लखनऊ। गाज़ा पट्टी पर इज़रायली ज़ायनवादियों के बर्बर हमले और फ़िलिस्तीनी जनता के जारी जनसंहार के ख़िलाफ़ लखनऊ में विभिन्न जनसंगठनों की ओर से 21 अक्टूबर को प्रदर्शन किया गया। क़ैसरबाग़ स्थित इप्टा कार्यालय से मार्च निकाला गया जिसे शहीद स्मारक तक जाना था लेकिन पुलिस की रोकटोक के कारण उसे पहले ही रोकना पड़ा। कमिश्नर कार्यालय के सामने एक छोटी सभा की गई और मानव शृंखला बनायी गयी।
एक तरफ़ भारत सरकार का प्रवक्ता फ़िलिस्तीन के पक्ष में बयान जारी कर रहा है और दूसरी ओर प्रशासन मोदी-योगी और संघ के हिसाब से हर जगह फ़िलिस्तीन के समर्थन में होने वाले प्रदर्शनों का दमन करने में लगे हैं। आज भी प्रदर्शन ख़त्म होने के बाद जब अधिकांश लोग बिखर चुके थे तब पुलिस ने महिला फेडरेशन की नेता आशा मिश्रा, कांति मिश्रा और कुछ अन्य महिलाओं को हिरासत में ले लिया और उन्हें वज़ीरगंज थाने ले गई। बाद में उनसे मुचलका भरवा कर छोड़ दिया गया।
मार्च के दौरान ‘गाज़ा पर बमबारी बन्द करो’, ‘फ़िलिस्तीन पर इज़रायली क़ब्ज़ा ख़त्म करो’, ‘फ़िलिस्तीनी अवाम का संघर्ष ज़िन्दाबाद’, ‘इज़रायली ज़ायनवाद मुर्दाबाद’, ‘फ़िलिस्तीन को न्याय चाहिए’, ‘न्याय नहीं तो शान्ति नहीं’, ‘इज़रायली-अमेरिकी गँठजोड़ का नाश हो’, ‘नेतन्याहू मुर्दाबाद’, ‘जो हिटलर की चाल चलेगा वो हिटलर की मौत मरेगा’ जैसे नारे लगाये गये।
मार्च में इप्टा, जन संस्कृति मंच, एडवा, महिला फ़ेडरेशन, एपवा, नौजवान भारत सभा, स्त्री मुक्ति लीग, राहुल फ़ाउण्डेशन, आइसा, एसएफ़आई, बापसा, एआईडीएसओ आदि जनसंगठनों के कार्यकर्ताओं के साथ ही वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व बुद्धिजीवी रमेश दीक्षित, वन्दना मिश्र, कात्यायनी, मधु गर्ग, आशा मिश्र, राकेश, कौशल किशोर, फ़रज़ाना महदी, राम किशोर, लालबहादुर सिंह, रमेश सेंगर, मीना सिंह, कमला गौतम, सत्यम, के के शुक्ला, आयुष श्रीवास्तव, वीरेंद्र त्रिपाठी, यादवेन्द्र, जयप्रकाश, मधुसूदन मगन, प्रवीर सिंह, कल्पना पांडेय आदि शामिल हुए।
मार्च के बाद विभिन्न जनसंगठनों के प्रतिनिधियों और शहर के गणमान्य बुद्धिजीवियों की ओर से हस्ताक्षरित ज्ञापन ज़िलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को भेजा गया जिसमें कहा गया है कि हम फिलीस्तीनी जनता के खिलाफ इजरायल द्वारा की जा रही बमबारी की सख्त निंदा करते हैं। साथ ही हम किसी भी तरह की आतंकवादी गतिविधि की भी सख्त निन्दा करते हैं।
ज्ञापन में कहा गया है कि इतिहास गवाह है कि फिलीस्तीन की जमीन पर इजरायल ने अवैध कब्जा कर वहां की जनता को गाजा़ पट्टी पर रहने को मजबूर किया। गाज़ा पट्टी पर रहने वाले 23 लाख लोगों के बुनियादी अधिकार छीन लिए गये। 1948 से गाज़ा पट्टी को एक यातना शिविर में बदल दिया गया और अपने ही देश में फिलीस्तीनी गुलाम हो गये। इजराइल ने फिलीस्तीन की ज़मीनी और समुद्री सीमाओं की नाकेबंदी कर रखी है। इस हमले में हजारों महिलाएं, बच्चे , व लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। गाज़ा के अस्पताल में राकेट से हमले की वजह से 471 निर्दोष नागरिकों की हत्या हुई जिसमें मासूम बच्चे भी शामिल हैं। यह मानवता के खिलाफ एक बर्बर अपराध है।
हमारे देश भारत ने हमेशा ही फिलीस्तीन पर इजरायल के कब्जे की निंदा की है और इजरायल के फिलीस्तीन पर अवैध कब्जे का विरोध किया है। भारत की दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा इजरायल के समर्थन में प्रचार किया जा रहा है जो सर्वथा हमारे देश की नीतियों के विरुद्ध है। हम भारत सरकार से फिलीस्तीन को हर प्रकार की सहायता भेजने की अपील करते हैं।
हम महात्मा गांधी के इस कथन पर अपना पूर्ण विश्वास व्यक्त करते हैं कि “फिलीस्तीन अरबों का है जिस प्रकार इंग्लैंड अंग्रेजों का और फ्रांस फ्रांसिसियों का है।” ज्ञापन में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी अपील की गई है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव द्वारा निर्धारित सीमाओं में फिलीस्तीन को बसाया जाये और उस पर से इजरायल के अवैध कब्जे को हटाया जाये। फिलीस्तीनी जनता को उनका स्वतंत्र देश व उनके अधिकारों की बहाली की जाये जिससे वे शांतिपूर्ण व सम्मानजनक जिंदगी जी सकें।