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महादेवी वर्मा के रेखाचित्र पर आयोजित हुई गोष्ठी

शिवानी

महादेवी वर्मा स्मृति महिला पुस्तकालय की ऑनलाइन रविवारी गोष्ठी में महादेवी वर्मा के रेखाचित्र ‘बिंदा’ का पाठ एवं उस पर चर्चा हुई।
महादेवी जी का रचना क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है जिसमें पद्य के साथ साथ गद्य अपने वैचारिक विस्तार और परिपक्वता को लिए हुए है जिनमें जीवन का संपूर्ण वैविध्य समाया हुआ है। महादेवी जी सदैव सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से सचेत एवं मुखर रही हैं और उनके व्यक्तित्व का यह पहलू उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। महादेवी जी ने अपनी रचनाओं एवं उनके पात्रों के माध्यम से सामाजिक एवं राजनीतिक असमानता, रूढ़ियों एवं परंपरा से चली आ रही अलोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज किया लेकिन उनकी भाषा की मधुरता और कोमलता वैसी ही बनी रही जिसके कारण अनामिका जी महादेवी जी कि भाषा को ‘ सविनय अवज्ञा ‘ की भाषा भी कहती हैं।महादेवी जी को ज्यादातर पीड़ा एवम् करुणा की कवियित्री के रूप में ही याद किया गया है जबकि उन्हें उनके मूल विद्रोही तेवर एवम् सजग चेतना से संपन्न व्यक्तित्व के रूप में ही याद किया जाना चाहिए।

बिंदा रेखाचित्र के माध्यम से महादेवी जी ने समाज से जुड़े बहुत से पहलुओं एवं समस्याओं की ओर संकेत किया है। यह रेखाचित्र समाज पर कई जरूरी सवाल खड़े करती है इसमें बाल मनोविज्ञान, पितृसत्ता एवं निजता की भावना से जुड़ी विकृतियों एवं समस्याओं के प्रश्न को उठाया गया है।

बसंत जी ने बिंदा की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि 1930 से 42 के दौर में महादेवी जी अपनी कविताएं लिख रही थी और फिर अपने काव्य व्यक्तित्व के बाद वे दूसरी विधाओं की ओर जाती हैं और उनमें भी अपने विचार एवं काव्य व्यक्तित्व का विस्तार करती हैं। जिस समय महादेवी जी लिख रही थी वह राष्ट्रवादी आंदोलनों का दौर था, उसी समय हिंदू धर्म, समाज और संस्कृति को बहुत आदर्श रूप में रखा जा रहा था ऐसे समय में महादेवी जी की रचनाएं उनके पात्रों के माध्यम से लड़ने की क्षमता और साहस के साथ नए रूपों में दिखाई पड़ती हैं। उस समय एक ओर जहां पूरी दुनिया को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ समझे जाने का दावा किया जा रहा था वहीं दूसरी ओर अपनों के संबंधों में ही उदारता के अभाव को देखा जा सकता था और महादेवी जी ने समाज के ऐसे अंतर्विरोधों को ही हमारे सामने रखा है। महादेवी जी 9 साल की बालपने को भी सजगता एवं जिज्ञासु दृष्टि से देखती हैं और अपने रेखाचित्र में बच्चों का जिक्र करते हुए भी बहुत ही बारीकी से यथार्थवादी, कोमल एवं बाल मनोविज्ञान जैसे दृष्टिकोण को हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं।बसंत जी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि महादेवी जी ने हमारे सामने समाज का आईना रखा है जिससे हम अपने समाज को समझ सकें।

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कवि और उमर ने भी इस पर अपनी बात रखी।कवि ने कहा कि महादेवी जी इस रेखा चित्र के माध्यम से मां के गुणों उनका बच्चों के प्रति अथाह प्रेम और सौतेली मां और उसके दुर्व्यवहार से उत्पन्न बालमन पर पड़े प्रभावों को दर्शाती हैं। कवि ने कहा कि बिंदा की सौतेली मां उसका शोषण तो करती है लेकिन उसके अंदर भी मातृत्व की कोमल भावनाएं हैं जो उसके बेटे के साथ उसके संबंधों में देखा जा सकता है lअंत में कवि ने एक प्रश्न के साथ अपनी बात को समाप्त किया कि मातृत्व की भावना होने के बावजूद सौतेली मां का हृदय इतना कठोर क्यों होता है?
सचिन ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नई मां का किरदार समाज द्वारा ही गढ़ा गया है। समाज में अपने खून और पराए की भेदभावपूर्ण भावनात्मक प्रवृति के कारण ही ऐसी घटनाएं हमें देखने को मिलती हैं।
निकिता ने रेखाचित्र को तीन दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया। पहला, स्त्री चेतना के रूप में जिसमें वह कहती हैं कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था में दोष हमेशा सिर्फ महिलाओं को ही दिया जाता है जबकि यहां पर बिंदा का पिता भी उसकी बुरी स्थिति के लिए उतना ही दोषी है जितना कि उसकी सौतेली मां बल्कि उससे कहीं ज्यादा ही क्योंकि वह बिंदा का सगा पिता है पर फिर भी उसे अपनी बेटी की जरा भी परवाह नहीं उसे तो सिर्फ एक औरत की देह से ही मतलब है फिर चाहे वह बिंदा की असली मां रही हो या उसकी मृत्यु के बाद उसकी दूसरी पत्नी। निकिता कहती हैं कि इस व्यवस्था में पर्दे के पीछे का सारा खेल तो पुरुषों का होता है लेकिन दोष हमेशा स्त्रियों पर मढ़ दिया जाता है। निकिता ने अपनी दूसरी बात को बच्चों के जीवन में मां के किरदार और तीसरी बाल मनोविज्ञान से जोड़ कर रखी जिसमें उन्होंने कहा कि ऐसे बातों और ऐसे दुर्व्यवहार से बच्चों के जीवन पर कितना भयानक असर पड़ता है।
पूर्ति ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बाल सुलभ मन कितनी बारीकी से अपने आसपास की घटनाओं को देखता है और उससे प्रभावित होता है। पूर्ति कहती हैं कि बिंदा की मानसिक स्थिति पर पड़े प्रभाव को मन्नू भंडारी के ‘आपका बंटी’ में भी देखा जा सकता है।
अनीता जी ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह रेखाचित्र सामाजिक संबंधों को लेकर बहुत जरूरी सवाल खड़े करती है और यहां ऐसी स्थिति में सिर्फ मां पर ही नहीं बल्कि सचेत रूप से पिता पर भी सवाल उठने चाहिए।
मीना जी ने भी अपनी बात रखते हुए कहा कि समाज में आज भी इस तरह की घटनाएं देखने को मिलती हैं। मातृत्व प्रेम और सौतेलेपन जैसा अंतर्विरोध समाज में अपने और पराए की भावना के कारण ही उपस्थित है।
जनार्दन जी ने इस पर चर्चा करते हुए इस विषय को और भी अधिक समझने के लिए प्रेमचंद की कहानी ‘ अलगौझा ‘ को पढ़ने का सुझाव दिया। जनार्दन जी ने कहा कि सौतेलेपन का मामला मात्र जैविक नहीं है बल्कि समाज द्वारा ही इस प्रकार की चीजों को गढ़ दिया जाता है कि हमें ऐसा व्यवहार देखने को मिलता है। जनार्दन जी ने कहा कि क्रिया प्रतिक्रिया के नियम के अनुसार ऐसा व्यवहार हमें प्रतिक्रिया स्वरूप ही देखने को मिलता है और प्रतिक्रिया हमेशा मासूमों पर ही स्पष्ट होती है। जनार्दन जी ने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा कि महादेवी जी अपनी रचनाओं में लोकतंत्र को लाना चाह रही थीं। महादेवी जी की रचनाएं सामाजिक प्रतिबद्धता को प्रस्तुत करती हैं और एक लेखक ऐसे ही लोकतंत्र की आवाज़ को मजबूत बनाता है।
परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए रामजी राय ने इस पर और विस्तार से अपनी बात रखते हुए कहा कि निजता की भावना ही इन विकृतियों को जन्म देती है। उन्होंने कहा कि समाज में निजीपन की भावना ही वह सहज मानवीय प्रवृत्ति है जो ऐसी सोच को जन्म देती है कि जो अपना नहीं है वह अच्छा नहीं है और इसके परिणाम स्वरूप हमें ऐसी घटनाएं अलग-अलग रूपों में देखने मिलती हैं। उन्होंने कहा कि निजीपन, पितृसत्ता ऐसी विकृतियां हैं जिन्होंने हमारी इंद्रियों को भी विकृत रूप दे दिया है। अपने इस बात को उन्होंने हम रामकथा के कैकेयी उदाहरण से भी पुष्ट किया। कैकेयी भी राम से बहुत अधिक प्रेम करती थी लेकिन जब प्रश्न सत्ता और राजमाता बनने के अधिकार का आया तो उन्होंने भी राम के साथ ऐसा ही सौतेला व्यवहार किया।

रामजी राय ने पितृसत्तात्मक मानसिकता को भी ऐसी विकृतियों का कारण बताया। लड़की है तो पराए घर की होगी वाली पितृसत्तात्मक मानसिकता ऐसी विकृतियों की जड़ है। इस समाज में उत्तराधिकारी पैदा किए जाते हैं बच्चे नहीं और लड़कियां तो कभी उत्तराधिकारी मानी नहीं जाती। फिर ऐसे पितृसत्तात्मक समाज और व्यवस्था में दोष सौतेली मां का ही कैसे हुआ? उन्होंने कहा कि महादेवी जी ने एक बच्चे के मन से इस रेखाचित्र को हमारे सामने रखा है उनकी स्मृतियों की प्रेरणा वह बच्ची है जो स्कूल में आती है अर्थात इस पूरे रेखाचित्र के माध्यम से महादेवी जी पूरी एक परंपरा पर प्रहार करती हैं जो ऐसी विकृत सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों पर प्रहार है।

गोष्ठी का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन मनोज कुमार मौर्य ने किया।रेखाचित्र का पाठ सचिन ने किया।

गोष्ठी में इविवि के एसोसिएट प्रोफेसर बसंत त्रिपाठी, असिस्टेंट प्रोफेसर जनार्दन कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर दीनानाथ मौर्य, जनमत के प्रधान संपादक रामजी राय, जनमत की प्रबंध संपादक मीना राय, अनीता त्रिपाठी, मनोज कुमार मौर्य एवं विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं शिवानी, निकिता, पूर्ति, सचिन, कवि और उमर शामिल रहे।

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