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भारतीय व्यवस्था धर्मतंत्र, राजतंत्र और अधिनायकतंत्र का गठजोड़ – कंवल भारती

लखनऊ। जन संस्कृति मंच की लखनऊ इकाई के तत्वावधान में महान समाज सुधारक, संविधान निर्माता, क़ानूनविद, अर्थशास्त्री, चिंतक, राजनीतिज्ञ, अकादमीशियन डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर की याद में ‘डॉक्टर अम्बेडकर का चिंतन और भारतीय लोकतंत्र’ के शीर्षक से परिसंवाद का आयोजन किया गया। यह बातचीत आधारित कार्यक्रम था जिसमें जन संस्कृति मंच उत्तर प्रदेश के सचिव व युवा आलोचक राम नरेश राम ने मंच पर मशहूर दलित चिंतक और लेखक, कवि, स्तंभकार कंवल भारती से विषय के तारतम्य में प्रश्नों के माध्यम से बहुआयामी संवाद स्थापित किया।

इस बातचीत में भारतीय समाज के अमानवीय पहलुओं, अन्धकारों, विरोधाभासों, अन्याय पूर्ण और पक्षपाती व्यवस्था के काले कारनामों का एक सम्पूर्ण दस्तावेज़ सामने आया। राम नरेश राम के पहले प्रश्न कि डॉक्टर अम्बेडकर के विरुद्ध अनेक प्रकार के दुष्प्रचार किए जाते जाते हैं कि वह मौलिक चिंतक नहीं थे या यह कि संविधान निर्माण के हवाले से उनकी भूमिका और योगदान को अतिशयोक्तिपूर्ण तरीक़े से बयान किया जाता है, के उत्तर में कंवल भारती ने कहा कि अगर संविधान निर्माण में उनकी भूमिका या योगदान को नकार भी दिया जाए तो भी समाज सुधारक के बतौर उनकी जो भूमिका रही है वह उन्हें एक महान चिंतक और व्यक्तित्व का हामिल क़रार देने के लिए काफ़ी है।

कंवल भारती का कहना था कि समाज के निचले पायदान पर जीवन व्यतीत करने वाले दलित समाज जो कि अछूत के नाम से जाना जाता था, उसके अधिकारों की लड़ाई आसान न थी। जिस वर्ग को किसी भी प्रकार का अधिकार मयस्सर न हो उसे सामाजिक और राजनैतिक अधिकारों की लड़ाई के लिये तैयार करने का कार्य बाबा साहब से पूर्व किसी ने भी नहीं किया था। दलित समाज के साथ अनेक विडम्बनायें रही हैं जो आज भी जुड़ी हुई हैं। संख्यात्मक रूप से वह अल्पसंख्यक है जबकि 52 प्रतिशत की आबादी के साथ पिछड़ा वर्ग बहुसंख्यक है, इसलिए नीति निर्धारक मामलों में दलित समाज सममूल्य पर नहीं है। इसके अतिरिक्त दलित समाज में अपेक्षाकृत योग्य नेतृत्व का अभाव भी रहा है। इसके साथ बातचीत में कड़वी सच्चाई भी बयान की गयी कि दलित समाज स्वयं को ‘हिंदू’ साबित करने पर तुला हुआ है और एकलव्य और शंबूक की बात करने वाला युवक भी भगवा डाले धार्मिक नारे लगा रहा है।

कंवल भारती ने कहा कि संविधान के प्रति बाबा साहब का जल्द ही मोह भंग हो गया था क्योंकि जल्द ही यह तथ्य स्पष्ट हो गया था कि भारतीय संविधान केवल पूँजीपतियों के हितों के संरक्षण का एक इंस्ट्रुमेंट मात्र है। इसके माध्यम से भारत में ऐसा लोकतंत्र का सबसे विकृत रूप वजूद में आया जहां सत्ता पर कतिपय उच्च जातियों का वर्चस्व था। आज़ादी के समय लगभग हर प्रदेश में सत्ता ब्राह्मणवादियों के हाथों में थी। कांग्रेस ने रामलीला कमेटियों के गठन के माध्यम से ग्रामीण इलाक़ों में अपना दबदबा क़ायम रखा। इसके विपरीत डॉक्टर अम्बेडकर ग्रामीण परिवेश में व्याप्त मानसिक जड़ता, अमानवीय वर्ण व्यवस्था और साम्प्रदायिक प्रवृति के पोषक होने के कारण उसके मुखर आलोचक थे। बाबा साहब विभिन्न राजनैतिक दलों में व्याप्त ब्राह्मणवादी रुझानों से काफ़ी खिन्न रहते थे। इस क्रम में उनको वामपंथी दलों से अक्सर शिकायत रहती थी।

कंवल भारती ने बीबीसी को दिए गए एक इंटर्व्यू के हवाले से कहा कि बाबा साहब का स्पष्ट मत था कि भारत जैसे देश में (सेक्युलर) लोकतंत्र सम्भव ही नहीं है। यहाँ केवल धर्म आधारित शासन या तानाशाही ही सम्भव है। बाबा साहब ने कहा कि वह उस तानाशाही को पसंद करेंगे जो पूँजीवादियों पर डंडा चलाए। उन्होंने बात की आगे बढ़ाते हुए कहा कि वर्तमान में सोशलिज़म आधारित राजनीति और नीतियों के माध्यम से लोकतंत्र को उसके वास्तविक स्वरूप में स्थापित किया जा सकता है, फ़िलहाल कोई दूसरा रास्ता नहीं है।

इसके बाद श्रोताओं की ओर से अनेक प्रश्नों का कंवल भारती की जानिब से उत्तर दिए गए। पूरे कार्यक्रम में वैचारिक स्तर पर किसी भी प्रकार से अतिक्रमण नहीं किया गया और पूरी कोशिश के साथ चीज़ों को सही परिप्रेक्ष्य में रखा गया।

कार्यक्रम का समापन जसम लखनऊ के कार्यकारी अध्यक्ष असग़र मेहदी द्वारा बाबा साहब के उस कथन की रौशनी में किया गया जिसमें वह 25 नवंबर 1949 के अपने भाषण में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा उपाय प्रदान किए जाने की बात करते हैं। जो दक्षिणपंथी तत्वों को ऐसा नागवार लगा कि उन्होंने बाबरी मस्जिद के ध्वंस के लिए 1992 को 6 दिसंबर की तारीख़ का चयन किया जो बाबा साहब के निर्वाण की तारीख़ है।

कार्यक्रम के आरंभ में जसम लखनऊ के सचिव फ़रज़ाना मेहदी ने सभी का स्वागत किया तथा कार्यक्रम का संचालन भी उन्हीं के द्वारा किया गया। इस मौके पर चन्द्रेश्वर, शकील सिद्दीकी, रविकांत, भगवान स्वरूप कटियार, शैलेश पंडित, शिवाजी राय, दयाशंकर राय, मीना सिंह, अवंतिका सिंह, कल्पना पाण्डेय, विमल किशोर, अखिलेश श्रीवास्तव चमन, उमेश पंकज, अजीत प्रियदर्शी, अरुण खोटे, कलीम खान, अरविन्द शर्मा, राकेश सैनी, शान्तम निधि, धर्मेन्द्र कुमार, अजय शर्मा, राम किशोर, के के शुक्ला, वीरेन्द्र त्रिपाठी, आर के सिन्हा, प्रमोद प्रसाद, आलोक कुमार श्रीवास्तव, लाल बहादुर सिंह, सत्य प्रकाश चौधरी, उग्रनाथ नागरिक, डंडा लखनवी, राजेन्द्र वर्मा, तुकाराम वर्मा, अमिता यादव, मोहम्मद ओवासिस, ज्योति राय, शशांक, के के वत्स, रमेश सिंह सेंगर, राजीव गुप्ता, मंसा राम, कौशल किशोर आदि मौजूद थे।

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