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‘ भविष्य के सपनों को देखने के लिए इतिहास बोध ज़रूरी ’

‘राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ के सभागार में ‘सांस्कृतिक राजनीति और हाशिए का समाज’ विषय पर गोष्ठी का आयोजन

मऊ। भारत जन ज्ञान-विज्ञान समिति एवं जन संस्कृति मंच के संयुक्त प्रयास से राहुल सांकृत्यायन सृजनपीठ-मऊ के सभागार में 17 मार्च को ‘ सांस्कृतिक राजनीति और हाशिये का समाज ‘ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।

आधार वक्तव्य देते हुए डॉ.रामनरेश राम ने कहा कि संस्कृति के क्षेत्र में वर्चस्व का सिद्धांत भारत में लगातार चलता रहा है। एक ओर लोकतान्त्रिक मूल्यों की संस्कृति तो दूसरी वर्चस्व की संस्कृति रही है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ भारत में लोकतान्त्रिक मूल्यों और समता की संस्कृति की जीत हुई थी लेकिन अब वर्चस्व की संस्कृति वापसी कर रही है।बहुजनों के इतिहास को छिपा कर रखा गया। भविष्य के सपनों को देखने के लिए इतिहास-बोध का होना आवश्यक है।आज राम को सबसे बड़े देवता के रूप में स्थापित करने के साथ अन्य संप्रदायों के देवी-देवताओं को कमतर किया जा रहा है यही सांस्कृतिक वर्चस्व है। और इसी प्रक्रिया से हमारे दौर की राजनीति अपनी राजनीतिक संस्कृति को स्थापित कर रही है। भारत की मूल संस्कृति में कभी भी तानाशाही की प्रवृत्ति नहीं रही है जबकि हिन्दू धर्म की संस्कृति में जो जातिवाद है वही उसकी आत्मा है। भारत का राजनीतिक फासीवाद इसी संस्कृति से ऊर्जा ग्रहण करता करता है।

मुख्य वक्ता आर.डी आनन्द ने बताया कि बुद्ध ने कहा था कि दुखः है ,दुःख का कारण है और उसका निवारण भी है। हाशिए के समाज मैं भी दुःख है। लेकिन उसका निवारण कहाँ है ?  वर्चस्व की राजनीति ने हाशिए के समाज के दुःख को कभी समझने की कोशिश नहीं की ।यदि सत्ता ने शिक्षा को नगण्य किया है तो क्या उससे अनूसूचित समाज ही प्रभावित हुआ है। मेरे विचार से अधिकतम अनुसूचित समाज के लोग तबाह हैं साथ में अन्य जातियाँ भी। नौकरशाही सत्ता और राजनेताओं के मनमाफिक काम करती है। विरोध और क्रांति की संस्कृति जब तक पैदा नहीं होगी तब तक सांस्कृतिक राजनीति से हाशिए का समाज प्रभावित होता रहेगा। हाशिए का समाज केवल अनुसूचित जाति में ही नहीं सवर्ण समाज में भी हैं और वो भी अपने समाज से शोषित हो रहे हैं। भारत में बाह्मण की नहीं बाह्मणवाद की पैठ है। जाति के उन्मूलन के लिए सुधार नहीं, क्रांति करनी पड़े‌गी।

मुख्य अतिथि हरिचंद्रा ने कहा कि हम सत्ता के विरोध में बोलते हैं, बाह्मणवाद का विरोध करते हैं लेकिन कभी-कभी हमें लगता है कि हम अपने समाज में बाह्मणवाद और पितृसत्ता का समर्थन करते हुए नजर आते हैं। इस सब बातों से हमें बाहर निकलने की जरूरत है। बाबा साहब जाति का उन्मूलन चाहते थे, जाति उन्मूलन से सामाजिक समरसता स्थापित हो सकती है।

शिवचंद राम ने कहा कि सांस्कृतिक राजनीति देश की सत्ता पर अपने वर्चस्व को बनाये रखने का हथियार है और इसका शिकार है हाशिए का समाज। मिथकों के दुनिया से हाशिए के समाज को टकराना होगा। संस्कृति और राजनीति के पिच पर ही केवल खेल नहीं होगा। मिथकीय मूल्यों से ओत -प्रोत समाज से हम दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं। राजनीति को अपने मूल स्वरूप में आने में शर्म आती है इसलिए ये धर्म और संस्कृति का चोला ओढ़कर आती है। हमें वैज्ञानिक सोच के आधार पर वैकल्पिक संस्कृति निर्मित करने की जरूरत है।

समकालीन सोच के संपादक रामनगीना कुशवाहा ने कहा कि हमारा सांस्कृतिक राष्ट्र‌वाद यदि हजारों साल पुराना है तो हम बार-बार गुलाम क्यों हुए ? जाति एक भावनात्मक मुद्दा है। जाति की राजनीति सांप्रदायिक राजनीति की ओर ले जाती है।

डॉ० रामविलास भारती ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जब हम हाशिए की समाज की बात करते हैं तो वहाँ भी जातिवाद आ जाता है। आज भी समाज में दो वर्ग हैं विभाजित एक शोषक और दूसरा शोषित। राजनीति में हमेशा से हाशिए का समाज कोप-भाजन का शिकार होता रहा है। देश के सांस्कृतिक राजनीतिकरण ने हाशिए के समाज का शोषण ही किया है।

राघवेन्द्र प्रसाद  ने कहा कि संसार में सांस्कृतिक द्वन्द्व रहा है। आज समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने की जरूरत है।कोई भी संस्कृति बिना किसी वस्तुगत आधार के पैदा नहीं हो सकती।हाशिए का समाज सदैव संघर्ष करता रहा है।

नीतू ने अपनी बात रखते हुए बताया कि सांस्कृतिक राजनीति बहुत समय से हमारे देश में जाति और धर्म के नाम से व्याप्त है। इसकी आड़ में हमेशा से हाशिए के समाज को ठगा गया है।

अध्यक्ष अनुभव दास ने सांस्कृतिक राजनीति को हाशिए के समाज के लिए खतरनाक बताया है।गोष्ठी का संचालन डॉ.तेजभान और धन्यवाद ज्ञापन मनोज सिंह ने किया।विचार गोष्ठी की शुरुआत कुमारी आंचल और जान्हवी की सुन्दर गीतों से हुई।

इस अवसर पर सत्य प्रकाश सिंह एडवोकेट, ओम प्रकाश सिंह,रामकुमार भारती, का. वीरेंद्र कुमार, डा. त्रिभुवन शर्मा अरविन्द मूर्ति,बसंत कुमार, रामभुवन, सुभाष चक्र देवा,शैलेश मौर्या, रामजनम सागर, ब्रिकेश यादव, निशा यादव,विद्या, रामप्रवेश यादव, लक्ष्मी चौरसिया, मुन्नू राम, सुबास जी, रामअवध राव, फकरे आलम, डॉ.राम शिरोमणि, संजय सिंह, डॉ.मुशीर अहमद, जय प्रकाश, आदि उपस्थित रहे।

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