देश में दाभोलकर, पनसारे, कलबुर्गी से लेकर गौरी लंकेश तक की हत्याएँ हों, अखलाक, पहलू खान से लेकर जुनैद और बच्चा चोर या अन्य अफवाहों के ज़रिये जारी भीड़ हत्या और हमले हों, ये सब पूरी तरह निर्देशित घटनाएँ और हमले हैं, स्वतःस्फूर्त घटनाएँ नहीं.
झारखंड में सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता 80 वर्षीय स्वामी अग्निवेश पर भाजपाई गुंडों द्वारा हमला कोई अलग-थलग घटना नहीं, इसी की अगली कड़ी है. इस हमले और हमले के समय पर गौर करिये तो कई बातें साफ हो जाती हैं.
अव्वल तो यह कि इन हत्यारे गिरोहों में लाज-शर्म नाम की कोई चीज नहीं रह गई है.
स्वामी अपने बाने और नाम से ही सन्यासी नहीं हैं बल्कि विचार से भी आर्यसमाजी हैं जो मूलतः हिन्दू धर्म में सुधार की मान्यता के साथ उसका ही अंग रहा आया है और वे उतने अग्निवेशी भी नहीं हैं. अर्थ यह कि हिन्दू धर्म में सुधार को भी यह हिंदुत्व सहन करने को तैयार नहीं है. न ही इस गिरोह में सहिष्णुता का लेशमात्र भी शेष नहीं रह गया है.
इस तरह इन निर्देशित गिरोहों को बाकायदे हत्या की मशीन में तब्दील किया जा रहा है. गौरी लंकेश के हत्यारे का बयान इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, जिसमें वह कहता है कि उसे पता भी नहीं था कि जिसकी हत्या करने वह जा रहा है वो आदमी है कौन, सिवाय इसके कि उसे जिसकी हत्या करनी है वह हिन्दू-विरोधी है. स्वामी अग्निवेश पर हमला करने वाले भी यही कह रहे थे कि ये हिंदू-विरोधी हैं.
दूसरी बात यह हमला उस समय हुआ है जिस रोज सुप्रीम कोर्ट, केंद्र और राज्य सरकारों को भीड़ हत्या-हमला की बढ़ रही घटनाओं के लिये जिम्मेदार ठहराते हुए कड़ी फटकार के साथ इसे रोकने के लिए सुपरिभाषित और कड़ा कानून बनाने के लिये निर्देशित करता है. इससे साफ जाहिर है कि इन गुंडा गिरोहों को कानून और राज्य, कोर्ट, पुलिस किसी का कोई डर नहीं है, न ही उसके प्रति कोई आदर भाव. वे बेख़ौफ़ अल्पसंख्यकों, सक्रिय कार्यकर्ताओं, विरोध की हर आवाज़ पर प्राणघातक हमले कर रहे हैं। और सरकार के मंत्री उनका बाकायदे सार्वजनिक तौर पर सम्मान, समर्थन और सहयोग कर रहे हैं.
भीड़तंत्र भाजपा शासित राज्यों का चरित्र बनता गया है।
हद देखिये कि इन हालात में मोदी सरकार 10 लाख युवाओं का एक कार्यकर्ता दल तैयार करने को प्रस्तावित कर रही है. साफ़ है कि बजरंग दल, भाजयुमो, हिन्दू युवा वाहनी, गो रक्षा दल आदि के रुप में पहले से यह तैयार हैं, उन्हें एक दल में संगठित कर प्रशिक्षित कर और धार देने और कानूनी मान्यता दिलाने की यह कवायद के सिवा और कुछ नहीं है. वैसे ही जैसे हिटलर और मुसोलिनी ने अपनी हत्यारी फासिस्ट मिलिशिया बनाई थी.
इस सबके मद्देनज़र देश भर से यह जोरदार मांग उठनी चाहिये स्वामी पर हमला करने वालों को गिरफ्तार कर सज़ा दो, प्रधानमंत्री मोदी को देश में बढ़ती भीड़-हत्या की जिम्मबेदारी सीधे अपने ऊपर लेनी चाहिए और इसके लिए देश से माफ़ी मांगनी चाहिये, खासकर भाजपा-आरएसएस के कार्यकर्ताओं द्वारा ऐसी हत्याओं-हमलों को अंजाम देने वाले मामलों के लिये तो निश्चय ही.