभी नामचीन लोकगायक और लोककवि इकठ्ठा हुए थे. इस कार्यक्रम में भी कबूतरी देवी ने श्रोताओं को अपनी गायकी के जादू से भाव विभोर कर मुद्दतों याद रहने वाली प्रस्तुति दी थी. कार्यक्रम का संचालन गिरदा और शेखर पाठक ने किया था.

डा. उमा भटट् के कबूतरी देवी से बिल्कुल घरेलू सम्बन्ध बन गये थे और वह  उनका बहुत ख़्याल भी रखती थी. कबूतरी देवी पर अक्सर वे हम सभी साथियों से चर्चा भी करतीं. तभी उन्होंने एक विचार दिया कि कबूतरी देवी हमारे समाज की निधि हैं और इस बड़ी शख़्सियत की जिन्दगी पर एक डाक्यूमेन्टरी फिल्म बननी चाहिए। नैनीताल फिल्म फेस्टीवल की वजह से जनसंस्कृति मंच फिल्म ग्रुप के संजय जोशी सहित कई मित्र हमसे जुड़े थे। उमा दी के इनीशिएटिव पर फिल्म निर्माण की तैयारी शुरु हुई। संजय जोशी, संजय मटटू और अपल सिंह की टीम उमा दी के साथ कबूतरी देवी के गाँव जा पहुँची और कबूतरी देवी की उतार-चढ़ाव भरी ज़िन्दगी को शूट किया गया, एडिटिंग वगैरह के बाद कबूतरी देवी पर एक शानदार फिल्म बनकर तैयार हो गई है। कबूतरी देवी के सानिध्य में उसे भव्य तरीके से लोकार्पित करने पर विचार चल ही रहा था कि अचानक खबर आई ……… कबूतरी देवी इस दुनिया ए फ़ानी से कूच कर चुकी हैं. अफसोस वह अपनी फिल्म न देख सकीं.

शासन प्रशासन कितने ही घड़ियाली आंसू बहाए पर संस्कृति कर्मियों के साथ उसने हमेशा मज़ाक ही किया है. कबूतरी देवी के मामले में भी सरकार ने ऐसा ही किया. पिथैरागढ़ में उनकी गम्भीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें हायर सेन्टर के लिए रेफर किया. सरकारी हेलीकाप्टर के लिए गुहार लगाई गई मगर वाह री सरकार!  नैनी सैनी हवाई पट्टी  तक कबूतरी देवी के आशक्त शरीर को कई चक्कर लगवाए गये मगर हेलीकाप्टर को न उड़ना था न उड़ा, और इसी बीच कबूतरी देवी के प्राण पखेरु उड़ गये. परिवार और संस्कृति कर्मी बहुत क्षुब्ध हैं. कई जगह विरेाध में नारे बाज़ी भी हुई. उनकी बेटी हेमंती हमेशा साय की तरह उनके साथ रहीं. मिथक तोड़ते हुए हेमंती ने उन्हें कन्धा देते हुए विदा किया और रामेश्वर के घाट पर अन्तिम विदा और मुखाग्नि दी. कबूतरी देवी विदा हो गईं पर उनके मीठे स्वर हमेशा आने वाले वक्तों तक फिज़ाओं में गूंजते रहेंगे.

कबूतरी देवी के अमर संगीत, जुझारुपन और संघर्षों को सलाम.

[author] [author_image timthumb=’on’][/author_image] [author_info]ज़हूर आलम उत्तराखंड के वरिष्ठ रंगकर्मी हैं और जन संस्कृति मंच से जुड़े हुए हैं [/author_info] [/author]

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