समकालीन जनमत
ज़ेर-ए-बहस

क्या प्रधानमंत्री वकील मुक्त अदालतें चाहते हैं ?

एएनआई को दिए अपने इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने राममंदिर पर जो कुछ कहा है, वह न्यायिक प्रक्रिया में सत्ता की ताक़त के बल पर किया गया अनुचित हस्तक्षेप है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद अध्यादेश लाने पर विचार किया जाएगा। जाहिर है, संदेश यह दिया जा रहा है कि अनुकूल फैसला न आने पर अध्यादेश के जरिए उसे पलट दिया जाएगा। अन्यथा फैसले के बाद अध्यादेश लाने पर विचार करने का क्या मतलब है ?

अदालत पहले ही घोषित कर चुकी है कि उसके लिखे मंदिर का मामला महज जमीन की मिल्कियत का है। राष्ट्रीय अथवा साम्प्रदायिक आस्था का नहीं, जैसा कि बीजेपी उसे बनाना चाहती है।

प्रधानजी ने कहा, ” न्यायिक प्रक्रिया के पूरे हो जाने के बाद एक सरकार के रूप में जो भी हमारी जिम्मेदारियां होंगी, हम उनको पूरा करने की हर कोशिश करेंगे।’

यह राम मंदिर की आस लगाए बैठे बीजेपी के निराश वोटर को दी गई एक ढांढस भी है।जरूरत पड़ने पर सरकार अध्यादेश लाने को तैयार है।

प्रधानजी ने शब्दों का इस्तेमाल फूंक फूंक कर किया है। इसका ध्यान रखते हुए कि मुंह से ऐसी कोई बात न निकल जाए जो गैरकानूनी लगे। लेकिन वे जिस पद पर हैं , उसकी गरिमा कुछ और है।

संविधान के चौकीदार के रूप में उन्हें स्पष्ट कहना चाहिए कि सरकार चल रही न्यायिक प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी। शीर्ष अदालत का जो भी फ़ैसला होगा, उसे सिरमाथे पर लिया जाएगा। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा।

आज के बयान में एक इशारा बीजेपी के उग्र समर्थकों के लिए भी है। वे भी ज़्यादा हंगामा न करें। सरकार तुरंत कुछ करने नहीं जा रही है। ऐसा करना देश में संवैधानिक संकट खड़ा करने के साथ सरकार की अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता को दांव पर लगाने जैसा होगा। सरकार यह ख़तरा मोल नहीं लेगी। सिर्फ़ एक माहौल बनाए रखेगी कि जरूरत के मुताबिक वह कुछ भी करने के लिए तैयार है। उन्नीस की चुनावी नैया इतने भर से पार हो जाएगी।

सियासी दांव को मुक़म्मल करते हुए प्रधान जी ने जाते जाते कांग्रेस को भी लपेट लिया। यह कह कर कि कांग्रेस के वकील मामले में अड़ंगा डाल रहे हैं। वे दुनिया के पहले प्रधानमंत्री हैं, जो यह मानता है कि वकील अदालत की मदद नहीं करते, उसके काम में अड़ंगा डालते हैं ! क्या यह वक़ील मुक्त अदालत की नई संकल्पना है ?

अब किसे याद है कि कांग्रेस इस मामले में कोई पार्टी नहीं है। कोई वक़ील अदालत में अपनी पार्टी का नहीं, अपने मुद्दई का प्रतिनिधि होता है। लेकिन प्रधान जी ने लगभग रोनी सी सूरत बनाकर कांग्रेस से बाधा न डालने की जो अपील की है, उससे भावुक भक्तों की नज़र में कांग्रेस ही खलनायक हो जाती है।

प्रधानजी जुमलों के नटनागर हैं। वे सियासी जुमलों की तनी हुई रस्सी पर एक कुशल नट की सावधानी से चलते हुए कुछ ऐसे इशारे उछाल देते हैं, जिसका हर कोई अपनी चाहत और जरूरत के हिसाब व्याख्या कर सके।

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