नई दिल्ली, 1 फरवरी .
भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने बजट 2018 को थोथी बातें और भ्रामक दावों वाला बताया है. उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा पेश पिछली सालों के बजटों की तरह ही बजट में की गई घोषणाओं को लागू करने के लिए कोई ठोस आवंटन राशि का प्रावधान बनाये बगैर की गई खोखली बयानबाजी है।
उन्होंने कहा कि इस बजट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तबाह कर रहे कृषि संकट को हल करने की दिशा में कोई कोशिश नहीं की गई, फिर भी 2022 तक किसानों की आय दुगना करने के खोखले वायदे को दुहरा दिया गया है । देश भर में किसान संगठनों द्वारा उठाई जा रही कर्ज मुक्ति की मांग पर बजट पूरी तरह चुप है और इसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य को स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसाओं के अनुसार लागू करने का दावा बिल्कुल ही आधारहीन एवं भ्रामक है। वैसे भी सरकार के लागत मूल्य की गणना करने के फार्मूले में केवल चालू लागत सामग्रियों के मूल्य ही शामिल किये जाते हैं जबकि किसानों द्वारा स्वयं लगायी गयी लागत सामग्रियों, श्रम आदि को तो शामिल ही नहीं किया जाता है । माले महासचिव ने कहा कि बजट में ट्रेड यूनियनों और स्कीम कर्मचारियों की न्यूनतम मजदूरी, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा तथा उन्हें मजदूर का दर्जा देने व समान काम का समान वेतन देने के बारे में पूरी तरह चुप्पी साध ली गई है। मनरेगा में आवंटन पिछले साल जितना ही छोड़ दिया गया है, जबकि कई राज्यों में मनरेगा मजदूरी कानून में तय न्यूनतम मजदूरी के कम दी जा रही है और इस कानून के तहत परिवारों को मिल रहा औसत रोजगार केवल 49 दिन प्रति वर्ष ही है ।
उन्होंने कहा कि यह बजट भारतीय जनता के लिए आज के दो सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सरोकारों – बेरोजगारी एवं बेतहाशा बढ़ रही गैरबराबरी – के बारे में बिल्कुल चुप्पी साधे हुए है । अति-धनाढ्यों पर टैक्स लगाने का कोई प्रावधान इसमें नहीं लाया गया है, जबकि हम जानते हैं कि वर्ष 2017 में केवल 1% धनिकों के पास देश की 73% सम्पत्ति चली गई है । इस बजट में स्वास्थ्य लाभ के लिए बड़ी-बड़ी बातें की गई हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि जन स्वास्थ्य सेवा तंत्र को मजबूत बनाने की बजाय इसमें केवल गरीबों को मिलने वाला स्वास्थ्य बीमा कवर बढ़ाया गया है जोकि अंतत: निजी अस्पतालों और बीमा कम्पनियों को सरकारी खजाने से मुनाफा दिलवायेगा । एक ओर पूरा देश आज भी नोटबंदी से बने आर्थिक संकट और भारी तबाही से उबरने की कोशिश कर रहा है, वहीं अरुण जेटली जनता की बर्बादी और अर्थव्यवस्था को भारी क्षति पहुंचाने वाले इस कदम को ‘ईमानदारी का उत्सव’ बता कर एक बार फिर जनता का मजाक उड़ा गये।
उन्होंने विपक्ष के सांसदों का आह्वान किया कि वे बजट में जरूरी सवालों पर लगाई गई चुप्पी और किसानों व गरीबों के नाम में की गई थोथी बयानबाजी के लिए सरकार को घेरें और उसे उत्तरदायी ठहरायें । भाकपा(माले) किसानों, मजदूरों, महिला स्कीम कर्मियों, बेरोजगार नौजवानों और छात्रों के सवालों पर जनसंघर्षों को तेज करने के लिए प्रतिबद्ध है ।