जन संस्कृति मंच की ओर से 28 दिसंबर 2024 को छज्जूबाग, पटना में समकालीन जनमत की प्रबंध संपादक और जसम, उ.प्र. की उपाध्यक्ष कॉ. मीना राय की स्मृति में एक सभा का आयोजन हुआ। सभा में पटना के प्रमुख बुद्धिजीवियों, साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों और भाकपा-माले के नेताओं ने कॉ. मीना राय को वाम-जनतांत्रिक आंदोलनों में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए याद किया।
आरंभ में जसम, पटना के सचिव राजेश कमल ने कॉ. मीना राय के संघर्षशील जीवन तथा भाकपा-माले, जन संस्कृति मंच और जनमत के साथ-साथ शिक्षा, मानवाधिकार, स्त्रियों और छात्रों के आंदोलनों तथा हिन्दी पट्टी में वैचारिक साहित्य के प्रचार-प्रसार के प्रति निभायी गयी उनकी भूमिका को रेखांकित किया। उनके सहज, विनम्र, मृदुल, सहयोगी और आत्मीय व्यवहार की चर्चा करते हुए कहा कि वे एक स्नेहिल अभिभावक की तरह थीं। उनकी आत्मकथा ‘समर न जीते कोय’ स्त्री मुक्ति आंदोलन और सशक्त स्त्री व्यक्तित्व के निर्माण की दृष्टि से प्रासंगिक है। फिलहाल प्रकाशन, वितरण, विक्रय और प्रबंधन के मोर्चे पर उनका कोई विकल्प नजर नहीं आता। उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि इस मोर्चे को मजबूत किया जाए तथा साथ ही समाज, संगठन, आंदोलन और जीवन के हर क्षेत्र में स्त्री को आजादी के साथ भूमिका निभाने लायक माहौल बनाया जाए।
इसके पूर्व सभा में उपस्थित लोगों ने कॉ. मीना राय की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित की और उनकी स्मृति में एक मिनट का मौन रखा। इसके बाद एक डाक्यूमेंटरी की प्रस्तुति हुई, जिसमें संजय जोशी ने उनसे बातचीत की है, जिसमें वे पुस्तकों-पत्रिकाओं के प्रचार-प्रसार, उनके स्टॉल और एक छोटा-सा ऐसा घर बनाने के अपने सपने को साझा करती हैं, जहां पुस्तकों के साथ-साथ एक तरह के विचार वाले सांस्कृतिक कार्यकर्ता भी रहें। जन संस्कृति मंच, पटना के कलाकारों ने कॉ. मीना राय की स्मृति में शहीद गीत ‘कारवां बढ़ता रहेगा’ गीत का गायन किया।
सभा को संबोधित करते हुए भाकपा-माले, बिहार के राज्य सचिव कॉ. कुणाल ने कहा कि कॉ. मीना राय लोकतंत्र और सामाजिक बदलाव की मुखर आवाज थीं। पार्टी का कोई ऐसा बड़ा कार्यक्रम नहीं हुआ होगा, जिसमें उनकी उपस्थिति न रही हो। उन्होंने बाहर और घर-परिवार दोनों मोर्चों पर एक तरह का जीवन जिया। वे चुपचाप काम करती रहीं। उन्होंने एक बड़ी जिम्मेवारी निभायी। वे खुद में एक मोर्चा थीं। जिस समय सत्ता हर सच को दबा देने में जुटी हुई है, वैसे समय में जनमत निकालना एक बहुत बड़ी चुनौती का काम था, जो उन्होंने किया। आज के फासीवादी दौर में इस पत्रिका को निकालना एक तरह से चुनौतियों का सामना करना ही था। उनके जाने से एक बड़ा खालीपन पैदा हुआ है। हमें उनकी संघर्षशील विरासत को आगे बढ़ाना होगा।
बुद्धिजीवी और लेखक व्यास जी ने छात्र जीवन की यादों को साझा करते हुए बताया कि मीना राय जब इलाहाबाद आयी थीं, तो एक घरेलू महिला के रूप में आयी थीं, पर उनके व्यक्तित्व में जो बदलाव आया, उसे देखकर यह महसूस होता है कि मनुष्य खुद को परिवर्तित भी कर सकता है। हममें से बहुत सारे लोगों के लिए उनका अचानक चले जाना व्यक्तिगत क्षति है। वे समकालीन जनमत के लिए बहुत चिंतित रहती थीं।
कथाकार हृषिकेश सुलभ ने बताया कि किस तरह पीरमुहानी स्थित उनके आवास में उनका आना हुआ। जब वे छुट्टियों में पटना आती थीं, तो आजाद मार्केट, पीरमुहानी स्थित किताबों की दूकान में आती थीं। भौगोलिक निकटता भी किसी व्यक्ति से हमें जोड़ती है। हम देख सकते हैं कि कैसे धीरे-धीरे उनका एक व्यक्तित्व निर्मित हुआ। उनके व्यक्तित्व में जो रूपांतरण हुआ, वह काफी महत्त्वपूर्ण है। वे कम्युनिस्ट विचारों से जुड़कर एक सांस्कृतिक-साहित्यिक और राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में विकसित हुईं। उनका जाना एक सामाजिक क्षति भी है। रंगकर्मी मोना झा ने भी उनके निधन को पूरे समाज की क्षति बताया।
वरिष्ठ माले नेता कॉ. के.डी. यादव ने कहा कि वे साधारण परिवेश से निकल कर कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़ीं और एक असाधारण व्यक्तित्व की आदर्श महिला कम्युनिस्ट बनीं।
समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर ने कहा कि पहले उनका संपर्क रामजी राय से हुआ, उसके बाद मीना जी से संपर्क हुआ और उनका व्यक्तिगत रूप से बहुत दुख भरे क्षण में भी और खुशियों में भी साथ मिला। मीना जी की तुलना केवल मीना जी से ही की जा सकती है। आदमी ही आदमी का आईना होता है। मीना जी के आईने में हम अपना चेहरा देख सकते हैं, अपनी बदसूरती को सुधार सकते हैं।
समकालीन लोकयुद्ध के प्रबंध संपादक कॉ. संतलाल ने कहा कि मीना राय पार्टी के आंदोलनों और संघर्षों से जुड़ते हुए खुद भी बदलती चली गयीं। उनका जनमत से नहीं, बल्कि उसके माध्यम से जनमत से जुड़े व्यापक सरोकारों से भी संबंध था।
जन संस्कृति मंच, बिहार के अध्यक्ष कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने कहा कि कुछ लोग अपने आचरण और व्यवहार से प्रभावित करते हैं। मीना राय भी ऐसी ही थीं। हमें मीना जी के अधूरे कामों को पूरा करने का संकल्प लेना चाहिए।
अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव कॉ. राजाराम सिंह ने कहा कि मीना राय नेपथ्य में काम करने वाली एक महत्त्वपूर्ण कार्यकर्ता थीं। कम्युनिस्ट आंदोलन में हर आदमी चाहे वह जिस मोर्चे पर हो, वह साथी होता है, कामरेड होता है। मीना राय एक शिक्षक थीं, एक कम्युनिस्ट नेता थीं। अस्सी के दशक में किसान सभा के जुलूसों में महिलाएं अगली कतार में होती थीं। मीना राय वैसी ही अगुआ कामरेड थीं। उनके जीवन को देखकर यह यकीन होता है कि महिलाओं की मुक्ति कम्युनिस्ट आंदोलन से मिलकर ही होगी।
ऐपवा की नेता कॉ. सरोज चौबे ने कहा कि किस तरह इलाहाबाद में वे लोग मीना भाभी के जीवन के बारे में बताकर लड़कियों को संगठन की ओर आकर्षित करती थीं। छात्र संघ चुनाव में जब मशाल जुलूस निकलता था, तो पहले लड़कियां उसमें शामिल नहीं होती थीं, लेकिन उस जुलूस में मीना राय होती थीं। जनमत से तो उनका जुड़ाव बाद में हुआ, उनका पहले छात्र-राजनीति से ही जुड़ाव हुआ, फिर छोटी-सी लाइब्रेरी बनी, सांस्कृतिक टीम ‘दस्ता’ का निर्माण हुआ। मीना भाभी एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी करती थीं, साइकिल से स्कूल आती-जाती थीं। हमलोगों के बीच वे आदर्श थीं।
‘फिलहाल’ पत्रिका की संपादक प्रीति सिन्हा ने कहा कि मीना राय एक देह से अनेक श्रम करती, हर मोर्चे पर संघर्ष करती औरत थीं। ऊपर से सख्त भी दिखती थीं। पता ही नहीं चलता था कि कब अभिभावक बन गयीं। वे दिल और दिमाग से बहुत मजबूत थीं। अभी उनको नहीं जाना था। उनके महत्त्व को बताने के लिए शब्द कम पड़ते हैं।
पीयूष राज ने इलाहाबाद और जेएनयू में अपनी सक्रियता के दिनों को याद करते हुए कहा कि जनमत के माध्यम से उन्होंने मीना राय को जाना। वे इलाहाबाद के केंद्र में थीं। उन्हें किताबों की दुनिया की गहरी समझ थी। उनके लगातार आग्रह का परिणाम यह था कि एक समय जेएनयू में जनमत के 100 सदस्य बन गये थे।
आइसा के पूर्व महासचिव और विधायक संदीप सौरभ ने भी कहा कि वे लोग इलाहाबाद से आए साथियों से मीना भाभी की चर्चा अक्सर सुनते थे। आइसा ही नहीं दूसरे संगठनों के लोगों से भी। छात्र-युवाओं को कम्युनिस्ट आंदोलन से जोड़ने में रामजी राय और मीना राय दोनों की अहम भूमिका थी। हाल में पार्टी के अधिवेशन में उन्होंने कहा कि अब भी छात्र-युवाओं के बीच आप काम करते हैं, 100 लोगों को जनमत का सदस्य बनाइए। सच तो यह है कि जनमत, जन संस्कृति मंच और विद्यालय जहां वे पढ़ाती थीं- इन सब मोर्चों पर उन्होंने एक साथ काम किया। समकालीन जनमत को कंटेट और प्रसार के आधार पर अधिक व्यवस्थित करके हमें उनके अधूरे सपनों को पूरा करना चाहिए।
समकालीन जनमत के संपादक मंडल सदस्य सुधीर सुमन ने परवीन शाकिर के एक शेर के हवाले से कहा कि एक सामंती परिवेश में जन्म लेने के बावजूद मीना भाभी की मिट्टी में बगावत बहुत थी, जिन कामों की मनाही थी, वही करने में उन्हें मजा आता था। मसलन घर के पास के गहरे पोखरे में तैरना, वृक्षों पर चढ़ना आदि। इलाहाबाद आने के बाद जो आजादी उन्हें हासिल हुई, उससे उन्होंने समझौता नहीं किया, फिर से नैहर या ससुराल के परंपरागत ढांचे में नहीं लौटीं। बेशक उनको एक आंदोलन ने गढ़ा, पर उन्होंने भी अपने तईं अपनी भरपूर ऊर्जा उस आंदोलन को दी। वे बिना किसी शोर के गहरी प्रतिबद्धता के साथ अपना काम करती रहीं, ऐसे लोगों के न रहने के बाद तो उनकी कमी बहुत महसूस होती है, पर हमें यह भी सोचने की जरूरत है कि ऐसे लोगों के जीवित होते हमें उनकी कितनी चिंता रहती है, उनके संघर्षों और सपनों में हमारी कितनी सक्रिय साझेदारी रहती है। हम उनके व्यक्तिगत जीवन की मुश्किलों और दुश्वारियों के बारे में कितनी दिलचस्पी रखते हैं। अचानक किसी को ब्रेन हेमरेज नहीं हो जाता। हमें अपने साथियों की अंदरूनी दुनिया की खोज-खबर भी लेती रहनी चाहिए। वीडियो में मीना राय जैसा बताती हैं, उसके अनुसार यदि एक भी व्यक्ति उन्हें नहीं मिलता, जो किताबों के स्टॉल और बिक्री के कार्य में उनका पूरी तरह साथ दे सके, तो यह सामान्य संकट नहीं है। मीना जी को याद करना तभी अधिक सार्थक है, जब इस मोर्चे को उनके सपनों के अनुरूप अधिक सक्षम और सक्रिय बनाया जाए। सुधीर सुमन ने होली और कॉ. अमर की शादी के प्रसंग को याद करते हुए कहा कि मीना भाभी हंसी-खुशी और उल्लास का कोई मौका नहीं छोड़ती नहीं थीं। इस मामले में वे संपूर्ण मनुष्य थीं।
ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव कॉ. मीना तिवारी ने कहा कि पटना हो या देश का किसी भी हिस्से में संगठन का कोई बड़ा आयोजन हो रहा हो, वहां मीना जी अपने किताबों के स्टॉल के साथ मौजूद रहती थीं। उनकी चिंता रहती थीं कि किताबों को लोगों तक कैसे पहुंचाया जाए। कॉ. शशि यादव ने याद किया कि वे किताबें खरीदने के लिए प्रेरित करती थीं। किस किताब को क्यों खरीदा जाए, यह भी बताती थीं। कोरस की रिया ने भी उनकी इसी भूमिका को याद किया।
सोशल एक्टिविस्ट मधुबाला ने कहा कि मीना राय बहुत मृदुल, मेहनती तथा अपने घर-परिवार और काम के प्रति प्रतिबद्ध एक ऐसी एक्टिविस्ट थीं, जिन्होंने महिलाओं के लिए एक प्रतिमान स्थापित किया। वे अपनी सक्रियता के जरिए दूसरों को भी सक्रिय होने की प्रेरणा देती थीं।
मीडियाकर्मी प्रीति प्रभा ने बताया कि मैट्रिक करने के दो वर्ष पूर्व ही 2008 में जसम के सम्मेलन में उनकी पहली बार मीना राय से मुलाकात हुई थी। वहां उन्होंने जनमत बेचने की जिम्मेवारी दी। किताबें और जनमत बिक जाती थीं, तो वे बच्चों की तरह खुश हो जाती थीं। वे उनके लिए मीना आंटी बन गयीं और पहली बार जिस तरह मिलीं, अंत तक उनका व्यवहार वैसा ही रहा। प्रीति ने कहा कि कम्युनिस्ट पार्टी में पतियों के पार्टी में बने रहने के लिए बहुत सारी महिलाओं ने संघर्ष किया, वे सब भी कामरेड थीं। मीना आंटी के साथ उन महिलाओं को सलाम करना चाहिए।
डॉ. सत्यजीत ने कहा कि आज समाज जिस दिशा में जा रहा है, वह बेहद चिंताजनक है। ऐसे समय में मीना राय का जाना एक अपूरणीय क्षति है। शायर संजय कुमार कुंदन ने मीना राय को याद करते हुए कहा कि सरल कहना, सरल लिखना और सरल जीना बहुत मुश्किल होता है। प्रलेस के राज्य उपाध्यक्ष रंगकर्मी अनीश अंकुर ने कहा कि चंदू की हत्या और गदर को गोली लगने के बाद एक कार्यक्रम हुआ था, जिसमें उनकी मुलाकात रामजी राय से हुई। उसके बाद आजाद मार्केट, पीरमुहानी समकालीन प्रकाशन में मीना जी से मुलाकात हुई। फिर धीरे-धीरे उनके बारे में जाना। सांस्कृतिक क्षेत्र में जिस तरह प्रदर्शन करने वालों को लोग देखते हैं, पर नेपथ्य वालों पर ध्यान नहीं जाता। वैसे ही कम्युनिस्ट आंदोलन में संगठक प्रायः नेपथ्य में होते हैं। समकालीन प्रकाशन में जगदीश जी की जो परंपरा थी, मीना जी ने उसी परंपरा को आगे बढाया।
‘तलाश’ पत्रिका की संपादक मीरा दत्त ने मीना राय के लेखन और उनसे संबंधित संस्मरणों के संग्रह प्रकाशित करने का सुझाव दिया। वरिष्ठ शिक्षाविद् गालिब ने कहा कि उन्होंने अपनी वैचारिकता का विकास आंदोलनों के साथ जुड़कर किया। उनके जीवन-वृत्त को संग्रहित करके प्रकाशित किया जाए, ताकि उससे नई पीढ़ी को प्रेरणा और उर्जा मिल सके। संचालन कॉ. अनिल अंशुमन ने किया।
इस अवसर पर प्रो. संतोष कुमार, प्रो. भारती एस. कुमार, जसम के राज्य सचिव रंगकर्मी दीपक सिन्हा, कथाकार संतोष दीक्षित, इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव तनवीर अख्तर, अरवल के विधायक कॉ. महानंद, डुमरांव के विधायक अजीत कुशवाहा, कवि प्रशांत विप्लवी, प्रतिभा वर्मा, कृष्ण सम्मिद्ध, कॉ. अभ्युदय, कॉ. नवीन कुमार, राजन कुमार, राम कुमार, अभिनव, प्रमोद यादव, शिल्पी रवींद्र, अभियान के जयप्रकाश, पीयूसीएल के राज्य सचिव सरफराज, एआईपीएफ के संयोजक कमलेश शर्मा, भाकपा-माले के मीडिया प्रभारी परवेज, प्रकाश, आइसा की राज्य अध्यक्ष प्रीति कुमारी, आरवाईए के नेता विनय, एक्टू के शैलेंद्र शर्मा समेत कई राजनीतिक कार्यकर्ता और साहित्यकार-संस्कृतिकर्मी मौजूद थे।