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कर्मचारी भी बिहार चुनाव में अपनी भूमिका अदा करने को तैयार

बिहार में चुनाव प्रचार चरम पर है. 28 अक्टूबर को होने वाले पहले चरण के लिए तो प्रचार कल शाम थम चुका है.
प्रचार अभियान में शामिल होने के लिए मैं दीघा विधानसभा क्षेत्र में हूँ. दीघा विधानसभा क्षेत्र पटना शहर का विधानसभा क्षेत्र है. इसमें लगभग साढ़े चार लाख से कुछ अधिक मतदाता हैं और 711 पोलिंग बूथ हैं. यहां 18 प्रत्याशी मतदान में हैं. प्रत्याशियों की इस बड़ी संख्या के चलते यहां दूसरे चरण में 3 नवंबर को होने वाले मतदान में दो ई.वी.एम. लगेंगी.
प्रत्याशियों की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद मुख्य मुकाबला दो गठबंधनों के बीच ही है.
सत्ताधारी जद(यू)- भाजपा वाले एन.डी.ए. की ओर से निवर्तमान विधायक डॉ. संजीव चौरसिया पुनः मैदान में हैं. विपक्षी महागठबंधन की ओर से भाकपा(माले) की कॉमरेड शशि यादव चुनाव मैदान में हैं.
प्रचार अभियान में गली-मोहल्लो में घूमते हुए दो दिन में भाजपा के कुल चार प्रचार वाहन ही प्रचार की रस्म अदायगी करते नजर आए. “मुमकिन है” कि प्रचार के किसी अन्य तरीके पर उनका भरोसा प्रत्याशियों की इफ़रात के बावजूद अन्य प्रत्याशियों के भी कुल तीन प्रचार वाहन ही दिखे.
दूसरी तरफ महागठबंधन समर्थित भाकपा(माले) की प्रत्याशी कॉमरेड शशि यादव हैं जो तमाम गली-मोहल्लों में निरंतर जन संपर्क में हैं, डोर-टू-डोर लोगों से मिलने से लेकर नुक्कड़ सभाओं और रोड शो के जरिये मतदाताओं तक पहुंचने का प्रयास कर रही हैं. उनके समर्थन में प्रचार टीमों और प्रचार वाहन भी सुबह से शाम तक चल रहे हैं.
कॉमरेड शशि यादव छात्र जीवन से वामपंथी आंदोलन से जुड़ी रही हैं. महिला आंदोलन के साथ ही बीते वर्षों में महिला कामगारों के जुझारू नेता के तौर पर शशि जी की पहचान बनी है.
प्रचार अभियान में घूमते हुए कुछ कर्मचारियों और कर्मचारी नेताओं से मुलाकात हुई. बातचीत में नितीश राज में आम कर्मचारियों और कर्मचारी नेताओं की उपेक्षा के कई किस्से सामने आते हैं.
आम कर्मचारी की यह पीड़ा है कि नितीश के राज में प्रोमोशन तक पर रोक लगा दी गयी है. देश भर में भाजपा द्वारा 50 वर्ष की उम्र में कर्मचारियों को रिटायर करने का तुगलकी फरमान यहां नितीश जी ने भी लागू कर दिया है. कर्मचारियों के बीच यह फैसला बड़े विक्षोभ का कारण है. विद्रूप देखिए जीवन के 70 बरस पूरे करने के कगार पर खड़े प्रधानमंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री, 50 वर्ष का होने पर कर्मचारियों की कार्यकुशलता में ह्रास होने का अंदेशा जताते हुए, उनकी सरकारी सेवा में कार्यकुशलता की समीक्षा और सेवा मुक्ति का आदेश निकाल रहे हैं.
कर्मचारी नेताओं ने बताया कि नितीश कुमार जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने घोषणा की थी कि वे हर छह महीने में कर्मचारियों नेताओं से मिलकर कर्मचारियों की समस्याओं और सुझावों को सुनेंगे और तदनुसार फैसला करेंगे. तंज करते हुए एक कर्मचारी नेता कहते हैं- 15 साल में वो छठा महीना कभी नहीं आया !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नितीश कुमार का प्रयास यह है कि महागठबंधन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर स्वयं को पाक-साफ सिद्ध किया जाए. मुख्यमंत्री सचिवालय में काम करने वाले एक कर्मचारी बताते हैं कि मुख्यमंत्री सचिवालय में हर रविवार को मरम्मत का काम होता है. यह सिलसिला अनवरत जारी है. जिनका अपना सचिवालय भ्रष्टाचार के टल्लों की मरम्मत करने में ही लगा हो, वो दूसरों को भ्रष्टाचारी कहें, यह मासूमियत है कि कुटिलता?
मुख्यमंत्री सचिवालय के ही एक अन्य कार्मिक कहते हैं कि सत्ताधारी पार्टी के विधायकों और मंत्रियों को भी मुख्यमंत्री नितीश कुमार से मिलने का समय मुश्किल से ही मिल पाता है. जब मंत्री-विधायकों को मुख्यमंत्री से मिलना आसान नहीं है तो आम जन की बिसात ही क्या है ! कोमल चेहरे और मुलायम बातों वाले नितीश कुमार कितने राजसी गुमान में रहते हैं, इससे समझा जा सकता है.
दीघा से लगी हुई सीट है फुलवारी शरीफ .उस सीट पर भाकपा(माले) के प्रत्याशी कॉमरेड गोपाल रविदास का जिक्र करते हुए एक कर्मचारी कहते हैं, “ऐसे वक्त में जब पार्टियां टिकटों की बोल लगा रही हैं, माले ने एक ऐसे गरीब को टिकट दिया, जिसके पास अपना घर तक नहीं है. यह अद्भुत है.”
चुनावी दंगल पर नज़र और घटनाक्रम की नब्ज़ को गहरे तक पकड़े हुए कर्मचारी, बिहार के चुनाव में अपनी भूमिका अदा करने को तैयार नज़र आते हैं.

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