नई दिल्ली। साहित्य अकादमी नई दिल्ली में सात मई को जाने माने चित्रकार, कला समीक्षक अशोक भौमिक की पुस्तक “भारतीय चित्रकला का सच” का लोकार्पण और ‘ समकालीन भारतीय चित्रकला ‘ पर विमर्श का कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसकी अध्यक्षता प्रोफेसर गोपाल प्रधान ने की।
इस मौके पर आलोचना के संपादक आशुतोष कुमार ने समकालीन भारतीय चित्रकला विषय की गंभीरता पर प्रकाश डाला। प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार ने भारतीय चित्रकला का सच’ पुस्तक की भूमिका भी लिखी है।
कार्यक्रम में सुमन सिंह ने कहा कि समकालीन कला का संदर्भ सिर्फ महानगरों में होने वाली कला से नहीं है । हमें अपने ग्रामीण लोक परंपरा को भी समानता से देखना चाहिए। जब हम पारंपरिक लोक कलाओं को देखते हैं तो हम पाते हैं कि उसकी स्प्रिट को वैश्विक स्तर पर सिर्फ महिलाओं ने बचाये रखा है।
युवा कला समीक्षक अरविन्द सिंघानिया ने “भारतीय चित्रकला का सच ” पुस्तक पर अपनी बात रखते हुए कहा कि ग़र कला और बाज़ार को समझना हो, कला और राजनीति को समझना हो, कला समाज और मिथ्य को समझना हो तो आज कला पर हिन्दी में लिखी गई “भारतीय चित्रकला का सच” पुस्तक को जरूर पढ़ना चाहिए।आज की शहर केन्द्रिक चित्रकला की विसंगतियों पर उन्होंने बार-बार बड़े साहस के साथ लिखा है।
आर्ट फर्स्ट के शिक्षा निदेशक लोकेश खोडके ने अपनी कला यात्रा के अनुभवों से वैकल्पिक कला अभ्यास के द्वारा समकालीन कला विसंगतियों का बेहतर समाधान की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि आज समकालीन कला और कलाकार बहुत कठिन समय मे संघर्ष कर रही है। आज सबसे पहले हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी को बचाने के लिए अपनी एकजुटता जाहिर करने की आवश्यकता है ।
कला समीक्षक राकेश गोस्वामी ने कहा कि अशोक भौमिक से हमारी बहुत आशाएं हैं और हम उनमें आने वाले कल के एक गंभीर और विद्वान कला इतिहासकार को देख पाते हैं। इन्होंने आदतन भारतीय चित्रकला के जड़ पर वार किया और कहा कि हिंदुस्तान के चित्रकला का सदियों पुरानी गौरवशाली इतिहास है। आज भारतीय समकालीन चित्रकला को अपने जर से जुड़े रहने की जरूरत है ।
कला प्रेमी डॉ. विनोद खेतान ने कहा कि कला देखने की सही प्रक्रिया में जा कर ही कला को सही से देखा जा सकता है। डॉ खेतान ने अशोक भौमिक की कला लेखन की सरल भाषा की खुलकर प्रसंसा करते हुए कहा कि कला समीक्षकों, लेखकों की भाषा यदि सरल हो तो हिंदुस्तान के लोगों को कला की बारीकियों देखने और समझने में बहुत आसानी होगी।
इस मौके पर अशोक भौमिक श्रोताओं के सवालों का उत्तर देते हुए कहा कि हिंदुस्तान के बहुसंख्यक श्रोता कला को कहानियों के कारण महत्व देते हैं। जबकि दुनिया के अन्य हिस्सों में ऐसा नहीं है। हम अगर कला को उसके कहानियों के संदर्भ मुक्त करके नहीं देख पाते हैं तो हम कला की मूल तक नहीं पहुंच पाते हैं। आज समकालीन चित्रकला, चित्रकार और दर्शकों को कला की मूल में उतर कर उसका रसास्वादन के लिये उसकी कहानियों, और बनावटी संदर्भों से मुक्ति की लड़ाई लड़ने के जरूरत है । इन्होंने कहा कि कला को मंदिरों से बाहर संग्रहालयों में ले जाने से हम उसे ठीक देख-समझ पाएंगे ।
पुस्तक विमोचन के परंपरागत तरीके को तोड़ कर कार्यक्रम में उपस्थित छह साल की चित्रकार रौशनी ने अशोक भौमिक द्वारा लिखित पुस्तक “भारतीय चित्रकला का सच” पुस्तक का लोकार्पण किया ।
कार्यक्रम में चित्रकार व दलित संस्कृति विचारक सवी सावरकर, डिपार्टमेंट ऑफ आर्ट एंड परफोर्मिंग आर्ट, शिवनादर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आशुतोष भारद्वाज, चित्रकार व कला समीक्षक भुवनेश्वर भास्कर, रविन्द्र दास , युवा चित्रकार रिदिमा , डॉ. राखी कुमार, कंचन प्रकाश, यास्मीन सुल्ताना, ललित पंत आदि कलाकार उपस्थित थे।