जन संस्कृति मंच दुर्ग-भिलाई इकाई द्वारा दिनांक 8 दिसंबर 2019 को नेहरू सांस्कृतिक भवन, सेक्टर-1, भिलाई में प्रसिद्ध कथाकार के आकस्मिक निधन पर भावभीनी श्रद्धाजंलि दी।
चर्चित कथाकार कैलाश बनवासी ने स्वयंप्रकाश के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि-कहानी की लोक प्रचलित शैली को और अधिक लोकरंजक व रोचक बनाकर शैली को एक नया रंग दिया स्वयंप्रकाश ने। उन्होंने हिन्दी कहानी में आई जड़ता को तोड़ते हुए कहानी को एक नई जमीन दी। किसी भी चीज को पर्दे में रखना उन्हें पसंद नहीं था। यही कारण है कि उनके प्रिय कहानीकार मंटों, चेखव और बेदी थे। वे रचना का पठनीय होना जरूरी मानते थे, इसीलिए उन्होंने कहानी में किस्सागोई को स्थापित किया। उनकी कहानियां चरित्रों की खान हैं । उनकी कहानियों के समस्त पात्र मनुष्यता में अटूट आस्था रखते हुए मनुष्यता को ही स्थापित करते हुए दिखाई देते हैं। उनकी ’पार्टीशन‘, ’चौथा हादसा’, ’सूरज कब निकलेगा‘, ‘नैसी का धूड़ा’ ’अयाचित‘ ’संहारकर्ता’ आदि कहानियां हमारे समय की त्रासदी, विसंगतियों के बीच जीवन और मनुष्यता के संघर्ष को उजागर करती हैं, तो उनका ’ईंधन’ जैसा महान उपन्यास कारपोरेट कल्चर के विद्रूप चेहरे को भी उजागर करता है। पुरस्कारों और सम्मानों से दूर हमेशा मनुष्यता की बेहतरी के जो भी आयाम हो सकते हैं, उसमें कूद पड़ने के लिए वे हमेशा तैयार होते थे। उन्होंने बच्चों के लिए भी साहित्य की रचना की। उनकी भाषा बहुत प्रांजल थी। वे लोक प्रचलित शब्दों का बहुत प्रयोग करते थे। इसके साथ ही दो नये शब्दों को जोड़कर नया शब्द भी बनाते थे। वही कहानी हमेशा रहती है जो चौकातीं नही बल्कि जीवन के यथार्थ को बिना किसी आडम्बर के सहज ढंग से रचती है। और ऐसी ही कहानी स्वयंप्रकाश की कहानी थी।
आलोचक सियाराम शर्मा ने कहा कि स्वयंप्रकाश से दो-चार बार मिलना हुआ। वे बहुत सरल, सहज थे और वही सहजता और सरलता उनकी कहानियों में भी देखने को मिलती है। वे प्रेमचंद, भीष्म साहनी, अमरकांत की परंपरा को ही आगे बढ़ाने वाले कथाकार थे। लेकिन नामवर सिंह स्वयंप्रकाश की कहानियों की बहुत तारीफ करते थे। एक महत्वपूर्ण लेखक कम या गैर महत्वपूर्ण चीजों में भी महत्वपूर्ण चीजों को तलाशता है और ऐसे ही कहानियों का सृजन स्वयंप्रकाश की कहानियों में देखने को मिलती है। उनकी ‘पार्टीशन’ कहानी आज के दौर की त्रासदी को उजागर करती है। नब्बे के बाद जो बदलाव देश में आया उन बदलावों के प्रभावों पर उनकी नजर थी। जो उनकी कहानियों में देखने को मिलता है। वे एक बहुत ही अच्छे व्यक्ति, विचारक और प्रतिबद्ध रचनाकार थे।
मणिमय मुखर्जी ने कहा कि मानवीय संवेदना का जो वाहक हो ऐसे कठिन समय में उनका जाना बहुत ही दुखद है। प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि हम जैसे प्रेमचंद की जयंती मानते हैं उसी तरह स्वयंप्रकाश की जयंती हमें बनानी चाहिए।
राजेश श्रीवास्तव ने उनकी कहानी ‘नेताजी का चश्मा’, ‘अकाल मृत्यु‘ के बारे में बताते हुए उनकी कहानी का महत्व बताया कि वे छोटे-छोटे साधारण से दिखने वाले पात्रों के माध्यम से कितनी बड़ी कहानी कह जाते थे। रामबरन कोरी ने कहा कि उनकी कहानियां निचले तबके के साधारण मनुष्यों के जीवन को बहुत सुंदर तरीके से अभिव्यक्त करती हैं । कार्यक्रम का संचालन करते हुए अंजन कुमार ने कहा कि स्वयंप्रकाश प्रेमचंद की ही परंपरा को आगे बढ़ाने व विकसित करनेवाले कथाकार थे। उनकी कहानियां आम जीवन की विसंगतियों और संघर्ष को बहुत मार्मिक और सशक्त ढंग से अभिव्यक्त करती हैं । उनका जाना हिन्दी कथाजगत के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है।
रंग निर्देशक हैदर और जयप्रकाश नायर ने भी उन्हें श्रद्धाजंलि दी।
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अंजनकुमार
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जनसंस्कृति मंच दुर्ग-भिलाई, इकाई