समकालीन जनमत
कोडरमा के भाकपा माले प्रत्याशी राजकुमार यादव
ख़बरग्राउन्ड रिपोर्ट

कोडरमा में त्रिकोणीय संघर्ष में बढ़त लेती भाकपा ( माले )

कोडरमा। 16 लाख से ऊपर मतदाताओं वाली झारखंड की कोडरमा लोकसभा सीट छह विधान सभाओं कोडरमा, बरकट्ठा, जमुआ, गांडेय, राजधनवार और बगोदर वाली तीन ज़िलों गिरीडीह, कोडरमा और हजारीबाग जिले में फैली है। देश का 90% अभ्रक इसी की खदानों से निकलता रहा है। दामोदर नदी, तिलैया बांध बिजली उत्पादन के सबसे पुराने उत्पादन केंद्रों में से एक, विशाल वन क्षेत्र से समृद्ध यह इलाका कभी अभ्रक की चमक से रोशन हुआ करता था। तमाम पुराने लोग जो आकाशवाणी से प्रसारित हिंदी फिल्मी गीतों के फरमाइशी कार्यक्रमों या बिनाका गीतमाला सुनते रहे होंगे उन सब की स्मृतियों में झुमरी तलैया की याद जरूर होगी। वह भी इसी लोकसभा का हिस्सा है।

6 मई को यहां मतदान होना है। प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री रघुवर दास हेमामालिनी के साथ और हेमंत सोरेन जैसे बड़े नेताओं की सभाएं हो चुकी हैं। लेकिन अब भी चुनावी माहौल अपेक्षाकृत थोड़ा ठंडा ही दिखता है। इसका कारण शायद यहां चुनाव शुरू होने के क्रम में हुए कुछ नाटकीय परिवर्तन भी हैं।

भाजपा जो यहां पिछली बार जीती थी उसने वर्तमान सांसद रविंद्र राय का टिकट काटकर 4 दिन पहले राजद की प्रदेश अध्यक्ष रही अन्नपूर्णा देवी जो आकर भाजपा में शामिल हुईं उन्हें दे दिया। दूसरी तरफ महागठबंधन ने झारखंड विकास मोर्चा के नेता बाबूलाल मरांडी को यहां से लड़ा दिया है। मरांडी जी अभी पिछला विधानसभा चुनाव अपने गृह जनपद में ही भाकपा माले के राजकुमार यादव भाकपा (माले) के राजकुमार यादव के हाथों हार चुके हैं। पिछली लोकसभा में उनकी पार्टी से लड़े प्रमोद वर्मा नाराज होकर भाजपा में टिकट की आस में गए लेकिन टिकट न मिलने पर असंतोष में है।

भाकपा माले प्रत्याशी राजकुमार यादव की सभाओं में भारी भीड़ उमड़ रही है

भाकपा (माले) से यहां राजकुमार यादव प्रत्याशी हैं जो वर्तमान में यहीं की राजधनवार विधानसभा सीट से विधायक हैं। जेवीएम के बाबूलाल मरांडी इसी सीट पर उनसे 10,000 से ज्यादा मतों से हारे थे। राजकुमार यादव पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी की प्रचंड लहर के समय भी 2 लाख 62 हजार मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। हिंदी पट्टी में उस समय लेफ्ट की किसी भी सीट के मुकाबले यहां भाकपा (माले) को सर्वाधिक मत प्राप्त हुए थे। 2009 में भी राजकुमार दूसरे स्थान पर थे।

2014 में राजकुमार यादव 6 में से 4 विधानसभा सीटों पर भाजपा उम्मीदवार से आगे थे केवल 2 सीटों बरकट्ठा और कोडरमा में भाजपा उम्मीदवार उनसे आगे निकल गए थे लेकिन इस बार करण बदले हुए हैं। पिछली बार यादव, सवर्ण, मुस्लिम बहुल इन 2 सीटों पर इस बार स्थिति अलग है। राजद और जेवीएम के सारे यादव नेता भाजपा में चले गए हैं और भाजपा ने अन्नपूर्णा देवी को टिकट दिया है। ऐसे में लालू यादव के कठिन समय में अन्नपूर्णा देवी के साथ छोड़ने से यादव मतदाताओं में भी नाराजगी के स्वर सुनाई पड़ते हैं तो दूसरी तरफ रविंद्र राय का टिकट कटने से उच्च जातियों के वोटरों में भी उत्साह नहीं दिखाई दे रहा बल्कि कुछ तो इसके रिएक्शन में जेवीएम के मरांडी की ओर जाने की बात करते हैं।

प्रमोद वर्मा का जेवीएम से टिकट कटने और भाजपा में भी उपेक्षा से आहत होने के कारण उनके समुदाय का विक्षोभ भी दोनों पार्टियों के खिलाफ साफ साफ महसूस किया जा सकता है। ऐसी स्थित में मुस्लिम मतदाताओं में भी बहस तेज हो गई है कि भाजपा को हराने के लिए वे राजकुमार यादव का साथ दें।

मैं 29 अप्रैल से लगातार इस लोकसभा की सभी विधानसभाओं में घूम रहा हूं। बाजार में, गांव में, पार्टियों की सभाओं में तो लोगों में राजकुमार यादव और भाकपा (माले) की छवि लड़ाकू, ईमानदार और साफ राजनीतिक दृष्टि का सम्मान साफ-साफ दिखता है।

जमुआ में सभा के दौरान एक ग्रामीण अब्दुल गफ्फार अंसारी से बात होती है वे कहते हैं “जेवीएम को वोट देकर क्या करेंगे। बाद में तो वह भाजपा के खाते में ही चला जाएगा।” गफ्फार बताते हैं कि वे मोदी जी की सभा भी देखने गए थे लेकिन सुरक्षा का ऐसा आतंक था कि लौट आए। भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य कहते हैं कि “राजद के नेताओं और जेवीएम के नेताओं के भाजपा में जाने के बाद गठबंधन के पास बचा क्या है जिसके बल पर वे चुनाव में दम भर रहे हैं।”

राजकुमार यादव के पक्ष में सभा को सम्बोधित करते जिग्नेश मेवानी

बगोदर के पूर्व विधायक विनोद सिंह के साथ घूमता हूं जगह जगह दलित बस्तियों से लेकर सामान्य और इस दौर में मुस्लिम बहुल इलाकों में जिस तरह उनका स्वागत और लोगों से सहज रिश्ता दिखता है वह भी एक नए समीकरण का इशारा करता है।

भाकपा (माले) के नेता राजकुमार यादव की शानदार सभा राजधनवार में देखने को मिली। बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। महिलाओं, मुस्लिम समुदाय के लोगों और गरीब दलित हिस्सों की भागीदारी साफ ही दिख जाती है। माले की सभाओं में भाजपा पर उसकी नीतियों को लेकर हमले तो हैं ही लेकिन साथ साथ स्थानीय सवाल और संघर्षों की बात भी सुनने को मिलती है। वहीं भाजपा की सभा में चाहे मोदी जी की हो या रघुवर दास जी की वे 2014 में कोडरमा के लिए किए गए वादों की याद तक नहीं करते। सिर्फ आरोपों और सेना स्ट्राइक तक बातें सीमित हैं। जेवीएम के एक प्रमुख नेता और चर्चित विधायक प्रदीप यादव की सभा पिपचो बाजार के चौक पर देखी। बमुश्किल कार्यकर्ताओं समेत 40 लोगों की सभा थी लेकिन स्थानीय जनता के मुद्दे वहां भी गायब दिखे।

भाकपा (माले) प्रत्याशी राजकुमार यादव बताते हैं कि ‘बेटी बचाओ बेटी बेटी पढ़ाओ’ वाली सरकार के समय 117 प्राथमिक विद्यालय बंद कर दिए गए। मरांडी जी जो 10 साल यहां सांसद रहे और झारखंड के पहले मुख्यमंत्री थे उनके विकास का हाल यह है कि राजधनवार में वह एक भी बालिका हाई स्कूल तक नहीं बनवा सके जबकि इसी विधानसभा में उनका अपना गांव भी है। बगोदर के पूर्व विधायक बताते हैं कि डबल इंजन की इस सरकार में आज भी सरकारी मजदूरी का रेट मात्र 168 है। यह सरकार कारपोरेट के पक्ष में नीतियां तो बनाती है लेकिन मजदूरों के लिए इनका खजाना खाली है।

भाकपा (माले) के प्रचार अभियान में गुजरात के चर्चित दलित नेता जिग्नेश मेवाड़ी 29 तारीख से 1 तारीख तक जमे रहे गांव गांव सभा करने से लेकर बाजारों-चौराहों पर उन्होंने माले प्रत्याशी राजकुमार यादव के लिए समर्थन मांगा। उनका कहना था कि कोडरमा में भाजपा के विकल्प के रूप में राजकुमार यादव हैं जो संसद में जाएंगे तो हमारी आवाज और बुलंद होकर उभरेगी।

कुल मिलाकर हिंदी पट्टी के इस लोकसभा क्षेत्र का चुनाव अब एक महत्वपूर्ण और रोमांचक दौर में पहुंच चुका है। जहां भाजपा के खिलाफ महागठबंधन का हिस्सा न होते हुए भी भाकपा (माले) जबरदस्त टक्कर दे रही है और महागठबंधन के मरांडी इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

इस संदर्भ में माले महासचिव का यह बयान कि “कई बार जब गठबंधन ठीक से नहीं बनता तो जनता उसे सही कर देती है” महत्वपूर्ण है। वे चिन्हित करते हैं कि भाजपा को हराने के लिए गठबंधन सही तरीके से बनता तो कोडरमा से माले के राजकुमार जो 2 बार से दूसरे स्थान पर हैं और बगल की सीट गोड्डा से श्री फुरकान अंसारी जो 2014 में भी तीन लाख से ज्यादा वोट पाए थे नेचुरल प्रत्याशी होते।

चुनाव के नतीजे तो 23 तारीख को आएंगे लेकिन असली लड़ाई जारी है। माले ने पिछली बार के मुकाबले अपनी दो कमजोर रही सीटों पर सांगठनिक विस्तार किया है और कोडरमा के शहरी इलाकों में भी संगठित प्रचार अभियान संगठित किया है जिसकी झलक उसकी झुमरी तलैया की सभा में देखने को मिली। ऐसे में जब भाजपा के वोट बैंक में उदासीनता है और महागठबंधन कमजोर है तब अपने प्रचार को संगठित करते हुए और मतदान के दिन अपने आधार इलाकों के मतों को पूरी ताकत से बूथ तक ले आने में यदि भाकपा(माले) सक्षम होती है तो इस सीट पर लाल परचम लहरा सकता है।

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