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दलित आंदोलन के प्रति उत्तर प्रदेश सरकार का दमनकारी रवैया

संदीप पाण्डेय/राजीव यादव/ मनोज सिंह

उत्तर प्रदेश सरकार के दमनकारी रवैया का एक और उदाहरण सामने आया है। 10 अक्टूबर को अम्बेडकर जन मोर्चा का गोरखपुर के मण्डलायुक्त कार्यालय पर धरना प्रदर्शन था। कोई चार से पांच हजार की भीड़ जुटी थी। बड़ी मांग यह थी कांशीराम द्वारा पहले उठाई गई मांग कि प्रत्येक भूमिहीन दलित, जिसमें अनुसूवित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग व अल्पसंख्यक समाज शामिल है, परिवार को एक एकड़ कृषि योग्य भूमि अपने जीवन यापन के लिए दी जाए। इसके अलावा ये भी मांग थी कि अनुसूचित जाति/जनजाति  के सभी परिवारों को व्यापार, व्यवसाय करने के लिए सरकार रु. 20 लाख अनुदान के रूप में दे, अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्र, छात्राओं को विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रति छात्र, छात्रा को रु. 25 लाख अनुदान के रूप में दिए जाएं, सभी के लिए शिक्षा एवं चिकित्सा पूर्णतया निशुल्क हो।

ये मांगें कोई अव्यवहारिक नहीं हैं। दलितों, वंचितों व भूमिहीनों के हितों की बात करने वाले समाजवादी, साम्यवादी, जनवादी संगठनों का पुराना नारा है – ’जो जमीन को जोते बोए, वही जमीन का मालिक हो।’ भूमिहीन वर्ग एवं उनके अधिकारों के लिए बात करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पता है कि दलित-वंचित-भूमिहीन की गरीबी का एक बड़ा कारण उसका भूमिहीन होना है क्योंकि वह बिना जमीन के जिंदगी भर दूसरों पर आश्रित रहेगा या कोई ऐसा व्यवसाय करेगा जिसमें उसे आत्म-सम्मान के साथ समझौता करना पड़ेगा और वह कभी भी अपनी स्थिति से उबर नहीं पाएगा। इसलिए गुजरात में जब मृत गोवंश की चमड़ी उतरने वाले दलितों पर गो-हत्या का आरोप लगा ऊंची जाति के लोगों ने सार्वजनिक रूप से उनकी पिटाई की तो युवा दलित नेता और अब विधायक जिग्नेश मेवानी ने अहमदाबाद से ऊना की यात्रा निकाल कर यह मांग की कि दलित मृत गोवंश की चमड़ी उतारने का काम छोड़ दें व सरकार उन्हें जमीन दे ताकि वे खेती करके सम्मानजनक ढंग से जी सकें।

अभी उ.प्र. में एक सवर्ण के यहां जब गोवंश की मृत्यु हुई और एक दलित वृद्ध व्यक्ति ने मृत पशु को हटाने में असमर्थता व्यक्त की तो सवर्णों ने उसे ले जाकर उसकी पिटाई की। अपनी जमीन का मालिक होने से जो सम्मान का भाव जगता है वह कोई अन्य काम करके नहीं प्राप्त किया जा सकता। जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए भी यह मांग जरूरी है अन्यथा दलित अपने पारम्परिक पेशों से नहीं निकल पाएंगे। अतः समझा जा सकता है कि भूमिहीन दलितों द्वारा खेती करने के लिए जमीन की मांग करना एक जायज मांग है और सरकार की नीति भी है कि भूमिहीन परिवारों को ग्राम पंचायत के माध्यम से भूमि के पट्टे मिलने चाहिए। हलांकि इसमें एक दिक्कत यह आती है कि पहले से ही ग्राम सभा की जमीनों पर कब्जे हैं। अब यदि कोई ऐसी जमीन किसी दलित  परिवार को आवंटित भी की जाती है जो पहले से ही किसी दबंग व्यक्ति के कब्जे में है तो दलित अपनी जमीन ताकतवर व्यक्ति से कैसे छुड़ाएगा? हरदोई जिले में एक मामले में पुलिस-प्रशासन की मदद से 30 साल बाद दलित परिवार अपनी जमीनों पर कब्जा कर पाए थे जब सवर्ण परिवार द्वारा उसी जमीन पर लगाए गए पेड़ों, जिसके बहाने सवर्ण परिवार अपना कब्जा नहीं छोड़ रहा था, को काटा गया।

इसलिए शायद तेलंगाना सरकार ने यह फैसला लिया है कि वह जमीन खरीद कर भूमिहीन दलित महिलाओं को 3 एकड़ तक जमीन की स्वामिनी बनाएगी। मार्च 2022 तक 16,906.34 एकड़ भूमि रु. 755.94 करोड़ में खरीद कर 6,874 परिवारों में वितरित की जा चुकी है। तेलंगाना सरकार दलित बंधु नामक योजना के तहत दलितों परिवारों कोे रोजगार के लिए रु. 10 लाख अनुदान भी उपलब्ध करा रही है। इस योजना के तहत तेलंगाना सरकार 2022-23 में रु. 4,191.8 करोड़ खर्च कर 38,328 परिवारों को लाभ पहुंचा चुकी है। इसी तरह दलित छात्र, छात्राओं को विदेश में पढ़ने के अवसर सुलभ कराने के लिए अम्बेडकर ओवरसीज़ विद्या निधि के तहत प्रत्येक अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्र, छात्रा को रु. 20 लाख की भी आर्थिक मदद का प्रावधान है। इसी प्रकार महात्मा ज्योतिबा फूले के नाम पर पिछड़ा वर्ग के छात्र, छात्राओं के लिए एक योजना है। 2022 तक रु. 863.49 करोड़ की मदद से 6,352 अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़ा वर्ग व अल्पसंख्क समुदाय के छात्र, छात्रा इन योजनाओं का लाभ प्राप्त कर चुके हैं।

जिन देशों में सरकारों ने समान शिक्षा एवं चिकित्सा प्रणाली मुफ्त अपने नागरिकों को उपलब्ध करा रखी है वहां के सामान्य नागरिकों को अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा व चिकित्सा सेवाएं मिलती हैं। इन देशों में साक्षरता की दर 99-100 प्रतिशत तक पहुंची है। करोना काल में भारत में सरकारी चिकित्सा व्यवस्था ही सक्रिय थी, निजी अस्पतालों ने तो हाथ खड़े कर दिए थे। अतः शिक्षा व चिकित्सा सरकार खुद चलाए एवं नागरिकों के लिए मुुफ्त रहे यह भी कारगर मांग है।

 अम्बेडकर जन मोर्चा की सारी मांगें जायज थीं एवं धारना-प्रदर्शन शांति पूर्ण चला और रात को 9 बजे जिलाधिकारी ने ज्ञापन भी ले लिया और आशवासन दिया कि मांगों पर आगे की कार्यवाही के लिए दस लोगों की समिति बनेगी जिममें पांच प्रशासन की ओर से रहेंगे एवं पांच संगठन की तरफ से। फिर देर रात प्रशासन ने क्यों गिरफ्तारियों शुरू कर दीं यह समझ से परे है ? सेवा निवृत आई.पी.एस. जो पुलिस महानिरीक्षक पद पर रहे एस.आर. दारापुरी को अगले दिन सुबह साढ़े आठ बजे उनके होटल से गिरफ्तार किया गया जबकि उनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने धरना प्रदर्शन स्थल पर जाकर कुछ समय रहकर भाषण दिया था। इससे पहले 2019 में योगी सरकार दारापुरी को नागरिकता संशोधन अधिनियम व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के विरुद्ध आदोलन में शरीक होने का आरोप लगा कर गिरफ्तार कर चुकी है। जिस दिन उन पर आंदोलन को उकसाने का आरोप है उस दिन वे अपने घर पर पुलिस द्वारा नजरबंद थे।

ताजा प्रकरण में अम्बेडकर जन मोर्चा के मुख्य संयोजक श्रवण कुमार निराला, लेखक पत्रकार रामू सिद्धार्थ, ऋषि कपूर, नीलम बौद्ध, जय प्रकाश भीम, तीन युवा पत्रकार व एक फ्रांसीसी नागरिक हेनॉल्ड वेलेंटीन ज़ॉन रॉजर को भी गिरफ्तार किया गया है। वहां फ्रांसीसी नागरिक की उपस्थिति को आधार बना कर सरकार यह भी आरोप लगा रहीं है कि आंदोलन विदेश से प्रायोजित था।

गिरफ्तार किए गए लोगों पर जो आरोप लगाए गए हैं वे हास्यास्पद हैं। आरोप लगाया गया है कि गिरफ्तार लोगों ने सरकारी काम में बाधा डाली , कार्यालय में घुसकर कागज फाड़े गए। राजेश कुमार शर्मा जो मण्डलायुक्त कार्यालय में नाजिर है द्वारा आंदोलनकारियों पर आरोप लगाया गया है कि उनके साथ कार्यालय में घुसकर मार-पीट की, बिजली चोरी कर ध्वनि यंत्र व जनरेटर चलाया गया। जबकि सच्चाई यह है कि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं। सवाल यह है कि जायज मांगों को लेकर एक शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन करने वालों पर उ.प्र. सरकार झूठा मुकदमा लिखकर उनको जेल में क्यों बंद किए हुए है? शायद योगी आदित्यनाथ ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया कि चार-पांच हजार लोगों ने गोरखपुर के मण्डलायुक्त कार्यालय पर धरना-प्रदर्शन कैसे कर दिया ? वे शायद नहीं चाहते कि ऐसे धरने और हों। लेकिन वे यह जान लें कि जनता की जायज मांगों को लेकर हुए आंदोलन को आप कुचलने के कोशिश कीजिएगा तो अंदोलन और बड़ा होगा।

अम्बेडकर जन मोर्चा की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में दलितों-वंचितों की जायज मांगों को उठाए रखने का काम किया है और इन मांगों को लेकर गोरखपुर में दो सालों में अपना तीसरा धरना आयोजित किया। हम उम्मीद करते हैं कि उनके आंदोलन से प्रदेश की राजनीति, जो भारतीय जनत पार्टी के प्रभाव में भावना प्रधान मुद्दों में फंस गई है, में जनहित के मुद्दे ठोस तरीके से उठेंगे और देर-सबेर सफलता भी मिलेगी।

राजीव यादव सोशलिस्ट किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष हैं, मनोज सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं और संदीप पाण्डेय सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के राष्ट्रीय महासचिव हैं।

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