बाराबंकी. ‘ ललई यादव को भुला देना समाजवादी आंदोलन का भटकाव था. दूसरे शब्दों में ब्राह्मणवाद पूंजीवाद के समक्ष समर्पण था. जो वैचारिक संघर्ष ललई यादव व रामस्वरूप वर्मा ने चलाया था उसे सहेजने सँवारने और जन जन से जोड़ने को जरूरत है .’
यह बातें जवाहर लाल नेहरू स्मारक परास्नातक महाविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर डॉ राजेश मल्ल ने पेरियार ललई सिंह यादव के 97 वें जन्म दिन पर कंपनीबाग में आयोजित कार्यक्रम में कही.
डॉ मल्ल ने ललई सिंह की रचनाओं खासकर उनके पांच नाटकों- अंगुलिमाल, शम्बूक बध, एकलव्य, नागयज्ञ, संतमया बलिदान को हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर बताया. डॉ मल्ल ने उन्हें उत्तर भारत में श्रमण संस्कृति और वैचारिकी के नव जागरण अग्रदूत बताया.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जवाहर लाल नेहरू स्मारक परास्नातक महाविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग डॉ भगवान वत्स ने कहा कि समाजवादी आंदोलन की रीढ़ जो समाज मे सच्ची समानता का सपना लेकर चल रहे थे उन्हें याद न रखना उंनके बताए रास्ते पर न चलना भारी भूल थी. सच्चे समाजवादी ललई यादव और राम स्वरूप वर्मा के विचार वर्तमान समय की जरूरत हैं. कार्यक्रम में डॉ सुविद्या वत्स, प्रदीप सारंग, मनोज स्वतंत्र ने भी विचार व्यक्त किये.