पवन करण
मैं चुप रहकर समय को चीख़ में बदल देती हूँ..
कवि सविता भार्गव अपने एकांत में निवास करती हैं। एकांत ही उनका प्रकाश है, वायु है और जल है। उनकी कविता भी उनके एकांत का ही प्रतिनिधित्व करती है। यह किसी का भ्रम हो सकता है कि उसने इस कवि के अकेलेपन को भेद दिया है अथवा उसमें सेंधमारी कर दी है। दरअसल यह कवि की सदाशयता है कि उसने किसी को अपने एकांत में विचरण करने की, उससे संवाद करने की इजाजत देकर उसे अनुभव और संवेदना संपन्न बनाया है। कवि का यह बयान संग्रह की कविताओं में सतत प्रवाहित है।
सविता भार्गव के कविता संग्रह ‘थमी हुई बारिश में दोपहर’ की कविताओं को पढ़ना मतलब कवि के साथ चुपचाप दूर तक चलने, कहीं बैठकर किसी दृश्य को निहारने या उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर देर तक बैठने जैसा है। आप जितनी समझ इस संग्रह की कविताओं को दे सकते हैं, कवि से उतना हासिल कर सकते हैं। चुप्पी का साथ चुप्पी दे ये अनुभव कवि और पाठक दोनों से यह कहते हुए कविता भी हासिल करना चाहती है कि स्त्री के साथ रहना चाहते हो तो कविता के साथ रहना सीखो।
किसी कवि की खामोशी उसके भीतर की मुरझाहट ही नहीं खिलखिलाहट की भी सूचक है। यह एक स्त्री का आमंत्रण है आप सिर नवाकर उसके संसार में प्रवेश कीजिये और अपनी जिंदगी को पंख लगाकर उड़ता हुआ देखिये। यहां देखिए एक कवि चलती चली आ रही है, चलते चलते वह अपने संग्रह में प्रवेश करती है, हर कविता में अपना चेहरा देखती हुई संग्रह से बाहर निकल जाती है। यह इस संग्रह और कवि का अनूठापन है।
उल्लेखनीय है कि कवयित्रियां स्वयं को लिख रही हैं और स्वयं को लिखने की इस प्रकिया में वे कितना कुछ लिखे दे रहीं हैं कमाल कि उनके पास लिखने को कितना है लिखे जा चुके से भी अधिक।
◆तब के बारूद से अब को उड़ा देना चाहती हूँ
◆स्टाफ़ रूम तक पहुंचती कोई रेलगाड़ी
सभी औरतें दौड़ कर बैठ जातीं उसमें
◆उसकी देह दो मंजिला कोठी है
चस्पाँ है जिस पर किसी एक पुरुष की नेम प्लेट
◆मैं अपने शहर की गलियों पर भरोसा करती हूं
जो आपस में जुड़कर इधर से उधर मुड़ जाती हैं
◆मैं तो जीवित काया में मृत्यु का भी अनुभव करना चाहती हूं
◆मां तो कभी वापस आ जाएगी
या मैं ही चली जाऊँगी उसके पास
लेकिन अभी तो जा रही है माँ वापस
कैसे बंद करुंगी मैं अपना किवाड़
◆याद करती हूं अपने छोटे-से कस्बे को
इच्छा होती है नये सिरे से प्रेम करने की
◆और कितना समय लगेगा सूर्य जैसा प्रेमी पाने में
◆दूर तो समुद्र भी है मेरे से
लेकिन मूंद कर आंखें मैं उसमें डुबकी लगा लेती हूँ
◆मेरे होठ की फांक जैसा टेढ़ा चांद
(राजकमल से प्रकाशित यह संग्रह , मेरे हाथों में संग्रह की ही प्रिय कविता ‘बिल्ली’ की तरह है, आप भी पढ़िये)
पुस्तक: थमी हुई बारिश में दोपहर’
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
मूल्य: रु 199
समीक्षक पवन करण का जन्म 18 जून, 1964 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ। उन्होंने पी-एच.डी. (हिन्दी) की उपाधि प्राप्त की। जनसंचार एवं मानव संसाधन विकास में स्नातकोत्तर पत्रोपाधि।
उनके प्रकाशित कविता-संग्रह हैं-‘ इस तरह मैं’, ‘स्त्री मेरे भीतर’, ‘अस्पताल के बाहर टेलीफोन’, ‘कहना नहीं आता’, ‘कोट के बाजू पर बटन’, ‘कल की थकान’, ‘स्त्रीशतक’ (दो खंड) और ‘तुम्हें प्यार करते हुए’। अंग्रेजी, रूसी, नेपाली, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, गुजराती, असमिया, बांग्ला, पंजाबी, उड़िया तथा उर्दू में उनकी कविताओं के अनुवाद हुए हैं और कई कविताएँ विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रमों में भी शामिल हैं।
‘स्त्री मेरे भीतर’ मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, उर्दू तथा बांग्ला में प्रकाशित है। इस संग्रह की कविताओं के नाट्य-मंचन भी हुए। इसका मराठी अनुवाद ‘स्त्री माझ्या आत’ नांदेड महाराष्ट्र विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में शामिल और इसी अनुवाद को गांधी स्मारक निधि नागपुर का ‘अनुवाद पुरस्कार’ प्राप्त। ‘स्त्री मेरे भीतर’ के पंजाबी अनुवाद को 2016 के ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया।
उन्हें ‘रामविलास शर्मा पुरस्कार’, ‘रजा पुरस्कार’, ‘वागीश्वरी पुरस्कार’, ‘शीला सिद्धान्तकर स्मृति सम्मान’, ‘परम्परा ऋतुराज सम्मान’, ‘केदार सम्मान’, ‘स्पंदन सम्मान’ से भी सम्मानित किया जा चुका है।
सम्प्रति : ‘नवभारत’ एवं ‘नई दुनिया’, ग्वालियर में साहित्यिक पृष्ठ ‘सृजन’ का सम्पादन तथा साप्ताहिक-साहित्यिक स्तम्भ ‘शब्द-प्रसंग’ का लेखन।
ई-मेल : pawankaran64@rediffmail.com