जन संस्कृति मंच, मिथिलांचल जोन का ‘ कबीर–नागार्जुन जयंती समारोह सप्ताह’ अभियान
दरभंगा। कबीर एवं जनकवि नागार्जुन की जयंती के अवसर पर जन संस्कृति मंच मिथिलांचल जोन के तत्वावधान में ‘कबीर–नागार्जुन जयंती समारोह सप्ताह’ अभियान की शुरुआत 21 जून को दरभंगा स्थित सीएम लॉ कॉलेज सभागार में संगोष्ठी से हुई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता जसम राज्य उपाध्यक्ष डॉ. रामबाबू आर्य ने की।
इस अवसर पर विषय प्रवेश कराते हुए जसम राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रो. सुरेंद्र सुमन ने कहा कि जब तक दुनिया में शोषण–दमन रहेगा तब तक कबीर–नागार्जुन जनांदोलनों के आगे–आगे मशाल लेकर चलते रहेंगे। दोनों ही कवि अपने समय के दहकते अंगारे हैं। दोनों भारतीय क्रांति के उदगाता कवि हैं। दोनों ब्राह्मणवादी–सामंतवादी ताकतों से मुठभेड़ कर रहे थे। कबीर कुछ भी होने से पहले क्रांतिकारी थे। इसलिए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भक्ति आंदोलन से कम्युनिस्ट आंदोलन तक लड़ने वालों की एक गौरवशाली फेहरिस्त रही है। आंबेडकर, मुक्तिबोध, नागार्जुन जैसे क्रांतिकारी विचारकों को कबीर से रोशनी मिलती है। कहना पड़ेगा कि कबीर नहीं होते तो भक्ति आंदोलन का वह मिजाज ही नहीं होता।
विशिष्ट वक्ता बीआरबीयू, मुजफ्फरपुर के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. नंदकिशोर नंदन ने कहा कि कबीर और नागार्जुन की विरासत को आगे कौन बढ़ाएगा यह प्रश्न हमारे सामने है। इस प्रश्न का स्वाभाविक उत्तर है सामाजिक आंदोलनों ने समय–समय पर दिया है। यदि कबीर, नागार्जुन, प्रेमचंद और गोरख पांडेय को गांवों–गांवों तक ले गए होते तो आज जैसी भीषण सामाजिक–राजनीतिक स्थिति है, वो हाल तो न होता! यह हमारी कमजोरी रही।
संगोष्ठी में ऑनलाइन भागीदारी करते हुए समकालीन जनमत के प्रधान संपादक रामजी राय ने कहा कि सरलता धोखा देती है? क्योंकि हम ऊपरी रूप समझ लेते हैं लेकिन अंतर्वस्तु तक नहीं पहुंचते। कबीर और नागार्जुन के अंतर्वस्तु तक पहुंचे बगैर उनकी कविता के वास्तविक निहितार्थ तक पहुंचना कठिन है। नामवर सिंह ने नागार्जुन को आधुनिक कबीर कहा है। यहां सवाल यह है कि आधुनिकता के किन अर्थों में नागार्जुन कबीर हैं ? दूसरा, आधुनिकता के कुछ मूल्य वे भी हैं जो मध्ययुग के नहीं हैं, इसलिए भक्तिकाल के भी नहीं हैं। काव्य विवेक कबीर और नागार्जुन की एक जैसी दिखेगी लेकिन अंतर्वस्तु में फर्क मिलेगा। नागार्जुन आमूलचूल परिवर्तन की मांग प्रस्तुत करते हैं। बराबरी का मूल्य कबीर के यहां भी हैं लेकिन बराबरी का रास्ता नागार्जुन के यहां आकर मिलता है। इससे कबीर की अवमानना नहीं होती। कबीर और नागार्जुन के काव्य–विवेक में विकास है। दोनों एक ही राह के पथिक हैं। मनुष्य की नई परिभाषा, संस्कृति की नई परिभाषा नागार्जुन की वैचारिकी का आधार स्तंभ है। कबीर और नागार्जुन की विरासत को मिटाने वालों का अंत हो जाएगा लेकिन इसे आगे ले जाने वालों की परंपरा का अंत कभी नहीं होगा।
ए. पी. एस. यू, रीवा के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. दिनेश कुशवाह ने कहा कि भारतीय समाज की बहुसंख्य जनता कबीर की कृतज्ञ है क्योंकि जनता पर हजारों साल का मनुवाद, असत्य धारणा और वर्चस्व का भार था, कबीर ने उस से उन्हें निर्भार कर दिया। कबीर ने अपनी ज्ञानात्मक संवेदना से जनता पर छाए अंधेरी घटाओं को महसूस किया। कोई भी शक्ति जो मनुष्य को बांटती है, छोटा करती है, वो कबीर को स्वीकार नहीं है। कबीर के पास जो घर है वो ज्ञान का घर है, प्रेम का घर है, सदाशयता का घर है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं करना चाहिए कि कबीर ने मनुष्य को नंगा होने से बचा लिया।
भाकपा–माले के पोलित ब्यूरो सदस्य कॉ. धीरेंद्र झा ने कहा कि 13वीं सदी के रेनेसां से वैश्विक पटल पर चीजें स्पष्ट हो गईं। भारत में यही दौर भक्तिकाल का है। भक्तिकाल ने सम्पूर्ण भारत में ब्राह्मणवादी ज्ञान की सत्ता और वर्चस्व को चुनौती दी। कबीर ने इस काम को जन–जन तक पहुंचाया। कबीर की बानी समाज को गति देने वाला प्रचंड आंदोलन बन गया। आज इतिहास के इस मोड़ पर कहा जा सकता है कि भारत में मार्क्सवाद के आविर्भाव में कबीर के आंदोलन का अभूतपूर्व योगदान है। आज के दौर में कबीर को पुनर्स्थापित करने की जरूरत है। बाबा नागार्जुन ने यह काम किया। कुलीन ब्राह्मणवादी समाज ने नागार्जुन को प्रतिष्ठित नहीं किया क्योंकि नागार्जुन ने कबीर की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए जीवनपर्यंत संघर्ष किया। आज जरूरत है कबीर और नागार्जुन को सामने रखकर जीवन के प्रश्नों पर आंदोलन को आगे बढ़ाना की।
जयंती समारोह में वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी भोला जी, अजय कलाकार तथा जसम मधुबनी के जिला संयोजक अशोक पासवान ने जनवादी गीतों की ओजपूर्ण प्रस्तुति की। कार्यक्रम का संचालन तथा धन्यवाद ज्ञापन जसम (दरभंगा) के जिला सचिव समीर ने किया।
मौके पर माले जिला सचिव बैद्यनाथ यादव, उमेश शाह, डॉ. संजय कुमार, रूपक कुमार, रंजन सिंह, अभिषेक कुमार, प्रिंस राज, मयंक कुमार, राजू कर्ण, प्रमोद कुमार, धनराज शाह, नंदलाल ठाकुर, साधना शर्मा, विनोद भारती, फतेह आलम, शनिचरी देवी, कल्पना कुमारी, विनिता कुमारी, सूफिया खातून सहित बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति रही।